Report
कार्यान्वयन की गड़बड़ियों में उलझीं भारत की कौशल प्रशिक्षण परियोजनाएं
इस महीने की शुरुआत में तेलुगु देशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू को जिस दो साल पुरानी शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था, वह तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार की कौशल प्रशिक्षण पहल के कामकाज से जुड़ी है.
गिरफ्तारी के बाद जहां नायडू समर्थक विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और इस बात पर बातचीत शुरू हो गई है कि राज्य के चुनाव पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, वहीं इसने उन समस्याओं पर भी प्रकाश डाला है जो लगातार देश के कई कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रभावित करती रही हैं.
भारत के 1.4 अरब लोगों में से लगभग 53 प्रतिशत लोग 30 वर्ष से कम उम्र के हैं, लेकिन लाखों युवाओं के लिए स्थिर रोजगार आज भी एक चुनौती है. राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन उद्देश्य था कि स्थाई नौकरियों की इच्छा रखने वाले प्रशिक्षुओं की आकांक्षाओं को उद्योगों की मांग और कार्यबल की उत्पादकता के अनुरूप ढाला जाए.
केंद्र और राज्यों की कौशल प्रशिक्षण पहल की ब्रांडिंग ऐसे प्रमुख कार्यक्रमों के रूप में होती है जो भारत को दुनिया की "स्किल कैपिटल" बनने में मदद करेंगे और युवाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें उद्योगों के लिए तैयार करेंगे. कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों के तहत रिटेल, हॉस्पिटैलिटी, कृषि, वेलनेस, निर्माण, आईटी और अन्य क्षेत्रों में अल्पकालिक पाठ्यक्रम प्रदान किए जाते हैं. इनमें इलेक्ट्रीशियन, वेयरहाउस पैकर्स, दर्जी, हेयरड्रेसर, ब्यूटीशियन, फार्म मशीन रिपेयरिंग, सोलर तकनीशियन, वीडियोग्राफर आदि के कोर्स शामिल हैं.
लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में जमीनी स्तर पर इन पहलों के कामकाज को लेकर शिकायतें बढ़ती जा रही हैं- मसलन कहीं प्रशिक्षण केंद्र नहीं हैं तो कहीं खराब प्रशिक्षण दिया जाता है, कहीं सर्टिफिकेट नहीं मिलता, कहीं प्लेसमेंट नहीं होती या जबरन प्लेसमेंट होती है, कहीं प्रशिक्षकों की कमी है तो कहीं प्रशिक्षित युवाओं के लिए उचित वेतन की कोई गारंटी नहीं है.
कौशल क्षेत्र से जुड़े एक वरिष्ठ सलाहकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "वर्तमान में, 70 प्रतिशत कार्यक्रम गड़बड़ियों से भरा है और केवल 30 प्रतिशत ही ठीक से चल रहा है, जहां निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन हो रहा है. कौशल विकास कार्यक्रम कैसे चलाए जा रहे हैं यह सबको पता है. कार्यक्रम कार्यान्वयन, आवश्यकताओं और विफलताओं की मैपिंग करने की तत्काल आवश्यकता है."
17 सितंबर को केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने "स्किल्स ऑन व्हील्स" कार्यक्रम लॉन्च किया. इसके तहत रेट्रोफिटेड उपकरणों के साथ एक अनुकूलित बस "पांच साल की अवधि में 60,000 युवाओं को सशक्त बनाने के लिए...आकांक्षी और पिछड़े जिलों में यात्रा करेगी."
मंत्रालय की 2022-23 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, 31 दिसंबर 2022 तक इसका वास्तविक खर्च 604 करोड़ रुपए था.
लेकिन इस क्षेत्र से जुड़े लोग पहले मौजूदा कार्यक्रमों की समीक्षा की मांग कर रहे हैं, ताकि पता लगाया जा सके कि प्रशिक्षण की गुणवत्ता, प्रासंगिकता, दक्षता और प्रशिक्षण तक पहुंच कितनी है.
"आंध्र में जो कुछ हुआ है वह कोई एकलौता मामला नहीं हो सकता है और इन समस्याओं का पता लगाना सही दिशा में एक कदम है. यह स्पष्ट रूप से यह संदेश देता है कि कौशल विकास को आंकड़ों के खेल या लाभ कमाने वाले उद्यम के रूप में नहीं देखा जा सकता है. समय की मांग है कि नई दिशा में काम हो और कार्यान्वयन के नए तरीके खोजे जाएं." ये कहना है टेक महिंद्रा फाउंडेशन के सीईओ चेतन कपूर का, जिनका शहरी कौशल विकास कार्यक्रम देश में सबसे बड़े सीएसआर कौशल कार्यक्रमों में से एक है.
कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने ई-मेल या टेलीफोन द्वारा जानकारी प्राप्त करने के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया.
नायडू की गिरफ्तारी क्यों?
आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के एक पुलिस स्टेशन ने राज्य के कौशल विकास निगम के एक अधिकारी के अजय रेड्डी की एक रिपोर्ट के आधार पर दिसंबर 2021 में एक प्राथमिकी दर्ज की थी. इस मुद्दे पर एक जांच करने वाले रेड्डी ने आरोप लगाया कि "दो कंपनियों ने सीधे तौर पर और अन्य शेल फर्मों के माध्यम से सेवाएं प्रदान किए बिना चालान बनाकर पैसे का हेरफेर" किया है.
योजना के विपरीत राज्य के छह क्लस्टर्स में कोई उत्कृष्टता केंद्र या तकनीकी कौशल विकास संस्थान स्थापित नहीं किया गया था. एफआईआर के अनुसार, अनुमानित रूप से 370 करोड़ रुपए से अधिक के सार्वजनिक धन की हेराफेरी की गई थी.
अदालत में नायडू के खिलाफ दायर रिमांड रिपोर्ट में उन पर आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, उकसाने और एक लोक सेवक के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है. वह वर्तमान में राजमुंदरी जेल में हैं.
सोसाइटी फॉर रूरल डेवलपमेंट द्वारा संचालित कौशल कार्यक्रम के सस्टेनेबिलिटी कोऑर्डिनेटर वी क्रांति ने बताया, "कौशल क्षेत्र में इस घोटाले का 100 प्रतिशत प्रभाव पड़ने वाला है, खासकर उन युवाओं पर जो पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं."
उन्होंने कहा, "इसमें कई कमियां हैं, लेकिन सबका ध्यान सिर्फ लक्ष्य पूरा करने पर है. परिणामस्वरूप, अधिकांश मामलों में कौशल प्रक्षिशण ठीक से नहीं हो रहा है या मॉनिटरिंग नहीं की जा रही है. इस इकोसिस्टम से जुड़ी सैकड़ों कंपनियों के लिए यह टाइमपास बन गया है.”
क्रांति ने कहा कि पाठ्यक्रम में नामांकन करते समय "चयन प्रक्रिया के दौरान प्रशिक्षुओं की आवश्यकता का उचित विश्लेषण किया जाना चाहिए."
उन्होंने कहा, "युवाओं की आकांक्षाएं बड़ी हैं और अक्सर कौशल प्रशिक्षण में एक बड़ी खामी होती है कि यह उनकी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है. युवाओं के लिए उज्ज्वल करियर सुनिश्चित करने के लिए कौशल और रोजगार योग्यता का मिलान किया जाना चाहिए."
नौकरियां नदारद
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2015 और मार्च 2023 के बीच, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षित एक करोड़ (1,37,24,226) लोगों में से "कथित रूप से" 20 प्रतिशत से भी कम "नौकरी कर रहे थे."
इसी तरह, छह साल पहले नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को स्थापित करने, बनाए रखने और संचालित करने के लिए कार्यबल विकसित करने के लिए सूर्यमित्र कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किया गया था. लेकिन इसके एक तिहाई से भी कम प्रतिभागियों को सोलर उद्योग में नौकरियां मिली हैं.
लेबर, टेक्सटाइल और कौशल विकास पर संसदीय स्थायी समिति की हालिया रिपोर्ट ने इन कमियों की ओर इशारा किया और सिफारिश की कि पीएमकेवीवाई (प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना) के तहत "उम्मीदवारों को दिए गए प्रशिक्षण पर नियोक्ताओं की संतुष्टि के स्तर" का पता लगाया जाना चाहिए. यह भी कहा गया कि कमियों से सबक लेना चाहिए.
केंद्रीय कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने अपनी पिछली वार्षिक रिपोर्ट में, प्रशिक्षुओं, कौशल केंद्र संचालकों और संभावित नियोक्ताओं द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों को रेखांकित करते हुए 14 चुनौतियों को सूचीबद्ध किया था. उपरोक्त वरिष्ठ सलाहकार के अनुसार, क्योंकि कौशल प्रशिक्षण रोजगार मानकों को पूरा नहीं करते हैं, इसलिए अक्सर प्रशिक्षित उम्मीदवारों को कम वेतन पर या अपने घरों से दूर स्थानों पर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
गैर-लाभकारी आजीविका ब्यूरो द्वारा संचालित कौशल प्रशिक्षण, रोजगार और प्लेसमेंट अकादमी के प्रोग्राम मैनेजर संजय चित्तौड़ा ने कौशल प्रशिक्षण या प्रमाणन प्रदान करने वाली कंपनियों की संख्या में उछाल को करीब से देखा है.
चित्तौड़ा ने कहा, "कौशल प्रशिक्षण आंकड़ों का खेल बन गया है. ऐसी सैकड़ों कंपनियां हैं जिन्होंने कार्यालय स्थापित किए हैं, जगहों पर निवेश किया है और सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के लिए साइन अप किया है. लेकिन उनमें से अधिकांश उन युवाओं की जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं, जिन्हें वे प्रशिक्षित करना चाहते हैं."
चित्तौड़ा की संस्था ने तीन वर्षों से अधिक समय तक राजस्थान कौशल विकास निगम के साथ काम किया, लेकिन कार्यान्वयन पर असहमति के बाद स्वतंत्र रूप से काम करना सही समझा.
“अक्सर ये कंपनियां शहरों में होती हैं, उन युवाओं की पहुंच से दूर जिन्हें वह प्रक्षिशित करना चाहती हैं. इनको होने वाला भुगतान इस बात से जुड़ा होता है कि कितने लोगों को प्रशिक्षित किया गया है और नौकरी दी गई है, इसलिए अक्सर किसी व्यक्ति को एक कौशल में प्रशिक्षित किया जाता है लेकिन उसे नौकरी दूसरे कौशल की आवश्यकता वाली मिलती है," उन्होंने कहा.
चितौड़ा ने आगे कहा, "जबतक दृष्टिकोण बिजनेस मॉडल का रहेगा, यह कार्यक्रम काम नहीं करेगा. इसे ज़मीनी स्तर पर समर्पित लोगों की ज़रूरत है, जिनका उन लोगों से अच्छा जुड़ाव हो जिन्हें स्किलिंग या रीस्किलिंग की आवश्यकता है."
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
(अनुराधा नागराज अवार्ड-विजेता, स्वतंत्र पत्रकार हैं जो प्रवास, जलवायु परिवर्तन और जस्ट ट्रांज़िशन पर लिखती हैं.)
Also Read
-
Exclusive: India’s e-waste mirage, ‘crores in corporate fraud’ amid govt lapses, public suffering
-
4 years, 170 collapses, 202 deaths: What’s ailing India’s bridges?
-
‘Grandfather served with war hero Abdul Hameed’, but family ‘termed Bangladeshi’ by Hindutva mob, cops
-
India’s dementia emergency: 9 million cases, set to double by 2036, but systems unprepared
-
धर्मस्थला में सामूहिक दफन की जांच: खुदाई के तीसरे दिन मिले मानव अवशेष