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ओडिशा ट्रेन हादसा: शवों का ढेर, मेरे अंकल का नंबर 72 है, बॉडी नहीं मिल रही
जगह- बालेश्वर टाउन का नौसी पार्क, ट्रिपल ट्रेन हादसे से करीब 26 किलोमीटर दूर. यहीं पर रखा गया था ट्रेन हादसे में मारे गए लोगों का शव.
दिन - शनिवार रात
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अधकटे शव. बेतहशा बदबू और अपनों को तलाशते लोग.
ओडिशा मयूरभंज जिले के बारूपोदा के रहने वाले आशीष साहू और शुभाशीष साहू, यहां रखी लाशों में अपने दोस्त जगदीश साहू का शव तलाश रहे थे. घंटे पर की मशक्क्त के बाद जब जगदीश का शव दिखा तो आशीष ने माथे पर हाथ रख लिया. चेहरा पहचान में ही नहीं आ रहा था.
आशीष कहते हैं, बालेश्वर से ट्रेन में चढ़ा था. कटक जा रहा था. जब निकला तब मेरी बात भी हुई थी. हम तीनों बचपन के दोस्त हैं. वो अभी तीन स्टेशन पार भी नहीं किया की ये सब हो गया.
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शव जहां रखा हुआ था. उसके बाहर हमारी मुलाकात निमेह से हुई. पश्चिम बंगाल के रहने वाले निमेह और उनके भाई सुनील कोरोमंडल एक्सप्रेस के पेंट्री कार में काम करते थे. घटना के वक्त निमेह एसी बोगी में थे वहीं उनके भाई स्लीपर बोगी में. निमेह रात चार बजे तक अपने भाई का शव तलाशते हुए नजर आए.
निमेह बताते हैं, ‘‘जिस बोगी में मैं था वो ट्रैक से उतार गया लेकिन पलटा नहीं था. मेरा भाई जिस बोगी में था वो पलट गया था. घटना के बाद मैं उसे ढूंढने गया, लेकिन वहां इतना खून बह रहा था. लोग चीख रहे थे ये सब देखकर मुझे चक्कर आ गया. मैं तब से अपने भाई को ढूंढ रहा हूं. कहीं भी उसका पता नहीं चल पा रहा है.
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कोलकत्ता के रहने वाले वीर दास एक-एक शव का चेहरा उठाकर देख रह थे. इनके अंकल, एक बड़ा भाई और दो छोटे भाई और एक पड़ोसी इस हादसे के शिकार हो गए. ये सब राजमिस्त्री का काम करने चेन्नई जा रहे थे. शनिवार सुबह से वीर अपनों की तलाश में लगे हैं. उन्हें पांच में केवल एक का ही शव मिल पाया है.
दास कहते हैं, ‘‘एक थैली में मेरे अंकल का कपडा मिला है. लेकिन बॉडी नहीं मिली. थैली पर सात नंबर लिखा है. सात नंबर बॉडी कहां गई पता ही नहीं. यहां कोई मदद ही नहीं कर रहा है.’’ इतना कहने के बाद वे फिर वहां रखे शव को ध्यान से देखते हुए आगे बढ़ने लगते हैं.
जहां मृतकों का शव रखा गया वह चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स का हाउस है. जो एक बड़ा सा गो-डाउन जैसा है. इसके एक हिस्से में एक स्क्रीन पर मृतकों की तस्वीरें और उनका नंबर दिखाया जा रहा है. कुछ लोग जहां शव का चेहरा हटाकर अपनों की पहचान कर रहे थे वहीं कुछ यहां तस्वीरों के जरिए. यहीं हमारी मुलाकात बिहार के जमुई जिले के रहने राजू मुर्मू से हुई.
बिहार में शिक्षक सहायक राजू मुर्मू के तीन साले, एक साले का बेटा और एक भांजा काम करने के लिए 15 दिन पहले ही बेंगलुरु गए थे. सबकी उम्र 18 से 20 साल की थी. लौटते हुए घटना के शिकार हो गए. इसमें से तीन तो ठीक हैं लेकिन दो का पता नहीं चल पा रहा है.
मुर्मू कहते हैं, ‘‘तीन चार बार अंदर (जहां शव रखा है) गए. हरेक शव का चेहरा देखा. जब मेरे अपने नहीं मिले तो यहां बैठकर देख रहा हूं. मेरे दो लोग गायब हैं. एक जिसका नाम राम किस्कू है. उसकी मौत की हमें जानकारी है लेकिन दूसरा जिसका नाम विकास किस्सू है, उसके बारे में कुछ पता ही नहीं चल पा रहा है.’’
यहां लोग नंबरों में तब्दील हो गए हैं. स्क्रीन के सामने घंटों से बैठे और एक-एक तस्वीर को ध्यान से देख रहे पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना के 35 वर्षीय सुकुमार कहते हैं, मेरा भांजा मिल गया.
इस हादसे में सुकुमार के दो भांजे, प्रदीप दास और दपन दास की मौत हो गई है. दोनों सगे भाई थे. केरल राज मिस्त्री का काम करने जा रहे थे. पश्चिम बंगाल सरकार के कुछ अधिकारी यहां मौजूद थे जिनकी मदद से ये उनका शव लेने में सफल हो गए.
पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से शवों को ले जाने के लिए छोटा ट्रक भेजा गया था. जो शव को लेकर खड़गपुर जा रहा था. अधिकारियों ने बताया कि वहां कागजी करवाई करने के बाद शव परिजनों को सौंप दिया जाएगा. यहां शव को उठाने वाले बेहद नशे में थे. वे शव को बेहरमी से इधर-उधर फेंक रहे थे. हद तो तब हो गई जब एक शख्स, शव पर ही पेशाब करने लगा. वहां मौजूद अधिकारी उसे धक्का देकर बाहर ले गया. बाहर वो गेट पर ही पेशाब करके लेट गया और सो गया.
ये सब बारीपाड़ा म्युनिसिपल के कर्मचारी थे. इनमें से एक ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, अगर हम शराब ना पिए तो काम ही नहीं कर पाएंगे. वे एक बॉडी की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘‘आप इस बॉडी को छू सकते हैं. देखिए सर दो हिस्सों में है. कमर के नीचे का हिस्सा टेढ़ा हो गया है. वो दूसरी बॉडी देखिए. पेट कितना फूल गया है. आप इन्हें टच तक नहीं कर सकते हैं. इसलिए हमें पीना पड़ता है.’’
देर रात तक यहां लोग अपनों की तलाश में भटकते रहे. दो शवों को अपने कब्जे में लेकर बाकी सात की तलाश कर रहे मोहम्मद सलालु अली, झारखंड गोंडा के रहने वाले हैं. उनके गांव के नौ लोग केरल मजदूरी की तलाश में जा रहे थे.
अली न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘घटना की जानकारी मिलने के बाद ही मैं यहां आ गया था. तभी से हम शव की तलाश कर रहे हैं, बहुत मुश्किल से जाकर दो लोगों का शव मिला है. जो स्क्रीन पर तस्वीरें दिखाई जा रही हैं. उसमें भी बाकी सात नहीं दिखे. बहुत लोगों का चेहरा और सर कटा हुआ है. इसीलिए नहीं पहचान पा रहे हैं. अभी तक कुछ पता नहीं चल पा रहा है. यहां के लोग बॉडी ठीक से नहीं दिखा रहे हैं. इसलिए पहचानने में दिक्कत हो रही है.’’
रात करीब तीन बजे बाहर से रोने की आवाज़ आई. यह जगदीश साहू के पिता हैं. टूटकर रो रहे जगदीश के पिता उड़िया भाषा में कह रहे थे, ‘‘भगवान किस चीज की सजा दी मुझे. यह सजा किसी और को मत देना. मेरे दुश्मन को भी नहीं.’’ इन्हें संभाल रहे जगदीश के दोस्त कहते हैं, ‘‘ये इनका इकलौता लड़का था. अभी तो हमने बॉडी नहीं दिखाई है. बॉडी का जो हाल है वो अगर देख लिए तो ये और टूट जाएंगे.’’
रात ढलती जा रही थी लोगों की उम्मीद टूटती जा रही थी. तभी स्थानीय प्रशासन एंबुलेंस में शव को रखकर कहीं और भेजने लगा. पता करने पर मालूम हुआ कि शव खराब होने लगे हैं. जिसके चलते इन्हें अलग-अलग अस्पतालों में भेजा जा रहा है.
शव को भेज रहे अधिकारी किशोर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि एम्स भुवनेश्वर में 120, सम हॉस्पिटल में 30, कलिंगा इंस्टीट्यूट में 20, हाई टेक हॉस्पिटल में 10, अमरी हॉस्पिटल में 6 और कैपिटल हॉस्पिटल में 30 शव भेजे गए हैं.
सुबह पांच बजे तक शवों को भेजने का सिलसिला जारी रहा. एक एंबुलेंस में तीन चार बॉडी को जैसे-तैसे रखकर ले जाया जा रहा था. शव भारी हो जाने के कारण कर्मचारी उसे उठा नहीं पा रहे थे. ऐसे में वो कई बार फिसलकर गिर भी रहे थे. वे उसे फिर उठाते और एंबुलेंस में ठूस देते थे. अधिकारियों ने पहले तो शव को ठीक से रखने के लिए कहा लेकिन बाद में उन्होंने भी मौन सहमति दे दी. वे जैसे तैसे यहां से शव हटवाना चाहते थे.
जब शव यहां से जाने लगे तो लोगों के अंदर बेचैनी बढ़ गई. वे पता करने लगे कि शव आखिर जा कहां रहे हैं. क्या उन्हें अपनों का शव मिल भी पाएगा या नहीं? अधिकारियों से जब पता चला कि शवों को अलग-अलग अस्पतालों में भेजा जा रहा है तब वे इस चिंता में डूब गए कि किस अस्पताल में वे जाएं और किसमें नहीं.
सूरज निकला. सुबह हो गई. लेकिन कई लोगों के जीवन में अंधेरा स्थायी जगह बना चुका था. वो शायद ही कभी छटे.
मृतकों के सरकारी आंकड़ों पर सवाल
यहां से हम घटना स्थल पर पहुंचें. सुबह के आठ बज चुके थे. एनडीआरएफ टीम के सदस्य घटना स्थल के पास में ही चाय पी रहे थे. बिहार के रहने वाले एनडीआरएफ टीम के एक सदस्य जो एक्सीडेंट होने के आधे घंटे बाद ही घटना स्थल पर पहुंच गए थे. वे बताते हैं, ‘‘आठ-दस साल के करियर में इतना भयावह दृश्य नहीं देखा हमने. जब हम पहुंचे तो चारों तरफ चीख पुकार मची हुई थी. एक बुजुर्ग जिनकी गर्दन बाहर थी. वे हल्की आवाज में बस कह रहे थे, बचाओ-बचाओ. हम उन्हें बचा नहीं पाए.’’
पास में ही बैठे तमिलनाडु के रहने वाले एनडीआरफ के एक सदस्य कहते हैं, मेरी टीम ने कम से कम 60 शव निकाले हैं. हमें जनरल बोगी की जिम्मेदारी मिली थी. सबसे ज्यादा नुकसान जनरल डब्बे में ही ही हुआ है. लोग दबे पड़े थे. एक छोटा बच्चा. जिसकी उम्र करीब 10 या 12 साल होगी. वो पिचककर इतना सा (वो हाथ का इशारा करते हैं) हो गया था. आपको वो वहां दिखा क्या? (मैंने उन्हें बताया कि मैं शव के पास से लौट रहा हूं). मेरे ना में जवाब देने के बाद वो अंदेशा जताते हुए कहते हैं, ‘‘ना जाने ये सब शव गए कहां.’’
एनडीआरएफ के एक दूसरे सदस्य जो महाराष्ट्र के अमरावती जिले के रहने वाले हैं. वे बताते हैं, ‘‘मेरे सामने एक लड़का था. जिसका कमर के नीचे का हिस्सा कट चुका था. हाथ कट चुका था. उसे बचाने का चांस बेहद कम था. मैंने अपनी टीम के सदस्यों के साथ कोशिश की. जब हम उसे बाहर लाने की कोशिश कर रहे थे तभी वो मर गया. मेरे आंख से आंसू आने लगे. तब मैं सोच रहा था काश मैं भगवान हनुमान हो जाऊं. मेरे में दुनिया की सारी ताकत आ जाए और मैं एक बार में दस-दस लोगों को बचा सकूं.’’
एनडीआरफ के सदस्य भी मौत के सरकारी आंकड़ों पर सवाल खड़े करते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 275 लोगों की मौत हुई है. नौसी पार्क से हमारे सामने ही पश्चिम बंगाल सरकार अपने यहां के तकरीबन 10 शव ले गई. बिहार और ओडिशा के लोग जो अपनों की पहचान कर चुके थे. वैसे दस शव रखे हुए थे. इसके बाद स्थानीय प्रशासन ने 200 के करीब शव यहां के अलग-अलग अस्पतालों में भेजे थे. वहां हमें महिलाओं और बच्चों के शव नजर नहीं आए. वहीं कुछ लोग घटना स्थल के पास सरकारी स्कूल, जहां पहले शव रखे हुए थे वहां से भी अपनों का शव ले गए थे. ये आंकड़ें बताते हैं कि मृतकों की संख्या ज़्यादा हो सकती हैं.
नौसी पार्क में किसी महिला का शव था? इस सवाल पर घटना स्थल पर रातभर मौजूद रहे एक अधिकारी कहते हैं, मुझे बस एक महिला का शव दिखा था.
घटना स्थल से करीब 100 मीटर की दूरी पर मेडिकल शॉप चलाने वाले प्रवंजन देशमुख भी सरकारी आंकड़ों पर सवाल खड़ा करते हैं. घटना वाले दिन को याद करते हुए कहते हैं, ‘‘मैं अपनी दुकान पर ही था. तभी जोरदार आवाज हुई. पता चला की ट्रेन की टक्कर हो गई है. कुछ लोग यहां से गए. लगभग आधे घंटे बाद मेरी दुकान पर 250 के करीब लोग पहुंच गए. यहां मैंने कुछ लोगों का ड्रेसिंग किया. कुछ को दवाई दी. इसमें कई को बेहद गंभीर चोट आई थीं. किसी का सर फटा हुआ था. किसी का हाथ नहीं था. किसी का पेट फटा हुआ था. किसी के मुंह के अंदर शीशा घुस गया था. आसपास के लोग उन्हें लेकर यहां आकर रहे थे. मैंने अपनी क्षमता के मुताबिक उनका इलाज किया. उसमें से जो ठीक होने लायक थे वे रात में ही अपने घर चले गए.’’
आप कब घटना स्थल पर पहुंचे. इस सवाल के जवाब में देशमुख कहते हैं, ‘‘मेरी दूकान पर जो लोग आए थे उनकी देखरेख करने के बाद मैं घटना स्थल पर रात 11 बजे पहुंचा. वहां मैं तीन-चार लोगों को निकाला. फिर मैं एक कटा हुआ हाथ मेरे पैर से लगा. आगे गया तो देखा कि आधा बॉडी है, बाकी कुछ नहीं था. 30 साल का नौजवान गर्दन तक फंसा हुआ था. वो कह रहा था, भैया मुझे बचाओ, थोड़ा पानी दो. मेरे पास तो कुछ नहीं था कि उसे काटकर निकाल लेता. सरकार का आंकड़ा गलत है. मेरी जानकारी में हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. जो मैंने देखा है, उसके अनुभव से ऐसा कह रहा हूं. घायलों की संख्या भी ज्यादा है.’’
सिर्फ देशमुख ही नहीं घटना स्थल के आसपास रहने वाले लोग भी मृतकों के आंकड़ों पर सवाल करते हैं. यहां काम कर रहे समाजिक संगठन, आदर्श युवा परिषद के एक सदस्य बसंत बेहरा न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘घटना के 40 मिनट के अंदर हमारी पूरी टीम यहां पहुंच गई थी. लोग ट्रेन के अंदर दबे हुए थे. कटर मशीन एक घंटे बाद आया. अगर वो समय पर आ जाता तो कुछ और लोगों को बचाया जा सकता था. एक आदमी ने मेरा पैर पकड़ लिया कि भैया मुझे बचाओ. ट्रेन का डब्बा तो हम उठा नहीं सकते थे.’’
यहां मौजूद एक अन्य शख्स धारिणी प्रसाद, रेस्क्यू के लिए ट्रेन की बोगी में गए थे वे बताते हैं, ‘‘हमने देखा कि चारों तरफ लाशें ही लाशें थीं. एक के ऊपर एक लोग पड़े थे. वो दृश्य देखा नहीं जा रहा था. कुछ तो ऐसे थे जिन्हें चाहते हुए भी हम नहीं निकाल सकते थे. किसी का खोपड़ी अलग था, किसी का पेट गायब था. जैसे तैसे हम लोगों को निकाल पा रहे थे.
यहां पास के रहने वाले राजेंद्र न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘लोगों को ऐसे निकाला जा रहा था जैसे माल को निकालते हैं. किसी की गर्दन नहीं थी तो किसी का हाथ नहीं तो किसी का पेट नहीं. जो जनरल बोगी थी उसमें सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. काफी लोगों की मौत हुई है.’’
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक मृतकों की संख्या सरकारी आंकड़ों से कहीं ज्यादा है.
जिम्मेदार कौन?
रविवार को ही रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म हो गया. वहीं अब ट्रैक को ठीक करने का काम तेजी से चल रहा है. घटना स्थल के आसपास अभी यात्रियों के सामान बिखरे हुए हैं. जेसीबी की मदद से क्षतिगस्त बोगियों को किनारे लगाया जा रहा है. रेलवे की कोशिश है कि जल्द से जल्द सेवा बहाल की जाए.
इतने लोगों की मौत के बाद अभी तक किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हुई. विपक्ष रेल मंत्री से इस्तीफे की मांग कर रहा है. रेलवे बोर्ड ‘साज़िश’ से भी इनकार नहीं कर रहा है. हादसे की जांच के आदेश सीबीआई को दे दिए गए हैं. बीबीसी की खबर के मुताबिक रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “परिस्थितियों और अभी तक मिली प्रशासनिक जानकारी को ध्यान में रखते हुए रेलवे बोर्ड इस हादसे की सीबीआई जांच की सिफारिश करता है.
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