चंदे की कहानी
भाजपा की निरंतर सफलता में इलेक्टोरल बॉन्ड, चुनावी ट्रस्ट और कॉरपोरेट घरानों पर छापेमारी का हाथ
राजनीति में कॉरपोरेट फंडिंग एक विवादित विषय रहा है. भारत में यह और ज़्यादा विवादों से भरा है क्योंकि यहां हालिया कुछ सालों में अधिकांश पैसा केवल एक ही पार्टी के खाते में गया है. ऐसा लगता है कि यह सब किसी सुनियोजित पैटर्न पर चल रहा है.
पिछले पांच वित्तीय वर्षों में भाजपा को लगभग 335 करोड़ रुपये चंदा देने वाली करीब 30 कंपनियों को केंद्रीय जांच एजेंसियों की छापेमारी का सामना करना पड़ा है. एक पैटर्न यह है कि पहले छापा, तुरंत बाद चंदा, दूसरा पैटर्न यह है कि छापे के बाद चंदे की राशि में बढ़ोत्तरी. कुछ कंपनियों ने कार्रवाई के ठीक बाद के महीनों में चंदे की राशि को अनपेक्षित रूप से बढ़ा दिया.
क्या यह महज संयोग है?
इसी तरह इलेक्टोरल बॉन्ड के पहले चुनावी चंदे के लिए जो व्यवस्था काम करती थी उसे चुनावी ट्रस्ट कहते हैं. चुनावी ट्रस्ट की व्यवस्था इलेक्टोरल बॉन्ड आने के बाद लगभग विलुप्त हो गई है. लेकिन एक ट्रस्ट इसके बावजूद काम कर रहा है, आखिर क्यों? और कुछ कंपनियां अभी भी इसी ट्रस्ट के जरिए चंदा क्यों दे रही हैं?
ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट की यह खोजी पत्रकारिता सीरीज़ जवाब देने का प्रयास करती है. पिछले 10 वर्षों से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सभी तरह के आंकड़ों के साथ हमने इसे समझने की कोशिश की है. यानी, चुनावी बॉन्ड को छोड़कर सारे उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर.
इस बात के मद्देनज़र कि नरेंद्र मोदी सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया है. अदालत ने पार्टियों की कॉरपोरेट फंडिंग में लेनदेन की आशंका (क्विड प्रो को) और सार्वजनिक पारदर्शिता के अभाव का जिक्र किया है.
सत्ता, बॉन्ड और कॉरपोरेट्स
हाल के वर्षों में बार-बार यह जानकारी सामने आई है कि सत्तारूढ़ पार्टी अर्थात भाजपा को लगातार बाकी राजनीतिक दलों की तुलना में कहीं ज़्यादा धन चुनावी चंदे के रूप में मिला है.
चुनावी ट्रस्टों के जरिए भाजपा को सबसे ज्यादा धन मिला. 2022-23 में कांग्रेस को चुनावी ट्रस्टों के ज़रिए उद्योग जगत से भाजपा द्वारा कमाए गए हर 100 रुपये पर मात्र 19 पैसे मिले. चुनावी ट्रस्ट एक ऐसी योजना है, जिसमें कॉरपोरेट कंपनियां अपने दान को एक ट्रस्ट में जमा करती हैं. इसके बाद ट्रस्ट अपनी पहचान गोपनीय रखते इस राशि को विभिन्न राजनीतिक दलों को वितरित करता है. 2013 के बाद से, जब यूपीए सरकार द्वारा यह योजना शुरू की गई थी, तब से भाजपा को इसका सबसे अधिक फायदा हुआ है. पार्टी को पिछले 10 वर्षों में विभिन्न ट्रस्टों के माध्यम से 1,893 करोड़ रुपये से अधिक चंदा मिला है.
इसी तरह इलेक्टोरल बॉन्ड्स से भी भाजपा को ही सबसे ज्यादा धन मिला. साल 2022-23 में उसे लगभग 1,300 करोड़ रुपये मिले, जो इसी दौरान कांग्रेस को मिले धन से सात गुना ज़्यादा है. इस अवधि में भाजपा की लगभग 61 प्रतिशत फंडिंग इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से हुई थी. 2018 से 2022 के दौरान इस तरीके से मिले कुल चंदे का करीब 57 फीसदी हिस्सा भाजपा को मिला.
सीधे मिलने वाले चंदे में से भी भाजपा के खाते में बहुत बड़ा हिस्सा गया. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के अनुसार, 2022-23 में राष्ट्रीय दलों को दिए गए कुल 850.4 करोड़ रुपये में से 719.8 करोड़ रुपये अकेले भाजपा को मिले.
वहीं, इस बीच सरकार की ओर से जारी किए जाने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड्स की संख्या में भी बढ़ोतरी देखी गई.
मार्च 2022 से मार्च 2023 तक के वित्तीय वर्ष के दौरान, कुल 2,800 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए. मौजूदा महीने में संसद में सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2019 से अभी तक 16,518 करोड़ रुपये से ज़्यादा के बॉन्ड खरीदे जा चुके हैं.
ये बॉन्ड किसने खरीदे? पारदर्शिता के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कोमोडोर (सेवानिवृत्त) लोकेश बत्रा को आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक 2018 से दिसंबर 2022 तक 1,000 रुपये मूल्य के बॉन्ड कुल बिक्री का सिर्फ 0.01 प्रतिशत थे, जबकि एक करोड़ रुपये की कीमत वाले बॉन्ड 94.41 प्रतिशत थे. संभावना ये भी है कि यह चंदा कॉरपोरेट फर्मों द्वारा कुछ व्यक्तियों या शेल कंपनियों के पीछे छुपकर किया गए.
सुप्रीम कोर्ट ने अब भारतीय स्टेट बैंक को नए बॉन्ड्स जारी करने से रोक दिया है. साथ ही भारत के चुनाव आयोग को 2019 के बाद से प्राप्त फंडिंग का विवरण सार्वजनिक करने के लिए कहा है. इस बीच योजना की नवीनतम किश्त के ज़रिये मिले धन से, आगामी चुनाव के लिए पूरे भारत में चुनाव प्रचार के लिए धन मिलने की संभावना भी है.
राजनीतिक दलों की कॉरपोरेट फंडिंग पूरी दुनिया में एक विवाद का विषय है. कंपनियों द्वारा राजनेताओं को पैसा देना, दोनों के बीच सांठगांठ के प्रश्न उठाता है. इससे भ्रष्टाचार के साथ-साथ सत्ता व व्यापार के बीच आपसी लेनदेन वाले अनैतिक संबंध को बढ़ावा मिलता है. यह एक ऐसा आयाम है जिसे उच्चतम न्यायालय ने भी 15 फरवरी को अपना फैसला सुनाते समय रेखांकित किया था. अदालत का कहना था, "कंपनियों द्वारा किया गया योगदान विशुद्ध रूप से व्यापारिक लेनदेन है, जो बदले में लाभ हासिल करने के इरादे से किया जाता है."
दो गहन डेटा रिपोर्ट में दिखाई देती दो प्रवृत्तियां
न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट ने जब पिछले 10 वर्षों में 1 करोड़ रुपये या उससे अधिक का दान देने वाली कंपनियों की सूची खंगाली, तो दो रुझान नज़र आए.
भाजपा को कुल 335 करोड़ रुपये का चंदा देने वाली करीब 30 कंपनियों को इसी अवधि में केंद्र सरकार की एजेंसियों द्वारा छापेमारी जैसी कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा था.
कुछ कंपनियों ने कार्रवाई होने के बाद पार्टी को और ज़्यादा दान दिया, जबकि कुछ अन्य को एक साल में दान न देने के बाद कार्रवाई का सामना करना पड़ा.
मध्य प्रदेश स्थित एक डिस्टिलरी ने छापेमारी के बाद पार्टी को सबसे तेजी से दान दिया. कम्पनी के प्रमोटरों को जमानत मिलने के कुछ ही दिनों बाद यह काम हुआ.
ये 30 कंपनियां कौन हैं? उन पर क्या आरोप लगाए गए? इसको विस्तार से जानने के लिए इस श्रृंखला का इस हफ्ते प्रकाशित होने वाला पहला भाग अवश्य पढ़ें.
इसी सीरीज़ की हमारी दूसरी रिपोर्ट चुनावी बॉन्ड के पहले वाली व्यवस्था, यानी चुनावी ट्रस्ट पर नज़र डालती है, जो आज लगभग विलुप्त हो चुका है. विलुप्ति के शोर में भी एक ट्रस्ट मैदान में खड़ा है. भारती समूह द्वारा स्थापित किया गया प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट. पिछले कुछ वर्षों में बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों ने प्रूडेंट को सैकड़ों करोड़ रुपये दान किए हैं और इसमें से अधिकांश पैसा सीधे भाजपा को गया है.
प्रूडेंट की सक्रियता वो भी एक पार्टी के पक्ष में चौंकाती है. जब अन्य ट्रस्ट मुश्किल से ही कुछ धन एकत्र कर पा रहे हैं तो यह कैसे काम कर रही है? और इलेक्टोरल बॉन्ड होने के बावजूद कुछ कंपनियां चुनावी ट्रस्ट के माध्यम से ही दान देना क्यों पसंद करती हैं? इस श्रृंखला की हमारी दूसरी रिपोर्ट में इस रहस्य के बारे में पढ़ें.
ये दोनों विशेष रिपोर्ट पढ़ने के लिए आपको न्यूज़लॉन्ड्री- द न्यूज़ मिनट को सब्सक्राइब करना होगा. नहीं किया है तो कर लीजिए. ताकि आप गर्व से कह सकें- मेरे खर्च पर आज़ाद हैं खबरें.
और हां, आम चुनाव करीब आ चुके हैं, न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट के पास उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सेना प्रोजेक्ट्स हैं, जो वास्तव में आपके लिए मायने रखते हैं. यहां क्लिक करके हमारे किसी एक सेना प्रोजेक्ट को चुनें, जिसे आप समर्थन देना चाहते हैं.
इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
आम चुनाव करीब आ चुके हैं, और न्यूज़लॉन्ड्री और द न्यूज़ मिनट के पास उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सेना प्रोजेक्ट्स हैं, जो वास्तव में आपके लिए मायने रखते हैं. यहां क्लिक करके हमारे किसी एक सेना प्रोजेक्ट को चुनें, जिसे समर्थन देना चाहते हैं.
Also Read
-
‘Jailing farmers doesn’t help anyone’: After floods wrecked harvest, Punjab stares at the parali puzzle
-
TMR 2025: The intersection of art and activism
-
Billboards in Goa, jingles on Delhi FMs, WhatsApp pings: It’s Dhami outdoors and online
-
TISS Saibaba case: Complainant says ‘FIR imposed’, cops named her ‘without consent’
-
बारामासा पर हमला: विज्ञापन बंदरबांट स्टोरी का नतीजा, एबीपी न्यूज़ का कॉपीराइट स्ट्राइक और एआई वीडियो से चरित्र हनन