Report
संकट में बद्रीनाथ का प्रवेशद्वार जोशीमठ
जोशीमठ में भू-धंसान और घरों में आ रही दरारों से परेशान हजारों लोगों ने बुधवार शाम को मशाल जुलूस निकाला, और प्रशासन की संवेदनहीनता पर गुस्सा जताया.
बता दें कि उत्तराखंड का जोशीमठ इस समय एक गंभीर संकट में है और यह महत्वपूर्ण पहाड़ी शहर धंस रहा है. समुद्र की सतह से करीब 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित जोशीमठ राज्य के चमोली जिले में है और बद्रीनाथ, हेमकुंड और फूलों की घाटी यानी वैली ऑफ फ्लार्स जाने वाले रास्ते में पड़ता है. लेकिन आज पूरे जोशीमठ की हालात ऐसी है, मानो यह हिल स्टेशन बारूद के ढेर पर हो.
शुरुआत में करीब 25 हजार की आबादी वाले जोशीमठ के लगभग 50 घरों में दरारें दिखाई दीं. ऐसे घरों की संख्या और इन दरारों की चौड़ाई हर रोज़ बढ़ रही है. कोई ठोस आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों की मानें तो अब यहां 250 से अधिक घरों में पिछले कुछ दिनों से ऐसी दरारें दिखी हैं, जो चौड़ी हो रही हैं. यहां रहने वाले लोग परेशान हैं, डरे हुए हैं और क्योंकि यह क्षेत्र एक पहाड़ी और अत्यधिक भूकंपीय क्षेत्र (SZ-5) में आता है, तो लोगों में भय स्वाभाविक है. और आप देख सकते हैं कि कैसे आदमी, महिलाएं, बच्चे - सभी इतनी ठंड में रात के वक्त घरों के बाहर आग जलाकर बैठे हैं…
बर्बाद होते और धंस रहे शहर को बचाने के लिए जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति बनाई गई है, जिसके एक प्रतिनिधिमंडल ने देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात की. मुख्यमंत्री धामी ने हालात को बहुत गंभीर माना है और राज्य के जिलाधिकारी से रिपोर्ट मांगी है, लेकिन जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के कन्वीनर अतुल सती का कहना है कि सरकार गंभीर नहीं है. अब सवाल है कि जोशीमठ के घरों में यह दरारें क्यों आ रही हैं?
संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बसा जोशीमठ असल में कभी भूस्खलन से जमा हुई मलबे के पहाड़ पर बसा है. नाज़ुक भूगर्भीय बनावट के बावजूद यहां लोगों का बसना जारी रहा. बहुमंजिला इमारतें, घर और होटल तो बने ही, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और चारधाम यात्रा मार्ग जैसे भारी भरकम प्रोजेक्ट भी बने हैं. गंगा की बड़ी सहायक नदी अलकनंदा यहां बहती है और आसपास का इलाका कई छोटी बड़ी नदियों का बहाव क्षेत्र है, जिस कारण भूकटाव होता है. इसका असर निश्चित रूप से पिछले कई सालों से धंस रहे जोशीमठ पर दिखा है.
यहां यह बताना ज़रूरी है कि करीब 50 साल पहले 1976 में, गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी जिसने आज खड़े संकट की पहले ही चेतावनी दी थी. तब कमेटी के जानकारों ने पूरे क्षेत्र का अध्ययन कर यहां सड़कों की मरम्मत या किसी तरह के निर्माण के लिये पहाड़ों से भारी पत्थर न हटाने की सलाह दी थी, और कहा था कि खुदाई और ब्लास्टिंग न की जाए. पेड़ों को अपने बच्चों की तरह पाला जाए.
मिश्रा कमेटी में सेना, आईटीबीपी और सीमा सड़क संगठन के अधिकारी और जानकार थे, जिन्होंने आज दिखाई दे रहे हालात की पूर्व चेतावनी दी थी. लेकिन पिछले 30-40 सालों में चमोली जिले और खासतौर से जोशीमठ के आसपास वही सब किया गया, जिसकी मनाही थी.
देखें पूरा वीडियो-
Also Read
-
4 ml of poison, four times a day: Inside the Coldrif tragedy that claimed 17 children
-
Delhi shut its thermal plants, but chokes from neighbouring ones
-
Hafta x South Central feat. Josy Joseph: A crossover episode on the future of media
-
Encroachment menace in Bengaluru locality leaves pavements unusable for pedestrians
-
Cuttack on edge after violent clashes