Media
राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने पर क्या कहते हैं हिंदी अखबारों के संपादकीय
बीते दिनों चार साल पुराने एक मानहानि मामले में सूरत जिला कोर्ट द्वारा दो साल की सजा सुनाए जाने के एक दिन बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई. इसके बाद से कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. राहुल गांधी की सदस्यता रद्द करने के मुद्दे पर अखबारों ने अपने-अपने तरीके से लेख और संपादकीय प्रकाशित किए हैं. इन संपादकीय पन्नों पर कुछ अखबारों ने इस कार्रवाई को सही ठहराया है तो कुछ ने इसे गलत बताया है. वहीं, कुछ प्रमुख अख़बार ऐसे भी हैं, जिन्होंने इस मुद्दे पर कोई संपादकीय नहीं लिखा. हमने हिंदी के प्रमुख अखबारों के संपादकीय पन्नों का विश्लेषण किया है. जानिए कौन सा अखबार क्या कहता है.
दैनिक जागरण
दैनिक जागरण ने 25 मार्च को प्रकाशित राष्ट्रीय संस्करण में 'पूर्व सांसद राहुल गांधी' शीर्षक से संपादकीय प्रकाशित किया. इस संपादकीय में जागरण की ओर से राहुल गांधी के बहाने भारतीय नेताओं को संभलकर बोलने की नसीहत दी गई है. साथ ही संपादकीय में ये भी स्थापित करने की कोशिश की गई है कि राहुल गांधी ने गलत बयान दिया और न्यायालय का फैसला सही है.
अखबार आगे लिखता है कि राहुल गांधी मानहानि के दोषी इसलिए पाए गए हैं क्योंकि उन्होंने अपने इस कथन के लिए क्षमा मांगने से मना कर दिया कि सारे मोदी चोर क्यों होते हैं? यह ईर्ष्या और द्वेष से भरी एक अपमानजनक टिप्पणी थी. इसके लिए खेद प्रकट करने के स्थान पर राहुल कभी ये कहते हैं कि सत्य मेरा भगवान है और कभी यह कि मैं भारत की आवाज के लिए लड़ रहा हूं. इस बयानबाजी का उस विषय से कोई लेना देना नहीं, जिसके लिए उन्हें दंडित किया गया और जिसके कारण उनकी सदस्यता गई. यही नहीं अखबार आगे लिखता है कि राहुल ने एक जाति विशेष के लोगों पर अभद्र टिप्पणी करके उनका अपमान किया था.
दैनिक भास्कर
हिंदी के प्रतिष्ठित अखबार दैनिक भास्कर में राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने को लेकर कोई संपादकीय प्रकाशित नहीं हुआ. हालांकि, अखबार के नेशनल एडिटर नवनीत गुर्जर ने जरूर इस मामले पर कांग्रेस को सलाह देते हुए एक लेख लिखा है. जिसमें उन्होंने राहुल और कांग्रेस को कुछ सलाह दी हैं. वे लिखते हैं, “राहुल की हालत उस पानी की तरह है जो लहर के साथ किनारे आने की बजाए किसी सीप के सीने में छूट गया है. आखिर में वो पानी सीप का मोती बनेगा या नहीं, यह भविष्य ही बताएगा.”
अमर उजाला
हिंदी के एक और अखबार अमर उजाला ने 25 मार्च को राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने पर कोई संपादकीय प्रकाशित नहीं किया गया. अखबार ने दिल्ली संस्करण में हेट स्पीच को लेकर संपादकीय प्रकाशित किया गया है.
हिंदुस्तान
हिंदुस्तान अखबार ने भी राहुल गांधी पर कोई संपादकीय प्रकाशित नहीं किया. अखबार ने अपने इस अंक में खालिस्तान और अमृतपाल के विषय पर संपादकीय प्रकाशित किया है.
जनसत्ता
इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी अखबार जनसत्ता ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने पर लोकसभा सचिवालय द्वारा दिखाई गई जल्दबाजी पर संपादकीय लिखा है. लेख में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सूरत कोर्ट के फैसले में फिर से ये बात रेखांकित हुई है कि नेताओं को सार्वजनिक जीवन में मर्यादित भाषा का प्रयोग करना चाहिए. कहा गया है कि भले राहुल गांधी की सदस्यता नियमानुसार गई हो लेकिन जिस तरह की जल्दबाजी लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द करने में दिखाई है, उसके चलते सरकार पर बदले की भावना से काम करने के आरोप शायद ही बंद हों.
नवभारत टाइम्स
नवभारत टाइम्स ‘हिंदी’ अख़बार में 25 मार्च के मुंबई संस्करण की हमने पड़ताल की. इस संस्करण में संपादकीय के तौर पर राहुल गांधी की चर्चा गायब थी. हालांकि, पन्ने पर राहुल गांधी के मुद्दे से संबंधित लेख जरूर प्रकाशित हुआ. जिसमें कहा गया कि कांग्रेस के सामने इस वक्त ‘करो या मरो’ की अत्यंत चुनौतिपूर्ण स्थिति है.
यदि अब भी कांग्रेस ने आक्रामक तेवर नहीं दिखाए तो उसे इसके लिए दूसरा मौका नहीं मिलेगा. पहले भी कांग्रेस ने उस समय तेजीर्तुशी दिखाई थी जब इंदिरा गांधी की सांसदी रद्द की गई थी और बाद में उन्हें जेल भेजा गया था. लेख में यह भी कहा गया कि साल 2013 में मनमोहन सरकार की ओर से लाया गया अध्यादेश फाड़ना उन्हें अब महंगा पड़ गया है.
कुल मिलाकर हिंदी बेल्ट के इन अखबारों ने राहुल गांधी की सदस्यता रद्द किए जाने के मुद्दे को संपादकीय टिप्पणी में प्रमुखता से शामिल नहीं किया. हालांकि, इस कार्रवाई के बाद से ही यह मुद्दा सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है.
बता दें कि इस विश्लेषण में एनबीटी का मुंबई एडिशन और बाकी सभी अखबारों के दिल्ली एडिशन के संपादकीय को शामिल किया गया है.
Also Read
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy
-
You can rebook an Indigo flight. You can’t rebook your lungs
-
‘Overcrowded, underfed’: Manipur planned to shut relief camps in Dec, but many still ‘trapped’