Report
नूंह के 5 वकीलों का दावा: 'पेशे या धर्म' के कारण पुलिस बना रही है 'निशाना'
हरियाणा के नूंह जिले के कम से कम पांच वकीलों ने पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया है कि उन्हें राज्य में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच के बहाने प्रताड़ित किया गया. इन पांच वकीलों में से केवल दो ही हिंसा से संबंधित मामलों से जुड़े हैं, इनका आरोप है कि उन्हें या तो उनके धर्म या उनके पेशे के कारण निशाना बनाया गया.
पांच वकीलों में से एक को हत्या के प्रयास के मामले में गिरफ्तार किया गया था. दो सप्ताह बाद उन्हें जमानत दे दी गई, जब अदालत ने पाया कि हिंसा में उनकी संलिप्तता सिद्ध करने के कोई सबूत नहीं है. चार अन्य वकीलों को पुलिस ने हिरासत में लिया, लेकिन उन्होंने दावा किया कि जब पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने आई तो उन्हें उन पर दर्ज मामलों के बारे में बताया भी नहीं गया. हिरासत में लिए गए चार में से दो वकीलों ने आरोप लगाया है कि उनके साथ मारपीट की गई.
मेवात जिला बार एसोसिएशन के लगभग 30 वकीलों ने एक शांति समिति गठित कर इनमें से तीन मामलों में नूंह के एसपी से संपर्क किया है और पुलिस से "वकीलों को परेशान न करने" का अनुरोध किया है. इन चार मामलों में से एक को लेकर हरियाणा के डीजीपी को औपचारिक शिकायत सौंपी गई है.
यह साफ नहीं है कि क्या समिति उस पांचवें मामले में कार्रवाई की मांग करेगी जिससे जुड़े वकील न समिति के सदस्य हैं न जिला बार एसोसिएशन के.
समिति ने कहा है कि पुलिस की कार्रवाई अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले वकीलों के बीच "डर पैदा करने का तरीका" है. नूंह की एडिशनल एसपी उषा कुंडू ने पुलिस द्वारा वकीलों को निशाना बनाने के आरोपों से इंकार किया है. न्यूज़लॉन्ड्री ने नूंह एसपी नरेंद्र बिजारणिया को एक प्रश्नावली भेजी है. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.
न्यूज़लॉन्ड्री ने हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर से भी संपर्क किया. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.
गिरफ़्तारी और जमानत
38 वर्षीय वकील शाहिद हुसैन को 13 अगस्त को पलवल स्पेशल टास्क फोर्स ने गिरफ्तार किया था. उन पर कथित रूप से हत्या के प्रयास और आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत बिछोर पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था. पुलिस ने जांच में आरोप लगाया कि 31 जुलाई को जब हिंसा भड़की तो हुसैन नूंह के सिंगार गांव में थे और "उन्होंने एक व्यक्ति को 100 कॉल किए थे."
2 सितंबर को नूंह के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संदीप कुमार दुग्गल ने उन्हें जमानत दे दी. आदेश में कहा गया है, ''किसी भी हिंसा में कोई सक्रिय भागीदारी नहीं है और न ही उनके सार्वजनिक भाषण या मौके पर या मोबाइल के माध्यम से किसी उकसावे के बारे में कोई ऑडियो है.''
हुसैन ने कहा कि उन्होंने पुलिस को बताया था कि वह "केवल सिंगार गांव से गुजर रहे थे" और उन्होंने ही बिछोर पुलिस को कार्रवाई के लिए हिंसा के बारे में सूचित किया था. "हममें डर पैदा करने के लिए वकीलों को निशाना बनाकर हमला किया गया है," उन्होंने कहा.
'उन्होंने मेरी दाढ़ी खींची'
एक अन्य मामले में, वकील शाबुद्दीन को सदर तावड़ू पुलिस ने 8 अगस्त को हिरासत में लिया था और अगले दिन उन्हें रिहा कर दिया गया. उन्होंने हरियाणा के डीजीपी को सौंपी शिकायत में आरोप लगाया है कि पुलिस हिरासत में उनके साथ मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया.
41 वर्षीय शाबुद्दीन ने कहा कि उनके भाई जाकिर को सांप्रदायिक दंगों के आरोपी के रूप में गिरफ्तार करने के लिए पुलिस 2 अगस्त को बुरहानपुर गांव में उनके घर आई थी.
वे बताते हैं, “अगले दिन नूंह बार के कुछ सदस्य और मैं नूंह के डीएसपी को मिले और बताया कि मेरा भाई पिछले एक महीने से मेवात नहीं गया है, क्योंकि वह राजस्थान में काम करता है. हालांकि, हमने यह भी कहा कि अगर पुलिस के पास कोई सबूत है तो हम उनका पूरा सहयोग करेंगे. हमें आश्वासन दिया गया कि हमारे साथ कोई अन्याय नहीं होगा. लेकिन इसके एक हफ्ते बाद 30 से अधिक पुलिसकर्मी मेरे घर पर आ धमके.”
शाबुद्दीन पूरा वाकया बताते हुए कहते हैं, "पुलिसवाले नशे में थे. उन्होंने मेरे घर का दरवाज़ा तोड़ दिया और ऐसे अंदर घुस आए जैसे वह किसी आतंकवादी को पकड़ने आए हों. मैंने उन्हें बताया कि मैं एक वकील हूं और मैंने डीएसपी से मुलाकात की है और उन्हें आश्वासन दिया है कि अगर मेरे परिवार के खिलाफ कोई सबूत मिलेगा तो मैं पूरा सहयोग करूंगा. लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी. उन्होंने मेरे पेशे को लेकर अपशब्दों का इस्तेमाल किया और कहा कि 'बहुत वकील बन रहा है, हम बनाते हैं तुझे वकील.' फिर उन्होंने मेरी दाढ़ी खींची, मुझे थप्पड़ मारा और मुझे मेरे अंतर्वस्त्रों में ही गिरफ्तार कर लिया. उन्होंने मुझे कपड़े तक नहीं पहनने दिए. पुलिस स्टेशन में वे पूरी रात मेरे पेशे और धर्म को लेकर मुझे गालियां देते रहे.मुझे अगली दोपहर रिहा कर दिया गया."
शाबुद्दीन ने कहा कि वह बहुत सदमे में हैं और अदालत नहीं जा पा रहे.
'उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी'
तीन अन्य वकीलों- शफीक, रहीस अहमद और आदिल खान ने भी इसी तरह के आरोप लगाए.
एक अगस्त को नूंह की हिदायत कॉलोनी में छापेमारी के दौरान शफीक को एसटीएफ ने हिरासत में लिया था. अगले दिन उन्हें रिहा कर दिया गया. "मैंने पुलिस को बताया था कि मैं एक वकील हूं, लेकिन उन्होंने मेरी बात भी नहीं सुनी. हालांकि, मुझे लगता है कि उन्होंने पेशे की वजह से मुझे मारा-पीटा नहीं."
25 अगस्त को जब रहीस अहमद पुन्हाना में अपने कार्यालय में थे तो उन्हें हरियाणा पुलिस की अपराध जांच एजेंसी ने हिरासत में ले लिया.
वे बताते हैं, "एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मी मुझे हिरासत में लेने आए. मैंने उनसे कहा कि मैं एक वकील हूं लेकिन उन्होंने मेरी नहीं सुनी. मुझे यह भी नहीं बताया गया कि वे मुझे क्यों हिरासत में ले रहे हैं. पहले वे मुझे सीआईए पुलिस स्टेशन और फिर बिछोर पुलिस स्टेशन ले गए. वहां उन्होंने हिंसा में मेरी संलिप्तता के बारे में पूछताछ की."
रहीस कहते हैं कि इसके कुछ घंटों बाद उन्हें रिहा कर दिया गया.
रहीस ने बताया कि वह नूंह में सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित मामलों की पैरवी में वरिष्ठ वकील ताहिर हुसैन की मदद कर रहे हैं.
वे कहते हैं, "इस पूरी घटना को पुलिस द्वारा अधिवक्ताओं के बीच डर पैदा करने के तरीके के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि उन्होंने पहले कभी हमारे साथ ऐसा नहीं किया."
आदिल खान को उसी दिन पुन्हाना से हिरासत में लिया गया था. "मेरी मुवक्किल खातूनी अपने गांव नीम खेड़ा में पुलिस के छापे में घायल हो गई थीं. इसलिए, मैं उनके साथ सीएचसी पुन्हाना में उनकी मेडिको-लीगल रिपोर्ट लेने गया था. दोपहर में जब हम स्वास्थ्य केंद्र के अंदर थे, सीआईए अधिकारी आए और हमें हिरासत में ले लिया. मैंने उन्हें बताया कि मैं एक वकील हूं और सिर्फ अपना काम कर रहा हूं. लेकिन उन्होंने कहा 'हमने तुम्हारे जैसे कई वकील देखे हैं.’ उन्होंने मुझ पर हत्या का मामला दर्ज करने की धमकी भी दी."
खान ने कहा कि उन्हें रात में रिहा कर दिया गया.
समिति के अनुरोध
उपरोक्त समिति, जिसने शाबुद्दीन को डीजीपी के पास शिकायत दर्ज करने में मदद की थी, इस पर विचार कर रही है कि क्या उसे शाहिद हुसैन के मामले में भी शिकायत दर्ज करनी चाहिए, जो जिला बार एसोसिएशन का हिस्सा नहीं हैं.
शफीक, रहीस अहमद और शाहिद हुसैन से जुड़े मामलों में समिति और बार के सदस्यों ने कहा कि उन्होंने औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की है लेकिन कार्रवाई की मांग के लिए बार-बार नूंह एसपी से मुलाकात की है.
समिति के सदस्य और बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ताहिर हुसैन ने कहा, "जब भी हमारे वकीलों को हिरासत में लिया गया, बार के लगभग 100 सदस्य एसपी से मिले. हमने उन्हें आश्वासन दिया कि अगर पुलिस के पास सबूत हैं तो हम पुलिस के साथ खड़े रहेंगे. लेकिन, क्योंकि इन मामलों में कोई सबूत नहीं है, यह स्पष्ट रूप से वकीलों का उत्पीड़न है. हर बार, उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि ऐसा दोबारा नहीं होगा, लेकिन उन्होंने अपना वादा पूरा नहीं किया. यह पहली बार है जब मेवात में वकीलों को पुलिस का उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है."
इस स्टोरी को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read
-
TV Newsance 321: Delhi blast and how media lost the plot
-
Hafta 563: Decoding Bihar’s mandate
-
Bihar’s verdict: Why people chose familiar failures over unknown risks
-
On Bihar results day, the constant is Nitish: Why the maximiser shapes every verdict
-
Missed red flags, approvals: In Maharashtra’s Rs 1,800 crore land scam, a tale of power and impunity