न्यूज़क्लिक के खिलाफ एफआईआर लिखा पर्चा.
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न्यूज़क्लिक एफ़आईआर: विपक्षी एकजुटता की अपील बनी कार्रवाई की वजह?

मार्च 2019 में कुछ लोगों ने एक चिट्ठी पर हस्ताक्षर किए, जिसमें विपक्षी दलों से उस साल होने वाले आम चुनाव से पहले एकजुट होने और "मोदी सरकार के कपट भरे फैसलों को वापस लिए जाने को लेकर" एक मुहिम की शुरूआत की.

यह चिट्ठी पीपुल्स अलायंस फॉर डेमोक्रेसी एंड सेक्युलरिज्म (पीएडीएस) नामक एक सिविल सोसाइटी संगठन के बैनर तले जारी की गई थी. हालांकि, यह अब सक्रिय नहीं है, लेकिन इसका गठन 2014 में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए किया गया था.

इस चिट्ठी के जारी होने के चार साल बाद अब दिल्ली पुलिस की ओर से न्यूज़क्लिक पर दर्ज एफआईआर में पीएडीएस को भी शामिल किया गया है. 

न्यूज़क्लिक वेबसाइट के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ पर 2019 के आम चुनावों के दौरान चुनावी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने के लिए पीएडीएस के साथ साजिश रचने का आरोप लगाया गया. पुरकायस्थ और न्यूज़क्लिक के एचआर हेड अमित चक्रवर्ती को यूएपीए के तहत दर्ज मामले में गिरफ्तार किया गया. उनकी गिरफ्तारी से पहले दिल्ली पुलिस ने कई पत्रकारों और समाचार वेबसाइट से जुड़े कई अन्य लोगों के घरों की तलाशी ली. 

एफआईआर में पीएडीएस के "प्रमुख व्यक्तियों" का नाम दर्ज हैं जो "इस साजिश में शामिल" थे. इनमें बत्तीनी राव, दिलीप शिमोन, दीपक ढोलकिया, हर्ष कपूर, जमाल किदवई, किरण शाहीन, संजय कुमार, असित दास के नाम शामिल हैं. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने 2019 के दौरान पीएडीएस की गतिविधि की पड़ताल की. इस दौरान हमारे हाथ मार्च 2019 की एक चिट्ठी लगी. चिट्ठी में हस्ताक्षर करने वाले 70 लोगों में कुछ 'प्रमुख व्यक्तियों' के नाम थे लेकिन इसमें पुरकायस्थ हस्ताक्षरकर्ता नहीं थे.

पूरी चिट्ठी यहां पढ़ी जा सकती है. इसमें कहा गया है कि मोदी सरकार ने "संवैधानिक संस्थानों की साख गिरा दी" और "शक्ति के केंद्रीकरण के लिए संघीय ढांचे को तोड़-मरोड़ने करने की कोशिश की." वहीं, "बेशर्मी से भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को धवस्त कर दिया." 

इसके अलावा चिट्ठी में लिखा था कि मोदी सरकार के दौरान "फर्जी मुठभेड़ों की बाढ़ आ गई”, "सरकार के महत्वपूर्ण संस्थानों की स्वायत्तता को नष्ट करने की कोशिश की गई", "आरएसएस के अधिनायकवादी कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए राज्य की शक्ति का इस्तेमाल किया गया" और "भारत की राजनीतिक संस्कृति के आपराधिकरण की कोशिश हुई.”  

चिट्ठी में विपक्षी दलों से 'राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से ऊपर उठकर' और 'लोकतंत्र के लिए ख़तरे की गंभीरता को समझने और उसका सामना करने' की गुजारिश शामिल थी.

चिट्ठी में 73 शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों, पत्रकारों, वकीलों और अन्य लोगों ने हस्ताक्षर किए थे. 

पीएडीएस की पूर्व संयोजक बत्तीनी राव ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि चिट्ठी केवल विपक्षी दलों से एक साथ एकजुट होने और 2019 के चुनाव में भाजपा के खिलाफ लड़ने की अपील थी.

राव ने कहा, “लेकिन एफआईआर में वे (पुलिस) इसे चुनावी प्रक्रिया को अस्थिर करने की साजिश के तौर पर पेश कर रहे हैं. पुलिस ने चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले पहले कुछ लोगों का नाम एफआईआर में डाल दिया.” 

वे कहती हैं, “पीएडीएस कोई राजनीतिक संगठन नहीं है और न ही इसने कभी राजनीतिक दलों का समर्थन किया है. लेकिन जिस तरह से भाजपा काम करती है वह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है और इसलिए पीएडीएस ने विपक्षी दलों से एक साथ आने की अपील की थी.

राव ने इस बात पर जोर दिया कि अगर कोई दूसरी पार्टी भी ऐसे ही तरीके से काम करती तो तब भी पीएडीएस वैसे ही अपील करता.

राव ने कहा, “हम किसी भी तरह के अतिवाद के खिलाफ़ हैं. चाहे वह दक्षिणपंथी अतिवाद हो, वामपंथी अतिवाद हो या फिर कोई धार्मिक अतिवाद हो. पीएडीएस का एकमात्र लक्ष्य धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को बढ़ावा देना है और मेरा मानना है कि ये पूरे तरीके से संवैधानिक है.”  

राव ने कहा कि चिट्ठी के जरिए दिया गया बयान “1000 लोगों तक भी नहीं पहुंच सका, फिर भी पुलिस इसे "चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने की साजिश करार दे रही है." 

न्यूज़लॉन्ड्री ने कुछ और लोगों से भी बात की जिन्होंने 2019 की इस चिठ्ठी पर हस्ताक्षर किए थे. 

अनिल सदगोपाल भी उनमें से एक हैं. वह भोपाल के शिक्षाविद् हैं. उनका कहना है कि किसी पार्टी के खिलाफ़ एकजुट होने की अपील को ‘बाधा उत्पन्न करना’ कैसे करार दिया जा सकता है? 

वह कहते हैं, “अपील करना भारतीयों का अधिकार है. जो सत्ता में बैठे हैं उन्हें मालूम होना चाहिए कि देश के लोग अपने संवैधानिक अधिकार के तहत हमेशा अपील करते रहेंगे और कोई उनकी आवाज़ को दबाने कि कोशिश करता है तो ये संविधान के खिलाफ़ है. जिसे हमने अपने आज़ादी की लड़ाई लड़ कर हासिल किया है.”

ओडिशा के रहने वाले पर्यावरणविद प्रफुल्ल सामंतारा ने कहा कि वो देश में आपातकाल के दौरान जेल जा चुके हैं लेकिन “इस तरीके का अघोषित आपातकाल सौ गुना ज़्यादा ख़तरनाक और गंभीर है. सिर्फ इसलिए नहीं कि मोदी एक तानाशाह की तरह काम कर रहे हैं बल्कि उन्होंने फासीवाद भी विकसित किया है जिसे अब देश में महसूस किया जा सकता है.”

उन्होंने कहा, “देश में लोकतंत्र को बचाना ज़रूरी है. लोकतंत्र की वो आत्मा जिसे हमने आज़ादी के दौरान हासिल किया था, उसे बचाना अब बहुत ज़रूरी है.” 

शंकर सिंह मज़दूर किसान शक्ति संगठन के सदस्य हैं. वे कहते हैं, “बीजेपी के खिलाफ़ विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने का बयान चुनावी प्रक्रिया में बाधा कैसे खड़ी कर सकता है? अपील संविधान के ख़िलाफ़ नहीं है बल्कि ये संवैधानिक मूल्यों के मुताबिक है. लेकिन अगर सत्ता में बैठे लोगों कि मंशा किसी को परेशान करने की है तो फिर वो किसी भी विज्ञप्ति या चिठ्ठी को चुनावों को बाधित करने की साजिश बता सकते हैं.”

गौहर रज़ा एक वैज्ञानिक, कवि और कार्यकर्ता भी हैं. उन्होंने भी वही बातें दोहराई कि इस तरह की अपील करना संवैधानिक अधिकार है, न कि राष्ट्र विरोधी हरकत. जब राजनीतिक पार्टियां लोगों से वोट मांगती है तो वह भी एक अपील है. 

पीएडीएस पर लगे आरोपों के बारे में पूछने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री ने ललित मोहन नेगी से भी संपर्क साधने की कोशिश की है. ललित मोहन नेगी दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के एसीपी हैं. अगर उनकी कोई प्रतिक्रिया आती है तो इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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