Media

12 करोड़ खर्च, 15 साल व्यर्थ: क्यों नहीं शुरू हुआ अमृतसर का डीडी टावर

पंजाब के अमृतसर स्थित घरिंदा गांव में साल 2002-03 में केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने दूरदर्शन को एक 100 मीटर ऊंचा टीवी टावर लगाने की मंजूरी दी थी. इसके लिए दो साल बाद दूरदर्शन ने जून 2005 में टावर लगाने का टेंडर जारी किया.

शुरुआत में टावर की निर्धारित ऊंचाई 100 मीटर थी, जिसे बाद में इसे बढ़ाकर 300 मीटर कर दिया गया. तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रियरंजन दास मुंशी ने 2007 में राज्यसभा में जानकारी देते हुए बताया कि टावर की क्षमता और ऊंचाई दोनों को बढ़ाया जा रहा है. 

इस टावर पर टीवी के अलावा रेडियो ट्रांसमीटर भी लगना था. लेकिन न तो टावर कभी पूरा बन सका और न ही यहां ट्रांसमीटर लगा. इस टावर का महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि यह पाकिस्तान की सीमा से बहुत नजदीक है. दूरदर्शन जालंधर सेंटर के एक इंजीनियरिंग विभाग के कर्मचारी कहते हैं, “इसका मकसद पाकिस्तान के प्रोपगैंडा युद्ध से निपटना था. इस टावर की जद में पाकिस्तान का बड़ा इलाका आने वाला था. इसके जरिए वहां के लोग भी हमारे कार्यक्रम सुन और देख सकते थे.”

टावर के महत्व को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व इंजीनियर हरजाप सिंह औजला ने कई पत्र मंत्रालय को लिखे हैं. वह एक लेख में लिखते हैं, लड़ाई के दौरान भारत इस रेडियो स्टेशन का उपयोग पाकिस्तान द्वारा फैलाए गए दुष्प्रचार का खंडन करने के लिए कर सकता है. 

दूरदर्शन के एक अधिकारी टावर के महत्व को लेकर कहते हैं, “बॉर्डर राज्यों में टावर डिप्लोमैटिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है. दूसरे देश के प्रोपेगेंडा को हम अपने प्रोग्राम के जरिए काउंटर कर सकते है.”

 टावर पर खर्च हुए 13 करोड़

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टावर लगाने का आदेश तो दे दिया लेकिन इस प्रोजेक्ट को लेकर काम बहुत धीरे-धीरे चला. नवंबर 2002 में रक्षा मंत्रालय से जमीन का अधिग्रहण किया गया. इस प्रोजेक्ट के लिए टेंडर की प्रकिया दो साल तक चली और फिर साल 2002-03 में ऐलन डिक एंड कंपनी (इंडिया प्राइवेट लिमिटेड) को टावर लगाने का ठेका दिया गया.

न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक, इस कंपनी को कुल 17.11 करोड़ का ठेका दिया गया. कंपनी द्वारा जमा बिल के आधार पर प्रसार भारती ने 12.35 करोड़ का भुगतान किया.  

कंपनी ने साल 2013-14 में 283 मीटर का टावर बना दिया. केंद्र में नई सरकार आने के बाद 2014-15 में दूरदर्शन की टीम ने इस टावर की जांच की तो इसके निर्माण में गलतियां पायी गईं. इसके बाद कांट्रेक्टर ने काम छोड़ दिया. 2016-17 में टावर की जांच के लिए दूरदर्शन ने स्तूप इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी को टावर में मौजूद गलतियां पता करने का ठेका दिया गया. इसके लिए सरकार ने 30.18 लाख रुपए खर्च किए. 

इसके अलावा 5.89 लाख रुपए आईआईटी रुड़की की एक टीम को टावर के संरचना की जांच और विश्लेषण के लिए दिया. इस जांच में पता चला कि टावर थोड़ा झुका हुआ है. 

इस पर हरजाप सिंह औजला कहते हैं कि यह झुकाव बहुत ज्यादा नहीं था. यह टावर उपयोग किया जा सकता था लेकिन दूरदर्शन से लेकर सूचना मंत्रालय तक किसी ने राष्ट्रीय महत्व के इस प्रोजेक्ट पर ध्यान नहीं दिया.

जालंधर दूरदर्शन सेंटर के इंजीनियरिंग विभाग के एक कर्मचारी बताते हैं, “टावर में 280 मीटर के आसपास वर्टिलिटी आउट हो गई थी. जिस वजह से ट्रांसमिशन में समस्या आ रही थी. इसलिए टावर का उपयोग नहीं हो पा रहा है. जो भी कंपनी टावर उस समय बना रही थी उसने पूरा नहीं किया.”

‘मन की बात’ कार्यक्रम पाकिस्तान पहुंच जाए

इस प्रोजेक्ट में देरी का कारण कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकारें रही हैं. मौजूदा मोदी सरकार ने अधूरे काम और ट्रांसमिशन को शुरू करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, न ही लापरवाही बरतने वाले अफसरों पर कार्रवाई नहीं की.

हरजाप सिंह औजला कहते हैं, “अगर यह टावर बन जाए तो सारे पंजाब और पाकिस्तान तक प्रधानमंत्री का ‘मन की बात’ कार्यक्रम पहुंच जाएगा. लेकिन यह सरकारों की नाकामी है कि पाकिस्तान के बॉर्डर के पास बनने वाले इस टावर को कभी पूरा ही नहीं कर पाई.”

वह बताते हैं कि इस टावर की कवरेज क्षमता इतनी है कि पाकिस्तान का 100 किलोमीटर का क्षेत्र इसमें आ जाएगा. यह पूरे उत्तर भारत का सबसे पावरफुल टावर था लेकिन दुर्भाग्य से 17 साल बीत जाने के बाद भी चालू नहीं हो पाया.

साल 2016 में अलग-अलग एजेंसियों से जांच करवाने के बाद भी कुछ परिणाम नहीं निकला. साल 2017 में 300 मीटर वाले टावर के पास ही एक अस्थाई टावर बना, जो कि 100 मीटर ऊंचा है. फिलहाल इसका उपयोग किया जा रहा है. साल 2011 में आई कैग की रिपोर्ट भी इस टावर के निर्माण में बरती गई अनियमितताओं का जिक्र करती है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो ट्रांसमीटर खरीदे गए उनका पूर्ण क्षमता से कभी उपयोग ही नहीं हुआ. 

टैक्स के पैसे की बर्बादी  

साल 2016-17 में एक प्राइवेट कंपनी और आईआईटी टीम को जांच करने के लिए भेजा गया लेकिन उसके बाद भी टावर के लिए कोई काम नहीं हुआ. इसके बाद साल 2017 में एक 100 मीटर ऊंचा अस्थाई टावर बनाया गया. जिसे सितंबर 2018 में चालू कर दिया गया. इस टावर से ही पंजाबी भाषा के प्रोग्राम और आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. 

साल 2016-17 के बाद एक बार फिर दूरदर्शन के अधिकारी जागे और उन्होंने मई 2019 में अधूरे पड़े टावर को बनाने के लिए सरकारी कंपनी ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड (बेसिल) को बुलाया. न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि बेसिल को टावर का अधूरा काम पूरा करने के लिए 6.09 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए लेकिन न तो बेसिल ने काम शुरू किया और न ही उसे कोई भुगतान किया गया. 

इस तरह देखें तो 300 मीटर के टावर के लिए कुल 17.11 और 6.09 करोड़ रुपए दो हिस्सों मेें स्वीकृत किए गए लेकिन टावर अभी तक नहीं बन पाया. 

हरजाप सिंह औजला कहते हैं, “साल 2020 में टावर को 283 मीटर से घटाकर 200 मीटर का कर दिया गया. लेकिन अब टावर वैसा ही पड़ा है. साइट पर सिर्फ एक गार्ड है जो देखभाल करता है.” 

जालंधर सेंटर के एक इंजीनियर कहते हैं, “अभी तक यह टावर पूरा नहीं हो पाया है. पूरा होने के बाद इसे हमें सौंपा जाएगा.”

इस पूरे प्रोजेक्ट में कई स्तर पर वित्तीय हेरफेर का भी आरोप लगता रहा है. प्रसार भारती वित्त विभाग के एक अधिकारी कहते हैं, “इस प्रोजेक्ट में वित्तीय समेत कई कमियां पाई गई हैं. जिसकी वजह से मुख्य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) इसकी जांच कर रहे हैं.”

साल 2019 में तीन साल के लिए बतौर सीवीओ हर्षदीप श्रीवास्तव की नियुक्ति प्रसार भारती में हुई. जून 2022 में उनका कार्यकाल खत्म हो गया और उनका ट्रांसफर हो गया. उनके ही कार्यकाल में अमृतसर डीडी टावर लगाने में हुई अनियमितताओं की जांच शुरू हुई थी.

न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात करने से मना कर दिया. श्रीवास्तव के जाने के बाद डीडीजी इंजीनियरिंग के प्रमुख शरद चंद्र मिश्रा को तीन महीने का प्रभार दिया गया. आखिरकार अक्टूबर 2022 में राखी विमल को तीन साल के लिए सीवीओ नियुक्त किया गया. 

विजिलेंस जांच को लेकर हमने राखी विमल से भी बात करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो सका. हमने उन्हें कुछ सवाल भी भेजे हैं, जवाब आने पर इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा. 

इस टावर की जिम्मेदारी डीडी के इंजीनियरिंग विभाग के हवाले है. अभी दूरदर्शन के इंजीनियरिंग विभाग में डीडीजी-डीडी प्रोजेक्ट, आफताब अहमद हैं. वह कहते हैं, “मैं इस मुद्दे पर बात करने के लिए अधिकृत नहीं हूं. इसके लिए प्रसार भारती से बात करें.” 

आफताब अहमद के ऊपर साल 2022 में विलिजेंस विभाग ने कार्रवाई करने के लिए कहा था. कर्मचारियों के ‘संदिग्ध आचरण’ को लेकर भेजे गए इस पत्र में कहा गया है कि ऐसे अधिकारी जिनका आचरण संदिग्ध है, उन्हें संवेदनशील पद न दिया जाए. उन्हें दूसरी जगह ट्रांसफर कर दिया जाए.

इतना ही नहीं, जब टावर प्रोजेक्ट को लेकर विलिजेंस की जांच शुरू हुई तो इंजीनियरिंग विभाग में इससे जुड़े कागजात जला दिए गए. जो बचे हुए दस्तावेज हैं वह अभी विजिलेंस विभाग के पास हैं.

इस टावर प्रोजेक्ट में आफताब अहमद के अलावा डीडीजी मुकेश कुमार, डीडीजी केके मौर्या का नाम भी जुड़ा रहा है. केके मौर्या ने हमसे कहा कि वो रिटायर हो गए हैं, इसलिए बात नहीं करना चाहते.

न्यूज़लॉन्ड्री ने प्रसार भारती के सीईओ गौरव द्विवेदी को इस संबंध में कुछ सवाल भेजा है. हमें उनके जवाब का इंतजार है. 

अपडेट– 20 मार्च 2023

न्यूज़लॉन्ड्री के सवालों का जवाब देते हुए प्रसार भारती के डीडीई गौरव चतुर्वेदी ने बताया कि अधूरे पड़े टावर को बनाने की जिम्मेदारी ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग कंसल्टेंट्स इंडिया लिमिटेड (बेसिल) को साल 2019 में दी गई. लेकिन कोविड के कारण काम सितंबर 2020 में बंद हो गया.

दूरदर्शन नॉर्थ जोन ने कई डीडीजी की एक कमेटी बनाई है जो काम को पूरा करने का सुझाव देगी. टॉवर का काम मार्च महीने में ही शुरू हो जाएगा. करीब आठ महीनों में काम पूरा होने की उम्मीद है.

स्वतंत्र मीडिया का समर्थन और सहयोग करना आज बहुत जरूरी हो गया है. हमें आपके सहयोग की जरूरत है. क्योंकि हम सरकारों या कॉर्पोरेट विज्ञापन दाताओं के सहयोग पर नहीं, बल्कि आपके सहयोग पर निर्भर हैं. तुरंत सब्सक्राइब करें.

Also Read: प्रसार भारती में नौकरी के नाम पर ठगी

Also Read: अडानी-हिंडनबर्ग विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'मीडिया पर नहीं लगा सकते रोक'