Report
भारत की आंतरिक खुफिया एजेंसी ने पेगासस के लिए अपेक्षित से मेल खाता एनएसओ हार्डवेयर खरीदा
आयात के दस्तावेज दिखाते हैं कि देश की मुख्य घरेलू खुफिया एजेंसी इंटेलिजेंस ब्यूरो ने इजरायली स्पाईवेयर कंपनी एनएसओ ग्रुप से हार्डवेयर खरीदा, जिसका विवरण एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर को लागू करने के लिए अन्य जगहों पर इस्तेमाल किए गए उपकरणों से मेल खाता है.
इस खुलासे से इस साल की शुरुआत में न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा रिपोर्ट किए गए इस दावे को बल मिलता है कि भारत सरकार ने 2017 में इजरायल के साथ एक बड़े आयुध सौदे के तहत पेगासस स्पाइवेयर खरीदा था.
पेगासस, जो गोपनीय तरीके से मोबाइल फोन को इस निगरानी सॉफ्टवेयर से संक्रमित करता है, अलग-अलग देशों में पत्रकारों, एक्टिविस्टों, विपक्षी राजनेताओं और असहमति रखने वालों की जासूसी करने के लिए कई मामलों में इस्तेमाल किया गया है.
पिछले साल पेगासस प्रोजेक्ट नाम के सॉफ्टवेयर द्वारा निशाना बनाये गए लोगों की एक संबद्ध जांच से पता चला कि भारत में कई फोन संभावित रूप से संक्रमित हो गए थे, जिनमें कई बड़े पत्रकार और विपक्षी दल कांग्रेस के राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ राजनेता भी शामिल थे.
भारत सरकार ने इस बात की पुष्टि या खंडन करने से इनकार कर दिया है कि उसने पेगासस सॉफ्टवेयर खरीदा है या नहीं. पिछले साल जुलाई में देश के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने इन रिपोर्ट्स को "सनसनीखेज" बताकर खारिज कर दिया और उन्हें "भारतीय लोकतंत्र और उसके प्रमाणित संस्थानों को बदनाम करने का प्रयास" बताया.
पिछले साल अक्टूबर में देश के उच्चतम न्यायालय ने, पेगासस प्रोजेक्ट के जरिये रिपोर्ट किए गए सरकार द्वारा स्पाइवेयर के इस्तेमाल के दावों की जांच शुरू की. समिति ने अगस्त में यह कहते हुए अपनी जांच समाप्त कर दी कि उसे कुछ फोनों की जांच में मैलवेयर जरूर मिला, लेकिन उसे पेगासस को इस्तेमाल किया जाने का निर्णायक सबूत नहीं मिला.
हालांकि ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) द्वारा जांचे गए आयात डेटा से पता चलता है कि अप्रैल 2017 में, नई दिल्ली स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो को इज़राइल स्थित एनएसओ से पेगासस सॉफ़्टवेयर चलाने के लिए अन्य जगहों पर इस्तेमाल किये गए उपकरणों के विवरण से मेल खाते हुए हार्डवेयर का शिपमेंट प्राप्त हुआ.
राष्ट्रीय सीमा शुल्क दस्तावेजों से जानकारी उठाने वाले एक वैश्विक व्यापार डेटा प्लेटफॉर्म के जरिये हासिल हुए लदान के बिल के अनुसार, इस खेप में डैल के कंप्यूटर सर्वर, सिस्को के नेटवर्क उपकरण और आउटेज की परिस्थिति में बिजली प्रदान करने वाली "अनइंटरप्टिबल पावर सप्लाई यानी अबाधित बिजली आपूर्ति" बैटरी शामिल हैं.
हवाई मार्ग से पहुंचाया गया ये शिपमेंट, "रक्षा और सैन्य उपयोग के लिए" चिह्नित किया गया था और इसकी लागत 315,000 अमेरिकी डॉलर थी. वह विवरण और शिपमेंट का समय - न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा जनवरी में दिए गए विवरण से मेल खाता था, जिसमें रिपोर्ट किया गया था कि इजरायल और भारत के बीच 2017 के एक प्रमुख हथियार सौदे के "केंद्र बिंदु" पेगासस व एक मिसाइल प्रणाली थे.
इस सौदे के समापन की घोषणा सीमा शुल्क दस्तावेजों के शिपमेंट से डेढ़ हफ्ते पहले उसी वर्ष 6 अप्रैल को इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज द्वारा की गई थी, जिसे मिसाइल रक्षा प्रणालियों की आपूर्ति का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था.
निश्चित रूप से यह कहना संभव नहीं है कि आयातित हार्डवेयर का इस्तेमाल पेगासस के लिए भी किया गया. लेकिन इसका विशिष्ट विवरण, 2019 में फेसबुक और व्हाट्सएप की मूल कंपनी मेटा द्वारा एनएसओ ग्रुप के खिलाफ एक अमेरिकी अदालत में दायर मुकदमे में जमा किए गए पेगासस स्पाइवेयर के एक ब्रोशर में दिए गए विनिर्देशों से मेल खाता है.
एनएसओ ग्रुप और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने शिपमेंट के बारे में ओसीसीआरपी द्वारा भेजे गए सवालों का कोई जवाब नहीं दिया. भारत के गृह मंत्रालय को भी सवाल भेजे गए थे, जवाब मिलने पर रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
उल्लेखित ब्रोशर - जो इंगित करता है कि "तैनाती पर सिस्टम के साथ आवश्यक हार्डवेयर की आपूर्ति की जाती है" - आउटेज की परिस्थिति में सर्वर को चालू रखने के लिए दो कंप्यूटर रैक, नेटवर्क उपकरण, सर्वर, नेटवर्क केबल और बैटरी की आवश्यकता को रेखांकित करता है. पेगासस प्लेटफॉर्म को चलाने और मोबाइल फोनों से निकाले गए डेटा के संग्रह के लिए इस हार्डवेयर की जरूरत होती है.
ये विनिर्देश, एक मैक्सिकन कंपनी और एनएसओ समूह के बीच पेगासस के लिए एक कॉन्ट्रैक्ट में उल्लिखित विशेष विवरण से भी मेल खाते हैं, जिन्हें पहले एक मैक्सिकन समाचार आउटलेट अरिस्तेगुई नोटिसियास द्वारा रिपोर्ट किया गया था और फिर उन्हें ओसीसीआरपी और उसके सहयोगियों ने हासिल किया. मेटा के मुकदमे के दस्तावेज, एनएसओ समूह के एक अन्य ग्राहक घाना को भी ऐसे ही हार्डवेयर का शिपमेंट दिखाते हैं.
दो खुफिया अधिकारियों जिनमें से एक वरिष्ठ अधिकारी और एक कांट्रेक्टर है - ने भी ओसीसीआरपी को बताया कि पेगासस को 2017 में सरकार द्वारा खरीदा गया था. दोनों ने नाम न छापने की शर्त पर बात की क्योंकि उनकी नौकरियां उन्हें सार्वजनिक रूप से बोलने से रोकती हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के एक सुरक्षा शोधकर्ता एटीएन मेनियर ने कहा कि ये जानकारी "भारतीय अधिकारियों के साथ निगरानी (सर्विलांस) ट्रांसफर्स के सशक्त व चौंकाने वाले सबूत प्रदान करती है.”
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुलाई में हुई इजरायल की ऐतिहासिक यात्रा से पहले कथित तौर पर फरवरी के आखिर में इजरायल का दौरा किया था.
हालांकि एजेंसी का आधिकारिक अधिदेश काउंटर-इंटेलिजेंस और घरेलू आतंकवाद का मुकाबला करना है, लेकिन कथित तौर पर अतीत में इसका इस्तेमाल गोपनीय राजनीतिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए किया गया है. इंटेलिजेंस ब्यूरो को विनियमित करने के लिए कोई औपचारिक कानून नहीं है और पिछले कुछ वर्षों में इसकी संवैधानिकता को कई बार चुनौती दी गई है. 2018 के अंत में, गृह मंत्रालय ने इंटेलिजेंस ब्यूरो को भारत में किसी भी डिवाइस से एकत्र की गई किसी भी जानकारी को डिक्रिप्ट करने का अधिकार दे दिया.
पेगासस के कथित उपयोग पर भड़के सार्वजनिक आक्रोश के चलते भारत के सर्वोच्च न्यायालय को इन दावों की जांच के लिए पिछले साल अक्टूबर में एक विशेषज्ञ पैनल गठित किया. अगस्त में काम समाप्त करते हुए पैनल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि ये साबित नहीं किया जा सकता कि पेगासस का इस्तेमाल किया गया था. हालांकि पैनल ने इस बात को रेखांकित किया कि सरकार ने उसकी जांच में "सहयोग नहीं किया".
साइबर सुरक्षा और गोपनीयता से संबंधित कानूनी सुधारों की सिफारिश करने वाले अनुबंध के अलावा, पैनल की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया.
मेनियर ने कहा कि अदालत को रिपोर्ट "तुरंत और बिना किसी देरी के" सार्वजनिक करनी चाहिए. उन्होंने कहा, "भारत में पेगासस स्पाइवेयर के दुरुपयोग के सभी पीड़ित पारदर्शिता के पात्र हैं, और भारतीय अधिकारियों को एनएसओ के साथ संबंधों को लेकर पाक-साफ हो जाना चाहिए."
न्यूज़लॉन्ड्री यह रिपोर्ट ओसीसीआरपी की अनुमति से प्रकाशित कर रहा है. आप अंग्रेजी में पहले प्रकाशित रिपोर्ट भी पढ़ सकते हैं. इसमें केवल भाषा सम्बंधित न्यूनतम संपादन किया गया है.
Also Read
-
Rajiv Pratap Rudy on PM’s claims on ‘infiltrators’, ‘vote-chori’, Nishikant Dubey’s ‘arrogance’
-
Can you really afford a house in India?
-
TV Newsance 313: What happened to India’s No. 1 China hater?
-
India’s health systems need to prepare better for rising climate risks
-
Unchecked hate speech: From Kerala's right wing X Spaces to YouTube’s Hindutva pop