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नूंह हिंसाः आधी रात लोगों के घरों में घुसी पुलिस, बुजुर्ग की मौत का आरोप

हरियाणा के नूंह में हुई हिंंसा को लेकर जिले के सिंगार गांव में पुलिस ने 1-2 अगस्त की रात को कई घरों पर छापेमारी की. इस दौरान एक बुजुर्ग जब्बार खान की मौत हो गई. खान के परिवार ने आरोप लगाया कि मौत की वजह पुलिस की पिटाई है. हालांकि, पुलिस ने इन आरोपों से इंकार किया और कहा कि बुजुर्ग ‘छापेमारी से डर’ गए और उनकी मौत हो गई.   

गांव में छापेमारी के बाद पुलिस ने फौरी तौर पर 16 लोगों को हिरासत में ले लिया. छापेमारी के दौरान जब्बार के भाई दीन मोहम्मद को भी पुलिस ने हिरासत में लिया था. जब्बार के बेटे शाहिद का दावा है कि दीन को पुलिस ने इस शर्त पर छोड़ा कि वे लोग मौत के मामले में कार्रवाई की मांग न करें. 

पुलिस के मुताबिक, 1 अगस्त को इंस्पेक्टर राजबीर सिंह के नेतृत्व में सिंगार गांव में अलसुबह छापेमारी की गई थी. बिछौर थाने में नूंह हिंसा को लेकर विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई हैं. 

एफआईआर के मुताबिक, लाठी-डंडों और पत्थरों से लैस करीब 300 लोगों की भीड़ सिंगार और आस-पास के गांवों से विश्व हिंंदू परिषद की नूंह के शिवमंदिर तक होने वाली जलाभिषेक यात्रा के विरोध में जमा हुई और दो मोटरसाइकिल एवं एक कार को आग के हवाले कर दिया. 

नूंह के जनसंपर्क अधिकारी कृष्ण कुमार ने बताया कि पिछले हफ्ते हुई हिंसा फैलाने वाले संदिग्धों की तलाश में पुलिस जिलेभर में छापेमारी कर रही है. हाल ही में हुई इस सांप्रदायिक हिंसा को लेकर हरियाणा के विभिन्न इलाकों में 100 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की गई हैं. कुमार ने बताया कि ज्यादातर छापेमारी रात में ही की जाती है. 

बिछौर थाना के एसएचओ मलखान सिंह ने बताया कि 2 अगस्त को हुई छापेमारी में करीब 16 लोगों को हिरासत में लिया गया था. इनमें से 48 वर्षीय हाकम अली को ‘अफवाह फैलाने’ के लिए गिरफ्तार कर लिया गया. वहीं, बाकी लोगों को उसी दिन छोड़ दिया गया. 

सिंह के मुताबिक, जब्बार खान की मौत ‘सदमे’ से हुई न कि पुलिसिया जुल्म से. पोस्टमॉर्टम के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस मामले में कोई शिकायत नहीं दी गई थी.  

कुछ ऐसी ही बात बिछौर पुलिस स्टेशन के एक अन्य पुलिसकर्मी भी कहते हैं. उनके मुताबिक, ‘छापेमारी के दौरान सदमे’ से खान की मौत हुई. खान के 8 बेटे और एक बेटी हैं. 

‘वो बोले- मैं दंगाई हूं’

न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने छापेमारी के दौरान हिरासत में लिए गए लोगों से भी बात की. पुलिस ने इन्हें बाद में ‘निर्दोष’ करार दिया और कहा कि इनके ‘हिंसा में शामिल होने का कोई सबूत नहीं मिला’. 

इन लोगों और इनके परिजनों ने आरोप लगाया कि पुलिस रात में उनके घरों में घुस आई और उन्हें लाठी-डंडों मारा. यहां तक कि उन्हें अपनी बात रखने का एक मौका तक नहीं दिया. आरोप है कि बाद में इन लोगों के साथ थाने में भी मारपीट हुई. 

ऐसे ही एक शख्स वकील ने बताया कि पुलिस ने उनकी भी पिटाई की. 30 वर्षीय वकील का घर जब्बार के घर से करीब 500 मीटर दूर है. 

टांगों, गर्दन और शरीर पर कई जगह पिटाई से पड़े निशान दिखाते हुए वकील कहते हैं, ‘सुबह करीब साढ़े चार बजे पुलिस ने मेरे घर का दरवाजा तोड़ा. उन्होंने मुझे पीटना शुरू कर दिया और बस तक घसीटते हुए ले गए. मैंने उन्हें बताया भी कि हिंसा के वक्त मैं शिव मंदिर के पास अपनी दुकान में था. मैंने ये भी कहा कि चाहो तो आप सीसीटीवी चेक कर लो लेकिन मेरी एक नहीं सुनी.’

वह आगे कहते हैं, ‘मैंने उन्हें ये भी कहा कि आप चाहो तो हमारे हिंदू भाइयों से पूछ लो लेकिन वे कह रहे थे कि मैं दंगाई हूं. उन्होंने मुझे लात-घूंसे मारे और लाठियों से पीटा.’ वकील को पुलिस ने सुबह 10 बजे हिरासत से छोड़ा.

इसी तरह की कहानी एक 40 वर्षीय चरवाहे सलीम की है. सलीम बताते हैं कि जब पुलिस ने छापा मारा तो वे छत पर सो रहे थे. अपनी पीठ पर छपे मार के निशान दिखाते हुए कहते हैं, ‘उन्होंने बेवजह मुझे लाठियों से मारा.’ सलीम को भी सुबह 10 बजे छोड़ा गया था. 

पड़ोसी हरीश बताते हैं कि सलीम एक मानसिक रोगी हैं लेकिन पुलिस को जरा भी दया नहीं आई. वह चिल्ला रहा था और पुलिस उसे घसीटते हुए ले जा रही थी. 

गांव के ही रहने वाले नवाब (38), हसन (48) और मुजी (50) भी पुलिस के छापेमारी की ऐसी ही दर्दनाक कहानी बयां करते हैं. हसन और मुजी के परिवार ने बताया कि वे लोग पुलिस के डर से कहीं छुप गए हैं. 

छापेमारी के दौरान गांववालों पर हुए पुलिसिया जुल्म के बारे में पूछा गया तो बिछौर थाना की पुलिस ने टिप्पणी से इंकार कर दिया. 

‘सिंगार में है भय का माहौल’

उल्लेखनीय है कि हर साल यात्रा सिंगार के राधा कृष्ण मंदिर में पहुंचती है, लेकिन इस बार हिंसा के चलते यह नूंह में ही रुक गई. 

सिंगार गांव की जनसंख्या करीब 19 हजार है और इनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं. गांव की साक्षरता दर 29 प्रतिशत है जो कि राष्ट्रीय दर 77 प्रतिशत के मुकाबले काफी कम है. यहां के ज्यादातर लोग ट्रांसपोर्ट सेक्टर में ड्राइवर का काम करते हैं. 

राधा कृष्ण मंदिर के पुजारी खेमचंद ने कहा कि उन्होंने ऐसी हिंसा पहले कभी नहीं देखी. ‘यहां हमेशा से हिंदू-मुस्लिम शांति से रहते आए हैं. सच तो ये है कि मुस्लिम हमेशा हमारी मदद करते हैं. जैसे कि जब कभी बजरंग दल या विश्व हिंदू परिषद की कोई यात्रा मंदिर के पास से गुजरती है तो वही (मुस्लिम) लोग यहां आकर सेवा करवाते हैं और इसे शांति से रास्ता देते हैं. मुस्लिम तो यहां मंदिर में भी आते हैं.’ 

वहीं, पुलिस की आधी रात में हुई छापेमारी का डर अब लोगों के मन में साफ नजर आ रहा है.  गांव की बुजुर्ग महिला तबस्सुम ने कहा, ‘हम तो डर में जी रहे हैं. जैसे-जैसे रात आती है मेरा बीपी बढ़ जाता है. आदमी गांव छोड़ के जाने लगते हैं. हमे बच्चों की भी चिंता सताने लगी है.’ 

सिंगार गांव के मुस्लिमों का कहना है कि उनके घर के आदमी पुलिस के डर से पास के खेतों में सोने लगे हैं ताकि छापेमारी से बच सकें. 

एक पुलिसकर्मी भी इस बात की पुष्टि करते हैं और कहते हैं कि यही वजह है हमें अगले दिन की छापेमारी में कोई नहीं मिला. 

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