Gujarat and Himachal Elections
गुजरात चुनाव: कैसे टूटा 'आप' और बीटीपी का गठबंधन और क्या है मौजूदा स्थिति?
गुजरात में लगभग 15 प्रतिशत आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. यहां आदिवासियों के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं, भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के छोटू वसावा. हालांकि 2022 विधानसभा चुनाव में छोटू वसावा अपनों से ही घिर गए.
2017 में बनी बीटीपी, उसी साल हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ने दो सीटों पर जीत दर्ज की. झगड़िया से जहां खुद छोटू भाई वसावा चुनाव जीते वहीं डेडियापाड़ा से उनके बेटे महेश भाई वसावा ने जीत दर्ज की. यह दोनों रिजर्व सीटें हैं. छोटू भाई, साल 1990 से लगातार झगड़िया से चुनाव जीत रहे हैं.
इस बार तब हैरान करने वाली स्थिति बन गई जब उनके बेटे महेश भाई वसावा झगड़िया से मैदान में उतर गए. यह सब हुआ तब हुआ जब चैतर वसावा ने डेडियापाड़ा से चुनाव लड़ने का फैसला किया. दरअसल बीटीपी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष रहे चैतर, सरकारी नौकरी छोड़ क्षेत्र में आदिवासी समाज के लिए लगातार काम कर रहे हैं.
वे बताते हैं, ‘‘महेश भाई यहां से चुनाव जीते उसमें मेरी बड़ी भूमिका थी. वो यहां के रहने वाले तो हैं नहीं. यहां का सारा काम मैंने देखा था. इस बार मुझे चुनाव लड़ना था. यह बात मैंने पार्टी को बता दी थी. महेश भाई इसके पक्ष में नहीं थे. मैंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया. उसके बाद वो समझ गए कि अगर यह चुनाव लड़ेगा तो उनका जितना मुश्किल होगा. उन्होंने अपना जीता हुआ मैदान छोड़ दिया. मैं चुनाव लड़ रहा था तभी आम आदमी पार्टी के लोगों ने कहा कि हमारी पार्टी से लड़ लो. तो मैं लड़ लिया.’’
34 वर्षीय चैतर वसावा, डेडियापाड़ा में बेहद लोकप्रिय हैं. उनकी छवि आदिवासी समुदाय के हित में लड़ने वालों की है. डेडियापाड़ा के बाजार में मिले पार सिंह कहते हैं, ‘‘हम यहां चैतर भाई को वोट कर रहे हैं न कि आप को.’’
स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी के निर्माण के समय आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा था तब चैतर ने लड़ाई लड़ी. नतीजतन उन्हें जेल में डाल दिया गया. वो अपने आठ वर्षीय बेटे को दिखाते हुए कहते हैं, ‘‘इसे भी जेल ले गए थे. ये भी दो दिन वहां रहा था.’’
बीटीपी का पहले आम आदमी पार्टी से गठबंधन था. हालांकि चुनाव से पहले यह गठबंधन टूट गया. इसको लेकर चैतर कहते हैं, ‘‘हम लोग गठबंधन में काम कर रहे थे. छोटू भाई दिल्ली जाकर आप का काम भी देख आये थे. जब चुनाव करीब आया तो इन्होंने आप से 40 सीटों की मांग की. जो पार्टी दो सीटों पर चुनाव जीती है. वो 40 सीटें मांग रही थी. आप ने नहीं दी. उसके बाद गठबंधन से अलग हो गए. छोटू भाई, कभी कांग्रेस के साथ हो जाते हैं कभी भाजपा के साथ. राज्यसभा चुनाव में जो ज्यादा पैसा दे दे उसी को वोट कर देते हैं. उनसे तो उनका परिवार नहीं संभला, समाज क्या संभालेंगे. उनका टिकट ही महेश भाई ने काट दिया था.’’
चैतर कहते हैं कि भाजपा सरकार में आदिवासियों के हित में कोई काम नहीं हुआ. यहां 29 स्कूल ऐसे हैं जहां सिर्फ एक शिक्षक है. कॉलेज नहीं है. हमारे यहां इलाज की सुविधा नहीं है. सड़कें नहीं हैं. आज भी गांवों में 108 एंबुलेंस की सुविधा नहीं है. आज भी हमारे यहां महिलाएं जंगल से लकड़ी काटकर लाती हैं तब खाना बनता है. मुझे ये सब दूर करना है.
आखिर क्यों छोटू भाई अपनों से घिर गए, क्यों उनके खिलाफ उनका ही बेटा मैदान में उतर गया. आदिवासियों के लिए भाजपा सरकार ने क्या काम किया. क्या आप भाजपा को जीताने के लिए मैदान में है. इन सब सवालों के साथ ही अन्य मुद्दों पर चैतर से पूरी बातचीत सुने.
पूरी बातचीत देखिए-
Also Read
-
India’s real war with Pak is about an idea. It can’t let trolls drive the narrative
-
How Faisal Malik became Panchayat’s Prahlad Cha
-
Explained: Did Maharashtra’s voter additions trigger ECI checks?
-
‘Oruvanukku Oruthi’: Why this discourse around Rithanya's suicide must be called out
-
Hafta letters: ‘Normalised’ issues, tourism in EU, ideas for letters