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करोड़ों का गबन और कई बार दोषी ठहराए गए राकेश शर्मा की ‘एम्स-लीला’

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के स्टोर परचेस कमेटी (एसपीसी) का पुनर्गठन 11 जुलाई, 2022 को हुआ. इस कमेटी में एक चेयरमैन, सात सदस्य और एक मेंबर सेक्रेटरी बनाए गए. इस बार मेंबर सेक्रेटरी सीनियर स्टोर अफसर राकेश शर्मा को बनाया गया. गौरतलब है कि कमेटी में मेंबर सेक्रेटरी का पद सबसे महत्वपूर्ण होता है.

एम्स में कई कमेटियों के सदस्य रहे एक डॉक्टर बताते हैं, “इन कमेटियों में चेयरमैन बस हस्ताक्षर करने के लिए होते हैं. सारा काम मेंबर सेक्रेटरी ही करता है.”

जुलाई में एसपीसी के गठन को लेकर जारी आदेश में कहा गया- “एक करोड़ से अधिक की खरीद के मामले को वित्तीय सहमति, प्रशासनिक अनुमोदन और व्यय स्वीकृति के लिए भेजे जाने से पहले खरीद की प्रक्रियात्मक जांच के लिए उसे एसपीसी को भेजा जाएगा.”

इस कमेटी का गठन एम्स के तत्कालीन निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया की संस्तुति के आधार पर किया गया. जाहिर है जिन लोगों को इस कमेटी का सदस्य बनाया गया है, उनके बारे में डॉ गुलेरिया को जानकारी रही होगी. खासकर सदस्य सचिव राकेश शर्मा के बारे में.

डॉ गुलेरिया और राकेश शर्मा का कामकाजी रिश्ता बहुत दिलचस्प है. 11 जुलाई को गुलेरिया ने शर्मा को परचेस कमेटी का मेंबर सेक्रेटरी बनाया और उन्हीं शर्मा पर दिसंबर 2021 को, यानी सात महीने पहले डॉ गुलेरिया ने 14 करोड़ रुपए के गबन का जिम्मेदार ठहराते हुए उनका ट्रांसफर, ट्रामा सेंटर में कर दिया था. शर्मा अभी भी एम्स के ट्रामा सेंटर में ही कार्यरत हैं.

11 जुलाई, 2022 को बनाई गई कमेटी का आदेश

शर्मा के ऊपर गबन और कार्रवाइयों की फेहरिस्त लंबी है. साल 2019 के अक्टूबर महीने में भी शर्मा एक मामले में दोषी पाए गए थे. उस वक्त भी डॉ गुलेरिया ने शर्मा के ऊपर कार्रवाई करते हुए उनका एक साल का ‘इंक्रीमेंट’ रोक दिया था. यह सब बताने का मकसद यह है कि डॉ गुलेरिया, राकेश शर्मा से परिचित रहे हैं. तो फिर सवाल उठता है कि उन्हें एसपीसी का मेंबर सेक्रेटरी क्यों नियुक्त किया. यहां यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि शर्मा के ऊपर परचेस में ही धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप पूर्व में भी लगे थे. इसके बावजूद उन्हें परचेस कमेटी का मेंबर सेक्रेटरी बनाया गया.

शर्मा पर आरोपों की फेहरिस्त और करोड़ों का गबन

28 दिसंबर, 2021 एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने राकेश शर्मा पर कार्रवाई को लेकर एक पत्र लिखा था. इस पत्र में अनुशासनात्मक प्राधिकरण की ओर से राकेश शर्मा के खिलाफ केंद्रीय सिविल सेवा के नियम 14 के तहत जांच का प्रस्ताव रखा गया था.

न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद इस दस्तावेज में राकेश शर्मा पर लगे आरोपों की विस्तार से जानकारी दी गई है. गुलेरिया लिखते हैं, ‘‘राकेश शर्मा, डॉ राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र में वरिष्ठ स्टोर अधिकारी के रूप में कार्यरत थे. उस दौरान यहां हुई वस्तुओं की खरीद में गड़बड़ी की गई, नतीजतन खरीद में अनियमित भुगतान हुआ. जिस वजह से तेरह करोड़ निन्यानबे लाख उनत्तीस हजार, सात सौ तीस रुपए (1,39,929,730 रुपए) की सरकारी निधि का गबन हुआ है. इस घोर कदाचार के लिए राकेश शर्मा जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे अपने कर्तव्यपालन में विफल रहे.’’

इस पत्र में गुलेरिया आगे बताते हैं कि राकेश कुमार के नेतृत्व में हुए इस भ्रष्टाचार को लेकर डॉक्टर संजय कुमार आर्य के नेतृत्व में एक जांच बैठी थी. जांच कमेटी ने अपनी तहकीकात के दौरान खरीद से जुड़े तमाम कागजात देखे. इसमें सामने आया कि “वित्तीय वर्ष 2020-21 में, 5 करोड़ 62 लाख 65 हज़ार 822 रुपए की और वित्तीय वर्ष 2021-22 में 8 करोड़ 27 लाख 73 हज़ार 908 मूल्य की खरीद नकली आदेशों पर की गईं, जिनमें स्टोर अधिकारियों के हस्ताक्षर थे.’’

एम्स के तत्कालीन निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया द्वारा जारी आदेश

इसमें आगे लिखा है, ‘‘निरीक्षण नोट, जिसमें प्रभारी अधिकारी, सामान्य भंडार, स्टोर कीपर और स्टोर अधिकारी/सीनियर स्टोर अधिकारी के हस्ताक्षर, वाउचर के साथ संलग्न थे, वो भी नकली पाए गए. क्योंकि स्टोर विभाग द्वारा बनाए गए निरीक्षण नोट रजिस्टर के अनुसार ऐसा कोई निरीक्षण नोट जारी नहीं किया गया था. इसके अलावा, खरीद की ये वस्तुएं निरीक्षण रजिस्टर में दर्ज नहीं पाई गईं जो यह दर्शाता है कि ये वस्तुएं स्टोर विभाग में आई ही नहीं.”

यानी दो सालों के दौरान लगभग 14 करोड़ रुपए की खरीद तो हुई, लेकिन वो सामान एम्स में नहीं आया. आगे इस पत्र में गुलेरिया लिखते हैं, ‘‘इस प्रकार, जांच कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची कि फर्मों को बिना किसी आपूर्ति के 13 करोड़ 91 लाख 39 हज़ार 730 रुपए का भुगतान किया गया था. ऐसे नकली दावों का पता लगाया जा सकता था यदि स्टोर्स की नियमित आवधि में जांच की जाती. यह साफ संकेत मिलता है कि राकेश शर्मा ने अपना काम ठीक से नहीं किया है.’’

फ्लैशबैक: विवाद से शर्मा का नाता पुराना है

न्यूज़लॉन्ड्री के पास 17 सितंबर, 2008 का भी एक दस्तावेज मौजूद है. दस्तावेज के मुताबिक एम्स के विजिलेंस सेल ने शर्मा पर कार्रवाई की थी. विजिलेंस सेल ने शर्मा को एम्स से हटाकर नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर, गाजियाबाद, ट्रांसफर करने, किसी भी खरीद-फरोख्त से प्रतिबंधित करने और किसी खरीद कमेटी का हिस्सा नहीं बनाने का फैसला लिया था.

उस वक्त शर्मा एम्स में असिस्टेंट स्टोर अफसर थे. अपने पत्र में मुख्य विजिलेंस अधिकारी शैलेश कुमार यादव सख्त शब्दों में लिखते हैं- ‘‘राकेश शर्मा, अगले आदेश तक संस्थान के केन्द्रों की किसी खरीद एवं खरीद कमेटी के सदस्य के रूप में कार्य नहीं करेंगे.’’

2008 में विजिलेंस सेल द्वारा जारी आदेश

हमने इस मामले की पड़ताल एम्स के विजिलेंस सेल से करने की कोशिश की. लेकिन विजिलेंस सेल के प्रमुख देवनाथ शाह ने कुछ भी जानकारी देने से इंकार कर दिया. विजिलेंस सेल के एक पुराने सदस्य ने हमें बताया कि मामला खरीद-फरोख्त से जुड़ा था. इसीलिए शर्मा को उस वक्त किसी भी खरीद कमेटी का सदस्य बनाने से रोक दिया गया था.

जब शर्मा का रोका गया इंक्रीमेंट

28 अक्टूबर, 2019 को एक बार फिर से शर्मा के ऊपर कदाचार के आरोप लगे. इस मामले में विजिलेंस सेल की जांच के बाद कार्रवाई करते हुए गुलेरिया ने शर्मा का एक साल का इंक्रीमेंट रोकने का आदेश दिया था.

यह मामला साल 2014 का है. तब शर्मा एम्स के कम्प्यूटर फैसिलिटी में स्टोर अफसर के रूप में काम करते थे. तब उन पर एक निजी फर्म को फायदा पहुंचाने का आरोप लगा था और शर्मा पर सीसीएस (सीसीए) नियम 1965 के नियम 16 के तहत आरोप पत्र दायर किया गया था. इसी मामले में उनके खिलाफ कार्रवाई हुई थी.

कार्रवाई का आदेश देते हुए गुलेरिया ने लिखा है, ‘‘साल 2013-14 में जारी, दो टेंडर में बोली जमा करने की अंतिम तिथि और बोली से पहले बैठक कर बोली की योग्यता शर्तों में हेरफेर किया गया. जिससे एक फार्म को फायदा मिल सके. निविदा प्रक्रिया जारी करने के दौरान हुई गड़बड़ियों के लिए (राकेश) शर्मा जिम्मेदार हैं.’’

2019 में राकेश शर्मा का एक साल का इंक्रीमेंट रोकने को लेकर डॉ गुलेरिया का आदेश

शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने टेंडर के समय सीमा को समय से पहले ही खत्म कर दिया ताकि उनके पसंदीदा फर्म को फायदा मिल सके. यह नियमों के खिलाफ था. एक दौर में शर्मा के साथ काम कर चुके एक स्टोर अधिकारी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘नियम के मुताबिक टेंडर हासिल के लिए अप्लाई करने की तारीख एक बार जारी करने के बाद, उसे समय से पहले बंद नहीं कर सकते. शर्मा ने किसी अपने को फायदा पहुंचाने के लिए ऐसा किया था. इन्होंने अपने लोगों को बोल दिया होगा कि इस तारीख तक अप्लाई कर लो फिर बंद कर दिया जाएगा. ऐसे में टेंडर किसे मिलेगा? जिन्होंने अप्लाई किया होगा. अप्लाई कौन किया. इनके अपने लोग. इस तरह के अनियमितताओं के कारण लोगों की नौकरी तक चली जाती है.’’

इस जांच के दौरान भी विजिलेंस सेल ने शर्मा का पक्ष जाना था. 28 फरवरी 2019 को शर्मा ने अपना पक्ष रखा था. शर्मा के पक्ष को गुलेरिया ने ‘भरोसे के लायक’ नहीं समझा और उनका एक साल का इंक्रीमेंट रोक दिया.

हितों का टकराव: शर्मा ने अपने ही बेटे की कंपनी से की खरीदारी

राकेश शर्मा के बेटे हैं दीपक कौशिक, जो आरडी इंटरप्राइजेज नाम की कंपनी चलाते हैं. यह कंपनी ऋषिकेश से संचालित होती है. साल 2019, 2020 और 2021 में एम्स ने इसी कंपनी से कई बार खरीदारी की है. यह खरीदारी करने वाले राकेश शर्मा ही थे.

न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक शर्मा ने 2019 में 100 कम्प्यूटर चेयर आरडी इंटरप्राइजेज से खरीदा था. जिसकी कीमत 3 लाख 40 हज़ार रुपए थी. अगस्त 2020 में 19 हजार 600 रुपए की रिवॉल्विंग चेयर की खरीद की. 2020 में ही 49 हजार 800 रुपए के तीन सोफे की खरीद कौशिक की कंपनी से की गई. जनवरी 2021 में फिर से चार रिवॉल्विंग चेयर की खरीद आरडी इंटरप्राइजेज से की गई.

राकेश शर्मा द्वारा अपने बेटे की कंपनी से एम्स के लिए की गई खरीदारी का दस्तावेज

न्यूज़लॉन्ड्री ने दीपक कौशिक से बात की. उन्होंने बताया कि उनके पिता राकेश शर्मा, एम्स में स्टोर अफसर है. हालांकि उनकी कंपनी द्वारा एम्स को सामान बेचने पर जब हमने सवाल किया तो उन्होंने कहा कि वे अभी अपने ऑफिस में नहीं है. ऑफिस जाकर फाइल देखने के बाद ही वे हमें बता सकते हैं. हमने दोबारा कॉल किया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया.

जिस विभाग में कदाचार, उसके ही सीपीआईओ बने शर्मा

शर्मा का कामकाज लगातार संदेह के दायरे में रहा. उनके खिलाफ कार्रवाइयां भी हुईं, फिर भी शर्मा एम्स में अपने पद पर न सिर्फ बने रहे, बल्कि पदोन्नत भी हुए. इतना ही नहीं, उनके भ्रष्टाचार को एम्स प्रशासन नई-नई जिम्मेदारियां देकर सम्मानित करता रहा. दिसंबर, 2021 में 14 करोड़ के घपले के लिए जिम्मेदार ठहराने की तीन महीने बाद ही मार्च 2022 में शर्मा को प्रोक्योरमेंट वर्क और स्टोर सेक्शन में आरटीआई का सेंट्रल पब्लिक इनफार्मेशन अधिकारी (सीपीआईओ ) भी बना दिया गया.’’

बता दें कि किसी भी आवेदक द्वारा आरटीआई के जरिए मांगी गई जानकारी को उसे देने की जिम्मेदारी सीपीआईओ की ही होती है. ऐसे में जिस विभाग में रहते हुए शर्मा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा उन्हें उसी विभाग का सूचना अधधिकारी बना दिया गया.

इसको लेकर एम्स के एक डॉक्टर कहते हैं, ‘‘चोर को घर की चाभी देने का मामला है. कोई आरटीआई के जरिए उनके समय में हुई खरीद की जानकारी मांगेगा तो वो ठीक जानकारी देंगे? इसका जवाब ना ही होगा.’’

‘शर्मा खेल में अकेले नहीं’

राकेश शर्मा इन दिनों हरियाणा के पलवल में रहते हैं. साल 1984-85 में इन्होंने एम्स में बतौर फार्मेसिस्ट ज्वाइन किया था. साल 1993-94 में वे स्टोर विभाग में आ गए. फिलहाल सीनियर स्टोर अधिकारी हैं.

एम्स में शर्मा को जानने वाले बहुतेरे हैं, लेकिन खुलकर कोई बात नहीं करता. राजेंद्र प्रसाद नेत्र विभाग के प्रशासनिक विभाग के एक अधिकारी बताते हैं, ‘‘इतने गंभीर आरोपों के बावजूद उन्हें लगातार नई और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा रही तो इसका मतलब साफ है कि शर्मा, इस खेल में अकेले नहीं हैं. यहां पर किसी गैंग की तरह काम होता है. किसी एक पर आरोप लगता है तो उसी के किसी साथी के नेतृत्व में जांच कमेटी बन जाती है. साथी उसे बचा लेता है. यह काम इसी तरह अनवरत चलता रहता है. एक हैरानी की बात बताऊं आपको, जब 14 करोड़ के घपले का मामला सामने आया तब जो पहली जांच कमेटी बनी उसमें आरोपी राकेश कुमार शर्मा को भी सदस्य बना दिया गया था. इस तरीके से एम्स में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है.’’

अधिकारी आगे बताते हैं, ‘‘14 करोड़ रुपए के गबन की जांच अभी दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में चल रही है. बताया जा रहा है कि अब इस घोटाले की रकम 14 करोड़ से बढ़कर 34 करोड़ रुपए हो चुकी है. इस मामले में चार कर्मचारियों को सस्पेंड किया गया था. उनके नाम विजेंद्र, जितेंद्र, मीनाक्षी डबराल और खजान सिंह हैं. इनमें से विजेंद्र की संदिग्ध हालात में मौत हो चुकी है. वहीं बाकी लोग अभी भी सस्पेंड ही हैं. सीनियर स्टोर अफसर (राकेश शर्मा) की जानकारी के बगैर कुछ होना असंभव है. लेकिन छोटे कर्मचारियों को बलि का बकरा बना दिया गया. शर्मा अभी भी ट्रॉमा सेंटर में नौकरी कर रहे हैं. देखिए ट्रांसफर कोई सज़ा नहीं होती, बल्कि यह एक तरह से भ्रष्टाचार को रिवार्ड करना हुआ. पहले आप भ्रष्टाचार करो फिर शांति से कहीं ट्रांसफर होकर नौकरी भी करो.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने शर्मा को उनका पक्ष जानने के लिए फोन किया. उन्होंने कहा, ‘‘नियम के मुताबिक मैं आपको कोई जवाब नहीं दे सकता. आप एम्स के पीआरओ से बात करें.’ हमने पूछा कि क्या दीपक कौशिक आपके बेटे हैं. इस पर उन्होंने धमकी भरे अंदाज में कहा, ‘‘आइंदा से आप मुझे फोन मत करना.’’

इस बाबत हमने राकेश शर्मा को कुछ सवाल भी भेजे हैं, लेकिन उनका कोई जवाब हमें नहीं मिला है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने एम्स की आधिकारिक प्रवक्ता डॉ आरती विज और एम्स के पूर्व निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई. हमने दोनों को कुछ सवाल भेजे हैं. उनका जवाब मिलने पर, उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

(डॉ. रणदीप गुलेरिया 24 सितंबर, 2022 को अपने पद से रिटायर हो गए हैं.)

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