Khabar Baazi
2018 से अक्टूबर 2022 के बीच खरीदे गए 10,700 करोड़ रुपए से अधिक के चुनावी बॉन्ड
5 जनवरी 2023 को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के द्वारा “कैसे चुनावी बॉन्ड राजनीतिक वित्तपोषण परिदृश्य को बदल रहा है?” विषय पर एक वेबिनार आयोजित की गई. इस वेबिनार में चुनावी बॉन्ड की बिक्री से चुनावी पारदर्शिता और उसकी सम्प्रभुता पर खड़े हुए खतरों पर विस्तार से बातचीत हुई.
भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा खरीदे जा सकने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड ने राजनीतिक दलों के लिए असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग के दरवाजे खोल दिए हैं, जिसका भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. 2022 में चुनावों के दौरान सरकार द्वारा इलेक्ट्रोरल स्कीम में संशोधन के बाद, चुनावी बॉन्ड बिक्री के लिए कई विकल्प खोले गए.
2018 और अक्टूबर 2022 के बीच 10,700 करोड़ रुपए से अधिक के चुनावी बॉन्ड खरीदे गए हैं. योजना की शुरुआत से पहले और बाद के तीन वर्षों में राष्ट्रीय दलों की अज्ञात आय 66 प्रतिशत से बढ़कर 71 प्रतिशत हो गई.
ऐसे ही कई मुद्दों के अलावा इस विषय पर भी बात हुई कि चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता और योग्यता को चुनौती देने वाली कई दलीलें सर्वोच्च न्यायालय में लंबित होते हुए भी ईबी योजना में संशोधन कितना उचित है? और सर्वोच्च न्यायालय इस मामले को वरीयता देकर लिस्ट क्यों नहीं कर रहा है?
इस वेबिनार में वक्ता के तौर पर कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के निदेशक वेंकटेश नायक, ओआरएफ के वरिष्ठ फेलो प्रोफेसर निरंजन साहू, द रिपोर्टर्स इस कलेक्टिव के असिस्टेंट एडिटर श्रीगिरीश जालीहाल, सीपीआईएम के नेता डॉ फौद हालिम और पारदर्शिता एक्टिविस्ट कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) ने हिस्सा लिया. वेबिनार का संचालन एडीआर के अध्यक्ष मेजर जनरल अनिल वर्मा (सेवानिवृत्त) ने किया.
Also Read
-
Hafta 483: Prajwal Revanna controversy, Modi’s speeches, Bihar politics
-
Can Amit Shah win with a margin of 10 lakh votes in Gandhinagar?
-
Know Your Turncoats, Part 10: Kin of MP who died by suicide, Sanskrit activist
-
In Assam, a battered road leads to border Gorkha village with little to survive on
-
TV Newsance 251: TV media’s silence on Revanna ‘sex abuse’ case, Modi’s News18 interview