Report
‘हमारी अर्थव्यवस्था पर कोविड से बड़ी चोट’, बाढ़ के बाद हिमाचल के बागानों और होटलों में छाई मायूसी
शिमला से कुछ किलोमीटर दूर थियोग में सेब के बागानों में मायूसी छाई है. पहले तो इस साल मौसमी चक्र में अनियमितता ने सेब की फसल को बड़ा नुकसान पहुंचाया और फिर आखिरी चोट जुलाई में हुई भारी बारिश और बाढ़ ने कर दी.
सेब व्यापारी राजेंद्र सिंह कहते हैं, “7-8 जुलाई के बाद जो लगातार भारी बारिश हुई और बाढ़ आई उससे काफी नुकसान हुआ है. सड़कें तो टूटी ही भूस्खलन से कई बागान भी तबाह हो गए”
जम्मू-कश्मीर के बाद हिमाचल प्रदेश भारत का सबसे बड़ा सेब उत्पादक राज्य है और पूरे देश का करीब 20 प्रतिशत से अधिक यहां सेब पैदा होता है. राज्य के शिमला, किन्नौर और कुल्लू जिले में सेब के अधिकांश बागान हैं और हिमाचल का कुल सालाना बाजार करीब 6,000 करोड़ रुपए का है लेकिन इस साल लगातार खराब मौसम और बाढ़ के कारण सेब का उत्पादन दो-तिहाई तक घट सकता है.
बर्फबारी और असामान्य व्यवहार से उजड़ी खेती
हिमाचल में दिसंबर के दूसरे पखवाड़े से बर्फबारी शुरू होती है लेकिन इस साल या तो बर्फबारी नहीं हुई या बहुत कम हुई और पूरे सीजन में तापमान और बारिश दोनों असामान्य रहे. इससे फल की क्वालिटी और आकार दोनों प्रभावित हुआ है.
सेब उत्पादक धीरज कुमार कहते हैं, “जो सेब ढाई-तीन हजार रुपए में जाता था वह 400-500 रुपए में बिक रहा है, क्योंकि फल में क्वालिटी ही नहीं बन पाई.”
सेब शीतोष्ण (टेम्परेट) जलवायु में उगने वाला फल है. इसके लिए ठंड से धीरे-धीरे गर्म होने वाला मौसम चाहिए जिसमें सामान्य नमी हो.
मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 7 से 11 जुलाई के बीच इन इलाकों में 400% से अधिक बरसात हो गई. कृषि विज्ञानी और सोलन की वाईएस परमार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुके प्रोफेसर एसपी भारद्वाज कहते हैं कि मार्च से शुरू हुई बारिश अब तक लगातार जारी है और ज्यादातर बरसात तो जुलाई के महीने में हो गई. इससे नमी का स्तर जो 80-85% रहना चाहिए वह 90% या 100% तक रहा और फंगस के साथ कई बीमारियां लग गईं .
भारद्वाज कहते हैं, “सेब में कई तरह की बीमारियों का खतरा होता है, जिससे बचने के लिए किसान दवा का छिड़काव करते हैं. लेकिन नमी की अधिकता का कारण छिड़काव प्रभावी नहीं रहता. बादल छाए होने के कारण नमी उड़ नहीं पा रही. सेब के लिए औसत तापमान भी 20 या 21 डिग्री तक होना चाहिए लेकिन इस साल यह 18-19 डिग्री तक ही है जिसके कारण फल का आकार नहीं बन पाया.”
‘अर्थव्यवस्था के लिए यह कोविड से बड़ी चोट’
पहाड़ी क्षेत्र में भूस्खलन से जहां बागानों को क्षति हुई वहीं सड़कों के टूटने से किसानों का फल मंडियों तक नहीं पहुंच पा रहा है. राज्य के मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने सेब कारोबारियों के लिए मुआवजा बढ़ाने और सड़कों की मरम्मत के लिए आर्थिक पैकेज और तुरंत कदम उठाने का ऐलान किया.
दूसरी ओर वह लोग भी परेशान हैं जो पर्यटन से जुड़े हैं. बाढ़ के बाद सड़कें कट जाने से राज्य में पर्यटन एकदम ठप्प हो गया. शिमला के पास फागू में एक होटल के मैनेजर प्रदीप शर्मा कहते हैं, “इस दौरान टूरिज्म कभी इतना खराब नहीं रहा. होटलों के सारे कमरे खाली पड़े हैं और ऑफ सीजन छूट के बावजूद कोई सैलानी यहां नहीं है.”
यही हाल मनाली से लेकर मंडी और किन्नौर के तमाम होटलों का भी है. इस सबका राज्य की इकोनॉमी पर भारी असर पड़ सकता है. टूरिज्म का सालाना कारोबार 11,000 करोड़ रुपए से अधिक का है और ताजा आर्थिक सर्वे के मुताबिक राज्य की कृषि और पर्यटन क्षेत्र मिलकर जीडीपी में करीब 17% योगदान करते हैं और इससे 70 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिला है. ऐसे में दोनों ही सेक्टरों पर पड़ी चोट अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चिंता है.
हिमाचल में 27 संगठनों के समूह संयुक्त किसान मोर्चा के सह-संयोजक संजय चौहान कहते हैं, “यह हमारे लिए कोविड से बड़ी चोट है. राज्य सरकार ने कुल क्षति का अंदाजा 8,000 करोड़ का लगाया है लेकिन हमारे हिसाब से 12,000 करोड़ की क्षति तो कृषि बागवानी और किसानों की निजी संपत्ति को ही हुई है. केंद्र सरकार को इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करना चाहिए. केंद्र की मदद के बिना हम लोग इस झटके को नहीं झेल सकते.”
क्लाइमेट चेंज से बढ़ेगी दिक्कत
हिमाचल प्रदेश सरकार कृषि और बागवानी को जोड़कर एग्रो-हॉर्टिकल्चर और इको-टूरिज्म बढ़ाने की नीति पर काम कर रही है लेकिन हिमालयी क्षेत्र में चरम मौसमी घटनाएं और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव बढ़ रहे हैं. पर्यटन के प्रभावित होने के साथ हिमाचल प्रदेश की खेती और बागवानी पर इसका असर पड़ना तय है.
चौहान कहते हैं कि इस आपदा में मानव निर्मित कारण बड़े हद तक जिम्मेदार हैं. भवन और सड़क निर्माण के लिए नदियों पर कब्जा करना गलत है. लेकिन तापमान और बारिश के पैटर्न में बदलाव क्लाइमेट चेंज का प्रभाव है और इससे राज्य की खेती और बागवानी के साथ पर्यटन पर असर पड़ा है.
चौहान के मुताबिक, उत्पादन और उत्पादकता निरंतर गिर रही है. 2010 में सेब की 5 करोड़ पेटियों का उत्पादन हुआ जो पिछले साल तक घटकर आधा रह गया.
भारद्वाज कहते हैं, “पिछले साल सूखा पड़ गया था. इस फरवरी में रिकॉर्ड तापमान था. फिर बर्फ गिरने का ग्राफ भी बिगड़ गया. पहले जनवरी तक बर्फ पड़ जाती थी और टिकती भी थी. अब फरवरी में बर्फबारी हो रही है और इस साल तो हुई ही नहीं. इसका असर तो फल और खेती पर पड़ना तय है.”
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क में वैश्विक रणनीति के प्रमुख हरजीत सिंह कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय क्षेत्र विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के भयावह परिणामों के प्रति संवेदनशील हैं. बागवानी और पर्यटन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र यहां रोजगार सृजन में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं और इन पर विनाशकारी प्रभाव जलवायु परिवर्तन के उन ख़तरों के प्रति चेतावनी है जो मानव निर्मित संकट को और बढ़ा रहे हैं.
सिंह के मुताबिक, समावेशी विकास और जलवायु परिवर्तन से निपटने की तैयारी सरकार की साझा रणनीति होनी चाहिए. उनके मुताबिक, "चरम मौसमी घटनाओं और जलवायु परिवर्तन के चेतावनी संकेतों के आलोक में, हमारी अनुकूलन रणनीतियों को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है. यह केवल हमारे बुनियादी ढांचे और संस्थानों को मजबूत करने के बारे में नहीं है; सामुदायिक क्षमता निर्माण में महत्वपूर्ण निवेश आवश्यक है."
देखिए ये वीडियो रिपोर्ट.
Also Read
-
Reality check of the Yamuna ‘clean-up’: Animal carcasses, a ‘pond’, and open drains
-
Haryana’s bulldozer bias: Years after SC Aravalli order, not a single govt building razed
-
Ground still wet, air stays toxic: A reality check at Anand Vihar air monitor after water sprinkler video
-
Was Odisha prepared for Cyclone Montha?
-
चक्रवाती तूफान मोंथा ने दी दस्तक, ओडिशा ने दिखाई तैयारी