Opinion
तमिलनाडु में उत्तर भारतीयों पर ‘हमला’: एक अफवाह की पड़ताल
एक व्यक्ति अपने दोस्त को मैसेज भेजता है, “मेरी मां तमिलनाडु में बिहारी कर्मचारियों की हत्याओं से बहुत परेशान है, उन्होंने व्हाट्सएप पर कुछ वीडियो देखा है.”
एक पत्रकार, एक निजी सोशल मीडिया ग्रुप में पोस्ट करता है, “क्या कोई इस बात की पुष्टि कर सकता है कि पूर्वोत्तर के कर्मचारियों पर भी तमिलनाडु में खतरा है? मुझे उन्हें चेतावनी देता हुआ एक वीडियो मिला है.”
एक अभिभावक ने कुढ़ते हुए लिखा, “उत्तर भारतीयों से नफरत करने वाली इन सरकारों के अंदर यही सब होगा.”
इंटरनेट के आज के इस विचित्र युग में, एक झूठ को सच बनने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करना होता. ऐसा ही कुछ तमिलनाडु में पिछले हफ्ते हुआ.
कई घटनाओं के वीडियो, राज्य में उत्तर भारतीय प्रवासियों पर “हमले” बता कर फैलाए गए. एक वीडियो राजस्थान में दो व्यक्तियों द्वारा एक अधिवक्ता को चाकू मारने का था, दूसरे में तेलंगाना में हुई एक आदमी की हत्या को दिखाया गया था. तीसरा वीडियो कर्नाटक में हुई एक हत्या का था, और चौथा कोयंबटूर में एक तमिल व्यक्ति को काट दिए जाने का. इन सभी मामलों में, सोशल मीडिया पर डाले गए शीर्षक ऐसा संदेश देते थे कि ये सभी तमिलनाडु में हिंदीभाषी प्रवासियों पर “हमले” थे.
कपड़ा उद्योग के शहर तिरुपुर में, एक प्रवासी श्रमिक का शव रेल की पटरियों पर पाया गया, जिसके विरोध में सैकड़ों कामगार प्रदर्शन करने के लिए इकट्ठा हो गए. यह साबित करने के लिए कि यह "हत्या" का मामला नहीं था, पुलिस को वो सीसीटीवी फुटेज जारी करना पड़ा- जिसमें वह आदमी पटरियों पर चलते हुए और ट्रेन से टकराते हुए दिखाई देता है.
मीडिया के एक वर्ग ने इस उथल-पुथल में योगदान दिया. इन तथाकथित हमलों पर व्यापक रिपोर्टिंग के लिए उकसाने का काम यकीनन दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट ने किया. इसने कम से कम 12 "हत्याओं" का आरोप लगाया. ऑपइंडिया जैसे अफवाहबाज वेबसाइटों ने इन कहानियों को हाथोंहाथ लिया और प्रवासी श्रमिकों पर "तालिबानी शैली के हमलों" का आरोप जड़ दिया.
इस बीच, फैक्ट-चेकर्स, पत्रकारों, उद्योगपतियों व पुलिस और सरकार के प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट करने के लिए कि सब कुछ ठीक है, दिन रात काम किया.
हालांकि इन अफवाहों और इसकी फितरत के बारे में बहुत कुछ लिखा-पढ़ा जा चुका है, लेकिन भाजपा की इस पर प्रतिक्रिया दिलचस्प है.
अलग-अलग दांव
बिहार में पार्टी ने ट्वीट किया कि श्रमिक "मारे गए" थे. कार्रवाई न करने पर इसने राजद-जदयू सरकार पर हमला किया. विधानसभा में भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इस्तीफे की मांग की और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की बिहारी भाइयों की मौत के वक्त “केक खाने” की जमकर निंदा की गई.
बता दें कि यादव ने एक मार्च को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के 70वें जन्मदिन के अवसर पर चेन्नई में एक कार्यक्रम में भाग लिया था. कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला और कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे भी थे. सभी ने 2024 में भाजपा से मुकाबला करने के लिए एकजुट होने का संकल्प लिया था.
उत्तर प्रदेश में भाजपा प्रवक्ता प्रशांत पटेल उमराव ने स्टालिन के साथ यादव की एक तस्वीर ट्वीट की और आरोप लगाया कि तमिलनाडु में 12 बिहारी कार्यकर्ताओं को "फांसी पर लटका दिया गया". फर्जी खबरों के लिए तमिलनाडु में उन पर मामले दर्ज किए गए और उन्होंने तुरंत दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसने उन्हें 10 दिनों के लिए ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे दी.
लेकिन तमिलनाडु में भाजपा ने बिल्कुल अलग तरीका अपनाया.
विधायक वनथी श्रीनिवासन ने "कुछ संगठनों पर घृणा बोने" का आरोप लगाया और द्रमुक सरकार से राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत जिम्मेदार व्यक्तियों पर मामला दर्ज करने की मांग की.
राज्य के भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई ने अपनी ओर से कहा कि प्रवासी श्रमिकों के बारे में "फर्जी खबर" फैलाई जा रही है और द्रमुक की गलती से यह "विभाजन" पैदा हुआ है. आखिर क्या स्टालिन के बेटे उधयनिधि ने एक बार ‘हिंदी टेरियाधु पोदा - अर्थात मुझे हिंदी नहीं आती, दफा हो!’, कहने वाली टी-शर्ट नहीं पहनी थी, वहीं स्टालिन की बहन कनिमोझी ने हवाई अड्डे पर सुरक्षा अमले द्वारा उनसे हिंदी में बात किये जाने पर असंतोष प्रकट किया था?
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, "उन्होंने ही उत्तर भारतीयों के खिलाफ विषैला अभियान शुरू किया था, और इसी से हमें लगता है कि वे मेहमान श्रमिकों के खिलाफ मौजूदा अफवाहों का कारण हो सकते हैं."
उन पर दुश्मनी और वैमनस्य को बढ़ावा देने के लिए तुरंत मामला दर्ज किया गया.
अन्नामलाई का तरीका हैरान करने वाला नहीं है. तमिलनाडु में भाजपा अक्सर ऐसी ही लाइन लेती है, जो अक्सर पार्टी की राष्ट्रीय लाइन से मजबूरन हटकर होती है. वह तमिल पहचान का बचाव करती है और खुद को हिंदी थोपने से "एलर्जिक" बताती है. राज्य में भाजपा की एकमात्र प्रमुख सहयोगी अन्नाद्रमुक ने नीट परीक्षा और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) जैसी भाजपा की चहेती योजनाओं की कड़ी निंदा की है. तमिलनाडु में भाजपा, ई पलानीस्वामी और ओ पन्नीरसेल्वम के बीच लड़ाई में एआईएडीएमके में दो फाड़ हो जाने के बीच भी फंस गई है, और अंत में उसने अपना पूरा समर्थन ई पलानीस्वामी को दे दिया.
इसके अलावा अन्नामलाई को अपनी आंतरिक मुसीबतों से भी निपटना है.
आंतरिक कलह
दो दिन पहले, राज्य में भाजपा के आईटी सेल अध्यक्ष सीटीआर निर्मल कुमार ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि राज्य का नेतृत्व पदाधिकारियों पर "निगरानी" करता है, पार्टी के हितों के खिलाफ काम करता है, "व्यावसायिक साधनों" के लिए पार्टी का इस्तेमाल करता है. इसके बाद वह एआईएडीएमके में शामिल हो गए.
इसके एक दिन बाद आईटी सेल के सचिव दिलीप कन्नन ने भी इस्तीफा दे दिया. निर्मल की तरह ही उन्होंने भी अन्नामलाई को पार्टी छोड़ने के लिए दोषी ठहराया. उन्होंने भी अन्नामलाई पर पार्टी कार्यकर्ताओं की "जासूसी" करने का आरोप लगाया.
महीनों पहले पार्टी के दो सदस्यों, ओबीसी मोर्चा के राज्य महासचिव सूर्य शिवा और अल्पसंख्यक मोर्चे की नेता डेज़ी सरन के बीच बातचीत के एक ऑडियो लीक को लेकर पार्टी के भीतर एक और दरार सामने आई थी. राज्य भाजपा ने उन्हें छह महीने के लिए निलंबित कर दिया था.
पार्टी ने 2014 में पार्टी की सदस्यता लेने वाली अभिनेत्री गायत्री रघुराम को भी निलंबित कर दिया गया, जब उन्होंने ट्विटर पर सूर्या की आलोचना की और कहा कि "ऐसे लकड़बग्घों" को पद देना एक गलती थी. इसके बाद उन्होंने अन्नामलाई के रहते "महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं" कहकर जनवरी में भाजपा छोड़ दी. उन्होंने अन्नामलाई को "घटिया हथकंडों वाला झूठा और अधर्मी नेता" बताया, और कहा कि वह "पुलिस शिकायत करने के लिए तैयार" हैं.
पूर्व आईपीएस अधिकारी अन्नामलाई 2020 में भाजपा में शामिल हुए थे. उन्होंने मई 2021 में अरवाकुरिची से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. दो महीने बाद, राज्य में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष एल मुरुगन के लोकसभा में राज्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद उन्हें तमिलनाडु भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. वह उस समय केवल 37 वर्ष के थे और शायद इसके पीछे उन्हें एक सच्चे "युवा नेता" के रूप में पेश करने का विचार था, जो कभी एमके स्टालिन का उपनाम हुआ करता था.
इसके बावजूद तमिलनाडु में भाजपा के बढ़ने की गति धीमी ही रही है.
2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कन्याकुमारी में अपनी एकमात्र सीट खो दी और उसका वोट प्रतिशत 2014 के 5.56 से गिरकर 3.66 प्रतिशत हो गया. 2021 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने चार सीटों पर जीत हासिल की और 2001 के बाद पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया, हालांकि यह राज्य में प्रमुख विपक्षी दल एआईएडीएमके के साथ एक गठबंधन में हुआ. भाजपा राज्य में अभी भी एक छोटी पार्टी है, हालांकि दिल्ली मीडिया उससे विपक्ष के प्रमुख सदस्य के रूप में पेश आता है.
इसीलिए, इस सप्ताह की प्रवासी अफवाहों ने अन्नामलाई और भाजपा को एक संवेदनशील मुद्दे पर डीएमके सरकार से निपटने का अवसर दिया. यह अवसर था डीएमके के "हिंदी विरोधी" रुख को "उत्तर भारत विरोधी" के रूप में पेश करने का.
तमिलनाडु में हिंदी का थोपा जाना एक भावनात्मक, राजनीतिक और व्यक्तिगत मुद्दा है. 1930 के दशक से ही यह रहा है जब पेरियार और जस्टिस पार्टी ने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की कांग्रेस सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था. तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुराई ने एक बार इस विचार की आलोचना की थी कि तमिलों को भारत के साथ व्यापक संवाद के लिए हिंदी का अध्ययन करना होगा. उन्होंने कहा था, "क्या हमें बड़े कुत्ते के लिए एक बड़ा दरवाजा और छोटे कुत्ते के लिए एक छोटा दरवाजा चाहिए? मैं कहता हूं, छोटे कुत्ते को भी बड़े दरवाजे का इस्तेमाल करने दो.”
केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद से इस राजनीति को हवा दी जा रही है. अक्टूबर 2022 में तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार के हिंदी को थोपने के प्रयासों के खिलाफ विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया था.
भाजपा ने उस समय सदन से वॉकआउट किया था. शायद उन्होंने इस सप्ताह की अफवाहों को इस मुद्दे को फिर से जिंदा करने के अवसर के रूप में देखा. लेकिन ऐसा होने के बजाए स्पष्टीकरणों और कई एफआईआर की झड़ी लगने बाद जनता का ध्यान इस तथ्य की ओर गया है कि यह पूरा विवाद जानबूझकर रचा गया था.
यह उस तरह का परिणाम है जिसकी उम्मीद भाजपा ने कतई नहीं की थी.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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