Report
हिमाचल में तबाही जारी, गडसा घाटी से बर्बादी की तस्वीरें
हिमाचल में भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं से दो महीने पहले जो आपदा शुरु हुई वो अब भी जारी है और हिमाचलवासियों के लिये राहत के आसार नहीं दिख रहे हैं. कुल्लू, मंडी शिमला और राज्य के दूसरे हिस्सों से लगातार भूस्खलन, इमारतें गिरने और सड़कों के टूटने की ख़बर आ रही हैं. राज्य के अन्य हिस्सों में भी हालात ठीक नहीं हैं. इस आपदा में अब तक करीब 400 लोग मारे गये हैं और 12 हज़ार से अधिक घर क्षतिग्रस्त हुए हैं.
कुल्लू से करीब 60 किलोमीटर दूर है गडसा घाटी, जहां इस आपदा ने बड़ी तबाही की. न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने गडसा के लोगों से बात की जिनके दर्जनों घर, खेत और सड़कें इस बाढ़ में तबाह हो गईं.
इस गांव के निवासी और उप-प्रधान श्याम सुंदर कहते हैं, “यहां बादल फटने की घटनाएं हुईं हैं और 50-60 घरों में भारी नुकसान हुआ है. लोगों का कुछ नहीं बचा है. इतनी भारी बारिश पहले कभी नहीं देखी.”
सुंदर गडसा घाटी की तबाही के लिये सड़क निर्माण के लिये हो रहे अंधाधुंध कटान और अवैध खनन को ज़िम्मेदार ठहराते हैं. “यहां इस काम के लिये भारी मशीनरी का प्रयोग और ब्लास्टिंग की जाती है,” सुंदर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया.
हिमाचल सरकार की अपनी आपदा रिपोर्ट में बताती है कि 2017 और 2022 के बीच पांच वर्षों में भूस्खलन, बाढ़, बादल फटने और अन्य आपदाओं के कारण करीब 6000 लोगों की जान चली गई है और 10,677 घायल हुए हैं, जबकि राज्य को 8,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है. महत्वपूर्ण है कि राज्य सरकार ने इस साल ही 10 हज़ार करोड़ से अधिक नुकसान का अंदाज़ा लगाया है.
इस बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने अधिकारियों से कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश में अधिक ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन लगाने की योजना पर काम करें ताकि मौसम के पूर्वानुमान का रियल टाइम डाटा मिल सके.
इसी साल अप्रैल में इसरो द्वारा प्रकाशित लैंडस्लाइड एटलस को देखें तो उसमें राज्य के सभी जिले भूस्खलन संभावित हैं. फिर भी हिमाचल के कई जिले ऐसे हैं जहां निर्माण के लिये तोड़फोड़ के अलावा खनन ने भी पहाड़ों को कमज़ोर किया है. लोगों ने गडसा घाटी में भी अनियंत्रित खनन की शिकायत की.
उधर, एक के बाद एक गिरती इमारतों ने यह सवाल भी खड़ा किया है कि पर्यटन के नाम पर बढ़ते निर्माण के पीछे कितना भ्रष्टाचार है. जहां अधिकारी मानते हैं कि विकास के मॉडल में सुधार और भ्रष्टाचार की जांच होनी चाहिए, वहीं होटल और लॉज वालों को इस साल लेने के देने पड़ गये हैं.
कुल्लू में होटल चलाने वाले विजय शर्मा कहते हैं कि कुल्लू में सबकी रोजी-रोटी टूरिज्म पर निर्भर है लेकिन अभी कारोबार 5 प्रतिशत भी नहीं चल रहा है क्योंकि सारे रास्ते कटे हुए हैं और टूरिस्ट बिल्कुल नहीं आ रहे.
शर्मा मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में नदी के आसपास जमकर अवैध निर्माण हुआ जिसकी प्रशासन ने अनदेखी की है. वह कहते हैं, “ये सच है कि लोगों ने नदी के पास निर्माण किया है. इससे तबाही बढ़ी है. प्रशासन को यह सब निर्माण रोकना चाहिये था.”
कुल्लू के डीसी आशुतोष गर्ग ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पूरी तरह से या आंशिक रूप से बर्बाद हुए घरों की वजह से 2000 से अधिक परिवार प्रभावित हुए हैं. बाकी जिलों का भी कमोबेश यही हाल है. उन्होंने कहा कि 375 व्यवसायिक इमारतें तबाह हो गयी हैं. कुल्लू जो सबसे प्रभावित जिला है, वहां अब तक 9.05 करोड़ का मुआवजा लोगों को दिया जा चुका है और 3.36 करोड़ लाख रुपये का मुआवजा दिया जाना है.
लेकिन क्या मुआवजा लोगों की बिखरी जिन्दगी को पटरी पर ला पाएगा. जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं यानी क्लाइमेट चेंज और एक्सट्रीम वैदर इवेन्ट्स के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए आपदा के खतरे को कम करने यानी डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के लिये कड़े कदम उठाये जाने जरूरी है और इसकी शुरुआत एक समावेशी और टिकाऊ विकास के मॉडल से ही हो सकती है.
Also Read
-
7 FIRs, a bounty, still free: The untouchable rogue cop of Madhya Pradesh
-
‘Waiting for our school to reopen’: Kids pay the price of UP’s school merger policy
-
Putin’s poop suitcase, missing dimple, body double: When TV news sniffs a scoop
-
The real story behind Assam’s 3,000-bigha land row
-
CEC Gyanesh Kumar’s defence on Bihar’s ‘0’ house numbers not convincing