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आवारा गायों से किसानों की फसल ही नहीं बल्कि पूरी ग्रामीण आजीविका ही संकट में
आवारा पशु किसानों के लिए सबसे बड़ा सिर दर्द बने हुए हैं. जिसके चलते किसान रातभर जागकर फसलों की रखवाली करते हैं. किसान रात भर जागकर कैसे अपने खेतों की रखवाली करते हैं हमने इसकी जमीनी पड़ताल की.
किसानों का कहना है कि गोशाला होने के बावजूद भी गायें हमेशा खेतों में ही दिखाई देती हैं. “आवारा पशुओं से हमें निजात मिले, नहीं तो सरकार हमें जहर दे दे.”
जब हम दिल्ली से करीब 200 किमी की दूरी तय कर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में पहुंचे, तो वहां देर रात लोग टॉर्च जलाते सड़कों और खेतों पर दौड़ते नजर आए. यह किसी एक गांव की कहानी नहीं है बल्कि ज्यादातर गांवों का यही हाल है. जहां किसान दिन रात अपनी फसल बचाने के लिए खेतों पर रहते हैं.
अमरोहा जिले के सांथलपुर की मढैया गांव निवासी 28 वर्षीय संजीव कुमार बताते हैं कि उनके 8 बीघा, 8 बीघा और 4 बीघा के तीन खेत हैं, जो कि गांव से एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर हैं.
यह तीनों जमीनें उन्होंने पैसे देकर ठेके पर ली हैं. गायों से फसल बचाने के लिए एक खेत पर वह खुद, एक पर उनकी पत्नी और एक पर उनके दो 12 व 8 साल के बेटे रखवाली करते हैं. बीच-बीच में वह कभी कभार घर का खर्च चलाने के लिए मजदूरी भी करने जाते हैं.
संजीव कहते हैं, “इतनी रखवाली के बावजूद भी गायें फसल खा जाती हैं. कभी-कभी कोहरा आता है तो टॉर्च की रोशनी में ज्यादा दूर तक का नहीं दिखाई देता, तो ऐसे में गायें काफी ज्यादा नुकसान कर जाती हैं. अभी पीछे कोहरा आया था तो गायों ने हमारा छह बीघा गेहूं खा लिया.”
संजीव कुमार ने आठ बीघा जमीन 56 हजार रुपए में दो साल के लिए ली है. दूसरी 8 बीघा जमीन एक साल के लिए 32 हजार रुपए में ली है. वहीं चार बीघा जमीन 13 हजार रुपए में एक साल के लिए ठेके पर ली है.
इतनी जमीन पर खेती रखने और मेहनत के बाद भी संजीव के चेहरे पर उदासी है. नुकसान का जिक्र करते हुए वह मायूस होकर कहते हैं, “जो आठ बीघा जमीन मैंने 56 हजार रुपए में दो साल के लिए रखी है, उसमें सिर्फ 8 क्विंटल धान ही हुआ है, बाकी सब गायें खा गईं.”
वे बताते हैं, “हमारे यहां गौशाला है, तो उसमें अंदर अगर 200 गायें और बाहर 500 गायें हैं. जिस खेत में एक बार निकल जाती हैं तो उस खेत का बिल्कुल नाश ही कर देती हैं. चौपट कर देती हैं.”
पत्नी के गहने गिरवी रखकर ठेके पर ली जमीन
क्षेत्र के अधिकतर किसान घर के गहने सुनार के पास रखकर उससे मिलने वाले रुपयों से या तो जमीन ठेके पर लेते हैं या अपनी फसल की बुवाई करते हैं.
संजीव कहते हैं, “मेरे नाम पर कोई जमीन नहीं है, इसलिए मुझे कोई कर्जा नहीं मिलता है. खेती करने के लिए अपनी पत्नी के गहने सुनार को रख देते हैं, और उससे जो पैसा मिलता है उसे खेती में लगाते हैं. करीब एक-सवा लाख रुपया मिल जाता है. हम सात भाई हैं, सातों भाई गहने गिरवी रखकर ही खेती करते हैं. हमारे पूरे इलाके में ज्यादातर लोग ऐसे ही खेती करके जीवन चलाते हैं.”
साथ ही वह यह भी बताते हैं कि वे सात भाई हैं, और उनके पास 45 बीघा जमीन है. लेकिन ये जमीन उनके मां-बाप के पास है क्योंकि कई भाइयो की शादियां होनी बाकी हैं.
अन्य किसान 55 वर्षीय गजराम सिंह की पीड़ा भी कुछ ऐसी ही है. उनके पास मात्र सात बीघा जमीन है जिसमें उन्होंने गेहूं और गन्ना बोया हुआ है. वह कहते हैं कि गायों ने सब गन्ना खा लिया है, बस अब थोड़ी सी गेहूं बची है. उसी की रखवाली के लिए दिन-रात खेतों पर ही रहते हैं.
मढैया गांव के निवासी सिंह कहते हैं कि उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड पर 40 हजार रुपए का लोन लिया हुआ है. अब उन्हें डर सता रहा है कि यह ऋण कैसे उतरेगा, क्योंकि काफी समय से उनकी सारी फसल छुट्टा पशु खा जाते हैं.
सिंह कहते हैं, गायों के चलते न मजदूरी कर पा रहा हूं और न ही कुछ और काम. अगर एक दिन भी मजदूरी करने चले जाओ तो गाय पूरा खेत नाश कर देंगी. इसलिए दिन-रात खेत पर पहरा देना जरूरी है, अगर आगे का जीवन चलाना है तो.”
हमने देखा कि यह कहानी किसी एक व्यक्ति की नहीं है, बल्कि क्षेत्र के ज्यादातर किसानों का यही हाल है. जो रातों को अलाव जलाकर खेतों के किनारे अंधेरा गुजारते हैं.
कर्जा कैसे चुकाएंगे डर लगता है
गांव के ही 30 वर्षीय जयवीर सिंह ने 60 बीघा जमीन ठेके पर ली है. उन्होंने इसमें से कुछ जमीन 6 हजार रुपए बीघा तो कुछ 6,900 रुपए बीघा पर ली है. पूरी जमीन में उन्होंने फिलहाल गेहूं की बुवाई की हुई है.
सिंह बताते हैं, “हमारी 70 फीसदी गेहूं गायों ने खा ली है. हमने ब्याज पर पैसे लेकर यह जमीन ली थी, कैसे पाटेंगे परेशान हैं.”
खेती में यह पैसा उन्होंने तीन जगहों से कर्ज लेकर लगाया है.
उन्होंने कहा, “मैंने 80 हजार रुपए, तीन प्रतिशत के ब्याज पर एक बनिए से लिए हैं और 50 हजार रुपए अपनी पत्नी के गहने सुनार को रखकर लिए थे. इनमें पत्नी की सोने की चेन, अंगूठी और चूड़ी शामिल हैं. वहीं 30 हजार रुपए एक अन्य बनिए से लिए हैं. उन्हें भी सोने की कुछ चीजें दी हैं.”
यानी सिंह ने कुल एक लाख 60 हजार रुपए उधार लेकर खेती में लगाए हैं. अब उन्हें डर है कि वह यह कर्ज कैसे चुकाएंगे.
वह कहते हैं, “दिन-रात खेत पर ही रहते हैं. खाना भी खेत पर ही खाते हैं. पूरा खेत तारों से कवर किया हुआ है, उसके बावजूद भी गायें बहुत नुकसान कर रही हैं. कभी-कभी मजदूरी भी करने जाता हूं क्योंकि बच्चे पालने हैं. मेरा एक बेटा और बेटी है, जिनकी उम्र चार साल और आठ माह है. आठ माह की बेटी भी हमारे साथ खेत पर ही रहती है.”
वह हताशा से कहते हैं, “यह सब पिछले सात- आठ साल से हो रहा है. इससे पहले कोई नुकसान नहीं होता था. पिछले दो साल से तो हमें 50 फीसदी खेती भी नहीं मिल रही है.”
रात के करीब 11 बजे, सांथलपुर अधैक निवासी रिंकू सागर, सड़क के किनारे खेतों की ओर टॉर्च जलाते नजर आए. पूछने पर कहते हैं कि हमें तो पूरा सीजन ऐसे ही हो गया. यहां तो हमें रोज की ड्यूटी देनी है. हम रात को एक बजे तक और उसके बाद फिर रात को चार बजे से इसी काम पर लग जाते हैं. वह कहते हैं कि पूरे क्षेत्र में आप जहां भी जाएंगे, वहीं पर टॉर्च की ही रोशनी नजर आएगी.
रिंकू कहते हैं, “मैंने गायों से फसल बचाने के लिए तीन-तीन तार लगवाए, दवाई लगाई, गोबर राख का छिड़काव किया, उसके बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ. यहां तो एक नौकरी की तरह रहना पड़ता है.”
मचान में गुजरती है रात
जब हम रात को इस क्षेत्र का दौरा कर रहे थे तब एक बुजुर्ग किसान, 60 वर्षीय महेंद्र सिंह, खेत पर बने मचान में लेटे थे और वहीं से टॉर्च की रोशनी में गायों को देख रहे थे. हमारी गुजारिश पर वह मचान से नीचे उतर कर आए और अपनी पीड़ा सुनाने लगे.
अपने खेत की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, “हमने तीन महीने तक उड़द रखी थी, लेकिन हमें एक भी दाना नहीं मिला. जो लागत थी वह भी नहीं मिली. सभी को गायें खा गईं. जबकि हमने खेत पर दो टांड (मचान) बना रखे थे. अभी गेहूं बोए हुए हैं और दिन रात रखवाली कर रहे हैं, तब भी गाय नहीं छोड़ रही हैं.”
वह आगे कहते हैं, “यह 10 बीघा खेत हमने 43 हजार रुपए में ठेके पर रखा है. शाम को आते हैं, सुबह घर जाते हैं. गायें गेहूं, गन्ना, सरसों कुछ भी नहीं छोड़ रही हैं. हम कर्जा लेकर खेती कर रहे हैं. हम इस सरकार से बहुत दुखी हैं. पास में गौशाला होने का भी कोई फायदा नहीं है.”
वहीं औकपुरा निवासी गजेंद्र सिंह रोजाना करीब चार-पांच किलोमीटर दूर से अपने खेत की रखवाली करने यहां सांथलपुर आते हैं.
वह कहते हैं, “गायों से खेतों में नुकसान बहुत ज्यादा है. शाम को आते हैं, रात को 1-2 बजे जाते हैं, फिर सुबह दोबारा आ जाते हैं. 24 घंटे की ड्यूटी है. अगर इन छुट्टा पशुओं का बंदोबस्त नहीं हुआ तो किसान तो बिल्कुल बेकार हो जाएगा.”
एक अन्य किसान जगदीश सिंह कहते हैं कि, “हमारी तो सरकार से सिर्फ इतनी ही गुजारिश है कि ये गाय तो छोड़ दी हैं हमारी खेती खाने के लिए, अब हमें जहर और दे दे. जिससे हमारी बीवी, बच्चे जहर खाकर सब खत्म हो जाएं, क्योंकि हम भूखे प्यासे तो वैसे ही तड़प-तड़प कर मर रहे हैं. इससे जहर खाकर राम नाम सत्य हो जाएगा तो ज्यादा ठीक रहेगा.”
बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने आवारा पशुओं से किसानों की फसलों को बचाने और गायों की देखभाल के लिए गौशालाओं का निर्माण किया है.
हमने पास की ही एक गौशाला का दौरा भी किया. वहां हमने पाया कि यह गौशाला, क्षेत्र की सभी गायों के लिए पर्याप्त नहीं हैं. किसानों ने हमें बताया कि इलाके में लगभग 500 आवारा गायें हैं, जबकि गौशाला के रजिस्टर के मुताबिक वहां कुल 186 गायें ही आ सकती हैं.
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