Media
रामचरितमानस में पत्रकारिता एवं जनसंप्रेषण, फीस मात्र 201 रुपए
अब तक आपने देश में शिक्षा के व्यवसायीकरण के नाम पर काफी कुछ सुना होगा. कई बार निजी स्कूलों को ‘शिक्षा की दुकान’ तक कहा जाता है लेकिन आज हम आपको जिनके बारे में बताने जा रहे हैं वो उससे भी दो कदम आगे का मामला है. ये एक ऐसा अनोखा स्कूल है, जो सर्टिफिकेट तो बांटता है लेकिन उसकी मान्यता नहीं है. इस स्कूल का नाम ‘स्कूल ऑफ राम’ है.
अहम बात ये है कि ये पत्रकारिता सिखाने का दावा कर रहे हैं. जबकि देश में पत्रकारिता का हाल पहले से आप सुधी पाठकों से छिपा नहीं है. स्कूल के संचालक का दावा है कि वह ऑनलाइन क्लास के माध्यम से बच्चों को पत्रकारिता सिखा रहे हैं. इसके लिए यह "रामचरितमानस में पत्रकारिता एवं जनसंप्रेषण" नाम से सर्टिफिकेट भी देते हैं.
राजस्थान की राजधानी और पिंकसिटी जयपुर निवासी प्रिंस तिवारी खुद को इस स्कूल के कर्ताधर्ता बताते हैं. वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदू स्ट्डी में एमए कर रहे हैं. वह कहते हैं कि इस स्कूल की शुरुआत उन्होंने दो साल पहले की थी.
आप जो ये पोस्टर देख रहे हैं, इसका मजमून आप स्वयं पढ़ सकते हैं. पोस्टर को देखकर हमें भी उत्सुकता हुई तो हमने भी दिए गए फोन नंंबर पर संपर्क किया और थोड़ा जानकारी हासिल करनी चाही.
फोन प्रिंस तिवारी उठाते हैं और पूछे जाने पर कहते हैं, "हमारा विद्यालय भगवान राम जी के जीवन पर ऑनलाइन चलता है. हमारे ऑनलान फार्म हैं. रामचरित मानस के पीछे का जो हिडेन साइंस है या जो कुछ छिपे हुए तत्व हैं जो पहले पत्रकारिता होती थी. ऐसी ही चीजें हम स्कूल ऑफ राम में पढ़ाते हैं."
"हमारी कोई वेबसाइट नहीं है और न ही हमारा उद्देश्य पैसा कमाने जैसा कुछ है. हमने सेवा और सहयोग के लिए सिर्फ 201 रुपए की राशि रखी है. इसका उपयोग भी हम सोशल वर्क और स्कूल ऑफ राम को चलाने में करते हैं. इस फीस को आप गूगल पे द्वारा पेमेंट कर सकते हैं. हमारी कोई यूनिवर्सिटी नहीं है. स्कूल ऑफ राम अपने आप में एक सेल्फ आइडेंटिटी है. हमारा उद्देश्य सर्टिफिकेट बांटना नहीं है. हमारा मकसद सिर्फ लोगों को पढ़ाना है कि आप इस दृष्टि से भी अपने धर्म ग्रंथों को समझ सकते हैं." उन्होंने कहा.
प्रिंस द्वारा व्हाट्सएप पर साझा की गई जानकारी में लिखा है-
. Q & A के साथ ऑनलाइन लाइव सत्र होंगे.
· अध्ययन सामग्री ईबुक प्रारूप के रूप में प्राप्त की जाएगी.
· रिकॉर्डिंग उपलब्ध रहेगी.
· दुनिया भर के प्रतिभागी शामिल हो सकते हैं.
· कैरियर / अनुसंधान के अवसरों के लिए मार्गदर्शन.
· ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया – गूगल फॉर्म (ऑनलाइन भुगतान).
· असाइनमेंट + ऑनलाइन वस्तुनिष्ठ (एमसीक्यू) परीक्षा.
(पाठ्यक्रम को प्रायोगिक/सैधांतिक विधि से अभ्यर्थियों को पढ़ाया जायेगा)
इस कोर्स के लिए सिर्फ 50 सीटें ही उपलब्ध हैं. वहीं आवेदन करने की अंतिम तिथि 20 अप्रैल है.
क्या आपका सर्टिफिकेट किसी सरकारी नौकरी में मान्य है? इस सवाल पर तिवारी कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है ये किसी सरकारी नौकरी में काम नहीं आएगा. यह सिर्फ पढ़ाई के लिए है. इसमें आप लाइव सेशन के दौरान हमसे सवाल पूछ सकते हैं, मैं आपको उसके जवाब दूंगा. पढ़ाने का समय हमारा रात्रि का ही होता है. 45 मिनट तक रोजाना क्सास होंगी.
वह आगे कहते हैं, हम सिर्फ पत्रकारिता के बारे में पढ़ाएंगे, न्यूज़ लिखने से लेकर हम संपादकीय तक लिखना सिखाएंगे. इसमें फीचर, कहानियां लिखना भी शामिल होगा. यह सब रामायण की दृष्टिकोण से सिखाएंगे न कि आधुनिक दृष्टिकोण से. रामायण में कैसे बताया गया हमारा उदेश्य यही सब पढ़ाना है. कई टीचर्स के अलावा गेस्ट टीचर भी होंगे.
तिवारी कहते हैं कि यह विद्यालय दो साल से चल है. हमसे तीन हजार छात्र अलग-अलग कोर्सेज से जुड़े हुए हैं. उनका दावा है कि, “विदेशों से भी लोग इस कोर्स के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं. हमें विश्व रिकॉर्ड मिला है, इस वर्ष के लिए मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी मिली है. यह दुनिया का पहला ऐसा स्कूल है जो रामायण पर चल रहा है.”
बता दें कि इस स्कूल के बारे में हमने जब और ज्यादा जानने की कोशिश की तो हमें इससे संबंधित कुछ ख़बरें मिलीं. जिनमें ‘स्कूल ऑफ राम’ के बारे में लिखा था. द ट्रिब्यून में छपी एक ख़बर के मुताबिक स्कूल ज्वाइन करने वालों को कोई फीस नहीं देनी होगी. हालांकि, जब हमने इस कोर्स के लिए संपर्क किया तो इसके संस्थापक प्रिंस तिवारी ने 201 रुपए फीस बताई है.
Also Read
-
How Jane Street played the Indian stock market as many retail investors bled
-
BJP govt thinks outdoor air purifiers can clean Delhi air, but data doesn’t back official claim
-
India’s Pak strategy needs a 2025 update
-
The Thackerays are back on stage. But will the script sell in 2025 Mumbai?
-
मुस्लिम परिवारों का दावा- ‘बहिष्कार, धमकियों’ की वजह से गांव छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा