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रायपुर प्रेस क्लब: सीएम का विरोध करने पर 4 पत्रकारों का निष्कासन, अध्यक्ष के आदेश पर उठे सवाल

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित प्रेस क्लब को वहां की राजनीति में बहुत अहम माना जाता है. क्लब के चुनाव में जिस तरह से खर्च होता है, उसके सामने कई बड़े चुनाव फेल हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद प्रेस क्लब का चुनाव साल 2019 से नहीं हो पाया है.

यह क्लब एक बार फिर से चर्चाओं में है. इसकी वजह है रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष दागु आम्बेडारे द्वारा क्लब के चार पत्रकार सदस्यों का निष्कासन. जारी आदेश में लिखा है कि पत्रकार प्रफुल्ल ठाकुर, सुधीर तंबोली, मोहम्मद शमीम और राहुल चौबे को नववर्ष मिलन समारोह में मुख्यमंत्री को आने से रोकने का प्रयास करने के कारण रायपुर प्रेस क्लब की सदस्यता से तत्काल प्रभाव से निष्कासित किया जाता है. 

यह आदेश मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के एक जनवरी को प्रेस क्लब आने के बाद जारी हुआ. हालांकि निष्कासित किए गए सभी पत्रकारों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि किसी भी पत्रकार को खबर लिखे जाने तक आदेश की प्रति नहीं दी गई. यह आदेश सिर्फ व्हाट्सएप पर साझा किया गया है.  

निष्कासन के पीछे की कहानी

रायपुर प्रेस क्लब का चुनाव जून 2018 में हुआ था. इन चुनावों में अध्यक्ष पद पर दामू आम्बेडारे, उपाध्यक्ष पद पर प्रफुल्ल ठाकुर, महासचिव पद पर प्रशांत दुबे, संयुक्त सचिव के दो पदों पर अंकिता शर्मा और गौरव शर्मा और कोषाध्यक्ष पद पर शगुफ्ता शरीन चुनाव जीत कर आए. इन सभी सदस्यों का कार्यकाल एक साल का था. यानी नियम के मुताबिक जून 2019 में यहां फिर से चुनाव होना था. लेकिन करीब तीन साल बीत जाने के बाद भी चुनाव नहीं हुए हैं. 

उपाध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर, महासचिव प्रशांत दुबे और संयुक्त सचिवों के दोनों पदों पर काबिज पत्रकारों ने एक साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद इस्तीफा दे दिया था. लेकिन अध्यक्ष दामू आम्बेडारे और कोषाध्यक्ष शगुफ्ता शरीन ने इस्तीफा नहीं दिया. वह अभी भी पद पर बने हुए हैं. 

पत्रकार प्रफुल्ल ठाकुर बताते हैं, “जून 2019 में कार्यकाल समाप्त होने के बाद प्रेस क्लब के चुनाव होने थे लेकिन मतदाता सूची में गलती होने के कारण चुनाव में देरी की गई. इसके बाद प्रेस क्लब के 315 सदस्यों की सहमति से क्लब के संचालन के लिए एक 11 सदस्यीय एड-हॉक कमेटी बनाई. जिसका समन्वयक पत्रकार सुकांत राजपूत को बनाया गया.”

जब चुनाव नहीं हुए तो यह एडहॉक कमेटी बिलासपुर हाईकोर्ट पहुंची. जहां कोर्ट ने जुलाई 2020 में अपने आदेश में प्रेस क्लब की वर्तमान कार्यकारिणी को अमान्य मानते हुए जल्द से जल्द चुनाव कराने का आदेश रजिस्ट्रार फर्म एंड सोसाइटी के प्रमुख को दिया. बता दें कि राज्य के सभी प्रेस क्लब, रजिस्ट्रार फर्म एंड सोसाइटी के अंतर्गत ही आते हैं. 

हाईकोर्ट के आदेश पर सोसाइटी ने तत्कालीन रायपुर जिला कलेक्टर भारतीदासन को चुनाव कराने को कहा. इसके बाद कलेक्टर ने अपर कलेक्टर आरके पांडे को क्लब का चुनाव तीन महीने में कराने के लिए निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया.

तत्कालीन अपर कलेक्टर ने निर्वाचन प्रकिया शुरू करते हुए 786 मतदाता सूची को प्रकाशित किया और एक महीने का समय दावा-आपत्ति के लिए दिया. यह सब चल ही रहा था कि कलेक्टर और अपर कलेक्टर का ट्रांसफर हो गया. 

इसके बाद से हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी अभी तक प्रेस क्लब का चुनाव नहीं हो पाया है. इसको लेकर प्रफुल्ल ठाकुर कहते हैं, “पहले कोरोना का बहाना बनाया गया. साल 2021 से परिस्थितियां ठीक भी हो गईं लेकिन क्लब के चुनाव नहीं हुए. बाकी चुनाव कराए जा रहे हैं लेकिन प्रेस क्लब का चुनाव नहीं हो रहा है.” 

रायपुर स्थित एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं, “दरअसल राजनीति की वजह से चुनाव नहीं हुआ है. जो भी सरकार सत्ता में रहती है उसे लगता है कि पत्रकार साथ हैं तो चुनाव का माहौल उनके पक्ष में है. इसलिए यह सरकार भी प्रेस क्लब का चुनाव नहीं करवा रही है.”

प्रेस क्लब की एडहॉक कमेटी ने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद चुनाव नहीं कराए जाने को लेकर अवमानना का केस दायर किया है. जिस पर 20 जनवरी को सुनवाई होनी है. 

मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के बाद जारी हुआ चुनाव के लिए आदेश

प्रफुल्ल ठाकुर बताते हैं, “क्लब के संविधान के मुताबिक अध्यक्ष ऐसे किसी भी सदस्य को निकालने का फैसला नहीं ले सकते. उसके लिए कार्यकारिणी की बैठक होती है. उसमें बहुमत के फैसले के बाद पत्रकार को कारण बताओ नोटिस दिया जाता है. इसके बाद अगर क्लब जवाब से नाखुश है, तो वह निकालने का फैसला कर सकता है. लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ क्योंकि कार्यकारिणी ही अधूरी है. और महासचिव तो सबसे महत्वपूर्ण पद होता है वह भी खाली है.”

जिन पत्रकारों को निकाला गया वह सभी चुनाव जल्द कराए जाने की मांग कर रहे थे. निकाले गए दूसरे सदस्य सुधीर तंबोली कहते हैं कि, “21 दिसंबर को क्लब की एक बैठक बुलाई गई. जिसमें सर्वसम्मति से फैसला लिया गया कि चुनाव नहीं हो जाने तक प्रेस क्लब में होने वाली आर्थिक और समस्त गतिविधियों पर रोक लगाई जाए.”

इस बैठक की जानकारी को कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे से भी साझा किया है. 21 दिसंबर की बैठक से पहले 29 नवंबर को सभी पत्रकार चुनाव कराने को लेकर कलेक्टर से भी मिलकर आए थे.  

कलेक्टर को ज्ञापन देते पत्रकार

ठाकुर बताते हैं, “जब हमें मुख्यमंत्री के आने की सूचना मिली तो हमने उन्हें एक पत्र लिखा कि वह क्लब न आएं. क्योंकि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष अवैध रूप से पद पर बने हुए हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री के आने से उनको मान्यता मिलेगी.”

मुख्यमंत्री के नाम पत्र

इस पत्र के बाद पत्रकार मुख्यमंत्री से मिलने पुलिस लाइन भी गए, जहां मुख्यमंत्री एक दूसरे कार्यक्रम के लिए आए थे. वहां मिलकर भी उन्होंने चुनाव नहीं होने और कार्यक्रम में नहीं आने को लेकर अपनी बात रखी.

मुख्यमंत्री से वार्ता करते पत्रकार

तंबोली कहते हैं, “असल में हम अध्यक्ष का विरोध कर रहे हैं इसलिए उन्होंने यह आदेश जारी किया. वह अवैध तरीके से पद पर बने हुए हैं.”

ठाकुर भी कहते हैं, “हमने मुख्यमंत्री को आने से नहीं रोका. बल्कि हमने उनसे निवेदन किया कि वह चुनाव तक यहां न आएं.”

राहुल चौबे भी निष्कासित किए गए. वह मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने भी नहीं गए थे लेकिन फिर भी उनका नाम निष्कासन लिस्ट में है.

राहुल कहते हैं, “उनको (अध्यक्ष) कोई अधिकार नहीं है हमें निकालने का. वह अवैध रूप से पद पर हैं और हम वैध लोगों को निकाल रहे हैं.” 

इस पूरे विवाद पर अध्यक्ष दामू अम्बेडारे कहते हैं, “यह लोग कौन होते हैं मुख्यमंत्री को रोकने वाले? मुख्यमंत्री किसी एक के नहीं हैं, वह सभी के मुख्यमंत्री हैं.”

वह आगे बताते हैं कि यह लोग बहुत समय से इस तरह से क्लब के खिलाफ काम कर रहे थे. कई बार उन्हें छोड़ दिया लेकिन इस बार उन्होंने हद कर दी थी. 

निष्कासन के अधिकार को लेकर वह कहते हैं, “क्लब के संविधान में अध्यक्ष को पावर दी गई है निष्कासन करने की.”

कार्यकाल पूरा होने के बावजूद पद पर बने रहने पर वह कहते हैं, “कार्यकाल खत्म होने के बाद कोविड आ गया, जिसके कारण हम पद पर बने रहे. यह अवैध नहीं है. मुझे पत्रकारों ने ही चुनकर अध्यक्ष बनाया है.”

एडहॉक कमेटी को लेकर अध्यक्ष अम्बेडारे कहते हैं, “अध्यक्ष के होते हुए इन लोगों ने कमेटी बनाई. यह नियमों के खिलाफ है.”

मुख्यमंत्री के एक जनवरी के कार्यक्रम के बाद तीन जनवरी को जिला कलेक्टर के ऑफिस से चुनाव कराने को लेकर एक आदेश जारी हुआ.  

निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति

आदेश में चुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की गई है. अपर कलेक्टर बीसी साहू को चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी गई है. वह न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत करते हुए कहते हैं, “अभी तो नियुक्त किया गया है. जल्द ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.”

पहले भी नियुक्ति होने के बावजूद चुनाव नहीं हुए, इसको लेकर वह कहते हैं, “पहले के लोगों का ट्रांसफर हो गया. पूरी कोशिश होगी की जल्द चुनाव करा लिया जाए. कोई समय नहीं बता सकते, लेकिन छह महीने लग सकते है चुनाव में.”

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