NL Tippani
मोदीजी का ‘नेहरू राग’ और अफसाना फिरोज गांधी का
अडानी समूह के ऊपर लगे आरोपों का अखाड़ा पिछले हफ्ते संसद भवन में आयोजित हुआ. पक्ष और विपक्ष ने एक दूसरे पर जुबानी प्रहार किया. राहुल गांधी ने अडानी समूह की धांधलियों और गौतम अडानी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकियों के तीर चलाए. राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को घेरा. यह सब सुनने के बाद प्रधानमंत्रीजी की बारी आई. और आते ही उन्होंने धुआंधार, चौतरफा हमला बोलकर सबको अपनी-अपनी जगह बता दी.
प्रधानमंत्री अपने बयान में पूरी तरह से ईमानदार रहे. उन्होंने स्वीकार किया कि कमल का लेना-देना कीचड़ से है. कीचड़ ही कमल का खाद-पानी है. जैसे ही कीचड़ मिलता है, कमल खिल उठता है. प्रधानमंत्रीजी तन, मन, धन से प्रचारक हैं. उन कहानियों में उनकी अगाध श्रद्धा है जिन्हें बतौर स्वयंसेवक सुनते-पढ़ते वो जवान हुए हैं. ऐसी ही बचपन की एक कहानी प्रधानमंत्रीजी ने संसद में सुनाई.
संसद में चुनौतियों का मौसम था. लगे हाथ एक चुनौती रूबिका लियाक़त ने भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की ओर उछाल दी. क्या थी वो चुनौती जिसे सुनकर धरती गड़गड़ा कर फट गई, आसमान में बिजलियां चमकने लगीं. आखिर क्यों रूबिकाजी तुर्की ब तुर्की हो रही थीं? लगे हाथ इस हफ्ते मैंने टिप्पणी में एक खास किस्म का एंकर बनने के लिए जरूरी तमाम स्किल और कौशल के बारे में बताया है. यह खास किस्म का एंकर बनने के लिए जिस स्किल उसके अभाव में देश की असंख्य प्रतिभाएं यूंही बर्बाद हो जाती हैं.
Also Read
-
August 15: The day we perform freedom and pack it away
-
Independence Day is a reminder to ask the questions EC isn’t answering
-
Supreme Court’s stray dog ruling: Extremely grim, against rules, barely rational
-
Mathura CCTV footage blows holes in UP’s ‘Operation Langda’
-
The Swagger’s Gone: What the last two decades taught me about India’s fading growth dream