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नेहरू संग्रहालय का बदला रूप: नेहरू का इतिहास, उनकी गलतियां और मोदी का जादू
प्रधानमंत्री संग्रहालय का प्रवेश द्वारदक्षिण में राष्ट्रपति भवन और उत्तर में नेहरू स्मारक के साथ, दिल्ली के तीन मूर्ति सर्कल की तीन प्रतिमाएं लंबे समय से नियति के साथ भारत के साक्षात्कार की गवाह रही हैं. स्वतंत्रता संग्राम के क्रूर दमन से लेकर ब्रिटिश साम्राज्य के पतन और स्वतंत्रता तक.
इन तीन प्रतिमाओं को प्रथम विश्व युद्ध में जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद के राजकुमारों के बलिदान के स्मारक के रूप में 1922 में बनाया गया था, लेकिन आज यह प्रतिमाएं अपने आसपास एक और युद्ध को होते देख रही हैं. कांग्रेस और भाजपा के बीच की इस लड़ाई की रणभूमि है नेहरू स्मारक, और यह लड़ाई एक इमारत के भीतर कुछ हिस्से पर कब्जे के साथ ही उसके बाहर लोगों के दिमाग पर कब्जा करने के लिए लड़ी जा रही है.
पिछले साल तक इस परिसर को नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय के नाम से जाना जाता था, जिसमें एक पुस्तकालय, एक संग्रहालय और एक तारामंडल थे. लेकिन अब इसका नाम बदलकर प्रधानमंत्री संग्रहालय कर दिया गया है. पिछले साल अप्रैल में यहां एक नई इमारत ब्लॉक 2 का निर्माण हुआ. अशोक चक्र की आकृति में बने इस ब्लॉक में गुलज़ारीलाल नंदा से लेकर मनमोहन सिंह तक 12 पूर्व प्रधानमंत्रियों पर दीर्घाएं हैं, और कुछ ही दिनों में यहां नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों को भव्य रूप से शामिल किया जाएगा.
जहां एक ओर इस पुनरुद्धार के दौरान पुस्तकालय और तारामंडल काफी हद तक अछूते रहे, वहीं ब्लॉक 1 स्थित नेहरू संग्रहालय में प्रदर्शित सामग्री में कई बदलाव किए गए हैं. प्रदर्शन का माध्यम भी एनालॉग से बदलकर डिजिटल हो गया है.
1930 में निर्मित यह भव्य इमारत इसकी खिड़कियों, धनुषाकार दरवाजों और मजबूत स्तंभों के साथ वास्तुकला का एक शानदार नमूना है. आज़ादी के पहले तक यह ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ का आधिकारिक निवास हुआ करता था, तब इसे फ्लैगस्टाफ हाउस कहा जाता था. बाद में यह 1948 से 1964 तक देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का आधिकारिक निवास रहा. 1964 में उनकी मृत्यु के बाद इसे एक संग्रहालय में बदल दिया गया.
पुनर्निर्माण के बाद अब इस भवन के बाहर एक शिला पर प्रधानमंत्री मोदी का यह उद्धरण उकेरा गया है, “यह संग्रहालय हमें हमारे इतिहास की एक आकर्षक यात्रा पर ले जाता है और भारत के विकास की नई दिशाओं और नए रूपों का एक विहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है, जो नए भारत के स्वप्न को साकार कर रहे हैं.”
ब्लॉक 1 में हैं नेहरू, 1962 का चीनी हमला, और उरी
पिछले साल नाम बदले जाने से पहले तक इस संग्रहालय में भूतल और ऊपरी मंजिलों पर पुराने अख़बारों, पांडुलिपियों, तस्वीरों और मॉडलों के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं को प्रदर्शित किया गया था. एक पुरानी विवरणिका में इन घटनाओं की सूची इस प्रकार है: 1857 का विद्रोह, कांग्रेस की उत्पत्ति, होम रूल आंदोलन, महात्मा गांधी का उदय, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, द्वितीय विश्व युद्ध, पाकिस्तान की मांग, क्रिप्स मिशन, भारत छोड़ो आंदोलन, आज़ाद हिन्द फ़ौज का गठन, कैबिनेट मिशन, अंतरिम सरकार और आज़ादी.
इतना ही नहीं, संसद में नेहरू के पहले स्वतंत्रता भाषण का एक प्रतिरूप, नेहरू को मिले उपहार, उनकी विशिष्ट पोशाकें, पारिवारिक तस्वीरें और अन्य यादगार वस्तुएं भी प्रदर्शित की गईं थीं. लेकिन संग्रहालय का सबसे बड़ा आकर्षण था और आज भी है, नेहरू के पढ़ने, रहने और सोने का कमरा.
हालांकि अब इसमें कुछ फेरबदल किया गया है. अब भूतल पर अंग्रेज़ों की लूट से भारत को हुई आर्थिक और मानवीय क्षति पर एक गैलरी के अलावा, कई इंटरैक्टिव स्क्रीन्स के माध्यम से दर्शकों को संविधान निर्माण के विभिन्न चरणों और भारत के एक गणतंत्र के रूप में उदय के बारे में जानकारी दी जाती है. बीच में संविधान लागू करने के नोट पर हस्ताक्षर करते हुए देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की आदमकद मूर्ति है, जिसके पीछे उनकी फोटो भी लगी है.
पहले गणतंत्र दिवस समारोह पर एक लघु फिल्म में और संविधान निर्माताओं में से एक प्रमुख सदस्य के रूप में नेहरू इस फिल्म में कभी-कभार ही दिखते हैं.
लेकिन पहली मंजिल पर पहले प्रधानमंत्री को अधिक जगह मिली है. उनकी एक विशाल तस्वीर एक कमरे में आगंतुकों का स्वागत करती है. एक फ्लिप बुक में उनके परिवार की तस्वीरें हैं, और अंतिम तीन पन्नों पर तस्वीरें दोहराई गई हैं.
टेक्स्ट पैनलों पर उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन के बारे में जानकारी दी गई है, जिसमें उनके कारावास और कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल शामिल हैं. उनमें से एक में लिखा है: “स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू को नौ बार कुल 3,259 दिनों के लिए कैद किया गया था. इस देशभक्त ने अपने जीवन के लगभग नौ अनमोल वर्ष सलाखों के पीछे बिताए.”
अन्य कमरों में नेहरू का क्रिकेट बैट, छड़ी और एक तलवार है, और उनकी पोशाकों को एक टोपी और जैकेट तक ही समेट दिया गया है. पुनर्निर्माण से पहले उनके पजामे, अचकन और अन्य कपड़े भी प्रदर्शित किए जाते थे.
"अंतरिम सरकार" खंड में एक स्क्रीन पर नेहरू के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार को सत्ता हस्तांतरण का एक वीडियो चलता है. उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ उनकी तस्वीरें हैं; दीवार पर लगे कांच के तीन बक्से खाली हैं. "विभाजन खंड" में एक वीडियो, सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ महात्मा गांधी के संघर्ष की प्रशंसा करता है.
"नेहरू गैलरी" में, जिसे पहले बॉलरूम कहा जाता था, एक एलईडी स्क्रीन पर संसद में उनका प्रसिद्ध भाषण “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” या “नियति से साक्षात्कार” चलता है. उनके हस्तलिखित भाषण की एक प्रति भी प्रदर्शित है. इसे नेहरू के सरदार पटेल को लिखे एक पत्र के साथ प्रदर्शित किया गया है, जिसमें वह दिल्ली में मस्जिदों के विध्वंस पर चिंता व्यक्त करते हैं. नेहरू एक महत्वपूर्ण मस्जिद का हवाला देते हैं जिसे मंदिर में बदल दिया गया है और पटेल से कहते हैं कि “सरकार को इसके पुनर्निर्माण का कार्य करना चाहिए”.
“1947-48 युद्ध” नामक एक अन्य खंड में कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच की पहली लड़ाई का विवरण है. यहां एक स्क्रीन दर्शकों को बताती है कि कैसे महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत से मदद मांगी थी और कैसे भारतीय सेना ने आतंकवादियों व पाकिस्तानी सेना से कश्मीर की सफलतापूर्वक रक्षा की. लेकिन यह कहानी यहीं नहीं रुकती. इसमें 80 के दशक में कश्मीर में आतंकवाद, 90 और आगे के दशकों में बम विस्फोट से लेकर, संसद और मुंबई हमलों तक का वर्णन है.
2016 में संयुक्त अरब अमीरात से इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी अब्दुल वाहिद सिद्दीबापा के प्रत्यर्पण का भी ज़िक्र है. वॉइसओवर कलाकार 2016 के उरी आतंकी हमले की जानकारी भी देते हैं, जिसमें 18 सैनिक शहीद हुए थे. "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय सेना के सम्मान में एक अभूतपूर्व निर्णय लिया और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी लॉन्च पैड्स पर हमला करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक का आदेश दिया. भारत अब मूकदर्शक नहीं रहेगा और कड़ा जवाब देगा."
जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी द्वारा कार बम से सीआरपीएफ के 40 जवानों की हत्या के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान पर की गई एयर स्ट्राइक की जानकारी भी यहां मिलती है. स्क्रीन पर अख़बारों की कतरनें फ़्लैश होती हैं. उनमें से एक में लिखा है: “आज हर किसी का सीना 56 इंच का है”. वीडियो 2014 में मोदी के संयुक्त राष्ट्र में भाषण के साथ समाप्त होता है, जिसमें वो आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराते हैं. इससे पहले वीडियो में लंदन, नैरोबी, पेशावर, बैंकॉक, अंकारा, बेरूत, पेरिस, नीस, वेस्टमिंस्टर और मैनचेस्टर में हुए आतंकवादी हमलों का भी जिक्र है.
गैलरी में टच टेबल और एलईडी पैनल प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू की उपलब्धियां सूचीबद्ध करते हैं: बांधों का निर्माण, आईआईटी और आईआईएम, अब भंग हो चुके योजना आयोग का गठन, राज्यों के पुनर्गठन में उनकी भूमिका, और केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन की उत्पत्ति और गोवा मुक्ति संग्राम.
“राजनीतिक विकास” खंड में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए पटेल और नेहरू के बीच मतभेदों को दर्शाया गया है. नेहरू ने सी राजगोपालाचारी का समर्थन किया था जबकि पटेल ने डॉ राजेंद्र प्रसाद का समर्थन किया. एक अन्य वृत्तांत में दर्शकों को उन परिस्थितियों के बारे में बताया गया है, जिनके चलते नेहरू ने 1959 में केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया था.
एक कमरा 1962 के भारत-चीन युद्ध और माओ जेडोंग और चाओ एनलाई सहित चीनी राष्ट्राध्यक्षों के साथ नेहरू के व्यक्तिगत समीकरणों को समर्पित है. यह जानकारी गैलरी में नई है.
एक एलईडी स्क्रीन पर युद्ध के दृश्य चलते हैं और वॉइसओवर दर्शकों को बताता है, “चीनी आक्रमण वर्षों से तैयार हो रहा था. झड़पों की बढ़ती संख्या और सेना के अधिकारियों की चेतावनी के बावजूद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल और उनके रक्षा मंत्री वी के मेनन यह छवि बनाते रहे कि चीन कभी भी युद्ध का सहारा नहीं लेगा. नेहरू का मानना था कि उनके राजनयिक प्रयास और चीन के साथ मित्रता भारत की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त होंगी. इसलिए, रक्षा तैयारियों की पूरी तरह से उपेक्षा की गई.”
लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल पर हाल ही में भारतीय और चीनी सेनाओं की झड़पों और भारतीय भूमि पर चीन के अवैध कब्जे के कारण आलोचना झेल रही भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने, आज की परेशानियों के लिए नेहरू की गलतियों को दोष दिया है. एक अन्य कमरे में नेहरू की अंतिम यात्रा के दृश्य और तस्वीरें हैं, जिसमें शोकाकुल जनता की भी झलक मिलती है.
अगली गैलरी में पूर्व और वर्तमान प्रधानमंत्रियों द्वारा प्राप्त उपहारों को दिखाया गया है. पहले कमरे में ही मोदी को मिले 28 चमचमाते उपहारों को प्रदर्शित किया गया है. कुछ आगंतुक कहते सुने जा सकते हैं, "इससे पता चलता है कि पीएम मोदी अपने लिए कुछ भी नहीं रखते हैं. वह एक बड़े दिल वाले व्यक्ति हैं.”
अन्य तीन कमरों को अन्य प्रधानमंत्रियों के बीच बांटा गया है. उनमें नेहरू के भारत रत्न को मुश्किल से जगह मिली है, जिसे देख पाना आसान नहीं है.
ब्लॉक 2 में नया भवन और दूसरी नोटबंदी
नेहरू भवन के पीछे 271 करोड़ रुपए की लागत से 2021 में एक और संग्रहालय बनाया गया, जिसमें हर प्रधानमंत्री के योगदान को दर्शाया गया है. इसमें वर्चुअल रियलिटी, ऑगमेंटेड रियलिटी, 3डी, होलोग्राम, काइनेटिक, इमर्सिव और इंटरैक्टिव तकनीकों जैसे अधिक एडवांस डिजिटल माध्यम हैं. यह नेहरू संग्रहालय का ही विस्तार है और गुलज़ारीलाल नंदा के कार्यकाल से शुरू होता है.
हवा में तैरता अशोक स्तंभ और तिरंगे का रूप बनातीं 1,200 तारतम्य में सजीं एलईडी लाइटें दर्शकों का स्वागत करती हैं.
लाल बहादुर शास्त्री सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धियां गिनाने के बाद, प्रदर्शनी इंदिरा गांधी के कार्यकाल की ओर बढ़ती है. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध को एक बड़ी एलईडी स्क्रीन पर प्रमुखता से वर्णित किया गया है. भारत के पहले सफल परमाणु परीक्षण और जागीरदारी की समाप्ति का भी उल्लेख मिलता है. एक उपखंड आपातकाल को समर्पित है - 'सेंसरशिप' शीर्षक के साथ एक रेडियो, एक शटर टीवी और अखबार की कतरनें प्रेस के दमन को दर्शाती हैं. एक मॉक-अप जेल में लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी सहित राजनीतिक कैदियों के नाम हैं.
उस समय के सबसे बड़े विपक्षी नेताओं में से एक जयप्रकाश नारायण की जेल डायरी इंदिरा गांधी को धिक्कारती है. प्रदर्शनी में यह भी दिखाया गया है कि इंदिरा को किन अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा: 1971 के युद्ध और पंजाब में उग्रवाद के बाद बांग्लादेशी प्रवासियों का आगमन.
इस गैलरी में चौथे पीएम मोरारजी देसाई की तुलसी माला, कलम, भगवद गीता और उनके समय के नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें है. दर्शकों को 'काले धन के खतरे' के खिलाफ देसाई के बड़े बैंक नोटों के विमुद्रीकरण के फैसले के बारे में भी जानकारी मिलती है. वर्तमान मोदी सरकार ने 2016 में इसी तरह का एक कदम उठाया था. गैलरी में देसाई के सुझावों के बारे में भी बात की गई है कि सभी स्कूलों में योग कक्षाएं शुरू की जानी चाहिए और भारत को "चिकित्सा की स्वदेशी प्रणालियों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए".
देसाई और विदेश मंत्री वाजपेयी की तस्वीरों वाला दीवार पर लगा एक पैनल, विदेश नीति में बदलाव पर प्रकाश डालता है. “1977 में, इज़राइल के विदेश मंत्री जनरल मोशे दयान एक गुप्त यात्रा पर भारत आए थे. हालांकि भारत ने 1950 में इज़राइल को मान्यता दी थी, लेकिन उसने इज़राइल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किए क्योंकि नेहरू अरब देशों को नाराज़ नहीं करना चाहते थे.”
राजीव गांधी को समर्पित गैलरी में उनके पांच सिद्धांतों, दूरसंचार क्रांति, कंप्यूटर, असम संकट का समाधान, पंजाब उग्रवाद के खिलाफ प्रयास, दल-बदल पर फैसले, गंगा एक्शन प्लान आदि के साथ त्रासदियों, विवादों और घोटालों को भी पर्याप्त जगह मिली है. एक पैनल पर लिखा है, शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक "राजनीतिक फैसले" ने "राजीव गांधी की छवि पर एक अमिट छाप छोड़ी". एक अन्य स्क्रीन पर कहा गया है कि बोफोर्स मामले में राजीव को "कानूनी प्रक्रिया द्वारा सभी आरोपों या दोषों से मुक्त कर दिया गया था".
वीपी सिंह, जिन्होंने बोफोर्स मामले को लेकर कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था, 1989 में पीएम बने. एक एलईडी डिस्प्ले पर दर्शाया गया है कि कश्मीरी पंडितों पर तीव्र हमलों के बाद सरकार ने जम्मू-कश्मीर सरकार को बर्खास्त कर दिया. गैलरी में सरकार की उपलब्धियों को दर्शाने के बाद, "सरकार का पतन" खंड में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा और बिहार में उनकी गिरफ्तारी के बाद भाजपा द्वारा समर्थन वापस लेने के बारे में बताया गया है.
बाबरी मस्जिद का उल्लेख दोबारा पीवी नरसिम्हा राव की गैलरी में मिलता है. प्रदर्शनी में कारसेवकों को "कार्यकर्ता" बताया गया है और मस्जिद को "परित्यक्त ढांचा" बताते हुए कहा गया है कि कार्यकर्ताओं में उसे गिरा दिया था. "6 दिसंबर, 1992 की सुबह कार्यकर्ताओं ने अचानक अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान के तत्कालीन विवादित स्थल में प्रवेश किया और उसे नष्ट कर दिया."
राव का प्रारंभिक जीवन, राजनीतिक जीवन, उनकी चतुर विदेश नीति और विदेशी मुद्रा भंडार संकट से प्रेरित होकर अर्थव्यवस्था को खोलने के उनके निर्णय को प्रमुखता से दिखाया गया है.
वाजपेयी की गैलरी, राजीव या इंदिरा की तुलना में थोड़ी ज़्यादा विस्तृत है. एक घुमावदार एलईडी स्क्रीन उनकी शिक्षा, आरएसएस से उनके संबंध और राजनीतिक जीवन पर संक्षिप्त जानकारी देती है. इस पर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उनका चर्चित भाषण चलता है कि सत्ता के लिए वह सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे. पोखरण-2 परमाणु परीक्षणों के क्षण को फिर से जीवंत करने के लिए नियंत्रकों के साथ एक मॉक-अप, मल्टी-डिस्प्ले रूम का पुनर्निर्माण किया गया है.
उलटी गिनती के बाद, पुनर्निर्मित कमरे में कंपन होता है, जो परमाणु परीक्षण को दर्शाता है. एक और घुमावदार एलईडी स्क्रीन पर कारगिल युद्ध की जानकारी है. भारत-पाक संबंधों को सुधारने के लिए वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा, उनकी विदेश नीति के अन्य पक्षों, संयुक्त राष्ट्र के भाषण, दूरसंचार क्रांति और स्कूली शिक्षा की पहल पर प्रकाश डाला गया है.
नेहरू के भारत रत्न के विपरीत, वाजपेयी के भारत रत्न को प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया है.
डॉ मनमोहन सिंह के कार्यकाल की झांकी में एक पैनल पर भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को दर्शाया गया है, और दूसरा उनके स्कूल और अकादमिक जीवन का इतिहास बताता है. एक स्क्रीन 2008 में मुंबई आतंकवादी हमलों के दृश्य दिखाती है. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, उद्योगों को बढ़ावा, सूचना और शिक्षा का अधिकार और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का उल्लेख भी मिलता है.
अन्य पूर्व प्रधानमंत्री जिनके कार्यकाल छोटे थे, उनमें चौधरी चरण सिंह की पाकिस्तान को चेतावनी, चंद्रशेखर की आर्थिक संकट को रोकने की प्रारंभिक चुनौती और उनकी भारत यात्रा, एचडी देवगौड़ा के कार्यकाल के दौरान जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की वापसी और आईके गुजराल के पांच सिद्धांतों को दर्शाया गया है.
दीर्घाओं के बाहर, दर्शक 14 प्रधानमंत्रियों में से किसी के भी साथ फोटो खिंचवा सकते हैं, उनके साथ सैर कर सकते हैं या "भारत के भविष्य में झलक" के लिए एक आभासी हेलीकॉप्टर की सवारी कर सकते हैं. यहां मोदी, आगंतुकों के बीच सबसे लोकप्रिय हैं.
'स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस की भूमिका को कैसे हटाया जा सकता है?'
'स्वतंत्रता और एकता' पर एक अलग गैलरी में महात्मा गांधी, सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस पर तीन छोटे वीडियो दर्शकों को स्वतंत्रता संग्राम में उनके शानदार योगदान के बारे में बताते हैं. पहले नेहरू स्मारक में 1857 से भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को चित्रित किया गया था, लेकिन अब स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस की भूमिका को हटा दिया गया है. पटेल के वीडियो के अंत में वॉइस-ओवर कलाकार एक सवाल करता है: "1947 का इतिहास क्या होता अगर सरदार पटेल स्वतंत्र भारत के पहले पीएम बनते, जैसा कि कांग्रेस पार्टी की इच्छा थी?"
इतिहासकार और नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी की पूर्व निदेशक मृदुला मुखर्जी कहती हैं कि आजादी के आंदोलन को पहले पुरानी तस्वीरों या अख़बार की कतरनों के जरिए दिखाया जाता था. "इसमें क्रांतिकारी और नरमपंथी शामिल थे. होम रूल लीग और खिलाफत आंदोलन पर सेक्शन थे." वह पूछती हैं, "हम स्वतंत्रता आंदोलन की कहानी कैसे सुनाएंगे जब इसे प्रदर्शित करने के लिए कोई निश्चित स्थान ही नहीं है? और स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस की भूमिका को कैसे हटाया जा सकता है?”
हालांकि, चीफ क्यूरेटर गौरी कृष्णन की दलील है कि दोनों संग्रहालय “मुख्यतः प्रधानमंत्रियों के बारे में हैं, स्वतंत्रता संग्राम के बारे में नहीं. यह हमेशा से प्रधानमंत्रियों का संग्रहालय रहा है लेकिन आप 1947 से पहले क्या हुआ, उसके बारे में बात किए बिना वर्तमान के बारे में बात नहीं कर सकते. ब्रिटिश विरासत गैलरी (ब्लॉक 1 में) और 'स्वतंत्रता और एकता' गैलरी (ब्लॉक 2) में स्वतंत्रता आंदोलन का ज़िक्र है.”
क्यूरेटर विनती सेन कहती हैं, “इससे पहले, केवल स्वतंत्रता सेनानी नेहरू पर ही ध्यान केंद्रित था. अब यह प्रधानमंत्री नेहरू के योगदान को भी प्रदर्शित करता है. इस तरह यह एक ज़्यादा अपडेटेड संग्रहालय बन गया है." वे आगे कहती हैं कि नेहरू के 'आधुनिक भारत के मंदिर', यानि नदी घाटी परियोजनाएं और बांध, आईआईएम और आईआईटी की स्थापना आदि पहले प्रदर्शन का हिस्सा नहीं थे.
एनएमएमएल के उप-निदेशक रवि मिश्रा और एमजे अकबर ने अभी तक हमारे मैसेज या टिप्पणी के लिए किए गए कॉल का जवाब नहीं दिया है.
एनएमएमएल की कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष ए सूर्य कुमार ने टिप्पणी के अनुरोध का जवाब नहीं दिया और इस संवाददाता को एनएमएमएल के निदेशक नृपेंद्र मिश्रा के पास भेजा. मिश्रा के स्टाफ ने इस संवाददाता को रवि मिश्रा के पास भेजा, जिन्होंने कॉल या संदेशों का जवाब नहीं दिया. दूरदर्शन पर एक साक्षात्कार में कुमार ने कहा था कि “यह कल्पना स्वतंत्रता से आगे की यात्रा को एक साथ रखने की थी, और निश्चित रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति की कहानी भी उसका एक छोटा सा हिस्सा थी.”
सप्ताह के दिनों में औसतन लगभग 1,500 लोग और सप्ताहांत में लगभग 2,000 लोग संग्रहालय आते हैं. ऑनलाइन टिकट की कीमत 90 रुपए है और अन्य ऐड-ऑन - जैसे ऑडियो गाइड, वर्चुअल हेलीकॉप्टर की सवारी, पीएम के साथ चलना, पीएम के साथ फोटो और पीएम द्वारा हस्ताक्षरित पत्र की कीमत 400 रुपए से अधिक है. पहले यहां प्रवेश मुफ़्त था और लगभग 5,000 लोग प्रतिदिन आते थे.
जिन दर्शकों से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की वह तकनीकी माध्यम से कहानी कहने के तरीकों और नवनिर्मित इमारतों से अचंभित थे.
अपने परिवार के साथ संग्रहालय की सैर कर चुके दिल्ली के व्यवसायी अमित अग्रवाल का कहना है कि उनका मकसद था अपने बच्चों को नेहरू के निजी कमरे दिखाना. “वे मुझे चाचा नेहरू के कमरे दिखाने के लिए कहते रहते थे. इसलिए मैं यहां आया हूं". अग्रवाल आश्चर्य करते हैं कि मोदी ने भाजपा से होने के बावजूद, "बिना किसी भेदभाव के सभी प्रधानमंत्रियों को समान स्थान दिया है."
पुणे स्थित कंसल्टेंट अभिषेक, जो पांच साल पहले भी इस संग्रहालय में आए थे, अग्रवाल का समर्थन करते हैं. "मुझे लगता है कि यहां हर प्रधानमंत्री को दर्शाया गया है." पांच साल पहले की स्थिति को याद करते हुए वह कहते हैं: “पुरानी इमारत जर्जर हालत में थी. अब इसमें बदलाव किया गया है और नेहरू को मिली कलाकृतियों का रखरखाव अच्छी तरह से किया गया है."
एक अन्य आगंतुक का कहना था, “हम मोदी गैलरी देखने आए थे. लेकिन वो यहां नहीं हैं. यह एक बड़ी चूक है. अटल बिहारी वाजपेयी की गैलरी देखकर अच्छा लगा. और नेहरूजी! वे हर जगह हैं! क्यों? कृपया इसे सुधारें.”
(आंचल पोद्दार और रीत साहनी ने रिसर्च में सहायता की.)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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