Report
जोशीमठ में आ रहीं दरारों के लिए क्या एनटीपीसी है जिम्मेदार?
उत्तराखंड का महत्वपूर्ण पहाड़ी शहर जोशीमठ धंस रहा है. घरों में दरारें और जमीन धंसने की घटनाएं मीडिया में आने के बाद लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है. लोगों में यह गुस्सा अब स्पष्ट रूप से सरकारी स्वामित्व वाली हाइड्रो पावर कंपनी राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी) के खिलाफ है. लोग इन दरारों के लिए एनटीपीसी को जिम्मेदार मान रहे हैं.
जहां एक ओर विरोध प्रदर्शनों में ‘एनटीपीसी गो बैक’ के पोस्टर और प्लेकार्ड दिखते थे, अब यह पोस्टर जगह-जगह दुकानों पर भी लगे दिखाई दे रहे हैं. बाजार में लोगों का कहना है कि इस कंपनी की वजह से उनके घरों में दरारें आ रही हैं. इसलिए इस कंपनी को हटाकर ही वे चैन लेंगे.
लगातार बढ़ रहे विरोध के बीच अब उत्तराखंड सरकार ने यह फैसला लिया है कि वो इस मामले की जांच करेगी और इन दरारों के पीछे एनटीपीसी जिम्मेदार है या नहीं इसका पता लगाएगी.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस हिमालयी शहर में जमीन धंसने के कारणों की जांच आठ इंस्टीट्यूट करेंगे. सभी पहाड़ी क्षेत्रों की वहां क्षमता की भी जांच की जाएगी. शहर की स्थिति का आकलन करने के लिए कैबिनेट की बैठक में महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं.
समुद्र की सतह से करीब 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ राज्य के चमोली जिले में है और बद्रीनाथ, हेमकुंड और फूलों की घाटी यानी वैली ऑफ फ्लावर्स जाने वाले रास्ते में पड़ता है. लेकिन आज पूरे जोशीमठ की हालात ऐसी है, मानो यह हिल स्टेशन बारूद के ढेर पर हो. बिगड़ती स्थिति के बीच अधिकारियों को दो होटलों को तोड़ना पड़ा है.
शुरुआत में करीब 25 हजार की आबादी वाले जोशीमठ के लगभग 50 घरों में दरारें दिखाई दीं. ऐसे घरों की संख्या और इन दरारों की चौड़ाई हर रोज बढ़ रही है. कोई ठोस आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो अब यहां तकरीबन 700 से अधिक घरों में ऐसी दरारें हैं.
गौरतलब है कि एनटीपीसी द्वारा पिछले 17 साल यानी 2006 से हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है जो 520 मेगावाट क्षमता का है. अभी उसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है. उसकी 12 किमी लंबी सुरंग को लेकर यह सारा विवाद है. जिसपर लोगों का कहना है कि इस सुरंग को लेकर की जा रही तोड़फोड़ और विस्फोटों की वजह से ही जोशीमठ में भू धंसाव हो रहा है लेकिन एनटीपीसी ने इन आरोपों से इनकार किया है.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने 10 जनवरी को जमीन धंसने की घटना की समीक्षा के लिए एनटीपीसी के अधिकारियों को तलब किया था. एनटीपीसी अधिकारियों का कहना है कि इस परियोजना की जमीन धंसने के मामले में कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने कहा कि तपोवन विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना से जुड़ी सुरंग जोशीमठ से एक किमी दूर है साथ ही यह सुरंग जमीन के भीतर लगभग एक किमी की गहराई में है.
बता दें कि जोशीमठ में जमीन धंसने का मामला नया नहीं है. करीब 50 साल पहले 1976 में, गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी जिसने आज खड़े संकट की पहले ही चेतावनी दी थी. तब कमेटी के जानकारों ने पूरे क्षेत्र का अध्ययन कर यहां सड़कों की मरम्मत या किसी तरह के निर्माण के लिये पहाड़ों से भारी पत्थर न हटाने की सलाह दी थी, और कहा था कि खुदाई और ब्लास्टिंग न की जाए. पेड़ों को अपने बच्चों की तरह पाला जाए.
मिश्रा कमेटी में सेना, आईटीबीपी और सीमा सड़क संगठन के अधिकारी और जानकार थे, जिन्होंने आज दिखाई दे रहे हालात की पूर्व चेतावनी दी थी. लेकिन पिछले 30-40 सालों में चमोली जिले और खासतौर से जोशीमठ के आसपास वही सब किया गया, जिसकी मनाही थी.
Also Read: संकट में बद्रीनाथ का प्रवेशद्वार जोशीमठ
Also Read
-
‘No staff, defunct office’: Kashmir Times editor on ‘bizarre’ charges, ‘bid to silence’
-
Is Modi saving print media? Congrats, you’re paying for it
-
India’s trains are running on luck? RTI points to rampant drunk train driving
-
98% processed is 100% lie: Investigating Gurugram’s broken waste system
-
Malankara Society’s rise and its deepening financial ties with Boby Chemmanur’s firms