NL Charcha
एनएल चर्चा 246: अर्जेंटीना के नाम विश्वकप और कोविड की दस्तक
एनएल चर्चा के इस अंक में चीन में तेजी से फैलता कोविड, भारत सरकार ने भी संक्रमण को लेकर जारी की एडवाइजरी, यूक्रेन से जंग के बीच व्लादिमीर पुतिन का बयान, नेपाल की जेल से रिहा हुआ चार्ल्स शोभराज, जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को अब बिना काम नहीं मिलेगा वेतन, संसद में अमित शाह ने कहा कि देश की डेमोग्राफी बदलने का प्रयास करने वाले एनजीओ पर होगी कार्रवाई, अफगानिस्तान में लड़कियों के कॉलेज जाने पर रोक, यूएन में म्यांमार के खिलाफ प्रस्ताव से बाहर रहा भारत, दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित देश दक्षिण एशिया के, पीआईबी फैक्ट चेक यूनिट के दावों के बाद तीन यूट्यूब चैनलों को ब्लॉक किया गया और फुटबॉल वर्ल्ड कप में अर्जेंटीना की जीत समेत कई अन्य विषयों का जिक्र हुआ.
चर्चा में इस हफ्ते यूके के नेशनल हेल्थ सर्विस में कार्यरत डॉक्टर अविरल वत्स, खेल प्रेमी मलयज मिश्रा, वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा और न्यूज़लॉन्ड्री के सह-संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल चर्चा की शुरुआत में विश्व कप फुटबॉल मैच में अर्जेंटीना की जीत से करते है. वह कहते है, “भारत में क्रिकेट पूरे स्पोर्ट कल्चर को डॉमिनेट करता है. जब से फुटबॉल चल रहा है क्या लोगों के अंदर कुछ ऐसा बदलाव देखने को मिलता है कि लोग फुटबॉल की तरफ जा रहे है या फुटबॉल कहीं न कहीं डोमिनेट करने की स्थिति में आ रहा है?”
मलयज कहते हैं, “बिल्कुल जो कैजुअल फैंस है वो इतना फुटबॉल नहीं देखते है. भारत में क्रिकेट की जो ग्रोथ हुई वह 1983 के वर्ल्ड कप के बाद से शुरू हुई. वैसे ही फीफा वर्ल्ड कप 2022 के बाद लोगों में अब इंटरेस्ट जगा होगा. इंडिया में स्पोर्ट्स को लोकप्रिय करने के लिए कल्चर का डेवलप होना जरूरी है. हर शहर में कुछ क्लब होने चाहिए जहां पर वहां टैलेंट को प्रमोट करे. छोटी उम्र में खेलना शुरू करना चाहिए. अभी हमारे यहां युवा छोटी उम्र में क्लब नहीं जाते है जिसका नुकसान भारत को झेलना पड़ता है. वहीं अगर आप यूरोप या साउथ अमेरिका में देखे तो 5 या 6 की उम्र से ही बच्चे एकेडमी में जाने लगते है.”
विश्वकप को लेकर अविरल कहते हैं, “मैं स्कॉटलैंड में हूं और ये बहुत छोटा देश है. यहां सुविधाएं और क्लब्स दोनों है लेकिन आपको इंडियन बच्चे फुटबॉल खेलते हुए नहीं मिलेंगे. ज्यादा बहुत कुछ और कर लेंगे तो क्रिकेट खेल लेंगे इंग्लैंड में लेकिन फुटबॉल बहुत कम खेलते मिलेंगे. यहां की जो नेशनल टीम है उसमें आपको साउथ ईस्ट एशियन बैकग्राउंड वाले खिलाड़ी नहीं दिखेंगे. पता नहीं इसका कारण क्या हैं लेकिन रग्बी और फुटबॉल खेलते बहुत कम देखने को मिलते है.”
स्मिता कहती हैं, “आज भारत में फुटबॉल में बाइचुंग भूटिया और सुनील छेत्री के अलावा अन्य नामों को नहीं सोच पाती हूं लेकिन जैसे ही जैवलिन में नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में पदक जीता, तो देश में हर कोई जैवलिन के बारे बात करने लगा. भारत में थोड़ा बहुत फुटबॉल को लेकर जोश है. कतर में हो रहे विश्वकप को लेकर भले ही कितनी आलोचना हुई हो लेकिन विश्वभर में फुटबॉल को लेकर जो उत्साह और जोश देखने को मिला वह सबसे अलग है.
शार्दुल कहते हैं, “मुझे खेल की ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन हो सकता है कि हमारी तरह साउथ अमेरिकी देशों के इक्वेटर के पास होने के कारण ऐसा हो."
इस विषय के विभिन्न पहलुओं के अलावा कोरोना वायरस के नए वेरिएंट को लेकर बड़ी चिंताओं पर भी विस्तृत बात हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
00:00:00 - 00:14:02 - इंट्रो, हेडलाइंस और जरूरी सूचना
00:14:02 - 00:35:05 - फीफा वर्ल्ड कप में अर्जेंटीना की जीत
00:35:05 - 01:09:14 - कोरोना वायरस
01:09:14 - 01:14:00 - व्लादिमीर जेलेंस्की की बाइडेन से मुलाकात
1:14:00 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
शार्दूल कात्यायन
जैव विविधता क्या है और हम इसकी रक्षा कैसे कर रहे हैं? - बीबीसी
चीन की विनाशकारी तेल और गैस समस्या - रियललाइफलोर यूट्यूब चैनल
यूक्रेन पर युद्ध - रूसी कब्जे के बाद खेरसॉन में जीवन - डीडब्ल्यू डॉक्यूमेंट्री
हाल ही में फ्यूज़न रिएक्शन से ऊर्जा प्राप्त करने में नई सफलता पर लेख
स्मिता शर्मा
लेट्स टॉक पॉलिसी - डिजिटल डाटा प्रोटेक्शन बिल 2022
लुका चिआवोली की किताब: मेसी- द इनसाइड स्टोरी ऑफ द बॉय हू बिकम ए लेजेंड
अविरल वत्स
बीबीसी की सीरीज - फ्रोजन प्लेनेट
एमआरएनए और क्रिसपर टेक्नोलॉजी के बारे में पढ़े
मलयज मिश्रा
फायर इन द ब्लड - डॉक्यूमेंट्री
अतुल चौरसिया
अनिल यादव की किताब - कीड़ाजड़ी
फुटबॉल विश्वकप का फाइनल मैच देखें
***
***
प्रोड्यूसर- चंचल गुप्ता
एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह
Also Read
-
Long hours, low earnings, paying to work: The brutal life of an Urban Company beautician
-
Why are tribal students dropping out after primary school?
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
‘Opaque editorial decisions, by design’: BBC staff’s open letter on Israel-Palestine coverage