Report
भजन लाल शर्मा: दूध विक्रेता, सरपंच और भाजपा के बागी से लेकर मुख्यमंत्री पद तक का सफर
सोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे जयपुर में पार्टी विधायक दल की बैठक में मंच पर बैठी दिख रही हैं. मंच पर उनके साथ बैठे राजनाथ सिंह उन्हें कागज की एक पर्ची सौंपते हैं, जिसे वह खोलती हैं. पर्ची को पढ़कर वसुंधरा राजे चौंक जाती हैं.
इस पर्ची पर कथित तौर पर राजस्थान के नए मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का नाम था, जिसकी घोषणा पार्टी ने 12 दिसंबर को की थी. उन्हें सीएम बनाने की पटकथा दिल्ली में लिखी गई थी.
राजे ने इस बैठक में उनके नाम का प्रस्ताव रखा और फिर शर्मा और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात की और सरकार बनाने का दावा पेश किया.
भजनलाल शर्मा पहली बार विधायक बने हैं और उन्होंने जयपुर की सांगानेर सीट से 48,081 मतों से जीत दर्ज की है. उनकी उम्र 56 साल है. वह कांग्रेस के हरिदेव जोशी के बाद 33 साल में राजस्थान में दूसरे ब्राह्मण मुख्यमंत्री हैं. उनके साथ-साथ दो उप-मुख्यमंत्री भी बनाए गए हैं. ये दीया कुमारी (राजपूत) और प्रेमचंद बैरवा (दलित) होंगे, जबकि वासुदेव देवनानी विधानसभा अध्यक्ष होंगे.
सांगानेर से अपनी उम्मीदवारी से पहले भजनलाल शर्मा राजस्थान भाजपा की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अक्सर देखे जाते थे, जो अक्सर वक्ताओं का परिचय देते थे या राजस्थान में पार्टी की चुनाव व्यवस्थाओं का जायजा लेते थे. विधानसभा चुनाव से पहले भजनलाल चौथी बार प्रदेश भाजपा के महासचिव चुने गए थे और पूरे राज्य में उन्होंने कई बैठकें की थी. वह गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जनसभाओं की व्यवस्थाओं का भी निरीक्षण भी कर रहे थे.
भाजपा भरतपुर के उपाध्यक्ष शेर सिंह के मुताबिक, भजनलाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ गिरिराज जी महाराज के पवित्र स्थल पर गए थे. उन्हें पार्टी अध्यक्ष सीपी जोशी और राज्य महासचिव (संगठन) चंद्रशेखर का करीबी भी कहा जाता है.
दूध विक्रेता से बने सरपंच
भरतपुर जिले के अटारी गांव में जन्मे भजनलाल को उनके दोस्त और पार्टी सहयोगी 'सुलझे और नेक' इंसान बताते हैं. उनके पिता किशन स्वरूप शर्मा एक किसान हैं जिनकी अटारी में 25 बीघे की खेती है. भजनलाल अपने माता-पिता की इकलौती औलाद हैं.
गांव के एक किसान ओम प्रकाश जाटव ने बताया कि मतगणना से एक दिन पहले भजनलाल अटारी गए थे और बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया था.
भजनलाल की स्कूली शिक्षा भरतपुर के अटारी और गंगवाना गांवों और नानबाई तहसील में हुई है. भाजपा की ओर से पत्रकारों के साथ साझा किए गए एक नोट में कहा गया है, "अटारी में अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, वह (भजनलाल) माध्यमिक शिक्षा के लिए नदबई आए और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के संपर्क में आए.”
एबीवीपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र शाखा है.
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने भरतपुर के एमएसजे कॉलेज में दाखिला लिया और 1989 में ग्रेजुएट हुए. नानबाई भाजपा (ग्रामीण) के अध्यक्ष राकेश शर्मा के मुताबिक, वह और भजन लाल 1984 में पार्टी में शामिल हुए थे.
तब उनका परिवार अपनी आजीविका के लिए खेती और दूध पर निर्भर था. भजन लाल ने कॉलेज खत्म करने के बाद परिवार की मदद में हाथ बंटाया.
अटारी में एक सेवानिवृत्त शिक्षक और उनके चाचा मणिराम शर्मा ने कहा, "वह अपने गांव से दूध इकट्ठा करते थे और भरतपुर में एक डेयरी को बेचते थे. ये सात-आठ सालों तक चलता रहा जब तक बीजेपी ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी नहीं दे दी."
साल 1990 में भजन लाल ने "कश्मीर मार्च" में भाग लिया था. वह जम्मू-कश्मीर के उधमपुर गए और 100 भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ्तारी दी थी. साल 1992 में राम जन्मभूमि आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था.
1990 के दशक की शुरुआत में उन्होंने भरतपुर में भारतीय जनता युवा मोर्चा के लिए कई जिम्मेदारियां निभाईं. इसी दौरान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के साथ उनकी अच्छी दोस्ती हो गई, जो उस वक्त भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष थे. भरतपुर में भाजपा युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष के रूप में भजनलाल चुनाव के दौरान बिड़ला के साथ प्रचार किया और पार्टी के लिए संगठनात्मक काम भी किया.
उस वक्त भजनलाल शर्मा अक्सर ओम बिड़ला से मिलने कोटा भी जाते थे.
उनके चाचा मनीराम कहते हैं, "उस समय, मैं कोटा के एक स्कूल में काम करता था. वह शहर में आते थे और मेरे साथ रहते थे. सुबह वह ओम बिड़ला के घर के लिए रवाना हो जाते थे. भजनलाल और ओम बिड़ला विधानसभा चुनाव के दौरान एक साथ प्रचार करते थे."
पहला चुनाव मुकाबला
साल 2000 में भजनलाल शर्मा ने एक पंचायत चुनाव लड़ा. ये उनका पहला चुनाव था. वह चुनाव जीत गए और अटारी ग्राम सभा के सरपंच बन गए. तीन साल बाद भाजपा ने उन्हें विधानसभा चुनावों के दौरान नदबई से टिकट देने से इनकार कर दिया. इसलिए भजनलाल ने पार्टी छोड़ दी और एक नई पार्टी राजस्थान सामाजिक न्याय मंच (आरएसएनएम) के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ा. इस पार्टी को देवी सिंह भाटी और लोकेंद्र सिंह कालवी ने बनाया था.
बीकानेर के कोलायत से सात बार विधायक रहे भाटी ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "उन्होंने (भजनलाल) हमें यह नहीं बताया कि उन्हें भाजपा ने टिकट देने से इनकार कर दिया है. लेकिन उन्होंने मुझसे यह कहा कि 'आरक्षण पार्टी का लक्ष्य है, इसलिए मैं यह लड़ाई लड़ूंगा. तब आरएसएनएम का मुख्य चुनावी मुद्दा आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण था."
लेकिन उस चुनाव में नदबई सीट पर कृष्णेंद्र कौर नाम की एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी. भाजपा उम्मीदवार 13,949 वोटों के साथ चौथे और भजनलाल शर्मा 5,969 वोटों के साथ पांचवें स्थान पर रहे. आरएसएनएम पार्टी को इस चुनाव में केवल एक सीट मिली थी. वसुंधरा राजे के वफादार माने जाने वाले भाटी इसी साल सितंबर में फिर से भाजपा में शामिल हो गए. चुनाव में उनके पोते अंशुमान सिंह भाटी ने बीकानेर के कोलायत से भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की है.
प्रदेश भाजपा प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज के अनुसार, "भजनलाल शर्मा ने जब पार्टी छोड़ी तो चुनावी नतीजों के कुछ दिन बाद ही वह फिर से पार्टी में शामिल हो गए. सरपंच के रूप में उनका पांच साल का कार्यकाल खत्म होने पर उनकी पत्नी गीता भरतपुर पंचायत समिति की सदस्य बन गईं. इसके बाद उनका पूरा परिवार साल 2005 में भरतपुर चला गया. "
फिलहाल उनके माता-पिता भरतपुर में ही रहते हैं, जबकि भजनलाल शर्मा अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ जयपुर के मालवीय नगर में रहते हैं. उनके दो बेटे हैं जिसमें से एक डॉक्टर हैं, दूसरा सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं.
नए चेहरों के संकेत
राजस्थान में मतदान के दौरान ऐसे संकेत मिले थे कि राजे को दरकिनार कर नए चेहरे को उतारा जाएगा. उन्हें दो प्रमुख चुनाव पैनलों में शामिल नहीं किया गया था. बाद में जब नतीजे घोषित किए गए तो 50 से ज्यादा विधायकों ने वसुंधरा राजे से उनके जयपुर स्थित आवास पर मुलाकात की. इसे शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा था.
इस बीच भाजपा ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में क्रमशः विष्णु देव साय (आदिवासी) और मोहन यादव (ओबीसी) जैसे दो नए चेहरों को मुख्यमंत्री बनाया.
इस तरह यह संभावना तो थी कि भाजपा राजस्थान में भी एक नया चेहरा चुनेगी, लेकिन फिर मोदी-शाह ने पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को चुनकर उन सभी अटकलों और नामों को गलत साबित कर दिया, जो मीडिया में उछाले जा रहे थे. विधायक दल की बैठक में भाजपा विधायकों की एक ग्रुप फोटो में भजनलाल शर्मा अंतिम पंक्ति में थे.
लेकिन पीछे मुड़कर देखें तो शायद केंद्रीय नेतृत्व हमेशा से भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में देखता रहा है. उन्हें भरतपुर या नानबाई में अपनी पसंदीदा सीटों के बजाय भाजपा के गढ़ सांगानेर से लड़ने के लिए कहा गया था.
सांगानेर सीट पर भाजपा 2003 के बाद से नहीं हारी है. पार्टी ने अपने मौजूदा विधायक अशोक लाहोटी को भी टिकट देने से इनकार कर दिया था. अशोक लहोटी वसुंधरा राजे के करीबी हैं.
भजनलाल शर्मा ने सांगानेर से जीत दर्ज की, वहीं भरतपुर में कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रीय लोक दल के सुभाष गर्ग और नदबई सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की.
यही पैटर्न दीया कुमारी के लिए भी खेला गया, जो अब राजस्थान की उपमुख्यमंत्रियों में से एक हैं. राजसमंद से लोकसभा सांसद रहीं दीया कुमारी को विद्याधर नगर से उम्मीदवार बनाया गया था. इस सीट पर पहले पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत के दामाद और वसुंधरा राजे के विश्वासपात्र नरपत सिंह राजवी विधायक थे.
फिलहाल भजनलाल शर्मा के लिए तात्कालिक चुनौती भाजपा को एकजुट रखने की है. इसके अलावा उनके सामने वसुंधरा राजे जैसी दिग्गजों की बगाावत के किसी भी संकेत पर लगाम लगाने की हो सकती है, लेकिन देवी सिंह भाटी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि ऐसा होने की संभावना नहीं है.
वह कहते हैं, "भाजपा कोई समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल या बहुजन समाजवादी पार्टी सरीखे क्षेत्रीय पार्टी नहीं है जिसमें भाईयों के बीच ही लड़ाई हो जाती है. इसके उलट भाजपा एक कैडर-आधारित पार्टी है. पार्टी ने उनसे (वसुंधरा) बात की होगी और उन्हें मनाया होगा. तभी उन्होंने भजन लाल के नाम का प्रस्ताव रखा."
लेकिन जिस तरह से वसुंधरा राजे को दरकिनार किया गया उससे देवी सिंह भाटी आश्चर्यचकित रह गए. देवी सिंह भाटी ने बाताया कि कि उन्होंने राजे का समर्थन तब भी किया था जब वह भाजपा में नहीं थे.
उन्होंने कहा, "जब मैं पार्टी में फिर से शामिल हुआ, तो हमें यह आश्वासन दिया गया था (कि वह सीएम बनेंगी). उन्होंने कहा, "पार्टी में फिर से शामिल होने के बाद हम अब ऐसा नहीं सोचते हैं. हम पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता हैं."
भरतपुर में भाजपा के उपाध्यक्ष शेर सिंह ने कहा कि भजनलाल शर्मा को सीएम बनाए जाने से पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन मिलेगा.
वह कहते हैं, "इसका मतलब ये है कि जो कोई भी (पार्टी में) कड़ी मेहनत करेगा वह सीएम बन सकता है.भाजपा एकमात्र ऐसी पार्टी है जो इस तरह की प्रतिभा और कड़ी मेहनत को पहचान सकती है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने राजस्थान के पत्रकार अविनाश कल्ला से पूछा कि क्या भाजपा का तीन राज्यों में नए चेहरों को आगे बढ़ाना सत्ता को केंद्रीकृत करने का प्रयास है?
अविनाश बोले, "आप प्रयास शब्द का इस्तेमाल क्यों कर रहे हैं? यह स्पष्ट है."
वह कहते हैं, "यह कहना गलत नहीं होगा कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की राजधानी नई दिल्ली है. जयपुर में कुछ नहीं बचा है. आज जयपुर की गलियां भजनलाल के पोस्टरों से पटी पड़ी है, ताकि लोगों को बताया जा सके कि वह नए मुख्यमंत्री हैं."
अविनाश बोले, "पहली बार के विधायक को चुनने में कुछ भी गलत नहीं है. अशोक गहलोत को देखिए, वह मुख्यमंत्री (1998 में) तब बने जब वह विधायक भी नहीं थे. उनका कांग्रेस पार्टी पर हमेशा का प्रभाव रहा है क्योंकि उनकी राजनीति अलग थी. नरेंद्र मोदी जब विधायक नहीं थे तब गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. वसुंधरा राजे पहली बार विधायक बनी थीं, हालांकि इससे पहले वह केंद्रीय मंत्री रह चुकी थीं."
अनुवादक- चंदन सिंह राजपूत
Also Read
-
CEC Gyanesh Kumar’s defence on Bihar’s ‘0’ house numbers not convincing
-
Hafta 550: Opposition’s protest against voter fraud, SC stray dogs order, and Uttarkashi floods
-
TV Newsance 310: Who let the dogs out on primetime news?
-
If your food is policed, housing denied, identity questioned, is it freedom?
-
The swagger’s gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream