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न कोई रोकने वाला, न कोई टोकने वाला: हिमंत बिस्वा सरमा का बड़बोले नेता के रूप में सफर
ऐसा देश, जहां नेता और राजनीतिक उम्मीदवार पार्टी टिकटों के लिए संघर्ष करते रहते हैं, वहां प्रासंगिक बने रहना जीवन का एक हुनर है. यह एक सबक है, जिसे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अपने मन में उतार लिया है.
समय के साथ सरमा ने अपना नाम बनाया है, लेकिन ये नाम अच्छे कामों या सक्षम प्रशासन के लिए नहीं, बल्कि मीडिया या सोशल मीडिया पर दिए गए अनाप-शनाप बयानों के लिए है.
किसी दिन वह राहुल गांधी की तुलना सद्दाम हुसैन से करते हैं. कभी पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति पर यह कहकर हमला कर सकते हैं कि उनकी राज्य पुलिस "भारत में कई हुसैन ओबामा" को पकड़ने को प्राथमिकता देगी. या फिर वह असम में सब्जियों की बढ़ती कीमत के लिए "मियां मुसलमानों" को दोषी ठहरा देते हैं.
परिणाम? सोशल मीडिया पर मुट्ठी भर सुर्खियां और हजारों फॉलोअर्स. पिछले सात सालों में ट्विटर पर उनके फॉलोअर्स 50,000 से बढ़कर 20 लाख हो गए हैं.
और अनेक राज्यों में कांग्रेस से भाजपा में आया यह नेता, अपनी हर बात के लिए अखबारों में सुर्खियां बटोरता है. हाल ही में उन्होंने किसानों को चेतावनी दी कि वह "फ़र्टिलाइज़र जिहाद" पर नकेल कस रहे हैं. शायद यह असम में मुस्लिम किसानों द्वारा हिन्दुओं के खिलाफ एक भयावह साजिश रची जा रही हो? कह पाना मुश्किल है.
लेकिन सरमा के लिए यह आम बात है. सच्चाई तो ये है कि इस प्रतिष्ठा को उन्होंने वर्षों में अर्जित किया है.
लगातार बढ़ता स्वर
सरमा की राजनीतिक शुरुआत ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) के साथ हुई, जब वह 1980 के दशक की शुरुआत में स्कूल में थे. असम समझौते पर हस्ताक्षर के साथ आंदोलन समाप्त होने पर वह गुवाहाटी के प्रतिष्ठित कॉटन कॉलेज में कॉलेज राजनीति में चले गए. वह एएएसयू की सबसे मजबूत जिला-स्तरीय इकाई, ऑल गुवाहाटी स्टूडेंट्स यूनियन के महासचिव पद के लिए तीन बार चुने गए.
अज्ञात कारणों से उनका एएएसयू से जुड़ाव समाप्त होने के बाद सरमा कांग्रेस में शामिल हो गए, जिसके वो 2015 में भाजपा में शामिल होने तक सदस्य बने रहे. उन्होंने एक बार खुद को एक "कट्टर" कांग्रेसी कहा था, जो "धार्मिक कट्टरवाद" को नकारता था. उस समय वह कभी-कभार बेबाकी से बोल देते थे - उन्होंने एक बार कहा था कि गुजरात के पाइपों से "खून" बहता है - लेकिन तब उनके कथन कहीं ज़्यादा संयमित रहते थे.
हालांकि, वे तब भी बड़बोलेपन के संकेत थे. 2014 में, जब सरमा और कांग्रेस मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के बीच पार्टी के भीतर टकराव हुआ, तो सरमा ने गोगोई के मंत्रिमंडल से मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इसी दौरान उन्होंने कुछ ट्विटर यूजर्स से जुड़ना-बात करना भी शुरू किया था. जब किसी ने पूछा कि क्या वह गोगोई के खिलाफ विद्रोह करके उन्हें चोट पहुंचा रहे हैं, तो सरमा का मशहूर जवाब था, "किसे परवाह है?"
इसका यह अर्थ नहीं कि सरमा पहले से एक विवादास्पद व्यक्ति नहीं थे. वह उन लोगों में से एक थे जिन्हें "1,000 करोड़ रुपये के घोटाले" में नामित किया गया था, साथ ही उन्हें लुई बर्जर जल आपूर्ति घोटाले में मुख्य आरोपी के रूप में भी नामित किया गया था.
सरमा सितंबर 2015 में भाजपा में शामिल हुए. शायद उनकी नई पार्टी और उसके मूल संगठन, आरएसएस के साथ फिट होने के लिए उनके सार्वजनिक व्यक्तित्व में काफी बदलाव आया. उन्होंने दावा किया कि वह 1970 के दशक में आरएसएस शाखा में "नियमित रूप से" जाते थे और उन्होंने अपनी बात रखने के लिए तथाकथित हिंदू दर्शन का उपयोग करना शुरू कर दिया.
उदाहरण के लिए, 2017 में, सरमा ने एक समारोह में कहा था कि लोग "पिछले जन्म में कर्म की हीनता" के कारण कैंसर से पीड़ित होते हैं. जब ट्विटर पर उनकी आलोचना की गई तो वे बात पर और अड़ गए.
बाद में उन्होंने द प्रिंट को बताया कि उन्होंने "बस वही दोहराया है जो गीता में है"।
यही वह साल था जब उन्होंने राहुल गांधी द्वारा अपने कुत्ते को बिस्कुट खिलाने और उनकी बात को अहमियत न देने का मुद्दा उठाया था.
भाजपा के इस नए चेहरे ने मुसलमानों को बदनाम करने का कोई मौका न गंवाते हुए, यहां भी पार्टी लाइन का पालन किया है. उन्होंने विशेष रूप से अपराधों में शामिल मुसलमानों के नाम ट्वीट किए और अपने राज्य के उन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज करने की धमकी दी, जो दिल्ली में 2020 के तब्लीगी कार्यक्रम में शामिल हुए थे. 2021 में, जब “अवैध” बंगाली भाषी मुसलमानों को गोरुखुटी से बेदखल किया गया, तो उन्होंने इसे “बदले” की कार्रवाई बताया. बीते जून में, उन्होंने राज्य के बंगाली मुसलमानों का वर्णन करने के लिए "फ़र्टिलाइज़र जिहाद" जैसे लफ्ज़ का इस्तेमाल किया.
वह इस तरह असम की "पहचान" पर भी जोर देते हैं, उसे ‘मियां मुसलमानों’ के खिलाफ खड़ा करते हैं - यहां तक कि उनकी कविताओं और संग्रहालयों को भी निशाना बनाते हैं. उन्होंने इसका उपयोग यह बताने के लिए भी किया, कि कैसे असम के परिसीमन की कार्रवाई से राज्य के "मूल" समुदायों को चुनावी प्रक्रिया में बढ़त हासिल करने में मदद मिलेगी.
उन्होंने उन पर "खुले तौर पर असमिया संस्कृति व भाषा और समग्र भारतीय संस्कृति को चुनौती देने" का भी आरोप लगाया है. 2021 में विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि भाजपा को समुदाय के वोटों की ज़रूरत नहीं है क्योंकि मियां "बहुत सांप्रदायिक और कट्टर" हैं.
2016 में नागरिकता संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान सरमा ने असम के लोगों से अपने राज्य में मुस्लिम और हिंदू प्रवासियों की ओर इशारा करते हुए दो समूहों, "1-1.5 लाख लोगों या 55 लाख लोगों" के बीच चयन करने के लिए कहा था.
मोटे तौर पर सरमा ने अपनी पिछली पार्टी, कांग्रेस को भारत का "नया मुगल" कहा है. साथ ही, उन्होंने कहा कि उनका राज्य रोज़ाना "बांग्लादेश से घुसपैठ के खतरे" का सामना कर रहा है. इस साल फरवरी में उन्होंने कहा था कि राहुल गांधी और वारिस पंजाब दे के नेता अमृतपाल सिंह, “अखंड भारत की पवित्रता को खंडित करने के लिए एक जैसी विभाजनकारी भाषा बोलते हैं.”
वह पहले समान नागरिक संहिता पर भी बोल चुके हैं.
सरमा अक्सर उनकी नीतियों की आलोचना करने वालों पर बिना रोक-टोक हमला करते रहते हैं.
दो साल पहले, उन्होंने अपने शासनकाल में असम में "बढ़ती एनकाउंटर की घटनाओं पर" बचाव करते हुए कहा था कि अगर कोई भागने की कोशिश करे तो यही "पैटर्न" होना चाहिए.
कोविड महामारी के दौरान, शायद मनोबल बढ़ाने के लिए, उनकी सरकार ने प्रत्येक कोविड रोगी को एक रेडियो सेट उपहार में देने का निर्णय लिया. जब असम के एक प्रमुख दैनिक अखबार असोमिया प्रतिदिन ने इस निर्णय को "विचित्र" बताया, तो सरमा ने उसके मालिक पर "लोगों को ब्लैकमेल करने" का आरोप लगाया.
ज़ाहिर है कि यह सूची पूरी होने के समीप भी नहीं है. लेकिन यही सरमा का स्वांग है - और वह इस पर कायम हैं.
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