Gujarat and Himachal Elections
गुजरात चुनावों में बेअसर नजर आता उना दलित आंदोलन
“न न, भाजपा को वोट नहीं देंगे! उन्होंने क्या किया हमारे लिए? छह साल बीत गए लेकिन अब भी दर्द होता है. ये दवाई देख रहे हैं आप? हर महीने दवाई पर छह सौ रुपए खर्च होते हैं.”
गुजराती भाषा में बेहद तेजी से यह बात बालु भाई सरवैया कहते हैं. उनके भतीजे कांति भाई सरवाहिया हमारे लिए हिंदी में अनुवाद करते हैं.
साल 2017 के विधानसभा चुनावों के समय बालु भाई सरवैया और उनके परिजनों पर हुए अत्याचार की चर्चा आम थी. दरअसल 11 जुलाई 2016 को, मरी हुई गायों की चमड़ी निकालते वक़्त कथित गोरक्षकों ने सरवैया के बेटे वश्राम और भतीजों पर हमला कर दिया था. वे उन्हें मारते हुए उना पुलिस स्टेशन ले गए थे.
कपड़े उतार कर अधमरा होने तक इन सबकी पिटाई की गई थी. इस घटना के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए, जिसके बाद गुजरात में बड़े स्तर पर दलित समाज के लोग सड़कों पर उतर आए. जिग्नेश मेवाणी और दूसरे नेताओं के नेतृत्व में दलित आंदोलन भी चला. इस सबके परिणामस्वरूप तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
यह मामला राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बना था. गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के उना तालुका के मोटा समाधियाला गांव में तमाम बड़े नेता पहुंचे. पीड़ितों से मिलने अस्पताल गए, लेकिन आज छह साल बाद पीड़ित अपनी लड़ाई अकेले ही लड़ रहे हैं. सरकारी वादा, बस वादा ही रहा.
बालु भाई सरवैया का परिवार लंबे समय से मृत पशुओं का चमड़ा उतारने के पेशे से जुड़ा हुआ था. घटना के बाद यहां अस्मिता यात्रा निकली जिसमें फैसला लिया गया कि अब दलित समुदाय का कोई भी व्यक्ति मरे हुए जानवरों को नहीं उठाएगा. यहां दलित समुदायों के बीच काम के इलाके बंटे हुए थे. बालु भाई के परिवार के पास तक़रीबन 35 गांव थे. इन गांवों में किसी की भी मवेशी मरने पर वे इन्हें बुला भेजते थे. ये लोग उन मवेशियों को उठाकर लाते और उनका चमड़ा उताकर बेचा करते थे. सालों से यह सिलसिला चला आ रहा था पर तथाकथित गौरक्षकों द्वारा पिटाई करने की घटना के बाद यहां के दलितों ने यह काम नहीं करने का फैसला लिया.
घटना स्थल को दिखाते हुए कांति भाई बताते हैं, “हमने उसी समय से यह काम छोड़ दिया. हमने ही नहीं उना के तमाम दलितों ने यह काम छोड़ दिया. एक आदमी ने यह काम जारी रखा तो उसे समाज ने बाहर कर दिया. अब जिसका भी मवेशी मरता है, या तो नगरपालिका वाले उठाते हैं या वे खुद ही फेंकते हैं. पहले हम लोग पहाड़ों के अंदर ले जाकर फेंकते थे. अब आपको सड़कों पर मरे हुए जानवर मिल जायेंगे.”
कांति भाई आगे कहते हैं, “काम न करने से हमारा ये नुकसान हुआ कि दूसरी जगह हमें मजदूरी तलाशनी पड़ती है. लेकिन उस समय जो हुआ वो भयावह था. वे हमें जान से मार देना चाहते थे. जब वो मेरे भाइयों को मार रहे थे तब मैं वहां पहुंचा था, वे मुझे भी मारने के लिए दौड़े. मैं तालाब में कूद गया. जैसे तैसे वहां से निकलकर घर आया और घर वालों को लेकर गया. घरवालों को भी उन्होंने पीटा.”
इस मामले में 45 आरोपी बनाए गए थे. बालु भाई बताते हैं कि, “एक-एक करके सब छूटते गए. वीडियो में जो लोग मारते हुए दिखाई दिए, वे भी बाद में जमानत पर बाहर आ गए. ज़मानत में शर्त थी कि वे गिर सोमनाथ जिले में नहीं आएंगे, हमारे परिवार के लोगों से नहीं मिलेंगे. लेकिन वे खुलेआम उना में घूमते थे. एक रोज उन्होंने मेरे बेटे वश्राम सरवैया को रोक कर धमकी दी. कहा कि पिटाई भूल गए या याद है? केस वापस ले लो नहीं तो दोबारा वही हाल करेंगे.”
वश्राम ने इस घटना का वीडियो बना लिया. वे न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, “उना पुलिस स्टेशन के पास में ही उन्होंने मुझे धमकी दी थी. मैंने वीडियो बनाकर पुलिस में शिकायत दी. जिसके बाद पुलिस ने प्रमोद गिरी, बलवंत गिरी और शैलेश बामवडिया को जेल भेज दिया गया.”
यह मामला अभी भी अदालत में चल रहा है. मामले की पैरवी करने वाले वकील प्रतीक रूपला ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि, “मामला अभी गिर सोमनाथ के जिला अदालत में चल रहा है. अभी गवाहों की पड़ताल करना बाकी है. अभी कोई फैसला नहीं आया है.’’
इस घटना के करीब दो साल बाद वश्राम के परिवार ने बौद्ध धर्म अपना लिया. वे कहते हैं, “जब वो हमें मार रहे थे तो कह रहे थे कि तुम हिंदू नहीं हो. जब वो हमें हिंदू मानते ही नहीं तो हम उस धर्म में क्यों रहें? अब हम बौद्ध धर्म अपना चुके हैं. कोई भी हिंदू त्योहार नहीं मनाते हैं. गांव में किसी को इससे ऐतराज नहीं है. गांव के लोगों से कोई परेशानी भी नहीं है.”
वादे तो खूब हुए पर हासिल कुछ नहीं
पिटाई का जो वीडियो वायरल हुआ था उसमें वश्राम को देखा जा सकता है. घटना के समय उन्होंने 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. आंदोलन ने वश्राम को बदल दिया. वे अब कानून की पढ़ाई कर रहे हैं.
वश्राम न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “उस समय हमसे सरकार ने खूब वादे किए. आनंदीबेन पटेल तब मुख्यमंत्री थीं. अस्पताल में हमसे मिलने आईं तो कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाकर छह महीने के अंदर न्याय दिलाया जाएगा. हमें रोजगार और जमीन देने के लिए कहा था. अभी तक इसमें से कुछ नहीं हुआ. आज छह साल बाद भी हम न्याय के लिए भटक रहे हैं. हमारा धंधा रुक गया है.”
ऐसा नहीं कि उना आंदोलन के बाद गुजरात में दलितों पर होने वाले अत्याचार बंद हो गए. प्रदेश में करीब आठ प्रतिशत आबादी दलित समुदाय की है. जहां एक तरफ 27 साल से सत्ता पर काबिज भाजपा गुजरात मॉडल का बखान करते नहीं थकती, वहीं एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि दलितों के खिलाफ हुई हिंसा साल 2017 में 1477, साल 2018 में 1426, साल 2019 में 1416 और साल 2020 में 1326 मामले दर्ज हुए. यानी इन चार सालों में 5,645 मामले दर्ज हुए. इन मामलों में 5049 लोगों को आरोपी बनाया गया और 91 लोगों पर आरोप साबित हुए.
यहां अक्सर दलितों की बारात पर पत्थरबाजी, दूल्हे के घोड़ी चढ़ने पर रोकने जैसे मामले सामने आते हैं. वश्राम कहते हैं कि आए दिन दलितों की हत्या की खबर आती है, लड़कियों का रेप होता है. यह सब भाजपा सरकार में होता है. ऐसे में हम भाजपा को कैसे वोट करेंगे?
चुनावों में लोग भूले उना की घटना
उना में हुई घटना के बाद न सिर्फ मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा बल्कि भाजपा को 2017 विधानसभा चुनावों में कई सीटों का नुकसान भी हुआ.
गुजरात में 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक भाजपा साल 1995 से इनमें से ज्यादातर सीटें जीतती आ रही है. इनमें से 2007 विधानसभा चुनावों में 11 तो साल 2012 के चुनावों में 10 सीटें भाजपा जीती थी, जबकि कांग्रेस ने इस दौरान क्रमशः दो और तीन सीटें जीती थीं.
2016 में उना की घटना हुई और उसके अगले साल हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को नुकसान हुआ, और वो केवल सात सीटें जीतने में सफल रही. वहीं कांग्रेस ने पांच सीटें जीतीं और एक सीट कांग्रेस समर्थित निर्दलीय जिग्नेश मेवाणी ने जीती थी.
पांच साल बाद एक बार फिर गुजरात में चुनाव होने जा रहे हैं. यहां दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जयराम भाई से हमारी मुलाकात हुई. किराने की दुकान चलाने वाले जयराम से जब हमने उना में हुई घटना के असर को लेकर सवाल किया, तो उन्होंने कहा, “अब काफी समय गुजर गया है. जिन्होंने मारा वो जेल में हैं. मेरा परिवार भाजपा को वोट करता रहा है लेकिन पिछले चुनाव में हमने नाराजगी में कांग्रेस को वोट किया था. इस बार फिर भाजपा को वोट करेंगे क्योंकि यहां से जो भाजपा का उम्मीदवार है वो बिना विधायक रहे सबकी मदद करते हैं.”
कांग्रेस ने वर्तमान विधायक पुंजाभाई को उना से उम्मीदवार बनाया है और भाजपा ने कलुभाई को. पुंजाभाई यहां से लंबे समय से चुनाव जीतते आ रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 नवंबर को गिर सोमनाथ में प्रचार करने पहुंचे थे. यहां पूरे जिले से लोग आये थे. यहां हमारी मुलाकात कोडिनार के रहने वाले भवानी सरोहिया से हुई. गले में भाजपा का पट्टा लटकाए भवानी भाई से जब हमने उना हादसे को लेकर सवाल किया, तो वे जयराम की तरह इसे पुराना मुद्दा बताते हैं.
वे कहते हैं, “देखिए उस वीडियो को यहां कोई भी दलित नहीं भूल सकता है? बर्बर था. लेकिन अब उसका असर नहीं है. यहां दलित तो भाजपा और कांग्रेस से इतर आम आदमी पार्टी में भी उम्मीद देख रहे हैं. 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की बात की है. इन दोनों को ही लंबे समय से हम लोग मौका दे रहे हैं. एक बार आप को भी मौका देना चाहिए.”
सूरत के पूनागांव इलाके में जूता सिलने की दुकान चलाने वाले अरविंद भाई साफ कहते हैं, “हम तो भाजपा वाले हैं. जब तक मोदी साहेब हैं, तब तक किसी और को नहीं देंगे.”
अहमदाबाद में सप्ताहिक अभियान पत्रिका निकालने वाले नरेश मकवाना भी मानते हैं कि उना आंदोलन का असर इस बार नहीं है. वे कहते हैं, ‘‘यह मामला अभी ठंडा पड़ चुका है. घटना के समय इसका जो असर था, अब उसके उलट चल रहा है. यहां पर भाजपा की दलितों को लेकर जो सोशल इंजीनियरिंग है, वो बहुत ही मजबूत है. यहां भाजपा के बड़े दलित नेता शंभू प्रसाद टुंडिया हैं. उनका दलित समाज पर काफी कंट्रोल है.”
मकवाना आगे कहते हैं, “यहां पर ‘गरीब कल्याण’ मेला होता था, जिसमें टुंडिया और दूसरे भाजपा के दलित नेता गरीबों को छोटी-मोटी चीजें देते थे. यहां दलित बेहद गरीब है. उन्हें रोजगार के लिए भटकना पड़ता है. तो ये लोग इस मेले में कुछ भी देते है तो उसकी मार्केटिंग बढ़ा चढ़ाकर करते हैं. वहीं एक चीज और देखने को मिलती है कि यहां जनता कांग्रेस को जिताती है. आगे चलकर वो भाजपा में शामिल हो जाते हैं. इस कारण जनता में भी यह बात आ गई है कि जब उन्हें भाजपा में ही शामिल हो जाना है, तो क्यों न उन्हें ही वोट करें. ऐसे में कह सकते हैं कि ज्यादातर दलित उस घटना को भूलकर भाजपा में ढल चुका है. आदिवासी समाज के वोट पर भी कांग्रेस की पकड़ है लेकिन दलितों में कम हो गई है.”
दलितों के भाजपा से जुड़ाव का एक और कारण बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों का काम है. उना के कई गांवों में जहां शिक्षा स्तर बेहद खराब स्थिति में है, रोजगार के लिए युवा दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं. वहीं बातचीत में वे हिंदू राष्ट्र की मांग करते नजर आते हैं. वे इसको लेकर ‘सनातन धर्म’ और दूसरे नामों से व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हुए हैं. दिन भर उनमें मुस्लिम विरोधी और आधारहीन इतिहास के मैसेज साझा करते रहते हैं.
वे महिलाएं जो राजनीतिक रूप से ज्यादा सक्रिय नहीं हैं, वे कोरोना काल में भारत सरकार द्वारा पांच सौ रुपए महीने की आर्थिक मदद और मुफ्त अनाज दिए जाने के कारण भाजपा को वोट देने की बात करती नजर आती हैं. यहां ज़्यादातर लोग भाजपा को नहीं प्रधानमंत्री मोदी को वोट देते हैं.
वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के बुजुर्ग अभी भी कांग्रेस के साथ हैं. जैसे बालुभाई के भाई करसन भाई चुनाव में वोट देने के सवाल पर कहते हैं, “हम तो इंदिरा गांधी वाले को देंगे, यानी कि कांग्रेस को.” ऐसे ही उना में चाय की दुकान पर बैठे 65 वर्षीय हरि भाई कहते हैं, “हमें जो दिया वो इंदिरा गांधी ने दिया है. हम उनकी ही पार्टी को वोट करेंगे.”
उना आंदोलन को नेतृत्व देने वाले जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. इस बार वे फिर से वडगाम सीट से मैदान में हैं. आंदोलन के समय सक्रिय रहे पप्पू भाई, आज मेवाणी के साथ हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए पप्पू कहते हैं, “जहां भी सम्मान की बात आएगी, दलित उस घटना और आंदोलन को ज़रूर याद करेंगे. वो भूलने वाली बात नहीं है. वोट देते वक़्त भी दलित समुदाय के लोग सब याद रखेंगे. पहले का समय कुछ और था. आज दलित समुदाय सम्मान से समझौता नहीं कर रहा है.”
गुजरात चुनाव को लेकर दो चरणों में मतदान होना है. पहले चरण का मतदान 1 दिसंबर को और दूसरे चरण का 5 दिसंबर को. चुनावों के नतीजे 8 दिसंबर को आएंगे.
Also Read
-
‘They call us Bangladeshi’: Assam’s citizenship crisis and neglected villages
-
Why one of India’s biggest electoral bond donors is a touchy topic in Bhiwandi
-
‘Govt can’t do anything about court case’: Jindal on graft charges, his embrace of BJP and Hindutva
-
Reporter’s diary: Assam is better off than 2014, but can’t say the same for its citizens
-
‘INDIA coalition set to come to power’: RJD’s Tejashwi Yadav on polls, campaign and ECI