Chhattisgarh Elections 2023
छत्तीसगढ़ चुनाव: सवालों पर भड़के आबकारी मंत्री लखमा, इंटरव्यू छोड़ उठे
‘‘आज दादी मेरे गांव में प्रचार करने के लिए आए थे. मुझे एक रात पहले से ही नींद नहीं आ रही थी. कहीं गांव में कोई विरोध कर दिया तो मुझे बहुत बुरा भला कहते. भगवान का शुक्र है किसी ने कुछ नहीं बोला. मेरे गांव भी आए और आसपास के तीन और गांव गए.’’
सुकमा जिलाधिकारी कार्यालय के पास बने रेस्टोरेंट में कांग्रेस से जुड़े एक कायर्कता ने यह सब हमें बताया.
वह कहते हैं, ‘‘आजकल दादी और उनके बेटे को जगह-जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है. कई गांवों से तो लोगों ने इन्हें लौटा भी दिया है.’’
बता दें कि कवासी लखमा अपने इलाके में दादी के नाम से चर्चित हैं. बस्तर क्षेत्र में दादी का मतलब बड़ा भाई होता है. सुकमा जिले के कोंटा विधानसभा क्षेत्र से पांच बार से लगातार विधायक लखमा को इस बार चुनाव प्रचार के दौरान विरोध का सामना करना पड़ रहा है. विरोध के पीछे बड़ी वजह बेरोजगारी और उनकी वादाखिलाफी बताई जा रही है.
दरअसल, साल 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी तो इन्हें आबकारी मंत्री बनाया गया. वहीं, कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में शराबबंदी का वादा किया था. शराब बंदी नहीं हुई. न्यूज़लॉन्ड्री ने जब इसको लेकर लखमा से सवाल किया तो वे कहते हैं कि मैं जिस दिन आबकारी मंत्री बना उसी दिन से कह रहा हूं कि शराबबंद नहीं हो सकती है.
ये पूछने पर कि कांग्रेस ने घोषणापत्र में इसका वादा किया था तो लखमा कहते हैं, “शराबबंदी को कोई राजनीतिक पार्टी याकि कांग्रेस भी लागू नहीं करेगी.”
लखमा के मुताबिक, “हमने अपने वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया है. पांच सालों में एक भी आदमी कमेटी के पास शराबबंदी को लेकर नहीं आया. टीवी में बोलकर राजनीति करने से शराबबंदी नहीं होगी. अगर नरेंद्र मोदी देशभर में बंद करेंगे तभी होगी.’’
घोषणापत्र का वादा लागू नहीं करने पर सफाई देते हुए वह कहते हैं, ‘‘घोषणापत्र हर तो पार्टी जारी करती है लेकिन सरकार में आने के बाद उसे अमलीजामा पहनाने के लिए जनता से पूछा जाता है. मैं आबकारी मंत्री हूं. मेरे पास ढेर सारे आवेदन अपने क्षेत्र में शराब की दुकान खोलने को लेकर आए हैं. लेकिन एक भी आदमी ने शराबबंदी को लेकर आवेदन नहीं दिया. तो बताएं मेरे लिए जनता बड़ी हुई या घोषणापत्र?’’
2018 चुनाव में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में एक और वादा किया था. झीरम घाटी हत्याकांड की जांच का वादा. 25 मई 2013 को कांग्रेस नेताओं के काफिले पर सुकमा के झीरम घाटी इलाके में नक्सलियों ने हमला कर दिया था. इसमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, महेंद्र कर्मा समेत 32 लोगों की हत्या हो गई थी. उस काफिले में लखमा भी थे लेकिन वो बच निकले.
कांग्रेस सरकार ने ‘जो कहा सो किया’ नाम से बुकलेट जारी किया. उसमें लिखा कि सरकार गठन के दिन ही मुख्यमंत्री ने झीरम घाटी की जांच के लिए घोषणा की और 19 दिसंबर 2018 को एसआईटी गठन के आदेश जारी कर इस दिशा में कार्रवाई शुरू कर दी. 2 जनवरी 2019 को एसआईटी का गठन भी कर दिया गया.
इसी में आगे लिखा गया कि बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक और नक्सल अभियान के पुलिस उप महानिरीक्षक समेत इस एसआईटी में नौ सदस्य शामिल किए गए. एसआईटी ने अपनी जांच भी शुरू कर दी है.
जब इस मामले पर हमने लखमा से पूछा तो वे नाराज हो गए. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने इसकी जांच पर रोक लगा रखी है. हम न्यायालय से ऊपर थोड़े ही हैं. वे कहते हैं कि सवाल पूछना है तो रमन सिंह और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक से पूछो. उन्हीं लोगों ने कोर्ट जाकर जांच रुकवाई है.
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल झीरम घाटी की जांच को लेकर केंद्र सरकार पर भी आरोप लगाते नजर आते हैं.
‘दारू पीकर कर रहे हैं विरोध’
कवासी लखमा के बेटे किष्टाराम गांव में प्रचार करने लिए गए थे. जहां उन्हें ग्रामीणों के विरोध का सामना करना पड़ा. विरोध करने वाले ज्यादातर नौजवान लड़के थे. इसके अलावा भी लखमा, उनके बेटे और कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कई जगह विरोध का सामना करना पड़ा है. विरोध के पीछे वजह बताई जा रही है कि भर्तियों में स्थानीय युवाओं को मौका नहीं दिया गया. जबकि दूसरे संभाग के युवाओं को यहां नौकरी दी गई.
जब हमने इस बारे में लखमा से सवाल किया तो वो कहते हैं, “यह राजनीतिक विरोध है. कोई मुद्दा तो उन (विपक्ष) के पास है नहीं. 3 दिसंबर को पता चलेगा कौन कितने पानी में है. दारू पीकर विरोध करने से नहीं होगा. मनीष कुंजम के पास कोई मुद्दा नहीं है.”
मालूम हो कि मनीष कुंजाम कोंटा से सीपीआई समर्थित उम्मीदवार हैं. कुछ तकनीकी कारणों से सीपीआई के उम्मीदवार को पहले चरण में पार्टी का चुनाव निशान नहीं मिला. इस वजह से उन्हें निर्दलीय के तौर पर लड़ना पड़ रहा है. कुंजाम को ‘एसी’ चुनाव चिन्ह मिला है. वहीं, भाजपा ने इस बार कोंटा से सोयम मुका को मैदान में उतारा है.
लखमा आश्वस्त हैं कि इस चुनाव में जनता उन्हें फिर जिताएगी. वो कहते हैं कि हमारी सरकार जितना काम कर रही है, उतना किसी सरकार ने नहीं किया है. जनता काम देखकर वोट करती हैं. हालांकि, जनता में उनके प्रति नाराजगी भी देखने को मिल रही है. जिसे वो दारू पीकर करना वाला विरोध बता रहे हैं.
कोंटा में सात नवंबर को चुनाव है. नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे.
देखिए ये रिपोर्ट.
Also Read
-
What’s Your Ism? Ep 9. feat Shalin Maria Lawrence on Dalit Christians in anti-caste discourse
-
Uttarakhand forest fires: Forest staff, vehicles deployed on poll duty in violation of orders
-
Mandate 2024, Ep 3: Jail in Delhi, bail in Andhra. Behind the BJP’s ‘washing machine’ politics
-
‘They call us Bangladeshi’: Assam’s citizenship crisis and neglected villages
-
PM Modi’s mangalsutra, bhains, Muslims speech: What do Bihar’s youth think?