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दैनिक भास्कर को मिलने वाले सरकारी विज्ञापनों की संख्या घटकर आधी हुई

पिछले हफ्ते की शुरुआत में नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद में अपने विज्ञापनों के खर्च का ब्यौरा जारी किया. न्यूज़लॉन्ड्री ने भी इस मामले में गुरुवार को अपनी रिपोर्ट में बताया कि किस-किस समाचार प्रसारक ने इन विज्ञापनों से कितना राजस्व हासिल किया.

सरकार द्वारा प्रिंट मीडिया में विज्ञापनों पर किया गया खर्च भी अब सार्वजनिक हो चुका है. आंकड़ों की माने तो हिंदी दैनिक, दैनिक भास्कर के विज्ञापन राजस्व में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 में 47 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. 

यह गिरावट साल 2021 के अप्रैल और मई माह के कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर पर दैनिक भास्कर की व्यापक रिपोर्टिंग के साथ-साथ चलती है. एक अनुमान के अनुसार इस कोरोना महामारी ने भारत में 10 लाख से अधिक लोगों की जान ले ली थी. दैनिक भास्कर की रिपोर्टिंग में मोदी सरकार द्वारा इस संकट से निपटने के तौर- तरीकों को आलोचनात्मक तरीके से उजागर किया गया था.

यह आंकड़े कांग्रेस नेता नारण भाई राठवा के एक सवाल के जवाब में सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में पेश किए गए थे. मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2020 और मार्च 2022 के बीच केंद्र सरकार द्वारा समाचार पत्रों को दिए गए विज्ञापनों का पब्लिकेशन-वाईज ब्रेकअप प्रदान किया गया.

2020-21 में, भास्कर ने सरकार के विज्ञापनों से 5.95 करोड़ रुपए की कमाई की. वहीं 2021-22 में यह आंकड़ा घटकर 3.15 करोड़ रुपए तक आ गया. इसी तरह, इसके गुजराती दैनिक दिव्य भास्कर का विज्ञापन राजस्व 2020-21 में 1.07 करोड़ रुपए से गिरकर 68 लाख रुपए तक आ गया.

भास्कर के प्रतिस्पर्धी दैनिक जागरण, जो शायद ही कभी सरकार के प्रति अपने झुकाव को छुपाता है, ने कभी भी विज्ञापन राजस्व में इस कदर गिरावट नहीं देखी. जागरण को साल 2020-21 में केंद्र सरकार के विज्ञापनों से 13.1 करोड़ रुपए और साल 2021-22 में 12.47 करोड़ रुपए मिले.

टाइम्स समूह के हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स का विज्ञापन राजस्व 3.87 करोड़ रुपए से घटकर 3.58 करोड़ रुपए हो चुका है. वहीं हिंदुस्तान टाइम्स समूह के हिंदुस्तान का विज्ञापन राजस्व 5.22 करोड़ रुपए से घटकर 5 करोड़ रुपए हो चुका है.

एक और हिंदी दैनिक, अमर उजाला ने मोदी सरकार के विज्ञापन से मिलने वाले राजस्व में वृद्धि दर्ज की है. यह वित्त वर्ष 2020-21 में 4.73 करोड़ रुपए से बढ़कर 2021-22 में 5.19 करोड़ रुपए हो चुका है.

न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा शीर्ष स्तर के जिन 12 हिंदी समाचार पत्रों पर नज़र डाली गयी, उनमें भास्कर 2020-21 में केंद्र सरकार से सबसे ज्यादा विज्ञापन राजस्व हासिल करने वालों में दूसरे स्थान पर रहा. इस दौड़ में वह केवल जागरण से पीछे था. हालांकि, 2021-22 में, जिस साल आयकर विभाग द्वारा इस पर छापा मारा गया, यह नवभारत टाइम्स से भी नीचे लुढ़ककर 5वें स्थान पर आ गया.

समाचार के कारोबार में सरकारी विज्ञापन एक आवश्यक राजस्व स्त्रोत है. 2020 से 2022 तक इस खेल में जागरण का दबदबा बरकरार रहा. इसके बाद हिंदुस्तान, अमर उजाला और नवभारत टाइम्स कतार में है.

इस सूची में शामिल होने वाला एकमात्र उर्दू दैनिक इंकलाब है, जो जागरण समूह की संपत्ति है. समूह की अंग्रेजी संपत्ति, मिड डे को दो सालों के भीतर केंद्र सरकार के विज्ञापनों से 48 लाख रुपए मिले हैं.

इंडियन रीडरशिप सर्वे के अनुसार दैनिक जागरण, भारत का सबसे ज्यादा वितरित दैनिक अखबार है. लेकिन ज्यादा सर्कुलेशन विज्ञापन के पैसे की गारंटी नहीं है. इस बात का जीता-जागता सबूत है उन अंग्रेजी अखबारों द्वारा सरकारी विज्ञापन से प्राप्त की जाने वाली बड़ी आमदनी, जिनकी पहुंच हिंदी दैनिकों की पहुंच के एक बहुत छोटे अंश के बराबर है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार टाइम्स ऑफ इंडिया ने 2020 और 2022 के बीच मोदी सरकार के विज्ञापनों से 35 करोड़ रुपए हासिल किए, जो कि देश के किसी भी अन्य समाचार पत्र से ज्यादा है. टाइम्स ग्रुप के समाचार चैनलों और उनको प्राप्त होने वाले निराशाजनक विज्ञापन राजस्व की तुलना में यह अखबार टाइम्स समूह की पैसा छापने वाली मशीन है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के बाद हिंदुस्तान टाइम्स का नंबर आता है, जिसके द्वारा सरकारी विज्ञापनों से 24 करोड़ रुपए हासिल किए गए. हिंदू 6.65 करोड़ रुपए के साथ तीसरे स्थान पर रहा और उसके बाद हैदराबाद स्थित डेक्कन क्रॉनिकल 6.5 करोड़ रुपए के साथ तीसरे स्थान पर है.

इस अवधि में इंडियन एक्सप्रेस मोदी सरकार से विज्ञापनों में 2 करोड़ रुपए जुटाने में सफल रहा. इसकी व्यावसायिक पेशकश, फाइनेंशियल एक्सप्रेस, ने 32.7 लाख रुपए और इसके हिंदी दैनिक, जनसत्ता ने लगभग 14 लाख रुपए हासिल किए.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस विज्ञापन राजस्व की इस दौड़ में चंडीगढ़ स्थित ट्रिब्यून और कर्नाटक स्थित डेक्कन हेराल्ड से पीछे रहा और 1.5 करोड़ रुपए कमाने में सफल रहा.

पिंक पेपर्स में, इकोनॉमिक टाइम्स ने 1.29 करोड़ रुपए के साथ सबसे ज्यादा विज्ञापन राजस्व हासिल किया. इसके बाद हिंदू बिजनेसलाइन ने 42 लाख रुपए और बिजनेस स्टैंडर्ड ने 32.7 लाख रुपए प्राप्त किए.

कोलकाता स्थित दैनिक समाचार पत्रों में, द स्टेट्समैन ने टेलीग्राफ को पछाड़ दिया. जहां द स्टेट्समैन को केंद्र सरकार से विज्ञापनों के लिए 2 करोड़ रुपए मिले वहीं टेलीग्राफ ने केवल 1.1 करोड़ रुपए प्राप्त किए.

यह रिपोर्ट रीत साहनी और आंचल पोद्दार की मदद से तैयार की गई है.

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