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दरकता जोशीमठ: करीब 700 मकानों में दरारें, घरों को कराया जा रहा खाली
ऋषि देवी (37) के परिवार के लिए जोशीमठ का सरकारी स्कूल इन दिनों आशियाना बना हुआ है. सर्द रातों में जब पारा -3 डिग्री सेल्सियस पहुंच जाता है, ऋषि देवी अपने छह महीने के बच्चे के साथ चंद ऊनी कपड़ों में काम चला रही हैं. ये हालात पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के शहर जोशीमठ के दरकने से उपजे हैं. ऋषि देवी की तरह शहर के कई लोग इसी तरह अस्थाई ठिकानों में रातें बिताने को मजबूर हैं.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 9, 2023 तक शहर के 9 वार्डों में 678 मकानों में दरारें आईं और वहां रहना खतरनाक हो गया. शहर के 81 लोगों को अस्थाई ठिकानों तक बसाया गया और तकरीबन चार हजार लोगों के रहने की व्यवस्था जोशीमठ और पास के स्थान पीपलकोटी में की गई.
अस्थाई ठिकानों के हालात बयां करती ऋषि देवी बताती हैं, “हमारा घर पूरी तरह से बर्बाद हो गया. सरकार ने स्कूल में रहने की जगह दी लेकिन ठंड के समय छह महीने के बच्चे के साथ रहने में काफी दिक्कत आ रही है.”
कुछ इसी तरह की कहानी किशोर कुमार वाल्मीकि की है. 28 साल के किशोर के परिवार में उनके माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों समेत छह लोग हैं. वह बताते हैं, “मैं नगर पालिका में सफाई कर्मी हूं और लगभग 14 महीने पहले मेरे घर में पहली बार दरार आई. हमने जोशीमठ में दूसरा घर किराये पर लिया था लेकिन अब वहां भी दरारें आ गयी हैं.”
वाल्मीकि को अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है. उनके पास रहने के लिए अब कोई ठिकाना नहीं बचा है.
जोशीमठ के वार्ड नंबर एक की निवासी वीणा देवी को सरकार की तरफ से ही छत मिली थी, जो कि अब रहने लायक नहीं बची है. वह कहती हैं, “हम दलित परिवार से आते हैं हमें हमारा घर ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत मिला था. अब वह घर रहने लायक नहीं बचा. घर को देखकर बुरे ख्याल आते हैं और हादसे की आशंका लगी रहती है.”
क्यों धंसने लगा जोशीमठ
समुद्र तल से 1875 मीटर की ऊंचाई पर बसा जोशीमठ विकासखंड उत्तराखंड राज्य के पर्यटन क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है. गर्मियों के समय में होने वाली चारधाम यात्रा में बद्रीनाथ यात्रा और हेमकुंड साहिब जाने वाले यात्रियों के साथ सर्दियों के समय औली में आने वाले पर्यटकों के विश्राम के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. साल दर साल पर्यटकों की बढ़ती संख्या ने स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर जरूर दिए लेकिन शहर को विकास के रूप में दोमुही तलवार भी मिली.
जानकारों के मुताबिक संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्र बड़े आलीशान होटल, सड़क सहित कई तरह के अनियंत्रित विकास को झेल नहीं पाया.
जोशीमठ सहित उत्तराखंड के कई स्थानों पर जमीनी अध्ययन करने वाले प्रोफेसर डॉ. एसपी सती ने हमसे इस मुद्दे पर बात की. प्रो. सती वानिकी कॉलेज रानीचौरी में एनवायर्नमेंटल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. वह कहते हैं, “जोशीमठ भूस्खलन से आई मिट्टी (मलबा) के ऊपर बसा है. यदि इतिहास में पीछे जाएं तो किसी समय में यह कत्यूर वंश के राजाओ की राजधानी हुआ करती थी. उस वक्त किसी प्राकृतिक आपदा के कारण राजधानी को वहां से विस्थापित करना पड़ा.”
शहर के दरकने का मामला हालिया इतिहास में 1960 के दशक में भी सामने आया था. उस समय जोशीमठ की पहाड़ियों में धंसाव के सबूत मिलने लगे थे. जिससे यहां मौजूद आबादी पर खतरा महसूस किया जाने लगा था. स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि 1976 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने भूमि धंसने की वजह पता करने के लिए मिश्रा कमिटी का गठन किया था.
इस कमिटी ने जोशीमठ को लेकर सुझाव दिए. सुझावों में ब्लास्टिंग के जरिए बड़े पत्थर न तोड़ने की हिदायत दी गई थी. इसके अलावा भूस्खलन से बचने के लिए पेड़ न काटने, शहर के पांच किलोमीटर के दायरे से निर्माण सामग्री न इकट्ठा करने, ढलानों पर खुदाई से बचने और शहर में सीवेज की पक्की व्यवस्था करने जैसी सलाह शामिल थीं.
हालांकि, इन सलाहों के इतर जोशीमठ में सड़क, बांध, सुरंग और बहुमंजिला इमारतों का बनना जारी रहा और शहर के हालात अब इस कदर बिगड़ गए हैं कि इसके अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है.
डॉ सती आगे कहते हैं, “आज जोशीमठ की जो हालत है उसको अब सुधार पाना नामुमकिन है. जिस गती से जोशीमठ में दरार बढ़ रही हैं उसको देखकर ऐसा लगता है जैसे जोशीमठ का अधिकांश भू-भाग अब नहीं बचेगा. इसलिए जो लोग अभी जोशीमठ में हैं उनको निकालने और उनके रहने के लिए अस्थाई व्यवस्था की तरफ प्रशासन को ध्यान देना चाहिए. लेकिन, यदि हम चाहते हैं कि राज्य के किसी और शहर की हालत ऐसी न हो तो उसके लिए हमें कुछ ठोस नीति बनाने की जरूरत है.”
लोगों को सुरक्षित बाहर निकालना वक्त की जरूरत
जोशीमठ की समस्याओं पर लंबे वक्त से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता एक सुर में लोगों को बाहर निकालने की बात कहते हैं.
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं, “जोशीमठ में जो घटित हो रहा है उसको तुरंत रोक पाना तो अभी मुश्किल है. कोई बड़ी हानि जनता को न हो इसलिए सरकार को जल्द से जल्द जोशीमठ की जनता को किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना चाहिए.”
प्रशासन की ओर से बताया जा रहा है कि जिन परिवारों के घर रहने लायक नहीं बचे उन्हें नगर पालिका के भवन, प्राइमरी स्कूल, गुरुद्वारा और कुछ लॉज में रहने की व्यवस्था की गई है. नौटियाल इस दावे पर सवाल उठाते हुए पूछते हैं, “क्या ये इमारतें महफूज है? ये इमारतें भी जोशीमठ के अंदर ही हैं.”
पर्यावरणविद् और साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के कोऑर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर बताते हैं कि जोशीमठ का भूगोल और हाइड्रोलोजी बहुत ही संवेदनशील है. “पिछले कुछ सालो में ऐसी बहुत सी घटनाएं जोशीमठ के आसपास घटित हुईं जो कहीं न कहीं जोशीमठ में किसी बड़ी अनहोनी की और इशारा करती हैं.”
ठक्कर 1970 में होने वाले भूस्खलन, तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना के लिए सुरंग बनाते समय एक साथ बहुत तेज़ी से पानी का बहार निकलना, रैणी आपदा का उदाहरण देते हैं.
उन्होंने आगे कहा, “प्रशासन ने कई महीनों से दरार की सूचना को नजरअंदाज किया और दिसंबर में एनटीपीसी के द्वारा सुरंग में विस्फोट किये गए जिसके बाद किसी स्थान से लगातार भारी मात्रा में पानी निकलने की ख़बर आ रही है.”
वह कहते हैं, “जोशीमठ उच्च भूकंप क्षेत्र में आता है इस दृष्टि से भी इस क्षेत्र में तपोवन-विष्णुगाड़ जैसी परियोजना का निर्माण ही अपने आप में खतरनाक है. उच्च हिमालयी क्षेत्र में इस प्रकार की परियोजनाओं का निर्माण ही बैठने वाली डाल को कुल्हड़ी से काटने जैसा है.”
आंदोलन पर उतारू आम लोग, सरकार पर बेरुखी का आरोप
एक्टिविस्ट और जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के सदस्य अतुल सती बताते हैं कि फरवरी 2021 में रैणी में आपदा आई, जिसमें नदी में तेज़ बहाव के साथ हज़ारों टन मलबा आया. रैणी से लेकर जोशीमठ तक एक ही भूखंड है इसलिए उस आपदा का कुछ असर जोशीमठ पर भी हुआ होगा.
सती इस घटना को भी दरारों का संभावित कारण मानते हैं. उनके मुताबिक मकानों में दरार उसी घटना के बाद से दिख रही हैं.
वह कहते हैं कि दरारों के तेजी से बढ़ने में शहर के नीचे एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ विद्युत परियोजना भी हो सकती है. इस परियोजना के तहत सुरंग में विस्फोट हो रहा है.
सती आगे कहते हैं कि पिछले काफी समय से जोशीमठ में आ रही इन दरारों के बारे में प्रशासन को अवगत कर रहे हैं. वह आरोप लगाते हैं कि प्रशासन ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया.
“प्रशासन की बेरुखी के बाद जोशीमठ की जनता के अनुरोध पर भूवैज्ञानिकों की एक टीम ने स्वतंत्र तौर पर सर्वे किया. सर्वे में सामने आया कि जोशीमठ लगातार दरक रहा है जो आने वाले समय में एक बड़ी आपदा का रूप ले सकता है. यह सब देखकर हमने अपने आंदोलन को और तेज किया और इसी माह 5 जनवरी को बद्रीनाथ हाईवे जाम किया.”
सिर्फ यही नहीं, लोगों को ढह रहे मकानों से निकलने और उन्हें सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने की प्रशासन की व्यवस्था पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
जनपद आपदा प्रबंधन प्राधिकरण जोशीमठ की स्थिति पर रोजाना बुलेटिन जारी कर रहा है. सबसे ताजा बुलेटिन 9 जनवरी, 2023 को जारी हुआ जिसमें दावा किया गया कि 1191 लोगों को जोशीमठ के भीतर और 2,205 लोगों को पास के पीपलकोटी में अस्थाई रूप से बसाने की व्यवस्था है.
सरकार की तैयारियों पर सवाल उठाते हुए अनूप नौटियाल कहते हैं, “पांच जनवरी को सरकार ने 385 लोगों के रहने की व्यवस्था की थी और दो दिन बाद क्षमता बढ़कर 1271 हुई. मेरा सवाल है कि जहां 15 हजार से 20 हजार लोगों के विस्थापन का है तो प्रशासन की तैयारियां इतनी धीमी कैसे है?”
नौटियाल ने इमरजेंसी के समय तैयारियों की सुस्त रफ्तार पर चिंता जताते हुए कहा कि यह समय तैयारियों में तेजी लाने का है.
वह आगे कहते हैं, “जनता में अफरा-तफरी का माहौल है और प्रशासन को जनता का भरोसा जीतने की आवश्यकता है.”
जोशीमठ में नागरिकों को लेकर प्रशासन का रुख
सात जनवरी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जोशीमठ का दौरा किया जिसमें मुख्यमंत्री प्रभावित परिवारों से मिले और सरकार की ओर से सभी संभव प्रयास करने को कहा साथ ही प्रशासन को राहत कार्य तेज़ करने और जरूरत पड़ने पर नागरिकों को एयरलिफ्ट की बात भी कही.
चमोली जिले के डीएम हिमांशु खुराना ने अपने ट्विटर हैंडल से जानकारी दी है कि प्राकृतिक आपदा में बेघर हुए परिवारों को मुख्यमंत्री राहत कोष से किराए के लिए 4 हजार रुपए प्रतिमाह की दर से 6 माह तक दिए जाएंगे. साथ ही जोशीमठ में आपदा प्रभावित 46 परिवारों को 5 हजार प्रति परिवार की दर से आवश्यक घरेलू सामान हेतु कुल 2.30 लाख सहायता धनराशि का वितरण किया गया और जरूरतमंद लोगों को सूखे राशन का किट और कुक्ड फूड पैकेट उपलब्ध कराया जा रहा है.
(साभार- MONGABAY हिंदी)
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