Media
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत और हिंदी बेल्ट के अखबारों के संपादकीय?
कर्नाटक विधानसभा चुनावों के परिणाम सबके सामने हैं. राज्य में सत्ताधारी भाजपा को लोगों ने विपक्ष में बैठा दिया है तो वहीं विपक्ष में रही कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता की चाबी सौंप दी है. राज्य की एक और प्रमुख पार्टी जो एक बार फिर किंगमेकर बनने का सपना देख रही थी, जनता दल सेक्युलर को जनता ने पूरी तरह नकार दिया और अब उसके सामने राजनीतिक अस्तित्व को बचाने की चुनौती है.
ऐसे में कर्नाटक के इस जनादेश को प्रमुख अखबारों ने किस तरह से लिया. ये जानने के लिए हमने हिंदी के प्रमुख अखबारों को खंगाला. इस दौरान सामने आया है कि लगभग सभी अखबारों और राजनीतिक जानकारों का यही मत है कि हर चुनाव की रणनीति अलग-अलग होती है. उसमें मिलने वाली हार-जीत का भी अलग-अलग अर्थ होता है. हालांकि, अखबारों का मानना है कि यह बात पूरे यकीन के साथ कही जा सकती है कि इस वक्त हिमाचल के बाद कर्नाटक चुनाव के परिणाम कांग्रेस में नई जान फूंकते नजर आ रहे हैं. कर्नाटक के अलावा 15 मई के संपादकीयों में यूपी निकाय चुनाव के परिणामों की भी चर्चा दिखी, जिसमें भाजपा का आत्मविश्वास बरकरार रहने की बात कही गई है.
जनसत्ता- 15 मई
जनसत्ता ने ‘जनादेश और संदेश’ शीर्षक से अपने संपादकीय में लिखा है कि कर्नाटक चुनाव ने कांग्रेस को हौसला तो दिया है लेकिन इसकी वजह से आगामी आम चुनाव का आकलन करना गलत होगा. हर चुनाव की अपनी रूप रेखा होती है. कर्नाटक में भाजपा के कार्य से जनता पहले से ही नाखुश दिख रही थी. ऊपर से चुनाव के पूर्व भ्रष्टाचार में लिप्त भाजपाई नेताओं की वजह से विकास के मुद्दे से भी बचती नजर आई. जिसका ढिंढोरा वह दूसरे राज्यों में पीटती है.
दैनिक जागरण- 15 मई
दैनिक जागरण ने अपने संपादकीय में ‘विपक्षी एका की संभावना’ शीर्षक से लिखा है ‘कांग्रेस का उत्साहित होना तो समझा जा सकता है, पर क्षेत्रीय दलों का उत्साही होना समझ नहीं आ रहा है. उन्हें लगता है कि आगामी चुनाव में एकजुट होकर भाजपा को हराया जा सकता है? प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित किए और एक मजबूत मुद्दा जनता के सामने पेश किए बिना ये संभव नहीं है. कुछ दल तो कांग्रेस के बिना ही गुट बना लेना चाहते हैं और कांग्रेस को आगामी आम चुनाव में 250 से भी कम सीट देना चाहते हैं. पर इससे कांग्रेस और विपक्ष कमजोर होगी, कांग्रेस को विपक्ष के साथ-साथ अपनी राजनैतिक जमीन भी तैयार करने की आवश्यकता है.
अमर उजाला 15 मई
अपने संपादकीय ‘चुनावी संदेश’ में अख़बार ने लिखा है कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों पर नब्ज रखना महत्त्वपूर्ण साबित होता है. वहीं यूपी निकाय चुनाव में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया है. इससे ये स्पष्ट होता है कि राजनीतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में वो अजेय है. यह जीत भाजपा के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने वाली है क्योंकि यूपी से लोकसभा की 80 सीटें आती हैं.
बिजनेस स्टैंडर्ड- 15 मई
‘कर्नाटक से मिले संकेत’ शीर्षक से लिखे संपादकीय में अखबार कहता है कि कांग्रेस की जीत का विश्लेषण विश्लेषकों को सावधानी से करना चाहिए. कर्नाटक चुनाव में भाजपा की अपनी कुछ मजबूरी थी, विश्लेषकों को ये भी देखना चाहिए कि कर्नाटक में आज से पहले तक कोई भी पार्टी दो बार सरकार नहीं बना पाई है. लेकिन ये स्पष्ट है कि भाजपा का प्रदर्शन कमजोर रहा है. वहीं सबसे ज्यादा नुकसान जनता दल सेक्युलर को हुआ है. उसका वोट प्रतिशत भी कम हुआ है. भाजपा का वोट प्रतिशत वैसा ही रहा, वहीं कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा है.
हिंदुस्तान- 15 मई
हिंदुस्तान ने 15 मई को कर्नाटक चुनाव को लेकर कोई संपादकीय नहीं लिखा. अखबार में ‘एमआरटी तकनीक से बच्चे पैदा होने को लेकर लेख छपा है.
नवभारत टाइम्स 15 मई
नवभारत ने अपने संपादकीय ‘आगे की चुनौतियां’ में लिखा कि कांग्रेस के लिए यह जीत मायने रखती है. यह जीत राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के भी पॉजिटिव असर को दिखाती है. बीते कुछ समय से राहुल गांधी ने आइडिया ऑफ इंडिया के सहारे बीजेपी और संघ पर हमला करने की जो नीति अपनाई है, उसका लाभ यहां देखने को मिला है. अब आगे देखना ये है कि कांग्रेस किस तरह से इस जीत को भुना पाती है.
Also Read
-
How booth-level officers in Bihar are deleting voters arbitrarily
-
TV Newsance Live: What’s happening with the Gen-Z protest in Nepal?
-
More men die in Bihar, but more women vanish from its voter rolls
-
20 months on, no answers in Haldwani violence deaths
-
‘Why are we living like pigs?’: Gurgaon’s ‘millennium city’ hides a neighbourhood drowning in sewage and disease