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एनएल चर्चा 232: बढ़ती महंगाई, जन स्वास्थ्य पर घटता खर्च और ज्ञानवापी सुनवाई
एनएल चर्चा के इस अंक में वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी में श्रृंगार गौरी पूजा की अनुमति की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लायक बताने, लखीमपुर खीरी में दो बहनों की हत्या, तीन महीने की गिरावट के बाद खुदरा मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी, जीडीपी में स्वास्थ्य पर खर्च होने वाले मद में आई गिरावट, सुप्रीम कोर्ट ने सीएए को लेकर दायर याचिकाओं पर केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस, इशरत जहां मुठभेड़ मामले की जांच करने वाली एसआईटी के प्रमुख सतीश चंद्र वर्मा की बर्खास्तगी, गुरुग्राम में कॉमेडियन कुणाल कामरा के रद्द हुए शो, सीजेआई के द्वारा विचाराधीन कैदियों की संख्या पर जताई चिंता, असम में मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा की सरकार के द्वारा 4,449 परिवारों को हटाए जाने, उत्तर प्रदेश सरकार में मदरसों की जांच और शंघाई सहयोग संगठन की बैठक आदि विषयों का जिक्र हुआ.
चर्चा में इस हफ्ते जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी और न्यूज़लॉन्ड्री के सह-संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत प्रोफेसर अरुण कुमार से जीडीपी में स्वास्थ्य पर काम होते खर्च पर सवाल से की. उन्होंने पूछा, “जिस समय के आर्थिक मॉडल में हम रह रहे हैं, उसमें स्वास्थ्य और शिक्षा एक बड़ा मुद्दा है. इस पर लगातार बहस होती रही है कि इसे सरकार को फ्री देना चाहिए, या पीपीपी मॉडल जो अभी है उसी पर चलना चाहिए, इस पर आप की राय. और दूसरा जो बजट में गिरावट है उसके आप क्या नतीजे देख पा रहे हैं?
प्रोफेसर अरुण जवाब देते हुए कहते हैं, “शिक्षा और स्वास्थ्य का जो क्षेत्र है वह ऐसा क्षेत्र है जहां समाज में आम व्यक्ति उतना खर्च नहीं कर सकता. इसलिए सरकार को वहां सहयोग देना चाहिए नहीं तो समस्या खड़ी हो जाएगी. यह एक तरह का इन्वेस्टमेंट है. हमारे देश में हमने इतना इन विषयों पर ध्यान नहीं दिया लेकिन साउथ ईस्ट देशों ने इस पर खास ध्यान दिया. हमारे देश में 94 प्रतिशत क्षेत्र असंगठित है, यहां काम करने वाले लोगों को कम सैलरी मिलती है. ऐसे में उनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च करना मुमकिन नहीं होता. इसलिए इन दोनों मुद्दों पर सरकार का योगदान अहम हो जाता है.”
वह आगे कहते हैं, “जीडीपी का कितना प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च हो रहा है यह दिखाता है कि आप की प्राथमिकता क्या है. साल 2018-19 में आई इस गिरावट का मतलब है कि सरकार की प्राथमिकता क्या है. इसका सबसे ज्यादा असर असंगठित क्षेत्र पर होगा.”
हृदयेश कहते हैं, “जो बजट निर्मला सीतारामन् ने पेश किया था, उस समय उन्होंने कहा था कि स्वास्थ्य के बजट को बढ़ाया गया है. लेकिन साफ पानी के लिए होने वाले खर्च को इस बार स्वास्थ्य बजट में जोड़ दिया गया, जिससे कि बजट बढ़ गया. सरकार प्राइवेट इंश्योरेंस कंपनियों को बढ़ा रही है लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि सरकार मानव संसाधन पर खर्च कर रही है. टीवी और अखबार अमेरिका का जिक्र स्वास्थ्य को लेकर करते हैं लेकिन वह यूरोप के उदाहरण नहीं देते, जहां प्राइवेट सेक्टर स्वास्थ्य क्षेत्र में आता ही नहीं है.”
शार्दूल कहते हैं, “स्वास्थ्य क्षेत्र को हमारे यहां प्राइवेट सेक्टर में धकेला जा रहा है. बड़े अस्पतालों से ज़्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की जरूरत है. सरकार हमेशा कहती है कि हम सबसे युवा देश हैं लेकिन डेढ़ से दो दशक के बाद यह जनसंख्या बूढ़ी होगी तो उसके पास न तो संसाधन होंगे और न ही स्वास्थ्य सुविधा. इस लापरवाही को सरकार को सही करना चाहिए.”
इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा में विस्तार से बातचीत हुई. साथ में खुदरा मुद्रास्फीति में हुई बढ़ोतरी पर भी बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
00:00:00 - 00:01:15 - इंट्रो
00:1:15 - 00:07:46 - हेडलाइंस और जरूरी सूचना
00:07:46 - 00:12:42 - शंघाई सहयोग संगठन की बैठक
00:12:43 - 00:54:01 - स्वास्थ्य बजट में गिरावट और महंगाई
00:55:02 - 01:11:25 - ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
01:11:25 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
शार्दूल कात्यायन
न्यूज नेशन में अडानी का निवेश - न्यूज़लॉन्ड्री पर प्रकाशित रिपोर्ट
इंडियाज ग्रेट एनीमिया मिस्ट्री - इंडियन एक्सप्रेस पर प्रकाशित लेख
अरुण कुमार
पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए
हृदयेश जोशी
द प्राइस ऑफ इनक्वॉलिटी - जोसेफ स्टिग्लिट्ज़
अतुल चौरसिया
विजय गोखले का चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर टीओआई में प्रकाशित लेख
चंदन पाण्डेय की किताब - कीर्तिगान
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