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साम-दाम-दंड-भेद से पतंजलि ने खरीदी दलितों की सैकड़ों एकड़ जमीन

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उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में तेलीवाला नाम का एक गांव है. तेलीवाला, औरंगाबाद और इसके आस पास के गांवों में सैकड़ों बीघा जमीन पतंजलि के पास है. एक विश्व प्रसिद्ध योग गुरु खासकर जो एक समय में भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला चुका है, उसके द्वारा जमीनें खरीदने के लिए ऐसा कुछ भी किया जा सकता है, यह विश्वास से परे लगता है. कहीं ग्रामसभा की जमीन पर कब्जा तो कहीं बरसाती नदी को भरकर कब्जा. कहीं दलितों की जमीन खरीदने के लिए दलितों को ही मोहरा बनाया गया.

हरिद्वार से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर स्थित तेलीवाला गांव में करीब 1500 के करीब दलित वोटर हैं. कई बार यहां के प्रधान दलित समुदाय से हुए हैं. साल 2005 से 2010 के बीच यहां पतंजलि और उनके सहयोगियों ने खूब जमीन खरीदी है. चूंकि गांव में दलित समुदाय की बड़ी आबादी है, इसलिए उनके पास गांव में जमीनें भी ज्यादा थीं. किसी समय में भूमिहीन दलितों को सरकार से छह-छह बीघा जमीन पट्टे पर मिली थी.

उत्तराखंड में कानूनी प्रावधान है कि दलित की जमीन दलित ही खरीद सकते हैं. दलितों द्वारा किसी अन्य को जमीन बेचने के नियम बहुत कठोर हैं. दलित किसी अन्य जाति को जमीन सिर्फ उसी हालत में बेच सकते हैं, जब उसके पास 18 बीघा या उससे ज्यादा जमीन हो. इसके लिए भी एसडीएम और डीएम से विशेष इजाजत लेनी पड़ती है और जमीन का लैंडयूज बदलवाना पड़ता है.

पतंजलि ने इन गांवों के आस पास जड़ी-बूटियों और गन्ने आदि की खेती के लिए बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदीं. चूंकि वो सीधे तौर पर इन्हें नहीं खरीद सकते थे, इसलिए उन्होंने कुछ दलितों को ही मोहरा बना कर उनके नाम पर गांव के दलितों की जमीन को बिकवा दिया. इस तरह तेलीवाला में पतंजलि ने सैकड़ों बीघा जमीन खरीद ली.

जान मोहम्मद तेलीवाला गांव के प्रधान हैं. वे बताते हैं, ‘‘हमारे गांव के ही महेंद्र सिंह, कुरड़ी प्रधान और उनका लड़का अर्जुन, मुरसलीन समेत कई लोगों ने रामदेव के लिए जमीन की खरीदारी की है. खरीद के लिए पैसे पतंजलि के लोग देते थे. जमीन दलितों के नाम पर होती थी, लेकिन कब्जा उस पर पतंजलि का होता था. कुछ लोगों से दान में भी जमीन ली गई, लेकिन दान में ली गई जमीनों के लिए भी पैसे दिए गए हैं.’’

ग्रामीणों के मुताबिक जमीनों की इस अपरोक्ष खरीद-फरोख्त में तत्कालीन पटवारी गुलाब सिंह और तत्कालीन प्रधान कुरड़ी सिंह ने पतंजलि की मददद की. गुलाब सिंह और कुरड़ी दोनों दलित थे. दोनों का निधन हो चुका है.

पतंजलि ने पूरे परिवार के नाम खरीदी जमीन

तेलीवाला के ग्रामीण हमें बताते हैं कि एक समय में पतंजलि के लिए ज़मीन खरीदना आसपास के लोगों के लिए व्यवसाय बन गया था. हमने पाया कि कुछ लोगों ने अपने परिवार के हर सदस्य के नाम पर जमीन खरीदी. कुछ ने तो अपने ड्राइवर और नौकर तक के नाम पर जमीन खरीदी थी. यह सब साल 2005 से 2010 के बीच हुआ.

52 वर्षीय महेंद्र सिंह तेलीवाला गांव के रहने वाले हैं. हम उनसे उनके घर पर मिले. सिंह ने खुद अपने नाम पर, पत्नी पल्ली, भाई फूल सिंह, बेटे अंकित कुमार और अपने ड्राइवर प्रमोद कुमार के नाम पर पतंजलि के लिए अपरोक्ष तरीके से जमीन खरीदी थी. यह बात वो खुद न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं.

महेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘मैंने तकरीबन 100 बीघा जमीन अपने और अपने घर वालों के अन्य सदस्यों के नाम पर पतंजलि के लिए खरीदी थी. पतंजलि के वरिष्ठ कर्मचारी देवेंद्र चौधरी मेरे पास आये थे. उन्होंने कहा कि अपने नाम पर कुछ जमीन लिखवा लो. पैसे हम देंगे, बस नाम तुम्हारा होगा. चौधरी खुद ही जमीन बेचने वालों को कैश में पैसा देते थे. नाम हम लोगों का होता था.’’

उत्तराखंड लैंड रिकॉर्ड के मुताबिक साल 2008 में सिंह और उनके परिवार ने तकरीबन 18 बार जमीन की खरीद, बिक्री और एग्रीमेंट किया. साल 2007 में सात बार और साल 2009 में 21 बार.

सिंह कहते हैं, ‘‘उस वक्त गुलाब सिंह हमारे गांव का पटवारी था. वो रामदेव का आदमी था. पटवारी को एक-एक जमीन की जानकारी होती है. गांव के किसी दलित से मेरे नाम पर जमीन ली जाती थी. इसके कुछ दिन बाद मेरे नाम पर ली गई जमीन अमर सिंह को बेच दी गई. अमर सिंह, गुलाब सिंह के रिश्ते में मामा लगते हैं.’’

दरअसल गुलाब सिंह और अमर सिंह पतंजलि के भरोसे के आदमी थे, जबकि महेंद्र सिंह गांव के आदमी थे. उनके नाम पर जमीन होने की स्थिति में बाद में वो कानूनी मुसीबत खड़ी कर सकते थे.

लैंड रिकॉर्ड से भी इस बात की पुष्टि होती है. 9 जनवरी, 2009 के दिन अमर सिंह, पुत्र हरभजन सिंह ने लगभग 1.8 हेक्टेयर जमीन महेंद्र सिंह से खरीदी थी. इन जमीनों की कीमत 9 लाख 60 हजार रुपए थी. अमर सिंह ने 2009 में ही एक जनवरी को कुरड़ी सिंह से भी लगभग 1.9 हेक्टेयर जमीन खरीदी थी. जिसकी कीमत 10 लाख 15 हजार रुपए के करीब थी.

महेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘रामदेव या बालकृष्ण जमीन के मामले में कभी सामने नहीं आए. देवेंद्र चौधरी और पंकज ही यह सब करते थे. गुलाब सिंह उन्हें जमीन की जानकारी देते थे. जमीन एक आदमी से दूसरे के नाम दर्ज होती. दूसरे से तीसरे के पास. अभी भी पतंजलि का जिन जमीनों पर कब्जा है, उसमें से कई खसरा किसी और के नाम पर है.’’

‘‘रामदेव के करीबी देवेंद्र चौधरी के यहां जितना कैश रुपया मैंने देखा, उतना मैंने सिर्फ फिल्मों में देखा था. वे जमीनों का भुगतान कैश में ही करते थे. पैसे देने का काम पंकज करते थे.’’ महेंद्र बताते हैं.

पतंजलि द्वारा दलितों की जमीन की अपरोक्ष खरीद-फरोख्त का नतीजा यह हुआ कि आज तेलीवाला के ज्यादातर दलित भूमिहीन हैं. वे पतंजलि के मजदूर बन गए या फिर काम के लिए शहरों की तरफ पलायन कर गए. गांव के बुजुर्ग हरी सिंह ने पतंजलि को ग्रामसभा की सैकड़ों बीघा जमीन दान में देने के खिलाफ आंदोलन किया था.

हरी सिंह कहते हैं, ‘‘साल 2005 से 2010 के बीच हमारे गांव में खूब जमीन की बिक्री हुई. उन दिनों गांव में भू-माफियाओं का डेरा रहता था. अगर कोई अपनी जमीन बेचने के लिए राजी नहीं होता था तो उस पर तरह-तरह से दबाव बनाया जाता था, उसे लालच दिया जाता था.’’

हरी सिंह आगे कहते हैं, ‘‘साल 1975-76 में काफी कोशिश करके गांव के दलितों को हमने 6-6 बीघा जमीन पट्टे पर दिलवाई थी. ताकि वे गुजर-बसर कर सकें. आज इसमें से 80 प्रतिशत लोग भूमिहीन हो गए हैं.’’

महेंद्र के मुताबिक पतंजलि के लिए काम करने के कारण उन्हें फायदे की जगह नुकसान हुआ है. वे कहते हैं, ‘‘साल 2009 के करीब पतंजलि के लोगों के कहने पर मैंने कुछ जमीनों का एग्रीमेंट किया. एग्रीमेंट के पैसे मैंने दे दिए क्योंकि देवेंद्र ने कहा था कि वो जल्द ही हमें वापस कर देगा. बाद में उन्होंने जमीन लिया नहीं और मेरे पास पैसे नहीं थे कि जमीन ले सकूं. नतीजतन जिनकी जमीन थी उन्होंने वापस कब्जा कर लिया. मेरे पैसे डूब गए. पैसे मैंने कर्ज पर लिए थे. कर्ज चुकाने के लिए मुझे अपनी पुश्तैनी जमीन बेचनी पड़ी.’’

पतंजलि के लिए जमीन खरीदने वाले महेंद्र सिंह अकेले नहीं हैं. तेलीवाला के ही रहने वाले देवेंद्र कुमार ने अपनी मां प्रेमवती, पत्नी ममता रानी और खुद अपने नाम पर जमीन खरीदी थी. कुमार भी दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.

कुमार कहते हैं, ‘‘पतंजलि के लिए मैंने अपने और अपने परिवारजनों के नाम पर 35 बीघा के करीब जमीन खरीदी थी. इसके लिए मुझसे गुलाब सिंह ने संपर्क किया था. गुलाब ने कहा था कि स्वामी जी (रामदेव) के ट्रस्ट के लिए जमीन लेनी है. उनके कहने पर मैं गांव के दलितों की जमीन अपने नाम करवाता गया.’’

महेंद्र सिंह की तरह देवेंद्र भी, गुलाब सिंह के अलावा देवेंद्र चौधरी और पंकज के नामों का जिक्र करते हैं. वे कहते हैं कि यहीं लोग जमीन की खरीद बिक्री कराते थे.

साल 2008 में देवेंद्र और उनके परिजनों ने तकरीबन 18 बार जमीन की खरीद बिक्री की. उत्तराखंड सरकार के लैंड रिकॉर्ड के मुताबिक साल 2008 में देवेंद्र कुमार और उनकी पत्नी ममता रानी ने 1.4 हेक्टेयर जमीन खरीदी थी. जिसकी कीमत 9 लाख 25 हजार रुपए थी.

पतंजलि की जमीन बटोरने में कुरड़ी सिंह आगे

बाबा रामदेव और जमीन का जिक्र आते ही तेलीवाला गांव के लोग तीन बार के प्रधान रहे कुरड़ी सिंह का जिक्र सबसे ज्यादा करते हैं. इनकी मृत्यु 2009 में हो गई. पटवारी गुलाब सिंह के साथ मिलकर कुरड़ी प्रधान ने पतंजलि के लिए खूब जमीनें बटोरी.

कुरड़ी सिंह के निधन के महज तीन दिन बाद ही गुलाब सिंह उनके घर पहुंचे और जमीन अपने लोगों के नाम करवाने का दबाव बनाया. जिसके बाद कुरड़ी की पत्नी और बेटों ने जमीन गुलाब सिंह के जानने वालों के नाम कर दी. यह जानकारी कुरड़ी के बेटे अर्जुन और तेलूराम देते हैं.

अर्जुन और तेलूराम दोनों के पास जेसीबी मशीन हैं. जिसे वे किराए पर चलाते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री ने अर्जुन से मुलाकात की. अर्जुन जब हमसे मिलने आए तो उनके साथ मुरसलीन भी थे. मुरसलीन गांव के उन चंद लोगों में से एक हैं, जिन्होंने पतंजलि के लिए जमीन खरीदी थी. मुरसलीन हर चीज से अनजान होने का दिखावा करते हैं. लेकिन थोड़ा कुरेदने पर कहते हैं, ‘‘अब तो पुरानी बात हो गई. अब तो पतंजलि वाले इन्हें ही (अर्जुन की तरफ इशारा) मुसीबत में डाल दिए हैं.’’

अर्जुन पतंजलि के लिए जमीन खरीदने के सवाल पर कहते हैं, ‘‘पिताजी किसके लिए जमीन खरीदते थे यह तो हमें नहीं मालूम है. पर उनके निधन के तीन दिन बाद ही गुलाब सिंह हमारे घर आए और कहा कि उनके नाम पर मेरी जमीनें हैं. उसे वापस कर दो. मेरी मां और हम दोनों भाइयों ने जमीन वापस कर दी. वह जमीन अभी पतंजलि के पास है.’’

अर्जुन के नाम पर भी कई बार जमीन की खरीद बिक्री हुई है. इस पर अर्जुन कहते हैं, ‘‘वो जमीन मेरे पिताजी ने अपने पैसों से हमारे नाम पर खरीदी थी. उसमें से कुछ जमीन गुलाब सिंह ने हमसे वापस ले ली.’’ जब अर्जुन के नाम पर लाखों रुपए की जमीन की खरीदारी हो रही थी तब उनकी उम्र 22-23 साल थी. वे दिल्ली में रहकर मजदूरी करते थे.

उत्तराखंड सरकार के लैंड रिकॉर्ड के मुताबिक कुरड़ी सिंह और उनके बेटे अर्जुन ने साल 2006 में छह बार जमीन की खरीद-बिक्री की. 2007 में चार बार, 2008 में छह बार, 2009 में 11 दफा जमीन की खरीद बिक्री की है.

कुरड़ी सिंह ने पतंजलि को जमीन दिलाने में मदद की, लेकिन उनके निधन के बाद उनके बेटे अर्जुन से जमीन की खरीद में पतंजलि ने छल किया. अर्जुन से जमीन लेने के लिए फिर एक दलित व्यक्ति सोमलाल का इस्तेमाल किया गया.

अर्जुन न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘पतंजलि के लोगों से उनकी बात आठ बीघा जमीन बेचने की हुई थी. जब बेचने गए तो 28 बीघा जमीन अपने नाम करा ली. जिसमें आठ बीघा की रजिस्ट्री थी और 20 बीघा दान करा ली. यह हमारे साथ छल था. हम लोग इतने अमीर तो है नहीं कि 20 बीघा जमीन दान करेंगे. हम इसके खिलाफ कोर्ट गए. आठ बीघा तो उनके पास चली गई, लेकिन 20 बीघा पर स्टे है, जिस पर हमारा कब्जा है. केस चल रहा है. पतंजलि की तरफ से राजू वर्मा केस की सुनवाई के समय आते हैं.’’

पतंजलि पर रुड़की में जमीन विवाद को लेकर तकरीबन 20 मामले चल रहे हैं. पतंजलि की तरफ से राजू वर्मा इनमें से कुछेक मामले की पैरवी कोर्ट में करते हैं. वर्मा अर्जुन की जमीन की बिक्री में सोमपाल की तरफ से गवाह बने थे. अर्जुन ने जो शिकायत की है उसमें इनका भी नाम है. यह जानकारी अर्जुन और राजू वर्मा दोनों न्यूज़लॉन्ड्री से साझा करते हैं.

वर्मा हमसे से बात करते हुए पहले तो स्वीकार करते हैं कि जमीन पतंजलि के लिए ली गई थी, लेकिन जैसे ही उन्हें भनक लगती है कि पत्रकार हैं, तो वे बात पलटने लगते हैं. वर्मा कहते हैं, ‘‘सोमलाल यहां अपनी जमीन खरीदने आए थे. उनको एक गवाह की जरूरत थी. उन्होंने मुझे कहा तो मैं गवाह बन गया.’’

न्यूज़लॉन्ड्री सोमलाल के घर पहुंचा तो अलग ही कहानी सामने आई. हरिद्वार के धेनुपुरा गांव के रहने वाले सोमलाल का निधन हो चुका है. हमारी मुलाकात उनके बेटे प्रणेश कुमार से हुई. कुमार उत्तराखंड पुलिस में सिपाही हैं. धेनुपुरा, तेलीवाला से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां से थोड़ी ही दूर स्थित पदार्था गांव में पतंजलि का फूड पार्क है.

कुमार ने बताया, ‘‘पतंजलि के फूड पार्क में दलितों की जमीन पिताजी के नाम पर ली गई थी. जिसे बाद में उन्होंने वापस कर दिया. इसकी तो मुझे जानकारी है, लेकिन तेलीवाला की जानकारी नहीं है. अगर कोई मामला चल रहा है तो नोटिस तो मिलना चाहिए था. हमें अभी तक कोई नोटिस तक नहीं मिला है.’’

प्रणेश कहते हैं, ‘‘उनके (पिताजी) नाम पर दलितों की जमीन दूसरी जाति के लोग खरीदते थे. देहरादून में उनके नाम पर करोड़ों की जमीन ली गई थी. बहुत लोग ऐसे मौके पर लालच दिखा देते हैं, लेकिन उन्होंने जमीन वापस कर दी. उन्हें पीने का शौक था तो पीने का खर्च लेकर वे जमीन अपने नाम करा लेते थे. हमारे पास पुश्तैनी जमीन छोड़कर एक इंच जमीन नहीं है. कभी भी आप इसकी जांच करा सकते हैं.’’

मजबूरी में जमीन बेच दी

पतंजलि ने तेलीवाला में कुछ लोगों से छल से तो कुछ लोगों से जबरदस्ती जमीन ली है. कुछ को अपनी जमीन मजबूरी में देनी पड़ी. गांव के लोग ऐसी कहानियों का जिक्र करते हैं.

42 वर्षीय श्याम सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘जिन लोगों ने पतंजलि को जमीन नहीं बेंची. उन्हें बेचने के लिए मजबूर किया गया. मान लीजिए पतंजलि की जमीन के बीच मेरा खेत है. उन्होंने चारों तरफ से बाड़बंदी कर दी. जिसके बाद आप अपनी खेत में नहीं जा सकते हैं. सारे रास्ते बंद हो गए थे. ऐसे में लोगों ने मजबूरन अपनी जमीन बेच दी.’’

तहलका की रिपोर्ट ‘योग से उद्योग’ तक में ऐसी ही एक घटना का जिक्र है. 2011 में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक एक सीनियर अधिकरी पतंजलि के फूड पार्क में निरीक्षण के लिए गए थे. वहां फूड पार्क के बीचों-बीच एक खेत में फसल लहलहा रही थी. जिसे देखकर अधिकारी ने पूछा कि यह किसकी जमीन है. इसके जवाब में आचार्य बालकृष्ण ने कहा, “कुछ अनाड़ी किसानों की जमीन है, जो बेचने को तैयार नहीं हैं, लेकिन जाएंगे कहा, झक मारकर हमारे पैरों में आएंगे.’’

गांव में जहां कुछ लोग पतंजलि को लेकर खुलकर बोलते हैं तो बहुत से लोग चुप्पी साध लेते हैं.

जमीन खरीदने में देवेंद्र चौधरी का नाम बार-बार आता है. न्यूज़लॉन्ड्री ने चौधरी से बात की. वे ऐसी किसी भी जानकारी से इनकार करते हुए कहते हैं, ‘‘हम क्यों जमीन खरीदेंगे. हमें इससे क्या काम. हम अपने काम में व्यस्त हैं.’’ हमने पूछा कि चाहे महेंद्र सिंह हो या देवेंद्र कुमार, जिन्होंने भी पतंजलि की जमीन खरीदी वे यह दावा करते हैं कि जमीन के पैसे आपने ही दिए हैं. क्या यह सच नहीं है. वे दोबारा ना में ही जवाब देते हैं.

चौधरी, तेलीवाला गांव में गुलाब सिंह के अलावा किसी और को जानने से इनकार करते हैं. वे राजू वर्मा को भी नहीं जानने की बात कहते हैं, हालांकि वर्मा ने बातचीत में चौधरी से अपनी कई मुलाकातों का जिक्र किया था. हमें उनका पता दिया.

दान करा ली तकरीबन 600 बीघा जमीन

जमीन को लेकर पतंजलि यही तक सीमित नहीं रहा. तेलीवाला हो या औरंगाबाद हरेक जगह ग्रामसभा की जमीन कब्जाने का आरोप भी पतंजलि पर लगा. तेलीवाला में तो तत्कालीन प्रधान अशोक सैनी के साथ मिलाकर तकरीबन 600 बीघा जमीन पतंजलि ने दान में ले ली थी लेकिन ग्रामीणों की कोशिश से वो जमीन वापस ली गई.

संघर्ष करने वालों में एक हरी सिंह भी थे. वे न्यूज़लॉन्ड्री को एक डॉक्यूमेंट दिखाते हैं जो उन्होंने आरटीआई के जरिए हासिल किया था. इस डॉक्यूमेंट में सैनी का हरिद्वार के जिलाधिकारी को लिखा गया पत्र है, जिसे 2 फरवरी, 2008 को लिखा गया था.

पत्र का विषय था, ‘‘पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को ग्राम शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला की ग्रामसभा की भूमि दिए जाने के संबंध में.’’

अशोक सैनी द्वारा हरिद्वार के जिलाधिकारी को लिखा गया पत्र
हरी सिंह
श्याम सिंह
योग ग्राम औरंगाबाद

पत्र में सैनी ने लिखा है, ‘‘ ग्रामसभा की अकृषि भूमि को शासन स्तर से पतंजलि योगपीठ को दिए जाने की जानकारी मिली. हमें इस समाज एवं जनहित कार्य के लिए आपत्ति नहीं है, बल्कि हम उक्त कार्य में जितना सहयोग हो करेंगे.’’

सैनी ने इस पत्र में दावा किया कि ग्रामसमाज पतंजलि को जमीन देने को लेकर खुश है.

दरअसल हकीकत इससे उलट थी. ग्रामसभा के बाकी सदस्यों को इस बात की भनक तक नहीं थी कि पतंजलि को जमीन दी जा रही है. जबकि दान में या किसी रूप में देने से पहले ग्राम समाज के दूसरे लोगों से पूछा तक नहीं गया था. ग्राम समाज की जमीन किसी भी काम के लिए देने की प्रक्रिया होती है. ग्रामसभा में प्रधान के अलावा 11 सदस्य होते हैं. इनसे भी इसके लिए राय लेनी होती है.

जान मोहम्मद भी उन चंद लोगों में शामिल थे, जिन्होंने इसकी लड़ाई लड़ी थी. वे कहते हैं, ‘‘अशोक सैनी ने खुद ही पतंजलि को जमीन दान में करने का फैसला कर लिया था. ऐसे तो किया नहीं होगा, जरूर पैसों की लेनदेन हुई होगी. हालांकि हमारे विरोध के बाद जमीन की दान की प्रक्रिया रुक गई. वह अभी ग्रामसभा के पास है.’’

सैनी जमीन दान करने से साफ इंकार करते हैं. उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पहले जो प्रधान (कुरड़ी सिंह) थे, उन्होंने मुहर लगाकर मेरा फर्जी हस्ताक्षर कर दिया था.’’

यह बात हैरान करती है. सैनी 2005 में गांव के प्रधान बने थे और 2010 तक रहे. जबकि सैनी के द्वारा जिलाधिकारी को पत्र साल 2008 में लिखा गया.

सैनी के लिखे पत्र के बाद 12 फरवरी, 2008 को बालकृष्ण ने अपर जिलाधिकारी को तेलीवाला में 40.422 हेक्टेयर यानी लगभग 600 बीघा जमीन ग्रामसभा की मांग का पत्र दिया. सब कुछ किस तरह मिलीभगत से हो रहा था, इसकी बानगी यहां नजर आती है. सबकुछ 18 दिनों के भीतर होता है.

न्यूज़लॉन्ड्री के पास हरिद्वार के अपर जिलाधिकारी द्वारा 18 फरवरी, 2008 को जिलाधिकारी को लिखा गया पत्र मौजूद है.

पत्र में लिखा है, ‘‘उक्त (पतंजलि योगपीठ) ट्रस्ट के आचार्य बालकृष्ण एवं क्षेत्रीय लेखपालों के साथ, क्षेत्र का मेरे द्वारा भ्रमण किया गया. भ्रमण एवं निरीक्षण के दौरान ट्रस्ट के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण द्वारा, उनके द्वारा पूर्व में केंद्रीय भूमि के स्थान पर सम्मुख पत्र में अंकित 12 फरवरी 2008 ग्राम औरंगाबाद में ग्राम सभा की 110 हेक्टेयर एवं तेलीवाला में ग्राम सभा की 40.422 हेक्टेयर भूमि दिए जाने हेतु आवेदन किया गया.’’

इस पत्र में उपजिलाधिकारी ने ग्रामसभा की उन जमीनों की डिटेल भी दी हुई थी. प्रशासन अपनी प्रक्रिया पूरी करके ग्रामसभा की जमीन देता उससे पहले ही इसकी भनक गांव वालों को लग गई.

हरी सिंह कहते हैं, ‘‘बाबा रामदेव तब तक बड़ी ताकत बन चुके थे. मुख्यमंत्रियों के साथ उनका उठना बैठना था. ऐसे में जिलाधिकारी और दूसरे अधिकारीयों की क्या बिसात. हमें जैसे ही इसकी जानकारी मिली हमने ग्रामसभा की बैठक बुलाई और एफिडेविट तैयार किया कि हम अपनी जमीन पतंजलि को नहीं देना चाहते हैं.’’

औरंगाबाद जहां पतंजलि ने मांगी थी 110 हेक्टेयर जमीन

तेलीवाला के लोगों ने संघर्ष करके अपनी जमीन तो वापस ले ली, लेकिन उसके पास के गांव औरंगाबाद में क्या हुआ, यह जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम मौके पर पहुंची. रास्ते में जगह-जगह पतंजलि योगग्राम का बोर्ड नजर आता है. दरअसल इसी गांव में पतंजलि का योगग्राम बना हुआ है.

पतंजलि फूड पार्क
बाबा रामदेव के साथ जान मोहम्मद

तेलीवाला के लोगों की तरह ही औरंगाबाद के लोगों ने भी अपनी जमीन की लड़ाई लड़ी. लड़ाई लड़ने वालों में गांव के चरण सिंह चौहान काफी आगे थे. वे न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘हमने सैकड़ों बीघा ग्रामसभा की जमीन बचाई है, लेकिन आज भी तकरीबन 150 बीघा जमीन पर पतंजलि का कब्जा है. पतंजलि ने इसी गांव में योग आश्रम बनाया है. वो पतंजलि की नहीं है.’’

औरंगाबाद में पतंजलि ने ग्रामसभा की 110 हेक्टेयर यानी 1,650 बीघा जमीन मांगी थी. इस पर चौहान कहते हैं, ‘‘सरकार के अधिकारी आए और मौके पर खाली जमीन देखने के बाद लिखकर दे दिया कि जमीन दी जा सकती है. शासन ने हमें पत्र लिखकर जमीन पतंजलि को देने की बात कही. तब मैं क्षेत्र पंचायत सदस्य था. हमारे यहां की ग्रामसभा ने साफ तौर पर जमीन देने से इनकार दिया.’’

हरिद्वार में ज्यादातर पत्रकार ऑन रिकॉर्ड पतंजलि के बारे में कुछ बोलते से कतराते हैं. जो बोलते हैं वो तारीफों के पुल ही बांधते हैं. इसका कारण है, उनके मीडिया संस्थानों को मिलने वाला विज्ञापन. इसी कारण स्थानीय पत्रकार रामदेव से जुड़ी खबरों को हाथ नहीं लगाते हैं.

बीते दिनों हरिद्वार के प्रेस क्लब में दिल्ली निवासी नवीन सेठी ने पतंजलि विश्वविद्यालय के पास स्थित जमीन पर जबरन कब्जाने का आरोप लगाते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, लेकिन ज्यादातर अखबारों ने उसे छापा तक नहीं.

प्रेस क्लब के एक सदस्य कहते हैं, ‘‘हम तो लिखकर या वीडियो बनाकर भेज भी दें, लेकिन एडिटर ही नहीं चलने देंगे. हम बाबा और उनके शागिर्दों के हरेक काम के बारे में जानते है, लेकिन लिखकर क्यों दुश्मन बने. सब चुप हैं.’’

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