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आईटी मंत्री ने बताया: क्यों जरूरी है सूचना प्रौद्योगिकी नियमों में बदलाव
केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सरकार की दिलचस्पी "एक शिकायत अधिकारी की भूमिका निभाने की नहीं है", लेकिन चूंकि मध्यस्थों का शिकायत निवारण तंत्र “टूटा” हुआ है, इसलिए सरकार यह जिम्मेदारी "झिझकते हुए" अपने ऊपर ले रही है.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री की यह टिप्पणी सरकार द्वारा आईटी नियमों में संशोधन को अधिसूचित करने के एक दिन बाद आई. इन संशोधनों के जरिए सरकार, अब मध्यस्थों द्वारा लिए कंटेंट मॉडरेशन के निर्णयों से संबंधित शिकायतों पर निर्णय लेने के लिए एक शिकायत अपीलीय समिति नियुक्त करेगी. न्यूज़लॉन्ड्री ने पहले भी इन बदलावों से जुड़े कई सवालों पर रिपोर्ट की है.
इन प्रस्तावित समितियों ने सेंसरशिप को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं. हालांकि चंद्रशेखर ने सभी आरोपों का पुरजोर खंडन किया और कहा कि सरकार का ध्येय सभी उपयोगकर्ताओं के लिए इंटरनेट को खुला, सुरक्षित और जवाबदेह बनाना है.
इन समितियों की संरचना, कामकाज, शक्तियों के दायरे और अन्य विवरणों के बारे में कई सवाल उठाए गए, लेकिन केंद्रीय राज्य मंत्री ने अधिकांश सवालों को नजरअंदाज कर दिया और कहा कि ये विवरण सरकार द्वारा इनकी रूपरेखा तैयार करने के बाद जारी किए जाएंगे.
शिकायत निवारण के तंत्र की निष्क्रियता और अधिकारियों के उचित समय में जवाब न देने पर बात करते हुए उन्होंने कहा, "जीएसी (अपीलीय समितियां) एक अपीलीय निकाय के रूप में इस परिस्थिति में कार्य करेंगी जब उपभोक्ता, जो इंटरनेट में सबसे महत्वपूर्ण हितधारक हैं, मध्यस्थों द्वारा चलाई जा रही प्रक्रिया से असंतुष्ट हों … नागरिकों के लाखों संदेश हमारे पास आते हैं कि उन्हें उनकी शिकायत पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है, या उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है."
यह पूछे जाने पर कि क्या जीएसी के पास आपत्तिजनक कंटेंट का स्वतः संज्ञान लेने और उसके अनुसार मध्यस्थों को निर्देश देने का अधिकार होगा, चंद्रशेखर ने कहा कि फिलहाल सरकार को समितियों को ऐसी शक्ति देने की आवश्यकता नहीं दिखती.
'अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप का इरादा नहीं'
इतनी समितियां किस प्रकार गठित की जाएंगी और संभावित शिकायतों की बड़ी संख्या को देखते हुए क्या इन्हें क्षेत्रीय स्तर पर बनाया जाएगा? इन प्रश्नों पर मंत्री महोदय का कहना था कि समस्या यह है कि मध्यस्थों ने बड़ी मात्रा में शिकायतों का निपटारा करने की क्षमता विकसित ही नहीं की. उन्होंने कहा, "जीएसी मध्यस्थों के लिए एक अप्रेरक है, कि वे आपत्तिजनक कंटेंट पर कार्रवाई करने में अपने लापरवाह रवैये को सुधारें. यदि वह लोगों की बात नहीं सुनेंगे, तो सरकार को सुननी पड़ेगी.”
चंद्रशेखर ने कहा कि 2021 के आईटी नियमों द्वारा प्रदत्त मौजूदा शिकायत निवारण तंत्र, जिसके तहत किसी मध्यस्थ को एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करना होता था, अब "टूट" चुका है. “मैंने यह बार-बार कहा है: यह ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें दखल देने के लिए सरकार बहुत उत्सुक है. हम ऐसा बहुत झिझक के साथ कर रहे हैं और इसलिए कर रहे हैं क्योंकि डिजिटल नागरिकों के प्रति हमारा एक दायित्व और कर्तव्य है.”
चंद्रशेखर ने कहा कि भले ही जीएसी का निर्णय मध्यस्थों के लिए बाध्य हो, लेकिन यदि वे फैसले से असंतुष्ट हों तो उनके पास अदालत का दरवाजा खटखटाने का अधिकार है. उन्होंने कहा, "हम किसी भी तरह से अदालतों के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते."
हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या इसकी गुंजाइश है कि जीएसी एक स्व-नियामक निकाय के रूप में विकसित हो सके, जिसकी कमान उद्योग के हाथ में ही हो, जैसा कि कई उद्योग निकायों ने सुझाया भी था.
अस्पष्ट संरचना
चंद्रशेखर के हिसाब से जीएसी एक "महत्वपूर्ण संस्थान" है जिसकी "अलग संरचना" और "संस्थागत ढांचा" होगा. उन्होंने कहा कि मंत्रालय इस तरह के विवरण "बहुत जल्द" जारी करेगा, लेकिन उन्होंने कोई ठोस समय सीमा देने से इनकार कर दिया.
उन्होंने कहा कि जीएसी "एक डिजिटली होस्टेड प्लेटफॉर्म" होगा. शुरुआत के लिए सरकार एक या दो समितियों का गठन करेगी और "जैसे-जैसे उनकी आवश्यकता बढ़ेगी, उनका विस्तार किया जाएगा”.
अभी यह पता नहीं है कि ऑनलाइन मतभेद समाधान का यह तंत्र कैसा होगा, और शिकायतकर्ता और मध्यस्थ अपने मामलों को जीएसी के समक्ष प्रस्तुत करेंगे या नहीं, यदि करेंगे तो कैसे? क्या यह सब 28 जनवरी, 2023 तक हो पाएगा, जब संशोधित नियमों में निर्धारित तीन महीने की अवधि समाप्त हो रही है? यह भी स्पष्ट नहीं है कि क्या सरकार तीन महीने की अवधि के बाद और ज्यादा समितियों को अधिसूचित करेगी. चंद्रशेखर ने न्यूज़लॉन्ड्री के इन सवालों का सीधे तौर पर जवाब नहीं दिया.
दुष्प्रचार पर कार्रवाई, मानहानि पर नहीं
केंद्रीय मंत्री ने कहा, "गलत सूचना केवल मीडिया तक सीमित नहीं है, (बल्कि) पोर्न से लेकर ऑनलाइन सट्टेबाजी तक अवैध उत्पादों और सेवाओं का विज्ञापन भी गलत सूचना है. फिनटेक में भी दुष्प्रचार होता है जब उत्पादों और सेवाओं को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है. और निश्चित रूप से, किसी व्यक्ति विशेष के बारे में गलत जानकारी देना भी दुष्प्रचार है.”
हालांकि, मानहानिकारक सामग्री को ऐसे कंटेंट की सूची में नहीं रखा गया है जिसे हटाया जाना चाहिए. चंद्रशेखर ने कहा कि ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि बातचीत के दौरान यह सामने आया कि मानहानि सिद्ध करना एक जटिल कानूनी प्रक्रिया है जिसके लिए मध्यस्थों के पास साधन नहीं हैं.
उन्होंने दोहराया कि जिस गति से आपत्तिजनक कंटेंट वायरल होता है, उसे देखते हुए मध्यस्थों को कार्रवाई के लिए दिया गया 72 घंटे का समय पर्याप्त है. “मैं चाहता था कि यह 24 घंटे हो लेकिन बातचीत के दौरान उन्होंने (उद्योगों ने) कहा कि यह बहुत कम है.”
नए खिलाड़ियों पर भाषाई बोझ
न्यूज़लॉन्ड्री के सवाल पर कि क्या संशोधित नियमों के हिसाब से हर मध्यस्थ को अपने नियमों, विनियमों, गोपनीयता नीति और उपयोगकर्ता करार को भी 23 भाषाओं में जारी करना होगा, इसका जवाब केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर ने हां में दिया.
इसका मतलब यह है कि सभी मध्यस्थों को - जिनमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के अनुसार साइबर कैफे, दूरसंचार सेवा प्रदाता, वेब होस्ट, सर्च इंजन, पेमेंट साइट, नीलामी साइट, ऑनलाइन बाजार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म आते हैं - अपनी नीतियों को अंग्रेजी व संस्कृत सहित संविधान की आठवीं अनुसूची के तहत आने वाली 22 अन्य भाषाओं में भी प्रकाशित करना होगा.
इससे बाजार के नए खिलाडियों पर भारी बोझ पड़ेगा. इसे इस दृष्टिकोण से देखिए कि सभी भारतीय कानून भी आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी 22 भाषाओं में उपलब्ध नहीं हैं.
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान चंद्रशेखर ने कहा कि संशोधित नियमों में इन भाषाओं में प्रकाशन को अनिवार्य नहीं किया गया है, लेकिन जरूरत पड़ने पर इसे अनिवार्य किया जा सकता है. हालांकि, भाषाओं को लेकर संशोधित नियमों में मध्यस्थों के लिए "करेगा" शब्द के उपयोग का अर्थ यही होता है कि वह अनिवार्य है.
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