Gujarat and Himachal Elections

गुजरात मॉडल, जिसकी सीमा इन गांवों से पहले ही समाप्त हो जाती है

नर्मदा जिले का डेडियापाड़ा विधानसभा क्षेत्र. डेडियापाड़ा बाजार से करीब 20 किलोमीटर दूर एक गांव है, बेबार. यहां पहुंचने के लिए हम गाड़ी से निकलते हैं तो गांव से 10 किलोमीटर दूर ही हमें अपनी गाड़ी रोक देनी पड़ती है. यहां से गड्ढे में सड़क है या सड़क में गड्ढे, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है.

पास के एक किसान की बाइक पर बैठकर हम बेबार गांव निकले. हमें ले जा रहे किसान कहते हैं, “अभी तो यह रास्ता ठीक है. आप बरसात में आइये. चलना मुश्किल हो जाएगा. इधर के गांव में कोई बीमार पड़ता है तो 108 एम्बुलेंस तक नहीं आ पाती है.”

गांव पहुंचने पर हमारी मुलाकात गुमान वसावा से हुई. 18 वर्षीय गुमान हमें गांव घुमाते हैं और यहां की समस्याओं से अवगत कराते हैं. गुमान को सुनते हुए भरोसा करना मुश्किल हो जाता है कि यह गुजरात का कोई गांव है. वही गुजरात, जिसके विकास मॉडल की चर्चा कर भाजपा केंद्र में और देश के अन्य राज्यों में सरकार बना चुकी है.

गांव की स्थिति अगर एक वाक्य में बतानी हो तो कह सकते हैं कि यहां इंसान के जीवन के लिए मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं.

सड़क की स्थिति तो हम खुद देखकर ही आये थे. सड़क की खराब हालत को लेकर गुमान कहते हैं, “हमारे यहां कई बार ऐसा हुआ कि किसी महिला को बच्चा होने वाला था. 108 पर एंबुलेंस के लिए फोन किया गया तो वे आधे रास्ते में रुक जाते हैं. ऐसे में कंधे पर लेकर हमें एंबुलेंस तक जाना पड़ता है. ज्यादातर समय तो घर पर ही बच्चा हो जाता है.”

सड़क के बाद स्वास्थ्य की बात करें तो गांव में एक छोटा सा अस्पताल है. गुमान ने बताया कि अस्पताल तो बन गया लेकिन उसमें डॉक्टर कभी नहीं आते हैं. इस दावे की हकीकत जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब अस्पताल पहुंची तो उसका ताला बंद मिला. अस्पताल के कैंपस में पुआल रखा हुआ था. अंदर झांक कर हमने देखा तो गंदगी का अंबार था. अस्पताल को देखकर लग रहा था कि महीनों पहले कभी खुला होगा.

गांव में घूमते हुए हमें नल-जल योजना के तहत लगे नल दिखाई दिए लेकिन महिलाएं अन्य नल से पानी भरकर ले जाती नजर आईं. गुमान से हमने पूछा कि नल लगा हुआ है, फिर भी लोग पानी भरकर क्यों ले जा रहे हैं? तो उसने एक के बाद एक नल चलाकर दिखाया कि उनमें से किसी में कभी पानी नहीं आता है. नल लग गए लेकिन उससे कभी पानी नहीं आया.

सड़क, पानी और स्वास्थ्य के बाद शिक्षा की स्थिति जानने के लिए हम गांव के सरकारी स्कूल पहुंचे. यहां सरकारी स्कूल पांचवी कक्षा तक ही है. पांचवी तक के बच्चों के पढ़ाने के लिए सिर्फ दो शिक्षक हैं. यहां कुल 90 छात्र पढ़ते हैं. स्कूल के प्रिंसिपल ने कैमरे पर बात करने से इंकार कर दिया. गुमान ने सरकारी स्कूल की हालत बताते हुए कहा कि पांचवी तक किस तरह पढ़ाई होती है, उसका हाल तो आपने देख लिया. पांचवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए 15 किलोमीटर से ज्यादा दूर जाना होता है. ऐसे में ज्यादातर लोग पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं. स्कूल दूर होने का सबसे ज्यादा नुकसान लड़कियों को होता है. हमारे गांव में अब तक सिर्फ तीन लड़कियां कॉलेज तक पहुंची हैं.

गांव में लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. ऐसा नहीं है कि सरकारी शौचालय लोगों के घरों में नहीं बना. गुमान हमें यहां बने कुछ शौचालय दिखाते हैं. शौचालय के अंदर लोगों के बर्तन रखे नजर आते हैं. वे कहते हैं कि इतना बेकार बनाया गया कि लोग इसका इस्तेमाल नहीं कर पाये. शौच के लिए हमारे यहां सब बाहर ही जाते हैं.

गांव में पहुंचते हुए एक बुजुर्ग ने हमें बताया था कि चुटनी (चुनाव) है तो बिजली आई है. हमें हैरानी हुई कि सरकार तो दावा करती है कि गांव-गांव बिजली पहुंचा दी है. हम गुमान से बिजली को लेकर पूछते हैं तो वे कहते हैं, “हमारे यहां बिजली मेहमान की तरह आती है, छह महीने में एक बार. अगर देखा जाए तो साल में दो महीने से ज्यादा बिजली नहीं रहती है. गांव में बिजली नहीं होने का सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं और पढ़ाई करने वालों को होता है. कोरोना के समय में जब ऑनलाइन ही पढ़ाई का माध्यम था, तब तो हमें खूब दिक्क्त हुई. हमारा गांव अंधेरे में रहता है.”

गुमान की बातों को हम उनके साथ घूम कर देखते हैं. गांव के दूसरे लोगों से भी बात करते हैं. सब गुमान की बताई कहानी को ही दोहराते हैं.

गांव की सरपंच भाजपा से जुड़ी हैं. उनके पति का हाल ही में निधन हुआ, ऐसे में वो हमसे बात नहीं करती हैं. उनके देवर अमर सिंह से जब हमने बदहाल स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी और बिजली को लेकर सवाल किया तो वो कहते हैं, “सड़क का तो जल्द ही निर्माण होने वाला है. वहीं अगर पानी की बात करे तो यहां ग्राउंड वाटर है नहीं, तो पानी की दिक्कत आती है. बिजली की बात करें तो उसमें भी दिक्कत है क्योंकि ग्राउंड वायर के जरिए बिजली आती है तो इसमें फाल्ट आ जाता है.”

आपके गांव में है क्या? आपके यहां विकास नहीं पहुंचा. इस सवाल पर सिंह चुप हो जाते हैं. ठीक ऐसे ही विकास इस गांव से पहले रुक गया है लेकिन यह सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है. नर्मदा जिले के कई गांवों में अभी भी लोग मूलभूत सुविधाओं के बिना जीवन बसर कर रहे हैं.

यहां देखिए गुमान के साथ उनके गांव की यात्रा.

यह एक विज्ञापन नहीं है. कोई विज्ञापन ऐसी रिपोर्ट को फंड नहीं कर सकता, लेकिन आप कर सकते हैं, क्या आप ऐसा करेंगे? विज्ञापनदाताओं के दबाव में न आने वाली आजाद व ठोस पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें. सब्सक्राइब करें.

Also Read: गुजरात चुनाव: नरेंद्र मोदी, जमीन घोटाले और बिलकिस बानो पर क्या सोचती हैं अनार पटेल

Also Read: गुजरात चुनावों में बेअसर नजर आता उना दलित आंदोलन