Media
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस: मीडिया की आजादी आपके लिए क्यों मायने रखती है?
मीडिया उद्योग दुनिया भर में बदल रहा है. कई संस्थान अपने विफल व्यापार मॉडल के कारण बंद होने को मजबूर हैं और कुछ सरकारी दबाव में तो कुछ को धन्नासेठ पत्रकारिता के रूप में प्रचार करने के इरादे से खरीद लेते हैं.
3 मई को 30वें विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की तैयारी करते समय हमारे सामने कुछ जरूरी सवाल हैं. क्या भारत में स्वतंत्र मीडिया को खामोश कर दिया गया है, या यह अपनी जमीन पर कायम है? भारत में मीडिया के इकोसिस्टम की सेहत कैसी है? समाचार संस्थानों के ऊपर कैसे दबाव हैं?
एक स्वतंत्र न्यूज़ मीडिया संस्थान होने के नाते यह दिन हमारे लिए अपनी कोशिशों, आर्थिक समर्थन करने वाले सक्रिय सब्सक्राइबर्स और हमारे रिपोर्टर्स के गहन रिपोर्ताज को अभिज्ञान देने के लिए महत्वपूर्ण है.
11 साल पहले न्यूज़लॉन्ड्री की शुरुआत, खबरों को कॉरपोरेट मुगलों और सरकारी विज्ञापनों की बेड़ियों से आज़ाद करने के इरादे से हुई थी. बीते इन सालों में बहुत कुछ बदल गया है. भारत भले ही प्रेस की स्वतंत्रता और अन्य लोकतांत्रिक मानकों पर फिसल गया हो, लेकिन हम जनहित पत्रकारिता के लिए आपके समर्थन के सहारे आगे बढ़ते रहे हैं.
स्वतंत्र मीडिया के इस जज़्बे का उत्सव मनाने के लिए, न्यूज़लॉन्ड्री भारत में मीडिया और नागरिक समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर अनेक पत्रकारों व स्तंभकारों के लेखों के ज़रिए प्रेस की आज़ादी को एक पूरा हफ्ता समर्पित करेगा.
हमने गहन रिपोर्ट्स, कमेंट्री और वीडियो की एक सीरीज के जरिए से देश के मीडिया परिदृश्य से जुड़ी बड़ी चुनौतियों पर नज़र डालने के लिए एक नए एनएल सेना प्रोजेक्ट - प्रेस फ्रीडम फंड भी शुरू किया है. इस प्रोजेक्ट को अपना समर्थन दें और भारत में स्वतंत्र मीडिया के सामने मुंह बाये खड़े सवालों का हल ढूंढने में हमारी सहायता करें.
हमारी योजना 31 मई तक इस फंड के पूरा भर जाने की है, आइए इस योजना को साथ मिलकर सफल बनाते हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री के प्रेस फ्रीडम फंड में योगदान देने के लिए यहां क्लिक करें.
Also Read: प्रेस की स्वतंत्रता या पर्स की स्वतंत्रता?
Also Read
-
Odd dip in turnout puts spotlight on UP’s Kundarki bypoll
-
Narayana Murthy is wrong: Indians are working too long and hard already
-
Gujarat journalist gets anticipatory bail in another FIR for ‘cheating’
-
‘Bitcoin bomb’: How legacy media played up Supriya Sule’s fake audio clips on election eve
-
What’s Your Ism? Nadira Khatun on exploring Muslim narratives in Hindi cinema