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नई कंपनी के तहत चलेगा भारत में बीबीसी, आयकर सर्वे, टैक्स अनियमितता के आरोपों का असर
बीबीसी इंडिया भारत में अपना कामकाज जारी रखने के लिए जल्द ही एक नई कंपनी का गठन करेगा. भारत सरकार द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों में बदलाव इसकी वजह है. ये नियम किसी भी डिजिटल न्यूज़ मीडिया में विदेशी निवेश की सीमा को 26 फीसदी तक सीमित करते हैं. मालूम हो कि अब तक बीबीसी विश्व सेवा की भारत इकाई का 99 फीसदी से ज्यादा स्वामित्व ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन के पास है.
बीबीसी न्यूज़ के डिप्टी चीफ एग्जिक्यूटिव जोनाथन मुनरो की मौजूदगी में आज दोपहर भारत के दिल्ली स्थित कार्यालय में हुई एक बैठक में इस बारे में जानकारी दी गई. बैठक में बीबीसी इंडिया की हेड रूपा झा समेत कई वरिष्ठ कर्मचारी और अधिकारी शामिल थे.
बैठक में बताया गया कि बीबीसी भारत में नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक नई कंपनी का गठन करेगा. इसका नाम कलेक्टिव न्यूज़ रूम (सीएनआर) होगा. यह कंपनी अप्रैल 2024 से प्रभावी होगी. बीबीसी के सभी कर्मचारी अप्रैल 2024 से इसके तहत काम करेंगे. हालांकि, उन्हें सैलरी और अन्य सुविधाएं बीबीसी की तर्ज पर ही मिलेंगी.
सीएनआर का ढांचा
इस कंपनी में 9 डायरेक्टर होंगे. अभी तक मिली जानकारी के मुताबिक, सीएनआर को रूपा झा लीड करेंगी और उनका साथ देंगे मुकेश शर्मा.
बीबीसी की इस नई कंपनी में और कौन लोग होंगे इसके बारे में अभी ज्यादा खुलासा नहीं किया गया है. साथ ही बीबीसी का कार्यालय भी आने वाले वक्त में कनॉट प्लेस से शिफ्ट हो सकता है. साथ ही कर्मचारियों को आश्वस्त किया गया है कि उन्हें नौकरी से नहीं निकाला जाएगा बल्कि नई कंपनी में समायोजित किया जाएगा. इस बारे में और विस्तार से चर्चा के लिए बुधवार को फिर से हरेक विभाग की अलग-अलग बैठक होगी.
इससे पहले नियामक को दायर अपने जवाब में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, इंडिया ने नियमों के अनुपालन के लिए 31 मार्च, 2024 तक का समय मांगा था.
मालूम हो कि बीबीसी वर्ल्ड सर्विस की भारत इकाई हिंदी और अन्य भारतीय क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी में टेलीविजन, रेडियो और वेबसाइट के कंटेंट प्रोडक्शन के लिए बीबीसी यूके के सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करती है.
वित्त वर्ष 2023 में, कंपनी ने कंटेंट प्रोडक्शन के लिए बीबीसी यूके से 129.4 करोड़ रुपये का सेवा शुल्क लिया और रेडियो स्टेशनों, टीवी चैनलों और डिजिटल प्लेटफार्मों के लिए लाइसेंसिंग सामग्री से 77 लाख रुपये का प्रोग्रामिंग शुल्क अर्जित किया.
साल 2019 में हुआ था नियमों में बदलाव
सितंबर 2019 में, उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने डिजिटल समाचार में एफडीआई को 26 फीसदी तक सीमित कर दिया था. प्रसारण मंत्रालय ने 16 नवंबर, 2020 को एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया, जिसमें 26 फीसदी से अधिक विदेशी निवेश वाली सभी डिजिटल समाचार संस्थाओं को 15 अक्टूबर, 2021 तक विदेशी निवेश को 26 फीसदी तक सीमित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा गया था.
बीबीसी समूह ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि इस साल फरवरी में देश में बीबीसी की गतिविधियों पर भारत सरकार के कर सर्वेक्षण की शुरुआत के बाद एक संभावित आकस्मिक देनदारी की पहचान की गई थी. इसमें कहा गया है कि कंपनी ने इस दौरान सरकार का पूरा सहयोग किया और सभी संबंधित दस्तावेज उपलब्ध करवाए हैं. वह आगे भी ऐसा करना जारी रखेगी.
बीबीसी पर छापेमारी और आयकर सर्वे
मालूम हो कि इस साल 14 फरवरी, 2023 को बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित कार्यालयों में आयकर विभाग द्वारा सर्वे किया गया था. यह तीन दिन तक जारी रहा. सर्वे के बाद वित्त मंत्रालय ने बताया था- “बीबीसी में सर्वे के दौरान विभाग को ट्रांसफर प्राइसिंग डॉक्यूमेंटेशन में कई विसंगतियां मिली हैं.”
इसके बाद जून में हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट आई, जिसमें दावा किया गया कि बीबीसी ने स्वीकार किया है कि उनकी कंपनी द्वारा कम टैक्स दिए जाने की आशंका है. अखबार ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ डायरेक्ट टैक्सेशन (सीबीडीटी) के दो अधिकारियों के हवाले से कहा कि बीबीसी ने कम टैक्स देने की बात स्वीकार भी की है.
उल्लेखनीय है कि जब बीबीसी पर छापेमारी हुई थी तो हर ओर इस बात की चर्चा थी कि सरकार ने यह कार्रवाई बदले की भावना से की है. इसकी वजह ये थी कि बीबीसी ने कुछ वक्त पहले ही गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर दो हिस्सों की डॉक्यूमेंट्री रिलीज की थी.
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