Khabar Baazi
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में फिर लुढ़का भारत, 180 देशों में अब 161वां स्थान
साल 2022 में भारत, विश्व प्रेस स्वतंत्रता की सूची में 150वें पायदान पर था. अब एक साल बाद यह और भी नीचे आ गया है. 2023 में इस सूची में भारत 161वें स्थान पर है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा प्रकाशित प्रेस फ्रीडम इंडेक्स से यह जानकारी सामने आई है.
इंडेक्स के मुताबिक अब भारत पाकिस्तान और अफगानिस्तान से कई पायदान पीछे है. इन दोनों देशों की रैकिंग में सुधार हुआ है और ये क्रमशः 150 और 152वें स्थान पर पहुंच गए हैं.
भारत के बाद वाली रैकिंग में बांग्लादेश (163वां स्थान), तुर्की (165वां स्थान), सऊदी अरब (170वां स्थान) और ईरान (177वां स्थान) जैसे देश शामिल हैं. चीन और उत्तर कोरिया क्रमशः 179 और 180वें नंबर के साथ अंतिम दो पायदानों पर हैं.
यह सूचकांक आज विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 3 मई को प्रकाशित किया गया.
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स का आधार पांच श्रेणियां हैं, जिनमें किसी देश के प्रदर्शन का आकलन किया जाता है. जैसे कि राजनीतिक व्यवस्था, कानूनी ढांचा, आर्थिक हालात, सामाजिक-सांस्कृतिक मानक और पत्रकारों की सुरक्षा. इन पांच श्रेणियों में से, भारत की रैंकिंग पत्रकार की सुरक्षा के मामले में (172वीं रैंक) सबसे कम और सामाजिक मानकों में (143) सर्वश्रेष्ठ रही है.
भारत पिछले कुछ वर्षों में लगातार निचले स्थान पर जा रहा है. इस वर्ष ये रैंक और भी गिर गई है. पिछले साल फरवरी में, केंद्र सरकार ने कहा था कि वह विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में सूचीबद्ध विचारों और देशों की रैंकिंग से सहमत नहीं है क्योंकि यह एक "विदेशी" एनजीओ द्वारा प्रकाशित किया जाता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण मीडिया और मीडिया स्वामित्व की एकाग्रता, ये सभी प्रदर्शित करते हैं कि 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र' में प्रेस की आजादी खतरे में है, और साल 2014 में दक्षिणपंथी हिंदुत्व और उग्र राष्ट्रवाद के पैरोकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्तासीन होने के बाद इसमें और गिरावट दर्ज की गई है.
मूल रूप से उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के उत्पाद, भारतीय प्रेस को काफी प्रगतिशील मीडिया के तौर पर देखा जाता था, लेकिन साल 2014 के बाद से इसमें मौलिक बदलाव आया. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ताधारी पार्टी भाजपा और बड़े मीडिया घरानों के बीच के संबंधों को फिर से परिभाषित किया.
इसका सबसे प्रमुख उदाहरण निस्संदेह मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाला रिलायंस इंडस्ट्रीज समूह है, जो अब पीएम मोदी के निजी मित्रों की सूची में शामिल है. समूह के 70 से अधिक मीडिया आउटलेट हैं, जिन्हें कम से कम 80 करोड़ भारतीय फॉलो करते हैं. इसी तरह, उद्योगपति गौतम अडानी, जो कि पीएम के काफी करीबी हैं, ने 2022 के अंत में एनडीटीवी चैनल का अधिग्रहण किया, जिसने मेनस्ट्रीम मीडिया की वैचारिक विविधता के अंत की ओर इशारा किया.
पीएम मोदी ने बहुत पहले ही पत्रकारों को लेकर आलोचनात्मक रुख अपना लिया, वे पत्रकारों को समर्थकों और अपने बीच रोड़ा मानते हैं. यही वजह है कि उनके समर्थक मोदी की आलोचना करने वाले पत्रकारों पर चौतरफा हमले करते हैं.
Also Read
-
TV Newsance 320: Bihar elections turn into a meme fest
-
We already have ‘Make in India’. Do we need ‘Design in India’?
-
Not just freebies. It was Zohran Mamdani’s moral pull that made the young campaign for him
-
“कोई मर्यादा न लांघे” R K Singh के बाग़ी तेवर
-
South Central 50: Kerala ends extreme poverty, Zohran Mamdani’s win