NL Charcha
चर्चा 252: बजट में क्या है नया और अडाणी समूह को नुकसान
इस हफ्ते की चर्चा में प्रमुखता से संसद में पेश सालाना बजट और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर बात हुई. हफ्ते की सुर्खियों में पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ वकील शांति भूषण के निधन, भारत की अंडर 19 महिला क्रिकेट टीम की वर्ल्ड कप में जीत, पत्रकार सिद्दीक कप्पन को मिली जमानत, आसाराम को बलात्कार के एक और मामले में आजीवन कारावास की सज़ा, विशाखापट्टनम के आंध्र प्रदेश की राजधानी होने की घोषणा, एनडीटीवी में कर्मचारियों के इस्तीफों आदि का जिक्र हुआ.
दोनों आर्थिक मुद्दों पर बात करने के लिए बतौर मेहमान हमारे साथ आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर रितिका खेड़ा और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरुण कुमार जुड़े. इसके अलावा न्यूजलॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन और शार्दूल कात्यायन भी जुड़े. चर्चा का संचालन अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल चर्चा की शुरुआत करते हुए रितिका से पूछते हैं, "इस बजट की बारीकियां क्या है और कैसे ये बजट आने वाले समय में कुछ उम्मीद देता है या नहीं देता है या पीछे जो चीजें गई हैं, कैसे ये उनसे आगे जा रहा है या बहुत उम्मीदें नहीं जगाता?"
इस सवाल के जवाब में रितिका सबसे पहले मध्यम वर्ग को परिभाषित करती हैं. रितिका बताती हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सदन में कहा कि वह मध्यम वर्ग की परेशानियों को समझ सकती हैं क्योंकि वह खुद मध्यम वर्ग से आती हैं. इस पर ऋतिका का कहना है, “जो 1.8 करोड़ संपत्ति रखकर खुद को मध्यम वर्ग मान रहा है वह खुद ही अपनी स्थिति का आकलन नहीं कर पा रहा है. अगर आपके घर में शौचालय है और सीवर लाइन लगी हुई है तो आप भारत के शीर्ष 20 प्रतिशत लोगों में से हैं. क्या आप 20 प्रतिशत को मध्यम वर्ग मान सकते हैं? यह एक सोचने वाली बात है.”
इस विषय पर आनंद कहते हैं, “मध्य वर्ग की अवधारणा जो भारत में है एक सेल्फ आइडेंटिटी की चीज़ हो गई है. बॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह ने भी खुद को मध्य वर्ग का बता दिया, आप किसी ठेले वाले से पूछेंगे तो वह भी कहेगा खाते पीते मिडिल क्लास से हैं हम. लेकिन जो रिगरस एक्सरसाइज हैं, उनमें इस अवधारणा को नहीं माना जा सकता है. कर व्यवस्था इसका एक मापदंड हो सकता है.”
शार्दूल अपनी टिप्पणी देते हुए कहते हैं, “सरकार नई पीढ़ी के भविष्य के लिए चिंता करती हुई नहीं दिखाई दे रही है. टैक्स का तंत्र अभी तक बचत को थोड़ा प्रोत्साहन देता था. काफी सारे लोग टैक्स बचाने के नाम पर ही बचत करते थे. अब तो ऐसा है कि खाओ पियो और मौज करो.”
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं, “जो अभी तक सरकार की नीतियां रही हैं, वो प्रो-बिज़नेस नीतियां रही हैं. यह बजट भी बिज़नेस के ही पक्ष में है. जो स्कीम बड़े बड़े बिज़नेसों के पक्ष में है उसमें तो बढ़ोतरी की गई है लेकिन जो गरीब आदमी को फ़ायदा पहुंचाने वाली योजनाएं हैं, उनमें कटौती की जा रही है. इससे सरकार की प्राथमिकता स्पष्ट रूप से नज़र आती है.”
टाइम कोड
00:00:00 - 00:12:23 - इंट्रो, हेडलाइंस व ज़रूरी सूचनाएं
00:012:24 - 01:11:00 - संसद में पेश सालाना बजट
1:11:02 - 01:36:14 - हिंडेनबर्ग रिपोर्ट
01:30:30 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय क्या देखा पढ़ा और सुना जाए-
अतुल चौरसिया
पीआरएस वेबसाइट द्वारा बजट का विश्लेषण
दिनेश ठाकुर और प्रशांत रेड्डी की किताब - ट्रुथ पिल
ऋतिका खेड़ा
जॉन ड्रेज़ और अमर्त्य सेन की किताब - इन्डिया : ऐन अनसर्टेन ग्लोरी
नेटफ्लिक्स सीरीज़ - डर्टी मनी
अरुण कुमार
कुर्ज़वाइल की किताब- सिंगुलैरिटी इज़ नियर
आनंद वर्धन
चेतन कुमार का लेख - व्हाट द नाईट स्काई सेज़ अबाउट इंडियन इकॉनमी
शार्दूल कात्यायन
फिल्म - द बिग शॉर्ट
डाक्यूमेंट्री - मुंबई माफिया: पुलिस vs अंडरवर्ल्ड
ट्रांसक्राइब- तस्नीम फातिमा
प्रोड्यूसर - चंचल गुप्ता
एडिटर - उमराव सिंह
Also Read
-
From J&K statehood to BHU polls: 699 Parliamentary assurances the government never delivered
-
WhatsApp university blames foreign investors for the rupee’s slide – like blaming fever on a thermometer
-
Let Me Explain: How the Sangh mobilised Thiruparankundram unrest
-
TV Newsance 325 | Indigo delays, primetime 'dissent' and Vande Mataram marathon
-
The 2019 rule change that accelerated Indian aviation’s growth journey, helped fuel IndiGo’s supremacy