Khabar Baazi
एडिटर्स गिल्ड ने सुप्रीम कोर्ट में कहा: सेना के अनुरोध के बाद गए मणिपुर
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि संस्था की फैक्ट फाइंडिंग टीम सेना के अनुरोध पर मणिपुर पहुंची थी. जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि सेना ने आपको क्यों बुलाया था तो संस्था ने इसके जवाब में कहा कि वो चाहते थे कि मणिपुर में जो कुछ भी हो रहा है उसकी निष्पक्ष रिपोर्टिंग हो.
गिल्ड की रिपोर्ट की तरह, सेना की ओर से लिखे गए पत्र में भी आरोप लगाया गया कि क्षेत्रीय मीडिया हिंसा की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग कर रहा था. सेना की ओर से 12 जुलाई को यह पत्र भेजा गया था. वहीं, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की रिपोर्ट दो महीने बाद 2 सितंबर को प्रकाशति हुई. रिपोर्ट के बाद संस्था की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा समेत तीन पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. एफआईआर में आरोप लगाया गया कि मणिपुर हिंसा में क्षेत्रीय मीडिया की कवरेज के बारे में गलत जानकारी दी गई है.
सेना ने पत्र में क्या कहा था?
कर्नल अनुराग पांडे द्वारा हस्ताक्षरित इस पत्र में लिखा गया है कि राज्य में हिंसा के दौरान क्षेत्रीय मीडिया एक समुदाय के पक्ष और दूसरे समुदाय के खिलाफ रिपोर्टिंग करता नजर आ रहा है. पत्र में मीडिया के पक्षपातपूर्ण कवरेज के तीन उदाहरण दिए गए हैं. कहा गया है कि राज्य में हिंसा भड़कने के पीछे का कारण मीडिया द्वारा गलत सूचनाओं का साझा करना भी हो सकता है.
पत्र में आगे लिखा है, “मेरा आपसे अनुरोध है कि एकतरफा प्रतीत होने वाली इन रिपोर्ट्स की जांच की जाए ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इन मीडिया घरानों द्वारा पत्रकारों और उनके लिए बनाए गए दिशानिर्देशों का उल्लंघन तो नहीं किया गया और उसी आधार पर उचित कार्रवाई की जानी चाहिए.”
पत्र में दावा किया गया कि राज्य में बड़े स्तर पर झूठी रिपोर्टिंग की जा रही है. साथ ही इस दावे के पक्ष में तीन उदाहरण भी दिए गए हैं.
पत्र में 13 जून को खेमनलक में हुई एक घटना के बारे में जानकारी दी गई है.
“यह घटना उस भीड़ के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने 12 जून से खमेनलोक और आसपास के इलाकों के गांवों पर धावा बोल दिया था. भीड़ को महिलाओं का पूरा समर्थन प्राप्त था. जिन्होंने गांव तक पहुंचने की कोशिश कर रहे सेना के जवानों को रोक दिया ताकि भीड़ बिना किसी बाधा के गांव को जला सके. कई गांवों में आगजनी करने के बाद, जवाबी हमले में उनका समर्थन करने वाले या आगजनी करने वाले मारे गए. यह हमलावरों पर हमला करने का स्पष्ट मामला था. इतना जरूर है कि मारे गए लोगों में से कुछ उस क्षेत्र के नहीं थे और यह तथ्य कि गांव में मारे गए ये लोग किसी दूसरे समुदाय के हैं. यह 13 जून को हुई घटना के पीछे का संकेत हो सकता है.”
पत्र में रिपोर्ट के साथ ‘द सेंगई एक्सप्रेस’, ‘पीपुल्स क्रॉनिकल’ और ‘इंफाल फ्री प्रेस’ की क्लिप लगाई गई है. जिसमें कथित तौर पर भीड़ के सदस्यों द्वारा एक समुदाय को निशाना बनाना बताया गया था.
पत्र में 9 जून को खोकेन में हुई एक दूसरी घटना के बारे में भी जिक्र किया गया है. इस घटना के कवरेज को पत्रकारिता के लिए ‘स्याह धब्बा’ कहा गया है.
पत्र में लिखा गया, “कुकी बहुल गांव खोकेन में 9 जून की सुबह 4 बजे उग्रवादियों ने पुलिस की वर्दी पहनकर हमला कर दिया. इस घटना में एक 67 वर्षीय महिला, जिसकी हत्या चर्च में हुई, समेत 3 लोगों की जान चली गई. सेना और उग्रवादियों के बीच मुठभेड़ की ख़बर सुनकर नजदीकी गांव संगाइथेल में कई मैती महिलाएं इकट्ठा हो गईं. दोपहर 9 जून को एक कुकी ट्विटर हैंडल अकाउंट ने घटना में मारे गए लोगों के नाम की जानकारी दी. खोकेन गांव (कुकी बहुल) में हमले को मीडिया द्वारा कुकी उग्रवादियों द्वारा हमला बताया और मारे गए लोगों (जिसमें एक 67 साल की वृद्ध महिला और 70 साल के वृद्ध पुरुष भी शामिल हैं) को कुकी उग्रवादी बताया गया. इस घटना की रिपोर्टिंग पत्रकारिता के नाम पर एक काला धब्बा है.”
पत्र में 4 जून को इंफाल में एक एंबुलेंस जलाने की घटना के बारे में बताया गया. इस घटना की रिपोर्टिंग के लिए मीडिया को इंफाल में ‘नादिर ऑफ जर्नलिज़्म’ कहा गया है.
पत्र के मुताबिक, “4 जून को एक सात साल के कुकी बच्चे को एंबुलेंस से अस्पताल ले जाया जा रहा था. बच्चा गोली लगने से घायल था लेकिन रास्ते में ही मैती भीड़ द्वारा एंबुलेंस में आग लगा दी गई. घटना में बच्चे के साथ उसकी मैती मां और एक अन्य संबंधी को शाम 6 बजे जिंदा जला दिया गया. लड़के का पिता कुकी था. जो पूरे परिवार को कुकी बना देने के लिए काफी था. दो महिलाओं और एक बच्चे को एंबुलेंस में जिंदा जला दिया गया. इस घटना को इंफाल की मीडिया ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी क्योंकि यह एक समुदाय की छवि खराब कर सकता था. जिस ख़बर को अख़बार के पहले पन्ने की हेडलाइन में जगह मिलनी चाहिए उसे पूरे अख़बार में कहीं भी जगह नहीं दी गई. हालांकि, इस मुद्दे को कुछ नेशनल मीडिया के पत्रकारों द्वारा 6 जून को उठाया गया. उसके बाद 7 जून को कुछ नेशनल न्यूज़ पोर्टल पर इस ख़बर को जगह दी गई. आग लगाने की इस घटना के लिए कुकी समुदाय को जिम्मेदार ठहराने का असफल प्रयास किया गया. एक प्रतिष्ठित मीडिया आउटलेट, जिसने इस मुद्दे को उठाया था, पर स्टोरी में बदलाव करने का दबाव बनाया गया.”
अब शुक्रवार को फिर सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई करेगा.
Also Read
-
Rajiv Pratap Rudy on PM’s claims on ‘infiltrators’, ‘vote-chori’, Nishikant Dubey’s ‘arrogance’
-
Unchecked hate speech: From Kerala's right wing X Spaces to YouTube’s Hindutva pop
-
यूपी की अदालत ने दिया टीवी एंकर अंजना ओम कश्यप पर मामला दर्ज करने का आदेश
-
UP court orders complaint case against Anjana Om Kashyap over Partition show
-
The meeting that never happened: Farewell Sankarshan Thakur