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स्वच्छ ऊर्जा निवेश में पिछड़ा झारखंड कोयले पर किस हद तक है आश्रित?
भारत ग्लास्गो के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP – 26) में किए अपने स्वच्छ ऊर्जा संकल्प के पहले चरण यानी वर्ष 2030 तक बिजली की आधी जरूरत को अक्षय ऊर्जा से पूरा करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा को बढ़ावा दे रहा है. कई दक्षिणी व पश्चिमी राज्य इस दिशा में बेहतर काम कर रहे हैं, लेकिन इसके विपरीत पूर्वी राज्य झारखंड में अक्षय ऊर्जा की जगह ताप विद्युत घरों में बढ़ोतरी देखी जा रही है.
भारत में इस वक्त 28.2 गीगावाट (28 हजार 200 मेगावाट) क्षमता के कोयला आधारित पॉवर प्लांट निर्माणाधीन है और पूरा होने के विभिन्न चरणों में है. इसमें झारखंड की ही हिस्सेदारी 7580 मेगावाट या 7.58 गीगावाट है, यानी भारत में नए बनने वाले कोयला पॉवर प्लांट की क्षमता में एक चौथाई से अधिक हिस्सेदारी झारखंड की होगी.
झारखंड में अलग–अलग हिस्सों में इस समय कोयला आधारित तीन बड़े पॉवर प्लांट का निर्माण हो रहा है. केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, झारखंड की मौजूदा कोयला आधारित बिजली उत्पादन की इंस्टॉल क्षमता (यूटिलिटीज) 2,361 मेगावाट है. इन तीनों प्लांट के पूरी तरह शुरू हो जाने से इस क्षमता में 7,580 मेगावाट की वृद्धि हो जाएगी, जो झारखंड की मौजूदा क्षमता की तीन गुना होगी.
इन तीन नए प्लांट में गोड्डा में अदानी पॉवर (झारखंड) लिमिटेड का 1600 मेगावाट (800 मेगावाट की 2 यूनिट) का प्लांट, रामगढ़ जिले के पतरातू में 4,000 मेगावाट का (800 मेगावाट की 5 यूनिट) पतरातू विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड का प्लांट, और चतरा जिले के टंडवा में 1980 मेगावाट (660 मेगावाट की 3 यूनिट) का एनटीपीसी का नार्थ कर्णपुरा सुपर थर्मल पॉवर प्लांट शामिल है. पतरातू का 4,000 मेगावाट का प्लांट पतरातू विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा संचालित किया जाएगा जो कि एनटीपीसी (74%) और झारखंड सरकार के उपक्रम झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड (26%) की साझेदारी वाली कंपनी है. यह प्लांट देश के सबसे बड़े थर्मल पॉवर प्लांट में एक होगा.
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, सिर्फ पतरातू व टंडवा थर्मल पॉवर प्लांट की नवीनतम लागत 34 हजार 57 करोड़ रुपए है. स्वच्छ ऊर्जा में निवेश में पिछड़े झारखंड में जीवाष्म ऊर्जा में यह एक बड़ा निवेश है.
राज्य में स्वच्छ ऊर्जा की कम स्थापित क्षमता
एक ओर झारखंड में कोयला से बनने वाली बिजली की इंस्टॉल क्षमता में गुणात्मक वृद्धि होने जा रही है, वहीं नवीनीकृत ऊर्जा क्षमता हासिल करने में राज्य के कदम थमे हुए हैं. एनर्जी ट्रांजिशन की प्रक्रिया में जीवाष्म ऊर्जा व स्वच्छ ऊर्जा की खाई चौड़ी होने का भी खतरा है, जबकि इसे क्रमिक रूप से कम होना चाहिए.
अपनी घोषणाओं के बावजूद नवीनीकृत ऊर्जा में झारखंड लगातार पिछड़ रहा है. एनर्जी थिंकटैंक एंबर की हाल की एक स्टडी के अनुसार, झारखंड को वर्ष 2022 तक 2,005 मेगावाट नवीनीकृत ऊर्जा क्षमता हासिल करना था, लेकिन वर्तमान में उसकी इंस्टॉल क्षमता मात्र 103.26 मेगावाट के करीब है जो लक्ष्य का मात्र पांच प्रतिशत है.
नवीनीकृत ऊर्जा क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल करने के लिए झारखंड ने 5 जुलाई 2022 को दूसरी बार अपनी सौर ऊर्जा नीति का ऐलान किया. इससे पहले 2015 में सौर ऊर्जा नीति जारी की गई थी, जिसमें राज्य में 2020 तक 2,650 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न करने का लक्ष्य रखा गया था. वर्ष 2022 में जारी दूसरी सौर ऊर्जा नीति में झारखंड ने पांच साल में 4,000 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य रखा है. वित्त वर्ष 2023 में झारखंड ने 443 मेगावाट सौर बिजली बनाने का लक्ष्य रखा है. पर, इस लक्ष्य को हासिल करने से जुड़े सवाल पर झारखंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी के अधिकारियों के पास कोई स्पष्ट जवाब नहीं है. इससे उलट वे सौर ऊर्जा परियोजनाओं को धरातल पर उतारने में कई परेशानियां गिनाते हैं, जिसमें लोगों को मानसिक रूप से इसे अपनाने के लिए तैयार नहीं कर पाना भी एक चुनौती है.
झारखंड रिन्यूबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (JREDA) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर विजय कुमार सिन्हा ने कहा, “हमारे यहां कुसुम योजना व सोलर रूफटॉप सफल है. हम अब सोलर पार्क की ओर बढ रहे हैं और हर जिले से इसके लिए संपर्क कर रहे हैं. सौर ग्राम की अवधारणा को लेकर हम हर जिले में ऐसे गांव को चिह्नित कर रहे हैं, जहां सामान्य बिजली पहुंचाना मुश्किल है, वहां 50 से 60 मेगावाट का मिनी या माइक्रो ग्रिड लगा दें.”
मालूम हो कि झारखंड ने वर्ष 2022 में जारी नई नीति में 1,000 गांवों को सौर ग्राम बनाने का लक्ष्य रखा है.
सिन्हा ने कहा, “हम चांडिल में 600 मेगावाट का फ्लोटिंग सोलर प्लांट लगाने की योजना पर काम कर रहे हैं और केंद्र से इसके लिए मंजूरी मिल गई है. अगर यह परियोजना सफल होती है तो राज्य की नवीनीकृत ऊर्जा क्षेत्र में यह पहली बड़ी उपलब्धि होगी, जिससे दो लाख घरों को बिजली आपूर्ति की जा सकेगी.”
एनर्जी इकोनॉमिस्ट और इंस्टीट्यूट ऑफ एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) की साउथ एशिया डायरेक्टर विभूति गर्ग कहती हैं, “भारत 2030 तक 500 गीगावाट नवीनीकृत ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लक्ष्य पर काम कर रहा है. इसके लिए घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.” वह कहती हैं कि कोयला से बिजली निर्माण महंगा है, रिपोर्ट के अनुसार 8.34 करोड़ रुपए एक मेगावाट बिजली क्षमता बढ़ाने में खर्च आता है.
कोयला पर किस हद तक आश्रित है झारखंड
थिंक टैंक क्लाइमेट ट्रेंड और अर्नस्ट एंड योंग एलएलपी (Ernst and young LLP) की रिपोर्ट लाइवलीहुड ऑपरच्युनिटी फॉर झारखंड के अनुसार, झारखंड भले ही इस वक्त कोयला उत्पादन में देश में चौथे स्थान (छत्तीसगढ, ओडिशा और मध्यप्रदेश के बाद) पर हो, लेकिन व्यापक कोयला खनन क्षेत्र व सबसे अधिक खदानें (113) होने की वजह से यहां सबसे बड़ा कोयला आधारित कार्यबल है. राज्य के 24 में 12 जिलों में कोयला की खदानें हैं और एक जिला दुमका में इसकी तैयारी चल रही है. बोकारो, रामगढ, धनबाद जैसे जिले न सिर्फ कोयला पर बहुत अधिक आश्रित हैं, बल्कि इन जिलों में कोयला आधारित कई दूसरे उद्योग हैं. नए पॉवर प्लांट से भी संबंधित जिलों में नए कोयला आश्रित समुदाय का निर्माण होगा.
क्लाइमेट ट्रेंड एवं अर्नस्ट एंड यंग की अप्रैल 2023 में आई रिपोर्ट में झारखंड सहित प्रमुख कोयला उत्पादक राज्यों के कोयला कार्यबल व ट्रांजिशन की संभावित चुनौतियों का विश्लेषण किया गया है. कोयला व इससे चलने वाले विद्युत संयंत्रों पर निर्भर 6,000 लोगों के सैंपल सर्वे पर आधारित इस अध्ययन में कहा गया है कि कोयला खदानों व बिजली संयंत्रों के आसपास के अधिकतर समुदाय अपनी आर्थिक गतिविधि के लिए कोयला पर बहुत अधिक निर्भर हैं.
इस स्टडी में कहा गया है कि केंद्र सरकार के सकल राजस्व में जहां कोयला क्षेत्र से तीन प्रतिशत राजस्व प्राप्त होता है, वहीं झारखंड में यह आठ प्रतिशत है. रामगढ, रांची, बोकारो, धनबाद व चतरा जिले पर केंद्रित इस अध्ययन के अनुसार, कोयला खनन और उससे जुड़ी आर्थिक गतिविधि एक जटिल व नाजुक संतुलन पर निर्भर करती हैं.
एनर्जी इकोनॉमिस्ट विभूति गर्ग कहती हैं, “कोयला हमारी ऊर्जा सुरक्षा को पूरा करता है और इससे सामाजिक उद्देश्य भी पूरा होता है, स्वास्थ्य, शिक्षा अन्य क्षेत्र में इससे मिलने वाले पैसे से काम होता है.”
झारखंड जन सुविधाएं पहुंचाने के लिए डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) पर बहुत अधिक निर्भर है, जिसमें कोयला खनन का अंशदान सबसे अधिक है. थिंक टैंक आइफॉरेस्ट के एक अध्ययन के अनुसार, झारखंड में डीएमएफटी फण्ड से फरवरी 2022 तक 3685.63 करोड़ रुपए विभिन्न मद में खर्च किए गए जिसमें सबसे अधिक 2875 रुपए सिर्फ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए खर्च किए गए.
आइफॉरेस्ट की जस्ट ट्रांजिशन डायरेक्टर श्रेष्ठा बनर्जी ने कहा, “झारखंड में कोयला पर बहुत बड़े पैमाने पर निर्भरता है. प्रत्यक्ष रूप से निर्भरता के अलावा बहुत बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जो अप्रत्यक्ष रूप से कोयला आधारित उद्योग पर निर्भर हैं. धनबाद, बोकारो व रामगढ़ ऐसे जिले हैं, जो पूरी तरह कोयला पर निर्भर हैं. यहां 50 से 70 साल पुरानी खदानें चल रही हैं, जिसकी उत्पादकता कम हो गई है और वे घाटे में हैं. इन जिलों का अगले 10 से 15 सालों में ट्रांजिशन होना है और ऐसे में इनके आर्थिक विविधिकरण के बारे में और नए निवेश के बारे में सोचना होगा.”
श्रेष्ठा झारखंड के प्रमुख कोयला उत्पादक जिलों के बारे में बात करते हुए कहती हैं, “ये ऐसे जिले हैं, जो बहुत अधिक कोयला निर्भर हैं… महाराष्ट्र के चंद्रपुरा व नागपुर जैसे जिले भी कोयला अर्थव्यवस्था से आगे बढ़े, लेकिन वे इतना अधिक कोयला निर्भर नहीं हैं.”
ऐसी स्थिति में श्रेष्ठा झारखंड में बेहतर ट्रांजिशन के लिए ग्रीन इनवेस्टमेंट और ग्रीन इकोनॉमी के प्रोत्साहन पर जोर देती हैं.
नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में कठिनाइयां व संभावनाएं
देश के एनर्जी ट्रांजिशन के चलते कुछ राज्यों ने नए कोयला पॉवर प्लांट स्थापित नहीं करने का फैसला लिया है. देश में कोयला बिजली का सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य छत्तीसगढ़ व गुजरात ने यह नीतिगत फैसला लिया है कि वह अब और नए थर्मल पॉवर को मंजूरी नहीं देंगे. ऐसे में झारखंड में नए सिरे से कोयला आधारित बिजली का एक नया हब बन कर उभर रहा है.
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की लीड कंट्री एनालिस्ट एवं को-ऑर्डिनेटर (इंडिया) स्वाति डिसूजा ने कहती हैं, “झारखंड में बन रहे ये पॉवर प्लांट पिछले पांच से आठ सालों से निर्माणाधीन हैं, यदि और नए पॉवर प्लांट बनेंगे तो वह परेशानी उत्पन्न करने वाला होगा. यह ध्यान रखना होगा कि हमें नवीनीकृत ऊर्जा में निवेश बढ़ाना है और नए कोल पॉवर प्लांट में निवेश नहीं करना है. झारखंड में नवीनीकृत ऊर्जा की काफी संभावनाएं हैं, इसके लिए राज्य में इंस्टॉल कैपिसिटी भी बढ़ाना होगा.”
लेकिन सबसे बड़े कोयला श्रम वाला यह राज्य स्वच्छ ऊर्जा में निवेश व क्षमता निर्माण (कैपिसिटी इंस्टॉलेशन) को लेकर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसमें भूमि का अधिग्रहण, समतल भूमि का न होना व लोगों को मानसिक रूप से उसके लिए तैयार न कर पाना प्रमुख हैं.
क्लाइमेट ट्रेंड के झारखंड को लेकर ताजा अध्ययन में झारखंड में नवीनीकृत ऊर्जा की संभावनाओं का भी आकलन किया गया है. इसके अनुसार, झारखंड में 150 गीगावाट नवीनीकृत ऊर्जा की संभावना है. पर, राज्य में इससे जुड़ी कुछ चुनौतियां हैं – जैसे भूमि अधिग्रहण, मेन पॉवर (मानव कार्यबल) और निवेश की कमी. एक सरकारी अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि झारखंड में उबड़–खाबड़ व जंगल से ढ़के इलाके के मद्देनजर बड़े स्तर पर सौर परियोजनाओं को स्थापित करने के लिए जमीन खाली नहीं है. निजी व सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों से यहां बहुत कम सौर ऊर्जा डेलपर्स व निवेशक हैं. जमीन की उपलब्धता की वजह से गुजरात व कर्नाटक जैसे राज्यों में अक्षय ऊर्जा सेक्टर में अधिक निवेश होता है.
ज्रेडा के एक अधिकारी ने इस संवाददाता से कहा कि लोगों को सौर ऊर्जा के बारे में समझा पाना बहुत मुश्किल होता है. इस काम में लगे वेंडर को भी लोगों की अरुचि से परेशानियों का सामना करना होता है.
आइफॉरेस्ट ने अपने अध्ययन में यह सुझाव दिया है कि डीएमएफटी के पैसों का उपयोग छोटे स्तरों पर सौर ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए किया जा सकता है, जिसमें आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र, विद्यालय आदि में इसे इंस्टॉल किया जा सकता है. साथ ही कृषि आधारित व्यवसाय व आजीविका से जुड़ी योजनाओं में भी इसका उपयोग किया जा सकता है. इससे लोगों के जीवन में भी बदलाव आएगा.
साभार- (MONGABAY हिंदी)
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