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मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई अतिरिक्त रोक नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है. संविधान बेंच ने 4:1 के बहुमत से कहा कि इस अधिकार को प्रतिबंधित करने के आधार अनुच्छेद 19(2) के तहत विस्तृत हैं.
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मंत्रियों द्वारा दिए गए बयानों को सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करने पर भी सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.
मामला 2016 में बुलंदशहर में एक गैंगरेप मामले को कथित रूप से तुच्छ बनाने की उनकी टिप्पणी को लेकर समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान के खिलाफ एक याचिका से उपजा था. अदालत ने खान से माफी मांगने को कहा था, लेकिन यह देखा कि इस मामले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राज्य के दायित्व पर गंभीर सवाल उठाए.
इसमें पिछले साल नवंबर में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
लाइव लॉ के अनुसार न्यायमूर्ति नागरत्न ने एक असहमति नोट दिया, यह देखते हुए कि मंत्रियों की टिप्पणी को सरकार के लिए तब जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जब वे निर्णय अपनी “आधिकारिक क्षमता” के अनुसार लेते हैं. लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर टिप्पणी सरकार की नीतियों या पक्ष से मेल नहीं खाती हैं तो उसे व्यक्तिगत माना जाना चाहिए.
लाइव शो के अनुसार, केंद्र सरकार की ओर से बहस करते हुए, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा था कि संसद के लिए इस सवाल पर बहस करना बेहतर था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कथित तौर पर कहा कि ये मुद्दे पहले से ही अमीश देवगन और तहसीन पूनावाला मामलों में शामिल थे.
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