Media
व्हाट्सएप ग्रुप पर आए दो नोटिस और संसद टीवी के 19 कर्मचारी हुए रातों-रात बेरोजगार
पब्लिक ब्रॉडकास्टर संसद टीवी ने सीईओ रजित पुन्हानी द्वारा 12 जून को दो नोटिस जारी करने के बाद 19 एड हॉक और फ्रीलांस पेशेवर कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दीं. दोनों नोटिसों की भाषा जटिल थी, जिससे कर्मचारी भ्रमित हो गए. हालांकि, उनकी सेवाएं रातों-रात ही समाप्त कर दी गई.
दिलचस्प बात यह है कि यह उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा कथित तौर पर संसद टीवी में "एड हॉक नियुक्तियों के बारे में सवाल उठाए जाने" के पांच महीने बाद हुआ है.
संसद टीवी के लगभग सभी कर्मचारी कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं. एडहॉक कर्मचारी आमतौर पर तीन महीने के अनुबंध पर काम करते हैं - मार्च 2021 में लोकसभा टीवी और राज्यसभा टीवी का संसद टीवी में विलय होने तक यह अनुबंध छह महीने, कभी-कभी एक साल भी होता था. उनके मौजूदा अनुबंध 30 जून को समाप्त हो रहे हैं लेकिन उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि कॉन्ट्रैक्ट्स का नवीनीकरण आमतौर पर बिना किसी अड़चन के होता है.
उन्होंने कहा कि इसी वजह से 12 जून के नोटिस पूरी तरह से चौंकाने वाले थे.
पहले नोटिस में 13 एडहॉक कर्मचारियों और छह फ्रीलांसरों के नाम और पद शामिल थे. नोटिस में कहा गया कि सूचीबद्ध लोगों की सेवाएं "अब से अंडरसाइंड (सीईओ) के एक विशिष्ट आदेश या उनके द्वारा अधिकृत अधिकारी के आदेश के माध्यम से प्राप्त की जाएंगी." यह आदेश "तत्काल प्रभाव से लागू" था.
उसी दिन जारी दूसरे आदेश में कहा गया कि संसद टीवी के संयुक्त सचिव (प्रशासन) को "ज़रूरत के अनुसार एडहॉक/फ्रीलांस पेशेवरों की सेवाओं की मांग" के लिए अधिकृत किया गया था.
दोनों आदेशों पर पुन्हानी के हस्ताक्षर थे और फ्रंट ऑफिस अधिकारी द्वारा संसद टीवी के आंतरिक व्हाट्सएप ग्रुप पर भेजे गए थे. व्हाट्सएप ग्रुप में 212 सदस्य हैं, जिनमें पूर्णकालिक कर्मचारियों के साथ-साथ एडहॉक और फ्रीलांस पेशेवर भी शामिल हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री के पास दोनों आदेशों की प्रतियां हैं. आदेशों में नामित कम से कम छह लोगों ने आदेश जारी होने की पुष्टि की.
'हमें वीपी पर विश्वास था'
जब 12 जून को शाम लगभग 5 बजे व्हाट्सएप ग्रुप पर पहला ऑर्डर भेजा गया, तो कुछ एडहॉक और फ्रीलांस कर्मचारियों भ्रमित थे कि इसका क्या मतलब है?, ऐसा उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया. उन्होंने संसद टीवी की मानव संसाधन टीम से संपर्क किया और कथित तौर पर उन्हें अगले दिन से दिल्ली कार्यालय में न आने के लिए कहा गया. उनसे उनके अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने को भी कहा गया.
तीन लोगों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनमें से सभी 19 ने संसद टीवी के लिए तीन से आठ साल तक काम किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि विलय से पहले वे सभी राज्यसभा टीवी के लिए काम करते थे.
एडहॉक कर्मचारियों को 20,000 रुपये से 60,000 रुपये के बीच वजीफा दिया जाता है. ये 19 लोग निम्नलिखित पदों पर थे: एक एसोसिएट कॉपी एडिटर, दो वरिष्ठ ग्राफिक डिजाइनर, एक गेस्ट कोर्डिनेटर, दो तकनीकी अधिकारी (वीडियो), दो वीडियो लाइब्रेरियन, दो जूनियर रिपोर्टर, एक ट्रांसपोर्ट कोर्डिनेटर, एक इलेक्ट्रीशियन और एक वरिष्ठ शोधकर्ता. फ्रीलांसरों में छह "सहायक" शामिल थे - दो ग्राफिक्स के लिए और चार वीडियो संपादन के लिए.
तीन एडहॉक कर्मचारियों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उन्हें "चार साल से तनख्वाह में बढ़ोतरी नहीं मिली है."
एक ने कहा, "लेकिन इस साल, ऐसी चर्चाएं थीं कि आखिरकार हमें इंक्रीमेंट मिल जाएगा. उपराष्ट्रपति ने हमसे परोक्ष रूप से वादा किया था कि एडहॉक और फ्रीलांसरों के लिए कुछ अच्छा होगा. हमने उन पर विश्वास किया. हम उम्मीद कर रहे थे कि हम पक्के कर्मचारी होंगे. एक समय पर वे कहते हैं कि वे हमारे लिए कुछ अच्छा कर रहे हैं और फिर वे ऐसा करते हैं.”
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कथित तौर पर जनवरी में संसद टीवी कर्मचारियों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी, जिसमें एडहॉक कर्मचारी भी शामिल थे. अन्य बातों के अलावा, उन्होंने कथित तौर पर उनसे कहा था कि वह तदर्थ कर्मचारियों को "कागज पर" ला देंगे- जिसका अर्थ बनता है कि वे स्थायी कर्मचारी होंगे. संसद के नियमित कर्मचारी भी कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं.
वरिष्ठ प्रबंधन ने कथित तौर पर वादे भी किए. पिछले महीने के अंत में सीईओ पुन्हानी ने वेतन बढ़ने का वादा करते हुए कर्मचारियों से "धैर्य रखने" का आग्रह किया.
एक एडहॉक कर्मचारी ने कहा, "शुरुआत में आदेश को समझना भी कठिन था क्योंकि यह सीधे तौर पर नहीं कहता कि हमें बर्खास्त कर दिया गया है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने संसद टीवी के सीईओ रजित पुन्हानी से संपर्क किया, लेकिन वह टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे. उनकी ओर से जवाब आने पर यह रिपोर्ट अपडेट कर दी जाएगी.
Also Read
-
TV media sinks lower as independent media offers glimmer of hope in 2025
-
Bollywood after #MeToo: What changed – and what didn’t
-
TV Newsance 326: A very curly tale, or how taxpayers’ money was used for govt PR
-
Inside Mamdani’s campaign: The story of 2025’s defining election
-
How India’s Rs 34,000 crore CSR spending is distributed