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हिमाचल प्रदेश: बेहतर पेंशन की लड़ाई से भाजपा का पसीना क्यों छूट रहा है?

दिल्ली के समाचार चैनलों की टीमें हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में भारतीय जनता पार्टी के मीडिया सेंटर - माल रोड पर विलो बैंक्स होटल में रुके हुए हैं. शुक्रवार सुबह जी न्यूज, एबीपी न्यूज और टीवी9 भारतवर्ष के पत्रकार, स्थानीय लोगों से बातचीत करने होटल से बाहर निकले.

बाहर उनका इंतजार एक छोटा सा रेस्तरां चलने वाली 62 वर्षीय रमा शर्मा कर रही थीं.  उन्होंने एबीपी न्यूज़ से बात करने के बाद बुदबुदाया, "मुझे काम पर वापस जाना चाहिए. मैं एक और चैनल क्रू के आने का इंतजार कर रही हूं. वे मुझसे बात करना चाहते हैं."

पीली सलवार कमीज और हरे दुपट्टे के साथ एक जोड़ी चप्पल पहनकर रमा ने कैमरों के सामने अपनी कहानी सुनाई. उन्होंने शिमला के तूतीकंडी कस्बे में 16 साल तक भारतीय पुलिस सेवा में एक चपरासी के रूप में काम किया और 2020 में सेवानिवृत्त हुईं, तब उनका मासिक वेतन 35,000 रुपये था. पुरानी पेंशन योजना या ओपीएस के तहत उनकी पेंशन 17,500 रुपये या उससे वेतन का 50 प्रतिशत होती. लेकिन नई पेंशन योजना या एनपीएस की बदौलत उन्हें हर महीने केवल 1,658 रुपए मिलते हैं क्योंकि एनपीएस के अंतर्गत एक कर्मचारी को अपनी जमा कुल राशि के 40 प्रतिशत पर बने ब्याज के बराबर ही पेंशन मिलती है.

2004 में शुरू हुई एनपीएस के तहत टुकड़ों में मिलने वाली पेंशन, 12 नवंबर को चुनावों के लिए तैयार हिमाचल प्रदेश में भाजपा नेताओं के जीवन में एक हतोत्साहित करने वाली ताकत बन गयी है. पार्टी को एनपीएस से प्रभावित सरकारी कर्मचारियों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है, जिनमें से कई को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सेवानिवृत्त होने के बाद भी मजबूरन कुछ काम करना पड़ा.

रमा शर्मा, 62, 16 साल की सरकारी सेवा के बाद शिमला में एक छोटा सा रेस्टोरेंट चलाती हैं.

उदाहरण के लिए, रमा को एक मामूली सा रेस्टोरेंट खोलना पड़ा. रमा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मैं उस पार्टी को वोट दूंगी, जो पुरानी पेंशन योजना की वापसी का वादा करती है. अगर कांग्रेस ऐसा करती है तो मैं उनके साथ जाऊंगी."

हिमाचल में पेंशन क्यों मायने रखती है

यहां सरकारी कर्मचारियों की भारी संख्या के कारण पेंशन की लड़ाई हिमाचल में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. भाजपा के अविनाश राय खन्ना के मुताबिक राज्य सरकार में कम से कम 2.25 लाख लोग कार्यरत हैं. अन्य 1.90 लाख कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं और पेंशन प्राप्त कर रहे हैं. केवल 55 लाख मतदाताओं वाले राज्य में ये सक्रिय और सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी, अपने आश्रितों के साथ एक ठोस ब्लॉक बनाते हैं.

कांग्रेस यह बात जानती है. पिछले महीने कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने वादा किया था कि अगर पार्टी बहुमत हासिल करती है, तो 10 दिनों के भीतर राज्य में पुरानी पेंशन योजना वापस लागू कर दी जाएगी. प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे राष्ट्रीय नेताओं ने इस पिच को और मजबूत किया है. शनिवार को पार्टी के घोषणापत्र में भी यही वादा किया गया था.

दूसरी ओर भाजपा डांवाडोल रही है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने केवल समस्या के "संतुलित समाधान" का वादा किया है.

इस ‘लचीले’ रुख ने संघ परिवार के कैडर को काफी अक्षम बना दिया है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, के श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ या बीएमएस के एक वरिष्ठ नेता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यह मुद्दा हिमाचल प्रदेश में भाजपा के खिलाफ काम कर रहा है.

बीएमएस नेता ने कहा, "मैं समाचार कैमरों के सामने झूठ बोल सकता हूं और संघ का बचाव कर सकता हूं क्योंकि मैं एक वफादार कार्यकर्ता हूं. लेकिन मैं अपने कैडर से झूठ नहीं बोल सकता. पेंशन को लेकर कर्मचारी हमसे नाराज हैं. उन्होंने कहा कि वे ओपीएस को वोट देंगे, जो कांग्रेस का मंच है. भाजपा घोषणापत्र में एक बेहतर पिच बना सकती है, हालांकि नुकसान थामने के लिए बहुत देर हो सकती है.”

एनपीएसईए की भूमिका

भाजपा की इन चिंताओं के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार न्यू पेंशन स्कीम एम्प्लॉइज एसोसिएशन या एनपीएसईए है, जो ओपीएस की वापसी के लिए आंदोलन का नेतृत्व करती है. एसोसिएशन ने इस मुद्दे को जीवित रखने के लिए सोशल मीडिया करतबों के साथ हिमाचल प्रदेश में जमीनी स्तर पर लामबंदी की है.

उदाहरण के लिए, रमा शर्मा समाचार चैनलों पर राज्य में NPSEA के महासचिव भरत शर्मा की वजह से थीं. उन्होंने एक दिन पहले पत्रकारों से बात की थी, और इंटरव्यू के लिए अगली सुबह रमा के माल रोड पर रहने की व्यवस्था की थी.

एनपीएसईए द्वारा जारी एक पोस्टर.

माल रोड पर पास के एक रेस्टोरेंट में भरत ने आंदोलन के बारे में न्यूज़लॉन्ड्री से बात की और बताया कि 2004 की एक पेंशन योजना, 2022 में एक ज्वलंत राजनीतिक मुद्दा क्यों बन गई. उन्होंने बताया, "एनपीएस को 2006 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा हिमाचल लाया गया था. यह पहले की 2004 की तारीख से था. प्रभावी रूप से, अप्रैल 2004 के बाद सरकार में स्थायी रूप से भर्ती किए गए किसी भी कर्मचारी को ओपीएस के बजाय एनपीएस के तहत कवर किया गया था.”

शर्मा ने बताया कि अप्रैल 2004 के बाद सरकारी सेवा में आने वालों ने पिछले कुछ वर्षों में सेवानिवृत्त होना शुरू कर दिया है. उन्होंने समझाया, "उन्हें अब ओपीएस के तहत कवर किए गए अपने वरिष्ठ सहयोगियों की तुलना में मामूली पेंशन मिल रही है, जो अक्सर इसका दसवां हिस्सा ही होता है. उनके बच्चे भी डिग्री होने के बावजूद बेरोजगार हैं."

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी या सीएमआईई के अनुसार, हिमाचल में 9.2 प्रतिशत पर देश में चौथी सबसे अधिक बेरोजगारी दर है. राष्ट्रीय औसत 7.8 प्रतिशत है.

एनपीएसईए का गठन 2015 में किया गया था. 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान जब भाजपा हिमाचल में विपक्ष में थी, उसने एक समिति बनाने और ओपीएस के दोबारा लाने पर विचार करने का वादा किया था. शर्मा ने कहा, “कर्मचारियों ने भाजपा को वोट दिया और वह सत्ता में आई. लेकिन समिति इस साल फरवरी में ही बनाई गई. वह केवल दो बार ही मिले और हमारी मांगों को लेकर कुछ नहीं किया."

फरवरी में एनपीएसईए के हजारों सदस्यों ने मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र मंडी शहर से, शिमला में कभी पटियाला के महाराजा के द्वारा इस्तेमाल में आने वाले मुख्यमंत्री आवास ओकओवर तक मार्च किया. शर्मा ने दावा किया कि सीएम ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया. परिस्थिति को और बिगाड़ने में प्रदर्शनकारियों से ठाकुर के शाही निवास के बाहर पुलिस के जालिम बर्ताव ने योगदान दिया.

45 वर्षीय भरत शर्मा नई पेंशन योजना कर्मचारी संघ के महासचिव हैं.

अगस्त में एनपीएसईए ने शिमला में एक और प्रदर्शन आयोजित किया. इस बार सीएम ठाकुर ने शर्मा और उनके सहयोगियों से मुलाकात की. शर्मा बताते हैं, "उन्होंने हमें बताया कि उन्होंने हमारी मांगों का 100 प्रतिशत समर्थन किया, लेकिन साथ में यह भी कहा कि अगर हिमाचल ने ओपीएस को दोबारा लाया जाता है, तो अन्य राज्यों को भी ऐसा करना होगा. उन्होंने कहा कि वह दिल्ली में प्रधानमंत्री के साथ इस मामले को उठाएंगे. तब से अन्य भाजपा विधायकों ने हमें बताया है कि केंद्र ने ठाकुर की ओपीएस याचिका को ठुकरा दिया है.”

ओपीएस पर शिमला-दिल्ली की असहमति को लेकर शर्मा का दावा राज्य में भाजपा के डबल इंजन की चुनावी पिच को झुठलाता है. सहायता करना तो दूर, केंद्र में भाजपा ने कथित तौर पर हिमाचल भाजपा द्वारा प्रस्तुत की गई नागरिकों की मांगों पर उसका हाथ पकड़ लिया है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने टिप्पणी के लिए भाजपा प्रवक्ता से संपर्क किया. प्रवक्ता ने कहा, 'राजकोषीय घाटे पर ओपीएस का असर एनपीएस से सौ गुना ज्यादा है. इसके अलावा, नियत प्रक्रिया के हिसाब से यह निर्णय केंद्र द्वारा लिया जाना है, राज्य के नहीं. अगर हम ऐसा नहीं कर सकते हैं तो हम इसके लिए प्रतिबद्ध नहीं होंगे."

एनपीएसईए सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे करता है

हिमाचल में एनपीएसईए को चलाने में 70 लोग लगते हैं. एसोसिएशन की राज्य के हर जिले में 12 इकाइयां हैं. हिमाचल में 110 ब्लॉकों में से हर एक में इसकी एक शाखा भी है. इसका निशान लाल बटन पर एक उंगली है. इस पर लिखा है, "वोट फॉर ओपीएस". इसका नेतृत्व शर्मा जैसे ही वे लोग कर रहे हैं, जिनके पास पूर्णकालिक सरकारी नौकरी है लेकिन किसी तरह वे सामाजिक काम के लिए कुछ घंटे निकाल लेते हैं.

एनपीएसईए के पास सोशल मीडिया आउटरीच के लिए एक आईटी सेल भी है. फेसबुक पर एसोसिएशन के 73 हजार सदस्य हैं, जिला शाखाओं के अपने अलग-अलग पेज भी हैं. शर्मा का व्हाट्सएप एसोसिएशन के विभिन्न पहलुओं को संभालने वाले ग्रुप्स से भरा हुआ है. उनमें से एक का इस संवाददाता ने निरीक्षण किया, जिसे ओपीएस के पुनरुद्धार के लिए भाजपा के राजनेताओं के दावों की "फैक्ट-चेकिंग" करने का काम सौंपा गया है.

एनपीएसईए ने हाल ही में मंडी के धरमपुर के भाजपा नेता रजत ठाकुर के एक बयान के फैक्ट-चेक करने का दावा किया है. ठाकुर ने कथित तौर पर एक सभा को बताया कि विरोध कर रहे सरकारी कर्मचारियों ने उनसे कहा था कि केवल पीएम मोदी ही ओपीएस को पुनर्जीवित कर सकते हैं. फैक्ट-चेक में कहा गया, "तथ्य: रजत ठाकुर प्रदर्शनकारी कर्मचारियों से कभी नहीं मिले. न ही प्रदर्शनकारियों ने कभी ऐसा कुछ कहा."

एनपीएसईए द्वारा सोशल मीडिया पर जारी 'फैक्ट चेक'.

ओपीएस को वापस लाने के लिए कांग्रेस के वादे को देखते हुए, एनपीएसईए पार्टी के लिए नरम हो सकता है, हालांकि वह खुले समर्थन से दूर है. एसोसिएशन का आईटी सेल अपनी मांगों का समर्थन करने वाले कांग्रेस उम्मीदवारों की तस्वीरें जोर-शोर से साझा कर रहा है. इनमें शिमला (ग्रामीण) विधायक और पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह और ऊना जिले के हरोली निर्वाचन क्षेत्र से विधायक और उम्मीदवार मुकेश अग्निहोत्री शामिल हैं.

ओपीएस पर कांग्रेस नेताओं विक्रमादित्य सिंह और मुकेश अग्निहोत्री के पक्षों का विज्ञापन करते हुए एनपीएसईए के पोस्टर.

भाजपा ने एनपीएसईए की मुहिम को दयादृष्टि से नहीं देखा है. 3 नवंबर को उन्होंने चुनाव आयोग से एक शिकायत की. शिकायत में कहा गया, "हमने आपके संज्ञान में लाया था कि कुछ सरकारी कर्मचारी कांग्रेस पार्टी के लिए सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं." आरोप था कि एनपीएसईए के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर कांग्रेस से मिले हुए हैं, क्योंकि उनके पिता मंडी में द्रांग निर्वाचन क्षेत्र के मंडल  अध्यक्ष हैं.

पीछे हटना तो दूर एनपीएसईए ने शिकायत को व्हाट्सएप और फेसबुक पर निम्नलिखित शब्दों के साथ प्रसारित किया: “चूंकि प्रलोभन नहीं चले, उन्होंने झूठे आरोपों के साथ चुनाव आयोग को झूठी शिकायत की! और वे कहते हैं कि केवल वे ही ओपीएस वापस ला सकते हैं!"

प्रदीप ठाकुर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनके पिता वास्तव में कांग्रेस से जुड़े हैं. उन्होंने कहा, "लेकिन यह एक अलग मुद्दा है. मेरा व्यक्तिगत रूप से कोई राजनीतिक संबंध नहीं है."

सरकारी स्कूल से लेकर हाईवे स्टाल तक

हिमाचल प्रदेश में एनपीएसईए का झंडा उठाने वालों में से एक 62 वर्षीय हरि दास ठाकुर हैं, जो शिमला से लगभग 15 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग पांच पर चाय और मैगी की दुकान चलाते हैं.

2021 में वह ठियोग शहर के गवर्नमेंट बॉयज़ सीनियर सेकेंडरी स्कूल से एक चपरासी के रूप में सेवानिवृत्त हुए. वे 1997 से वहां कार्यरत थे लेकिन स्थायी रूप से 2009 में ही भर्ती हो पाए. अगर उन्हें ओपीएस के तहत कवर किया गया होता तो ठाकुर की पेंशन 13,000 रुपये होती, जो स्कूल में उनके 26,000 रुपये के वेतन की आधी रकम होती. लेकिन एनपीएस के तहत यह घटकर महज 1,301 रुपये रह गई है.

ठाकुर नाराजगी से कहते हैं,  "मैं इस जरा सी रकम में कैसे जिन्दा रह सकता हूँ? मेरा एक बेटा है और वह बेरोजगार है. इसलिए मुझे इस उम्र में सेवानिवृत्ति होने के बाद जिन्दा रहने के लिए राजमार्ग पर एक स्टाल खोलने के लिए मजबूर होना पड़ा. अब मैं चाय के गिलास साफ करता हूं और प्लेट धोता हूं."

ये पूर्व सरकारी कर्मचारी अब स्टॉल पर प्रतिदिन लगभग 600 रुपये कमाता है, कभी-कभार पर्यटकों और राजमार्ग पर ट्रक चालकों की सेवा देता है. 14 किलोमीटर दूर ठियोग से आने-जाने और सामान खरीदने में इसमें से करीब 400 रुपये खर्च हो जाते हैं.

हरि दास ठाकुर, 62, 2021 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए. अब वह जीवन यापन के लिए एक चाय की दुकान चलाते हैं.

उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "यह एक बहुत ही गंभीर समस्या है. सीएम कहते हैं कि वो कांग्रेस थी जो एनपीएस लाई थी. लेकिन केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कारण कांग्रेस को ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा.”

ठाकुर ने कहा कि उनके एक पूर्व सहयोगी को अप्रैल 2004 से पहले सरकार में भर्ती किया गया था. “उन्हें 13,000 रुपये की पेंशन मिलती है. यह कैसा न्यायसंगत है?"

ठाकुर ने इस बारे में साफगोई बरती कि वे सेवानिवृत्त होने के बाद की गरीबी से कैसे बाहर निकलने का सोच रहे हैं. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "भाजपा ओपीएस के बारे में भरोसेमंद नहीं रही है, लेकिन कांग्रेस है."

इस चुनावी साल में एनपीएसईए ने अपनी आवाज ऊँची की और एक दबाव बनाने वाल समूह बन गया. लेकिन कुछ अन्य लोग भी हैं जो ओपीएस के पक्ष में तो हैं, लेकिन वे भाजपा से जुड़े हैं और इसलिए असंगत रहते हैं.

72 वर्षीय किशन ठाकुर ऐसे ही लोगों में से एक हैं. 2000 और 2011 के बीच ठाकुर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ के हिमाचल अध्यक्ष थे, जो सरकार के साथ कार्यरत चपरासी, सफाई कर्मचारी, गार्ड व अन्य ऐसे ही लोगों का एक समूह है. शिमला के बाहर शानन गांव के निवासी किशन स्थानीय भाजपा पदाधिकारी भी हैं.

ठाकुर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “जब मैं एसोसिएशन का हिस्सा था तब मैंने ओपीएस के लिए लड़ाई लड़ी थी. वास्तव में मैं अभी भी उन लोगों के लिए ओपीएस चाहता हूं जो एनपीएस के अंतर्गत आते हैं."

वह इस मुद्दे पर अपनी पार्टी की विकट स्थिति के साथ कैसे सामंजस्य बिठाते हैं? उन्होंने कहा, "भाजपा सरकार ने बहुत कोशिश की है, मेरा विश्वास कीजिए. लेकिन यह केवल केंद्र ही इसे बदल सकता है. राज्य सरकार ओपीएस को वापस नहीं ला सकती है.”

किशन ठाकुर, 72, भाजपा के एक पदाधिकारी हैं जो ओपीएस चाहते हैं.

ठाकुर ने कहा कि चूंकि देश कोविड के आर्थिक प्रभाव से जूझ रहा है, इसलिए बेहतर पेंशन सरकारी खजाने की बेहतर सेहत से ही मिल सकती है. उन्होंने कहा, "हम एक अनिश्चित आर्थिक स्थिति में हैं. और अगर हिमाचल को ओपीएस मिलता है, तो अन्य सभी राज्य भी इसे चाहेंगे, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था पर ज्यादा दबाव पड़ेगा. मुझे लगता है कि हमें राष्ट्र को राज्य से आगे रखना चाहिए."

ठाकुर खुद ओपीएस के दायरे में आते हैं और उन्हें हर महीने 25,000 रुपये मिलते हैं. मैंने उनसे पूछा कि अगर वह एनपीएस के तहत आते, और उनकी वर्तमान पेंशन का केवल एक हिस्सा ही  ले पाते, क्या वे तब भी यही रुख अपनाएंगे? इस पर वह केवल मुस्कुरा दिए.

फोटो: आयुष तिवारी

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