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दिल्ली पुलिस और रेडियो मिर्ची: ‘ख़बर’ प्रसारित करने का यह समझौता कितना सही?

कुछ दिन पहले दिल्ली पुलिस और निजी एफएम चैनल रेडियो मिर्ची के बीच एक समझौते (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए. इसके तहत, एफएम चैनल रेडियो मिर्ची दिल्ली-एनसीआर में शहर के रोज़ाना घटनाक्रम की सूचना उपलब्ध कराएगा. यह सूचनाएं दिल्ली पुलिस की ओर से रेडियो मिर्ची को दी जाएंगी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक एफएम चैनल रेडियो मिर्ची दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद के क्षेत्रों में सार्वजनिक सुरक्षा को प्रभावित करने वाली घटनाओं, आकस्मिक आपदाओं से जुड़ी जानकारी प्रसारित करेगा. इसके अलावा चैनल शहर में ट्रैफिक जाम, मार्गों के परिवर्तन आदि के ताजा अपडेट भी जारी करेगा.

इस समझौते में दिल्ली पुलिस की ओर से कहा गया है कि एफएम चैनल दिल्ली में दंगे, आग की दुर्घटनाओं, प्राकृतिक आपदा, ट्रैफिक जाम, मार्ग परिवर्तन, वीवीआईपी आवाजाही, विशेष बंदोबस्त, धरना-प्रदर्शन और मौसम की भी जानकारी साझा करेगा.

दिल्ली पुलिस की पीआरओ सुमन नलवा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, "हम रेडियो मिर्ची के शुक्रगुजार हैं कि उसने हमारे साथ इस एमओयू पर हस्ताक्षर किए. अब रेडियो मिर्ची को सुनने वाले दिल्ली और उसके पास के घटनाक्रम से आसानी से वाकिफ हो पाएंगे. एमओयू, प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं और दिल्ली वासियों के लिए अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं के प्रसार में मदद करेगा. ताकि वे किसी भी संकट से बेहतर तरीके से निपट सकें.”

पीटीआई की खबर के मुताबिक द्वारका रेंज के ट्रैफिक और पब्लिक इंटरफेस यूनिट के डीसीपी अंकित कुमार सिंह कहते हैं, “राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 1.22 करोड़ रजिस्टर्ड वाहन हैं. लोग इनमें एफएम सुनते हैं. इस योजना के जरिए हम लोगों तक अपनी पहुंच बढ़ा पाएंगे. लोगों को शहर में हो रहे धरना-प्रदर्शन आदि की जानकारी मिलेगी.”

दिल्ली पुलिस और एफएम चैनल रेडियो मिर्ची के बीच हुए इस समझौते में एक बड़ी अड़चन है. प्राइवेट एफएम चैनलों को स्वतंत्र रूप से खबरें प्रसारित करने की इजाजत नहीं है. देश में रेडियो पर खबर प्रसारित करने को लेकर कड़े और स्पष्ट सरकारी प्रतिबंध हैं. इस लिहाज से दिल्ली पुलिस और रेडियो मिर्ची के बीच हुआ समझौता, रेडियो पर खबरें प्रसारित करने के मौजूदा प्रावधानों का उल्लंघन करता दिखाई पड़ता है.

निजी एफएम चैनलों पर खबरें प्रकाशित करने की दिशा में 8 जनवरी, 2019 का एक घटनाक्रम उल्लेखनीय है. उस वक्त भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कई शर्तों के साथ निजी एफएम चैनलों को ऑल इंडिया रेडियो (आकाशवाणी) द्वारा प्रसारित समाचार बुलेटिनों को बिना किसी काट-छांट के, जस का तस प्रसारित करने की ढील दी थी. इसमें आकाशवाणी को श्रेय देने का प्रावधान भी है.

इस तरह एफएम चैनलों पर समाचार प्रसारण को लेकर कड़ा सरकारी नियंत्रण इस बदलाव के बाद भी बना रहा. 2019 में हुए बदलाव के वक्त भी एफएम चैनलों की तरफ से, निजी प्लेयर्स के लिए खबरों का रास्ता खोलने की मांग की गई थी. देश के निजी रेडियो ऑपरेटर्स एसोसिएशन की तत्कालीन अध्यक्ष अनुराधा प्रसाद ने उस वक्त सरकार द्वारा दी गई इस छूट के लिए सरकार को धन्यवाद दिया था, यानी निजी एफएम चैनलों पर खबरों का प्रसारण एक बड़ा मुद्दा है.

2001 में देश का पहला निजी एफएम चैनल रेडियो सिटी बेंगलुरु से आरंभ हुआ था. 2006 में तत्कालीन सरकार ने एक और समिति का गठन किया. इस समिति का उद्देश्य रेडियो चैनलों में समाचार एवं समसामयिक कार्यक्रमों को अनुमति देने के बारे में सरकार को सलाह देना था. समिति ने सिफारिश दी कि सरकार को 24 घंटे टेलीविजन समाचार चैनलों की तर्ज पर रेडियो समाचार चैनल की अनुमति भी दे देनी चाहिए. लेकिन यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

नियम और कानूनों की इस रोशनी में जब हम दिल्ली पुलिस और रेडियो मिर्ची का यह समझौता देखते हैं तब कुछ स्वाभाविक सवाल पैदा होते हैं. क्या दिल्ली पुलिस को रेडियो पर समाचार प्रसारण की नियमावली पता नहीं है? क्या खबर और घोषणा के बीच कोई अंतर नहीं होता? ये ऐसे सवाल हैं जो दिल्ली पुलिस और रेडियो मिर्ची के समझौते को कटघरे में खड़ा करते हैं.

हमने दिल्ली पुलिस की पीआरओ सुमन नलवा से बात की. वो कहती हैं, "हम प्राकृतिक आपदा या ट्रैफिक जाम से जुड़ी जो भी जानकारी साझा करेंगे वह रेडियो मिर्ची अपने श्रोताओं के साथ साझा करेगा. यह कोई खबर नहीं है यह सिर्फ एक जानकारी है जो लोगों को रूट्स और जाम के बारे में बताई जाएंगी.”

क्या दंगों के बारे बताना, प्राकृतिक आपदा या आगजनी की दुर्घटनाओं का प्रसारण खबर नहीं है? इस सवाल पर वह कहती हैं, "दंगों की तो नहीं, हां हमें आपदा से संबंधित कोई जानकारी अगर ज्यादा लोगों तक पहुंचानी है तो हम यह जानकारी साझा करेंगे."

क्या इस तरह से किसी प्राइवेट एफएम चैनल के साथ एमओयू हस्ताक्षर करना सही है? क्या इसमें सरकार की नीतियों का उल्लंघन नहीं है? वह कहती हैं, "यहां कोई पैसों का लेनदेन नहीं हुआ है, तो यह गलत कैसे है. अगर हम लोगों को जानकारी दे रहे हैं कि यहां पर रूट बंद हैं और यहां पर पानी भरा हुआ है तो यह कैसे गलत है, आप मुझे समझाइए."

यह एमओयू किसी प्राइवेट चैनल से क्यों? खुद आकाशवाणी के अपने एफएम चैनलों के साथ क्यों नहीं? इस सवाल पर वह कहती हैं, "हमारा अन्य चैनलों के साथ भी समझौता हुआ है. किसी एक के साथ नहीं है. बिग एफएम के साथ भी है क्योंकि लोग कभी कोई चैनल सुनते हैं तो कभी कोई और."

हमने आकाशवाणी के पूर्व डायरेक्टर लक्ष्मीकांत वाजपेयी से इस समझौते की बाबत बात की. वो कहते हैं, “दिल्ली पुलिस का ट्रैफिक वाला समझौता हमारे साथ कई सालों तक चला है. हम तब एफएम रेनबो और एफएम गोल्ड से साथ ये जानकारियां साझा करते थे. लेकिन यह समझौता किसी प्राइवेट एफएम चैनल के साथ होना तो दुर्भाग्यपूर्ण है. दिल्ली पुलिस, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है और देश में आकाशवाणी जैसी संस्था मौजूद है, इसके बावजूद आपको प्राइवेट रेडियो चैनल के साथ एमओयू करना पड़ रहा है.”

इस बारे में हमने रेडियो मिर्ची के सीईओ प्रशांत पांडेय से भी संपर्क करने की कोशिश की. उनसे हमारी बात नहीं हो सकी. जबकि अन्य कर्मचारियों ने या तो इस पर बात करने से मना कर दिया, या कहा कि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं है.

हमने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में मुख्य सलाहकार के पद पर नियुक्त वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता से भी बात की. उन्होंने ये कहकर हमें टाल दिया कि इस बारे में आप सरकार से कमेंट लीजिए.

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