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‘पत्रकारों को चाय पिलाने ले जाओ’ कहकर विवादों में घिरे महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख, संगठन कर रहे माफी की मांग
महाराष्ट्र भाजपा अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले द्वारा पार्टी कार्यकर्ताओं से "पत्रकारों को चाय के लिए ढाबे पर ले जाने" के लिए कहा गया ताकि वे उनके बारे में सिर्फ सकारात्मक ख़बरें ही प्रकाशित करें. इसके बाद महाराष्ट्र में हंगामा शुरू हो गया. वहीं, राज्य के पत्रकारों और पत्रकार संगठनों ने भाजपा प्रमुख से माफी की मांग की है.
मालूम हो कि इसी साल अगस्त में चंद्रशेखर बावनकुले को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त किया गया था. उन्होंने कथित तौर पर अहमदनगर में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ये निर्देश दिया. तुरंत ही इसका ऑडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
छत्रपति सांभाजी नगर के कार्यकारी पत्रकारों की यूनियन ने एक बयान जारी किया. जिसमें भाजपा प्रमुख को ‘स्पेशल पार्टी’ के लिए निमंत्रित किया गया और कहा गया कि इसका सारा खर्च यूनियन उठाएगी. आज सुबह पत्रकारों के संगठन ने भाजपा के प्रदेश कार्यालय तक भी मार्च निकाला और पार्टी के नेताओं को निमंत्रित करने की बात कही.
पत्रकारों के संगठन के अध्यक्ष विनोद काकड़े ने न्यूज़लॉन्ड्री को कहा कि भाजपा सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. वे कहते हैं, “मुख्यधारा और कुछ लोकल मीडिया के पत्रकारों की वजह से भाजपा और बावनकुले को लगता है कि पत्रकार हमेशा बिकने के लिए तैयार हैं. सभी पत्रकार भ्रष्टाचारी हैं. वो पत्रकारों का इस तरह से ‘मैनेज’ करना चाहते हैं ताकि जो कुछ भी लिखा जाए उनके पक्ष में लिखा जाए. भाजपा के नेता लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को समाप्त करना चाहते हैं. बावनकुले का बयान कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने के लिए है ताकि उन पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई कर सकें जो सरकार के इशारों पर नहीं नाचते हैं.”
काकड़े ने आगे कहा कि राज्य के पत्रकार ऐसे नेताओं के सामने कभी भी झुकने वाले नहीं हैं.
क्या बोले थे भाजपा प्रमुख बावनकुले ?
24 सितंबर को बावनकुले ने अहमदनगर के सवेदी इलाके में स्थित मौली सभागृह में एक बैठक में भाग लिया. बैठक प्रदेश भाजपा की ओर से आयोजित थी. बैठक का लक्ष्य 2024 के आम चुनाव में प्रदेश की 45 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने को लेकर चर्चा करना था.
बैठक की लीक ऑडियो क्लिप के मुताबिक, बावनकुले ने मराठी में कहा कि पार्टी कार्यकर्ता अपने 4-5 बूथों के 4-5 पत्रकारों की सूची तैयार करें.
उन्होंने मराठी में कहा, “छोटे-छोटे पोर्टलवाले गावात फिरतात. आपण आपल्या बुथवर एवढं चांगलं काम करतो, पण एखादे असे टाकतात की जसं गावात बॉम्बच फुटला. तुमच्या बुथवर चार दोन जे पत्रकार आहेत, त्यात कोण कोण आहेत त्यांची यादी बनवावी. हे चार-दोनच असतील. एक दोन पोर्टलवाले असतील, एक-दोन प्रींट मीडियावाले असतील, एकदोन इलेक्ट्रॉनिक मीडियावाले असतील. या पाच-सहा जणांना महिन्यात एकदा चहा प्यायला बोलवा, त्यांनी महाविजय २०२४ मध्ये फक्त आपल्या विरोधात काही लिहू नये. त्यांना चहा प्यायला बोलवा, म्हणजे काय ते तुम्हाला समजलं. त्यांना व्यवस्थित सांभाळून ठेवायचं. कोणतीही बातमी त्या चार बूथवरती आपल्या फेवरमध्ये आली पाहिजे, आपल्या विरोधात नाही. त्या चार बूथवर एकही बातमी आपल्या विरोधात आली नाही पाहिजे. आपल्यासाठी पॉझिटीव्ह आली पाहिजे निगेटिव्ह नाही”
जिसका हिंदी तर्जुमा कुछ यूं है, “छोटे-छोटे पोर्टलवाले गांव में घूमते हैं, हम अपने बूथ पर इतना अच्छा काम करते हैं, लेकिन उनमें से एक गांव में बम की तरह गिरता है. आपके बूथ पर जो चार-दो पत्रकार हैं, उनकी सूची बना लीजिए. चार या दो ही होंगे. एक या दो पोर्टल से होंगे, एक या दो प्रिंट मीडिया से, एक या दो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से होंगे. इन पांच-छह लोगों को महीने में एक बार चाय पर जरूर बुलाएं, लेकिन ये महाविजय 2024 में आपके खिलाफ कुछ न लिखें. उन्हें चाय पर आमंत्रित करें, आप जानते हैं इसका क्या मतलब है. इनका रखरखाव ठीक से करें. उन चार बूथों पर कोई भी खबर आपके पक्ष में आनी चाहिए, आपके खिलाफ नहीं. उन चार बूथों पर हमारे खिलाफ कोई खबर नहीं आनी चाहिए. आपके पास सकारात्मक (ख़बरें) आनी चाहिए, नकारात्मक नहीं.”
जब बावनकुले के इस बयान पर विवाद शुरू हुआ तब उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि उनकी बातों का गलत मतलब निकाला जा रहा है. इसके साथ ही महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी उनका बचाव किया. फडणवीस ने मीडिया से कहा कि राजनेता अक्सर मजाक में बातें कह देते हैं. इसलिए ऐसी बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए.
लेकिन राज्य के कुछ पत्रकार उनके इस तर्क को स्वीकार नहीं कर रहे हैं.
मराठी न्यूज़ पोर्टल ‘बाई माणुस’ के संचालक प्रशांत पवार ने कहा कि बावनकुले का बयान पूर्ण रूप से राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था. पवार ने कहा, “ढाबा कल्चर टीयर-2 शहरों में चलता है. कुछ पत्रकार हैं जो राजनैतिक समर्थन प्राप्त कर सुख भोगते हैं. 2014 से अब तक महाराष्ट्र के लगभग 40 पत्रकार पत्रकारिता छोड़कर भाजपा नेताओं के लिए मीडिया एडवाइजर या सोशल मीडिया प्रमुख के रूप में काम करने लगे हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि राज्य के सभी पत्रकार ऐसे ही हैं.”
उन्होंने कहा, “बावनकुले का बयान दुर्भावनापूर्ण था. उनका मानना है कि पत्रकारिता की पूरी बिरादरी ही भ्रष्ट है. उनके बयान से महाराष्ट्र के पत्रकारों में गुस्सा है, लेकिन अभी भी प्रतिक्रिया में कुछ कमी है क्योंकि उन्होंने सभी पत्रकारों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है.”
पुणे श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष पांडुरंग सांडभोर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि इस तरह के बयान बावनकुले जैसे नेताओं की पोल खोल देते हैं.
सांडभोर ने कहा, “इन लोगों के दो चेहरे हैं. सार्वजनिक जगहों पर ये लोग पत्रकारों का सम्मान करते हैं जबकि प्राइवेट जगहों पर पत्रकारों को पैसे से नियंत्रित करने वाली चीज़ समझते हैं. उन्होंने यह बयान एक प्राइवेट मीटिंग में दिया था. लेकिन ऑडियो लीक होने के बाद बात साफ हो गई कि वो (बावनकुले) पत्रकारों के बारे में क्या सोचते हैं. उनको माफी मांगनी चाहिए. अगर वो माफी नहीं मांगते हैं तो हम ऐसे नेताओं का बहिष्कार करेंगे. जब तक वो माफी नहीं मांगते तब तक हम उनकी प्रेस कांन्फ्रेंस में नहीं जाएंगे.”
पुणे के वरिष्ठ पत्रकार नदिम इनामदार ने कहा, “पत्रकारों के बारे में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना नेताओं के लिए शर्म की बात है. दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ चाटुकार पत्रकारों की वजह से ऐसे नेताओं का मनोबल बढ़ जाता है. जो अपने निजी और आर्थिक लाभ के लिए राजनैतिक दलों और नेताओं के सामने झुक जाते हैं. अब समय की मांग है कि पत्रकार अपनी गलतियों को ठीक करने पर ध्यान दें, नहीं तो पत्रकार लोगों के हंसी के पात्र बनकर रह जाएंगे.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया लेने के लिए कई बार बावनकुले से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. यदि जवाब आता है तो उसे ख़बर में शामिल किया जाएगा.
यह ख़बर पहले अंग्रेजी में प्रकाशित हुई है. इसे अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
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