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‘इंडिया’ ने बहिष्कार के लिए 14 एंकरों को कैसे चुना, सोशल मीडिया की समीक्षा, उनकी बहस या फिर नफ़रती एजेंडा?

विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से पिछले सप्ताह 14 टीवी समाचार एंकरों को ब्लैकलिस्ट किए जाने से पहले विपक्षी गुट की 26 दलों कॉर्डिनेशन कमिटी के लगभग सभी सदस्यों ने संयुक्त चर्चा से पहले 'पक्षपात करने वाले' एंकरों के नामों को लेकर विचार-विमर्श किया.

एंकरों को उनकी 'द्वेषपूर्ण' डिबेट्स, विपक्ष विरोधी नैरेटिव, जनहित के मुद्दों को नज़रअंदाज करने के प्रयासों और उनके सोशल मीडिया प्रोफाइल के आधार पर ब्लैकलिस्ट करने के लिए चुना गया. 

न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला है कि कुछ पार्टियों ने टाइम्स नाउ, रिपब्लिक टीवी और सुदर्शन न्यूज़ जैसे समाचार चैनलों पर "पूरी तरह से प्रतिबंध" लगाने पर जोर दिया.

‘इंडिया’ गठबंधन की कॉर्डिनेशन कमिटी की 13 सितंबर को हुई पहली बैठक में यह फैसला किया गया था कि समाचार चैनलों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा, लेकिन नौ चैनलों के 14 एंकरों के 'नफरत से भरे' शो में ‘इंडिया’ गुट के प्रतिनिधि दिखाई नहीं देंगे. 

इस लिस्ट में न्यूज़ 18 के अमन चोपड़ा, अमिश देवगन और आनंद नरसिम्हन के नाम शामिल हैं. इसके अलावा आजतक की चित्रा त्रिपाठी और सुधीर चौधरी, इंडिया टुडे के गौरव सावंत और शिव अरूर साथ ही इंडिया टीवी की प्राची पाराशर के नाम भी शामिल हैं

इनके अलावा रिपब्लिक टीवी से अर्णब गोस्वामी, भारत 24 से रुबिका लियाकत, टाइम्स नाउ की नाविका कुमार और सुशांत सिन्हा, भारत एक्सप्रेस से अदिति त्यागी और डीडी न्यूज के अशोक श्रीवास्तव के नाम भी लिस्ट में शामिल हैं. 

एंकरों की बहिष्कार सूची जारी करने वाली ‘इंडिया’ गठबंधन की मीडिया कमेटी के सदस्य और राजद नेता मनोज झा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि एंकरों की सूची अभी "पूरी नहीं हुई है" और यह "मामला यहीं समाप्त नहीं होगा."  

मीडिया कमेटी के सूत्रों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि आज तक की अंजना ओम कश्यप सरीखे एंकर जिन्हें नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति निष्ठा रखने वाले पत्रकारों के तौर पर देखा जाता है, ऐसे एंकरों का विपक्षी गुट ने बहिष्कार नहीं किया क्योंकि वे "सोशल मीडिया पर अपेक्षाकृत कम नफरत फैलाने वाले" थे. 

विपक्ष के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, "कुछ चैनलों पर राज्य सरकार के विज्ञापनों को रोक कर आर्थिक बहिष्कार जैसे कदम पर विचार किया जा रहा है."

गौरतलब है कि विपक्षी दलों की 11 राज्यों में सरकार है. टीवी चैनलों पर सरसरी नज़र डालने पर पता चलता है कि यूपी सरकार के साथ-साथ राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पंजाब की सरकारें चैनलों के बड़े विज्ञापनदाता हैं.

विपक्षी गुट की ओर से चैनल के एंकरों के बहिष्कार की घोषणा के तुरंत बाद न्यूज़ ब्रॉडकास्टर फेडरेशन और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन ने गठबंधन के फैसले का विरोध करते हुए बयान जारी किए. दोनों ने कहा कि यह आपातकाल के दौर की याद दिलाता है. 

गौरतलब है कि भाजपा और कांग्रेस ने कई सालों से कुछ चैनलों में अपने प्रतिनिधि नहीं भेजे हैं. पिछले साल अडाणी के अधिग्रहण से पहले तक भाजपा ने एनडीटीवी में अपने प्रतिनिधि नहीं भेजे थे. कांग्रेस के एक प्रतिनिधि ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पार्टी ने काफी वक्त पहले ही रिपब्लिक टीवी, टाइम्स नाउ और सुदर्शन न्यूज़ की डिबेट में जाना बंद कर दिया था. कांग्रेस पार्टी अपनी प्रेस कॉफ्रेंस में भी रिपब्लिक टीवी को भाग नहीं लेने देती है. 

हालांकि, कई विपक्षी दल जैसे राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें और दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी नियमित रूप से एनडीटीवी और रिपब्लिक टीवी जैसे चैनलों को विज्ञापन देती हैं.   

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि गठबंधन का कदम "प्रतिबंध या बहिष्कार" नहीं था, बल्कि "असहयोग आंदोलन" था.   

उन्होंने कहा कि विपक्षी गठबंधन नफ़रत फैलाने वाले किसी भी व्यक्ति के साथ सहयोग नहीं करेगा. 

उन्होंने कहा, "उन्हें नफरत फैलाने की आज़ादी है, लेकिन हमें उस अपराध में भागीदार नहीं बनने की भी आजादी है. यह फैसला लेते समय हम चुनाव के बारे में नहीं सोच रहे थे, हम नफरत के उस बड़े संदेश के बारे में सोच रहे हैं जो फैलाया जा रहा है."

पवन खेड़ा ने कहा कि 14 एंकरों के बहिष्कार को लेकर गठबंधन में ‘एक तरह की सर्वसम्मति’ थी. 

सभी पार्टियां एकमत नहीं

ममता बनर्जी की टीएमसी और नीतीश कुमार की जेडीयू ने गठबंधन की ओर से एंकरों के बहिष्कार के फैसले का पूरे मन से समर्थन नहीं किया. 

तृणमूल कांग्रेस ने मीडिया कोर्डिनेशन कमेटी में अपना प्रतिनिधि नामित नहीं किया है लेकिन नीतीश कुमार ने बहिष्कार के कुछ दिन बाद कहा कि उन्हें इस बारे में ‘कोई जानकारी’ नहीं है और वह हमेशा से ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ के समर्थन में रहे हैं.

दरअसल, तृणमूल कांग्रेस ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को केवल कोर्डिनेशन एंड इलेक्शन स्ट्रेटजी कमेटी में नामित किया. वर्तमान में गठबंधन की चार उप-समितियों में तृणमूल का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. इन चार समितियों में कैंपेन कमिटी, वर्किंग ग्रुप फॉर सोशल मीडिया, वर्किंग ग्रुप फॉर मीडिया और वर्किंग ग्रुप फॉर रिसर्च शामिल हैं. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मामले पर सवालों के साथ टीएमसी के प्रतिनिधियों से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने इस मामले में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. न्यूज़लॉन्ड्री ने भारत की मीडिया कमेटी के सदस्य और जेडीयू नेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया.

ऐसी अफवाहें हैं कि तृणमूल नेतृत्व पश्चिम बंगाल की 42 संसदीय सीटों के लिए संभावित सीट बंटवारे के फार्मूले को लेकर 'नाराज' है, जिसे तृणमूल कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस और कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे के बीच बांटा जाएगा. ममता बनर्जी ने देश भर में जाति जनगणना की मांग करते हुए एक संयुक्त प्रस्ताव जारी करने की गठबंधन की योजना का भी कथित तौर पर विरोध किया. 

वहीं, बिहार एक ऐसा राज्य है जहां गठबंधन के सदस्य राजद, जदयू और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है. राज्य में लोकसभा की 40 सीटें हैं.

बहिष्कार क्यों?

आम आदमी पार्टी की प्रवक्ता रीना गुप्ता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि जिन 14 एंकरों को ब्लैकलिस्ट किया गया है, वे भाजपा के लिए सबसे आसानी से काबू में आने वाले पत्रकार हैं. 

उन्होंने कहा, "इस गिरोह को किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में पत्रकारों के तौर पर टीवी पर जगह नहीं मिलेगी क्योंकि उनका केवल एक ही एजेंडा है, उन मुद्दों पर भी सरकार समर्थक रुख अपनाना, जिसके लोगों के लिए गंभीर परिणाम हैं."

उन्होंने कहा कि अगर पत्रकारों का वेश धारण करने वाले भाजपा सरकार के इन छद्म प्रवक्ताओं को झूठ और नफ़रत फैलाने की इजाजत दी जाती है तो यह लोकतंत्र को प्रभावित करेगा.

मीडिया कमेटी के सदस्यों में से एक जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता तनवीर सादिक ने कहा कि गठबंधन कई और पत्रकारों को लेकर विचार कर रहा है. 

उन्होंने कहा, "लेकिन इन 14 लोगों की न्यूज़ डिबेट समाज को बांटने के इर्द-गिर्द घूमती रही है. ये एंकर बड़े हो सकते हैं लेकिन भारत सबसे बड़ा है." 

तनवीर सादिक ने कहा कि विपक्षी गठबंधन का यह फैसला बाकी पत्रकारों के लिए एक ‘संदेश’ है.

शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत मीडिया समिति के सदस्य हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "हम आलोचना का स्वागत करते हैं, लेकिन एंकर बदला लेने की नीयत रखते हैं और जानबूझकर विपक्षी दलों को खलनायक की तरह पेश करने की कोशिश करते हैं. अगर किसी ने एजेंडा फैलाने का ठेका लिया है तो वह भौंकते रह सकते हैं. हम वहां नहीं होंगे. कुछ एंकर पेड वर्कर हैं. प्रधानमंत्री ने 10 साल से मीडिया से बात नहीं की है, क्या कोई इस बारे में सवाल उठाता है?"

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता अब्बास हैदर ने कहा, "ये एंकर पूर्वाग्रह से भरे हुए हैं. जब वे आपको बोलने देते हैं तो वे वाक्य पूरा करने से पहले आपका विरोध करते हैं, और फिर आपको फंसाने की कोशिश करते हैं. वे खुले तौर पर पक्षपाती हैं और अब उनके शो के दर्शकों को भी यह पता है. यह उनके लिए एक अवसर है कि उन्हें खुद को बदल लेना चाहिए और एक विशेष पार्टी के प्रवक्ता के रूप में काम करना बंद कर देना चाहिए."

इंडिया गठबंधन के एक दल के प्रवक्ता ने यह भी कहा कि इस कदम से अलग-अलग दलों के 'अनौपचारिक प्रवक्ताओं' को भी फायदा होगा जो बहस में भाग लेते हैं. 

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत शुरू हो गई है और एनसीपी प्रमुख शरद पवार तीनों दलों के बीच 16-16 सीटों के बंटवारे पर जोर दे रहे हैं. 

 एनसीपी के जितेंद्र आव्हाड़ ने कहा कि एंकरों का बहिष्कार ‘गांधीवादी’ कृत्य है.उन्होंने कहा कि बहिष्कार करने वाले एंकरों को 'नफ़रत फैलाने वाले' के तौर पर जाना जाता है, जहां 'उनकी 80 में से 78 बहसें नफरत से संबंधित होती हैं.' 

आव्हाड़ ने कहा कि गठबंधन ने किसी भी क्षेत्रीय चैनल का बहिष्कार नहीं किया है.

पिछले साल न्यूज़लॉन्ड्री के एक सर्वे से पता चला कि तीन महीने के दौरान कई एंकरों ने हिंदू-मुस्लिम डिबेट पर काफी समय बिताया, बढ़ती कीमत और महंगाई जैसे मुद्दों पर बिल्कुल भी समय नहीं दिया गया. मिसाल के लिए गठबंधन की ओर से बहिष्कृत एंकर अमीश देवगन ने उस समय के दौरान बेरोजगारी और मुद्रास्फीति पर एक भी डिबेट नहीं की.  

‘पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं एकंर’

राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के प्रशांत कनौजिया ने टीवी समाचार एंकरों पर पूर्वाग्रह से ग्रस्त 'तथाकथित राजनीतिक विश्लेषकों' को डिबेट में बुलाने और विमर्श को तोड़-मरोड़कर पेश करने का आरोप लगाते हुए कहा कि डिबेट आर्थिक विकास या अपराध पर नहीं बल्कि 'हिंदू-मुस्लिम और विपक्ष को कोसने' पर होती है. 

उन्होंने कहा, 'वे आपके खिलाफ बगैर किसी संदर्भ के क्लिप का इस्तेमाल करते हैं. हम उन्हें टीआरपी क्यों दें? उनकी डिबेट आर्थिक विकास या हेट क्राइम पर नहीं है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम और विपक्ष को कोसने पर है.

वहीं, राजद के मनोज झा ने कहा कि जब भी विपक्ष बेरोजगारी या महंगाई के मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतरा, समाचार चैनलों ने हिंदू-मुस्लिम पर कंटेट प्रसारित किया. 

दर्शकों के ‘इंडिया’ गठबंधन के नजरिए से चूकने के सवाल पर मनोज झा ने कहा, 'उन्हें पता चल जाएगा कि आखिरकार इंडिया गठबंधन ने जहर से दूर रहने का फैसला किया है.

भाकपा (माले) की सुचेता डे ने आरोप लगाया कि टीवी समाचार मीडिया विपक्षी दलों को डिबेट में 'शो पीस' की तरह इस्तेमाल कर 'धोखा' दे रहा है. उन्होंने कहा, "जब उनके बोलने का समय होता है तो उनकी आवाज़ को दबा दिया जाता है या बीच में रोक दिया जाता है. यह इन एंकरों का एक पैटर्न है."

उन्होंने कहा कि प्रतिबंधित एंकरों ने भाजपा के लिए कभी भी ‘पूर्ण रूप से निष्पक्ष रवैया’ अपनाने के मामले पर निराश ही किया. 

सुचेता डे ने एंकरों के बहिष्कार पर कहा, “इस कदम का उद्देश्य लोगों को यह बताना है कि ये पत्रकार नहीं हैं, बल्कि भाजपा के प्रवक्ता हैं.”

पिछले कुछ सालों में न्यूज़लॉन्ड्री ने इस बारे में विस्तार से बताया है कि कैसे कुछ समाचार चैनल अपने प्राइमटाइम डिबेट का इस्तेमाल उन्माद फैलाने, संघर्ष पैदा करने और धर्मों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने के लिए कर रहे हैं. ज्यादा जानकारी के लिए हमारी सीरीज ब्लडलस्ट टीवी देखें.

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