Report
ईशा फाउंडेशन: मद्रास हाईकोर्ट ने निर्माण अवैध पाए जाने पर दिया कार्रवाई आदेश
मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ एक आदिवासी संगठन की याचिका पर इस बात की जानकारी मांगी है कि क्या सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के कोयंबटूर परिसर को निर्माण के लिए कोई भी जरूरी इजाज़त थी या नहीं? संगठन ने याचिका 6 साल पहले दायर की थी. हाईकोर्ट ने जिला नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग को आदेश दिया है कि अगर मामले में किसी भी तरह की अवैधता पाई जाती है तो उचित कार्रवाई की जाए.
न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले ही सद्गुरु के सम्राज्य निर्माण की पूरी कहानी को तीन भागों में प्रकाशित किया है. इस सीरीज़ में हमने बताया है कि कैसे नियमों और मानदंडों का खुलेआम उल्लंघन कर के जग्गी वासुदेव ने कोयंबटूर के इक्कराई बोलुवमपट्टी में ईशा फाउंडेशन के 150 एकड़ परिसर का अवैध निर्माण किया है. इसी अवैध परिसर में आदियोगी (भगवान शिव) की 112 फुट की विशाल प्रतिमा भी लगाई गई है.
प्रतिमा निर्माण पर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के तत्कालीन उप-निदेशक आर सेल्वराज ने इस बात को कबूला था कि उनके विभाग से आदियोगी प्रतिमा निर्माण के लिए किसी भी तरीके की कोई मंजूरी नहीं ली गई. लेकिन फिर भी इसके कुछ हफ्तों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदियोगी प्रतिमा का उद्घाटन किया.
वेलियनगिरी हिल ट्राइबल प्रोटेक्शन सोसाइटी के अध्यक्ष पी मुथम्मल ने कुछ साल पहले इस मामले में एक याचिका दाखिल की थी.
2021 में न्यूज़लॉन्ड्री ने 51 वर्षीय पी मुथम्मल से मुलाकात की थी. तब उन्होंने बताया था कि 2017 में याचिका दायर करने की वजह से उन्हें परेशान किया गया था. मुथम्मल ने यह भी कहा था कि वेल्लियनगिरी की तराई इलाके में ईशा फाउंडेशन के निर्माण कार्य पर आपत्ति जताने का उन्हे भुगतान करना पड़ा. मुथम्मल जो मुत्ताथु अयाल बस्ती में रहा करती थी, उन्हें उनके घर को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था.
मद्रास हाई कोर्ट ने 18 अगस्त को ईशा फाउंडेशन के अवैध निर्माण को लेकर निर्देश जारी किए थे. इस पर मुथम्मल ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि अब इस मामले पर कार्रवाई करना सरकार का काम है. सरकार को अवैध निर्माणों को हटाना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जंगल, वन्यजीवों और आदिवासी लोगों को कोई नुकसान नहीं हो.
'किसी एनओसी का कोई रिकॉर्ड नहीं'
मद्रास उच्च न्यायालय ने टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के संयुक्त निदेशक थिरु आर राजागुरु द्वारा दायर स्टेटस रिपोर्ट का संज्ञान लिया. इस रिपोर्ट को पिछले हफ्ते सुनवाई के दौरान विशेष सरकारी वकील आर.अनीता ने अदालत के रिकॉर्ड पर रखा था.
थिरु आर राजागुरु की रिपोर्ट में कहा गया कि ईशा फाउंडेशन ने निर्माण के लिए न तो अनुमति मांगी और न ही विभाग से नॉन ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट(एनओसी) को हासिल किया है. इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एस वी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति पी डी औदिकेसावुलु की पीठ ने जांच के आदेश दे दिए.
रिपोर्ट में 20.805 हेक्टेयर भूमि पर निर्माण की बात कही गई है, जिसमें 15.53 एकड़ नंजाई जमीन (खेती करने के लायक जमीन जहां ज्यादतार समय पानी जमा होता है) और 5.275 हेक्टेयर पुंजाई जमीन (सूखी जमीन) शामिल है.
रिपोर्ट में कहा गया, “कलेक्टर एनओसी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एनओसी, पर्वतीय क्षेत्र संरक्षण प्राधिकरण एनओसी, अग्निशमन विभाग एनओसी आदि के संबंध में इस कार्यालय में कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है. इककराई बोलुवमपट्टी पंचायत से पुष्टि करने के बाद पता चला कि पंचायत के सरपंच ने भी इस बाबत कोई अनुमति नहीं दी थी.”
रिपोर्ट में बताया गया, “धार्मिक परिसर निर्माण के लिए कलेक्टर एनओसी के जरिए भी कोई अनुमति जारी नहीं की गई है.”
कोर्ट ने कहा है कि संयुक्त निदेशक, जिला नगर और ग्राम नियोजन को याचिकाकर्ता और ईशा फाउंडेशन द्वारा पेश किए जाने वाले संभावित दस्तावेजों पर विचार करना होगा और लागू अनुमति की जांच करनी होगी.
कोर्ट ने आगे कहा, यदि ऐसा करने की अनुमति नहीं होगी तो वह उस भवन के संबंध में तत्काल कदम उठाएंगे जो योजना और अनापत्ति प्रमाण पत्र के अनुसार नहीं बनाया जा सकता है.
वेलियनगिरी हिल्स ट्राइबल प्रोटेक्शन सोसाइटी की ओर से वकील एम पुरषोत्तमन कहते हैं, "2010 की गज रिपोर्ट (हाथी कार्य समिति की रिपोर्ट) के अनुसार, इक्कराई बोलुवमपट्टी हाथियों का रहन-सहन का इलाका था. हालांकि लोग अक्सर इस इलाके को एक गलियारा समझ लेते हैं, जो कि गलत है. क्योंकि ये पूरी तरह से हाथियों का निवास स्थान है और इससे भी कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है इस इलाके में नोय्यल नदी का बेसिन (जहां नदियों के पानी जमा होते हैं) होना. पारिस्थितिक संवेदनशील क्षेत्र (इको-सेंसिटिव जोन) को उन्होंने(ईशा फाउंडेशन) आम इलाके में बदल दिया है और अब आरक्षित वनों के नज़दीक निर्माण कर रहे हैं. किसी भी आरक्षित वन का कॉन्सेप्ट होता है कि उसके आसपास कोई निर्माण नहीं किया जाना चाहिए."
एम पुरषोत्तमन कहते हैं,"HACA की अनुमति लेना अनिवार्य है. ईशा फाउंडेशन ने वन विभाग से एनओसी भी नहीं ली. आदियोगी मूर्ति निर्माण के अलावा दूसरे बड़े निर्माण भी हैं, जिनमें दुकानें, कैंटीन आदि शामिल हैं. 2017 में, शहर और देश नियोजन विभाग ने एक स्टेटस रिपोर्ट दायर की थी कि ईशा द्वारा कोई मंजूरी नहीं ली गई है. पिछले सप्ताह फिर से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की गई. अब मद्रास हाई कोर्ट ने इसका संज्ञान लेते हुए आदेश जारी किया है."
न्यूज़लॉन्ड्री को अपनी दलील देते हुए ईशा ने बताया था, "हम स्पष्ट रूप से दोहराते हैं कि योग केंद्र की सभी इमारतें वैध हैं और किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं करती हैं."
हालांकि, न्यूज़लॉन्ड्री की एक रिपोर्ट में ईशा ने कबूला है की उन्होंने योग केंद्र का निर्माण पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करके बनाया है. रिपोर्ट में इस बात के दस्तावेज़ सबूत भी पेश किए गए हैं.
Also Read
-
Reality check of the Yamuna ‘clean-up’: Animal carcasses, a ‘pond’, and open drains
-
Haryana’s bulldozer bias: Years after SC Aravalli order, not a single govt building razed
-
Ground still wet, air stays toxic: A reality check at Anand Vihar air monitor after water sprinkler video
-
Was Odisha prepared for Cyclone Montha?
-
चक्रवाती तूफान मोंथा ने दी दस्तक, ओडिशा ने दिखाई तैयारी