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राज्यसभा में सुभाष चंद्रा के 6 साल: मीडिया पर चुप्पी, धारा 370 पर डिबेट
1 अगस्त, 2022 को एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन, डॉ सुभाष चंद्रा का बतौर राज्यसभा सांसद कार्यकाल समाप्त हो गया. चंद्रा अपने गृह प्रदेश हरियाणा से 2016 में भाजपा के समर्थन से निर्दलीय सांसद चुने गए थे. वोटों का गणित उनके पक्ष में न होने के बावजूद, चंद्रा ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और कांग्रेस के उम्मीदवार आरके आनंद को हराया था. इस चुनाव में दोनों पार्टियों के पास अपने सदस्य को जिताने के लिए पर्याप्त सदस्य होने के बावजूद चंद्रा चुनाव जीत गए थे.
हरियाणा में हुए इस चुनाव की काफी चर्चा इसलिए हुई क्योंकि कांग्रेस के 14 विधायकों के वोट अवैध पाए गए. यही चंद्रा की जीत का कारण था. 2022 में चंद्रा ने दूसरी बार राज्यसभा में जाने के लिए राजस्थान से पर्चा भरा, लेकिन इस बार उनकी हार हुई.
2016 राज्यसभा के लिए चुने जाने पर चंद्रा ने कहा था, “मैंने अपने जीवन में बहुत काम किया है. अब सोचा कि समय आ गया है समाज को एक सांसद के रूप में वापस देने का. मैं लाखों लोगों को महत्वपूर्ण मुद्दे उठाकर लाभान्वित कर सकता हूं.”
उन्होंने यह भी कहा था कि, “मैं हरियाणा के विकास के लिए सभी 90 विधायकों से बातचीत करूंगा.”
पर हकीकत यह है कि चंद्रा ने पूरे अपने कार्यकाल में हरियाणा को लेकर एक भी सवाल नहीं किया. अरावली को लेकर जो एक सवाल चंद्रा ने पूछा, वह भी उन्होंने खुद नहीं बल्कि महाराष्ट्र से एनसीपी सांसद वंदना चव्हाण ने पूछा था. एनसीपी सांसद के प्रश्न में अपना सवाल जोड़ते हुए उन्होंने कहा था, “मैं भी वंदना चौहान द्वारा उठाए गए मामले से खुद को जोड़ता हूं.” बता दें कि अरावली की पहाड़ियों का एक बड़ा हिस्सा हरियाणा में आता है.
सुभाष चंद्रा की खुद की वेबसाइट पर वह खुद को तीन शब्दों में बयां करते हैं - दूरदर्शी, भारतीय टेलीविजन के पितामह और समाजसेवी. वेबसाइट पर मीडिया को लेकर काफी कुछ लिखा गया है लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि चंद्रा ने राज्यसभा में मीडिया से जुड़ा कोई सवाल नहीं किया और न ही मीडिया को लेकर किसी डिबेट में शामिल हुए. जबकि 2019 में विपक्षी सांसद मीडिया की आजादी पर बहस करने को लेकर प्रस्ताव लेकर आए थे.
बतौर सांसद चंद्रा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. वह हर मोर्चे पर पीछे नजर आए. मसलन सदन में उनकी उपस्थिति 55 प्रतिशत है, जबकि उपस्थिति का राष्ट्रीय औसत 79 प्रतिशत है और उनके प्रदेश हरियाणा के सांसदों का औसत 86 प्रतिशत है.
इसी तरह सवाल पूछने, डिबेट में हिस्सा लेने और प्राइवेट बिल पेश करने में भी वह पीछे रहे. इतना ही नहीं सुभाष चंद्रा सांसद निधि योजना का पूरा पैसा भी खर्च नहीं कर सके.
बतौर सांसद हर सांसद को अपने क्षेत्र के विकास के लिए 22 करोड़ रुपए मिलते हैं, लेकिन उनके लिए भारत सरकार की तरफ से 22 में से 15 करोड़ ही रिलीज किए गए. इन 15 करोड़ में से उन्होंने 11.45 करोड़ रुपए खर्च किए, यानी की उन्होंने रिलीज हुए फंड का 74.3 प्रतिशत ही उपयोग किया. वह शेष 3.66 करोड़ खर्च नहीं कर पाए.
सदन में सुभाष चंद्रा की उपस्थिति
सुभाष चंद्रा अगस्त 2016 में सांसद बने. उनकी अब तक की सबसे ज्यादा उपस्थिति 2016 में हुए मानसून सत्र में ही थी, उनके सांसद बनने के तुरंत बाद हुए सत्र में. उसके बाद से उनकी उपस्थिति कम होती गई, हालांकि बीच-बीच में कई बार उसमे उतार-चढाव आते रहे.
2022 के मानसून सत्र की शुरुआत 18 जुलाई से हुई और उसमें चंद्रा सिर्फ चार दिन ही सदन गए. वहीं इस वर्ष 29 दिन चले बजट सत्र में वह 13 दिन सदन गए.
2021 के शीत सत्र में उनकी उपस्थिति 50 प्रतिशत, मानसून सत्र में 82 प्रतिशत, बजट सत्र में 52 प्रतिशत रही.
उनकी उपस्थिति 2020 के मानसून सत्र में 70 प्रतिशत और बजट सत्र में 39 प्रतिशत रही. 2020 में कोरोना वायरस के कारण शीत सत्र नहीं चला था. ऐसे ही 2019 के शीत सत्र में 40 प्रतिशत, बजट सत्र में 46 प्रतिशत और मानसून सत्र में 45.7 प्रतिशत उपस्थिति रही. 2018 के शीत सत्र में उनकी उपस्थिति 17 प्रतिशत, मानसून सत्र में 53 प्रतिशत और बजट सत्र में 61 प्रतिशत रही.
2017 के शीत सत्र में 77 प्रतिशत, मानसून सत्र में 68 प्रतिशत और बजट सत्र में 72 प्रतिशत उपस्थिति रही. वहीं साल 2016 के शीत सत्र में 67 प्रतिशत और मानसून सत्र में 88 प्रतिशत उपस्थिति रही. 2016 में चंद्रा बजट सत्र के बाद सांसद बने थे.
बता दें कि इन छह सालों में चंद्रा की कुल उपस्थिति 55 प्रतिशत है. जबकि राष्ट्रीय औसत 79 प्रतिशत और हरियाणा राज्य के सांसद की औसत उपस्थिति 86 प्रतिशत है.
एक संयोग यह भी है कि 2018-19 में जिस तरह संसद में उनकी उपस्थिति कम हुई, उसी तरह ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइज में उनकी हिस्सेदारी भी कम होती गई. 30 सितंबर 2018 को जी एंटरटेनमेंट में सुभाष चंद्रा का 41.6 फीसद शेयर था. जो 20 नवंबर 2019 में घटकर 5 फीसद हो गया.
सवाल और डिबेट में हिस्सा
सुभाष चंद्रा ने चुनाव जीतने के बाद सदन में जिन मुद्दों को उठाने का वादा किया था, वह उनके कार्यकाल से गायब रहा. सांसदों की पूरी जानकारी रखने वाली संस्था पीआरएस के मुताबिक, चंद्रा ने सदन में मात्र छह बहसों में हिस्सा लिया. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर डिबेट में हिस्सा लेने का औसत 98.1 प्रतिशत है और उनके प्रदेश का औसत 58.4 प्रतिशत है.
इसी तरह चंद्रा ने अपने छह साल के कार्यकाल में मात्र 10 सवाल पूछे. उन्होंने अपना आखिरी सवाल 2018 में पूछा था और उसके बाद से उन्होंने कोई सवाल नहीं पूछा. राष्ट्रीय स्तर पर सवाल पूछने की औसत दर 284.8 है और उनके राज्य के स्तर पर 221.93 है.
इसका अर्थ है कि ‘भारत के मीडिया मुगल’ सुभाष चंद्रा सदन में सवाल पूछने और डिबेट में काफी पीछे रहे, जबकि मीडिया का काम ही सवाल पूछना है. वहीं जिस चैनल के वे मालिक हैं, वह आए दिन अपने कार्यक्रमों में विपक्षी सांसदों के सदन में कामकाज को लेकर सवाल उठाते रहते हैं लेकिन उन्होंने अपने मालिक के कामकाज को लेकर कभी कोई सवाल नहीं उठाया.
चंद्रा ने सबसे पहला सवाल नवंबर 2016 में हीरे की नीलामी प्रक्रिया को लेकर पूछा था. इसी दिन उन्होंने ग्रामीण विकास की योजनाओं में मदद को लेकर अपना दूसरा सवाल पूछा था. तीसरा सवाल 29 नवंबर को आयुर्वेद दवाइयों के क्लिनिकल ट्रायल को लेकर पूछा. बता दें कि सुभाष चंद्रा की कंपनी शिरपुर गोल्ड रिफाइनरी और एस्सेल मिडिल ईस्ट कंपनी खनन से जुड़े क्षेत्र में काम करती है.
2017 में उन्होंने कुल पांच सवाल किए. इसके बाद चंद्रा ने 18 दिसंबर 2017 को दो और 20 दिसंबर 2017 को तीन सवाल किए. 18 दिसंबर को उनका पहला सवाल गंगा नदी की सफाई योजना को लेकर था और दूसरा सवाल जल क्रांति अभियान के तहत चिन्हित किए गए गांवों को लेकर था. 20 दिसंबर को उन्होंने सांसद आदर्श ग्राम, विकलांग बच्चों के स्किल डेवलपमेंट, रोजगार और बेरोजगारी को लेकर किए गए सर्वे को लेकर सवाल पूछे थे.
2018 में उन्होंने केवल दो सवाल किए. उन्होंने यह दोनों सवाल एक ही दिन, 10 अगस्त को पूछे थे. उनके द्वारा पूछे गए दोनों सवाल भारतीय मानक ब्यूरो से जुड़े थे. 2018 के बाद चंद्रा ने संसद में एक भी सवाल नहीं पूछा.
इसी तरह उन्होंने छह साल में, संसद की मात्र छह बहसों में हिस्सा लिया. उन्होंने अगस्त 2016 में अयोध्या मामले को लेकर पहली बार डिबेट में हिस्सा लिया था. इसके बाद उन्होंने 2017 में अंडमान में द्वीपों का नाम बदलने की आवश्यकता के संबंध में हुई डिबेट में हिस्सा लिया.
अप्रैल 2017 में उन्होंने लोकसभा में पास हुए जीएसटी बिल पर, राज्यसभा में हुई बहस में हिस्सा लिया. चंद्रा ने इसके बाद सीधे अगस्त 2019 में ही अरावली की पहाड़ियों से जुड़ी बहस में हिस्सा लिया. इसके बाद उन्होंने जम्मू कश्मीर आरक्षण बिल पर और अंतिम बार, सितंबर 2020 में आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान संस्थान विधेयक, 2020 पर हुई बहस में हिस्सा लिया. सितंबर 2020 के बाद से उन्होंने अन्य किसी डिबेट में हिस्सा नहीं लिया.
समितियों की सदस्यता
सुभाष चंद्रा 20 अप्रैल, 2021 से राज्यसभा में नियम समिति और 13 अप्रैल, 2021 से लोकसभा में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी समिति के सदस्य रहे. 26 नवंबर 2016 से वे राजभाषा समिति के सदस्य हैं. वह अपना कार्यकाल खत्म होने तक इस समिति के सदस्य रहे.
चंद्रा सितंबर 2016 से जुलाई 2017 तक शहरी विकास समिति के सदस्य रहे. वहीं अक्टूबर 2016 से जून 2018 तक और अक्टूबर 2019 से राज्यसभा नियमों की समिति में भी शामिल रहे. अक्टूबर 2016 से मई 2019 तक वह गृह मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य रहे.
सुभाष चंद्रा, मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सलाहकार समिति में स्थायी विशेष आमंत्रित सदस्य भी थे.
दोबारा राज्यसभा की कोशिश
सुभाष चंद्रा ने दोबारा राज्यसभा में जाने के लिए कोशिश तो की, लेकिन इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. हरियाणा से इस बार आईटीवी ग्रुप के प्रमुख, कार्तिकेय शर्मा राज्यसभा में पहुंचे. शर्मा निर्दलीय उम्मीदवार थे लेकिन उन्हें भाजपा और जेजपी का समर्थन प्राप्त था. इस बार हरियाणा से बात नहीं बनती हुई देख चंद्रा ने राजस्थान का रुख किया.
इस बार राजस्थान से संसद जाने का सपना देख रहे चंद्रा के पास पर्याप्त नंबर नहीं थे लेकिन फिर भी उन्होंने नामांकन किया. इस बार भी वह 2016 की तरह ही राज्यसभा पहुंचने की उम्मीद लगाए हुए थे, लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा विधायकों की बाड़ेबंदी ने चंद्रा और भाजपा के खेल को बिगाड़ दिया. चंद्रा को कुल 30 वोट मिले. राज्यसभा की चार सीटों के लिए हुए चुनावों में कांग्रेस के मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी, साथ ही भाजपा के घनश्याम तिवारी को सफलता मिली.
इससे पहले चंद्रा ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि, “मैं जीतूं या न जीतूं, मैं शांति से रहूंगा. राजस्थान की राजनीति सबसे आसान है. मैंने महाराष्ट्र और हरियाणा को करीब से देखा है. इनके मुकाबले राजस्थान में राजनीति आसान है.”
फोर्ब्स लिस्ट के अनुसार एस्सेल ग्रुप के मालिक सुभाष चंद्रा की 2019 में 2.5 बिलियन डॉलर की संपत्ति थी. 2018 में उनकी संपत्ति पांच बिलियन डॉलर थी जो एक साल में ही आधी हो गई. कंपनी के घाटे में जाने के बाद उन्होंने निवेशकों और बैंकरों को पत्र लिखकर माफी भी मांगी थी. उन्होंने लिखा था, “सबसे पहले तो मैं अपने वित्तीय समर्थकों से दिल की गहराई से माफी मांगता हूं. मैं हमेशा अपनी गलतियों को स्वीकार करने में अव्वल रहता हूं. अपने फैसलों की जवाबदेही लेता रहा हूं.”
हालांकि 2021 में चंद्रा ने बताया कि उन्होंने अपना 91 प्रतिशत कर्ज चुका दिया है. 2.9 प्रतिशत कर्ज चुकाने की प्रक्रिया में है वहीं बाकी का 8.8 प्रतिशत जल्द चुका दिया जाएगा. कर्ज चुकाने के लिए चंद्रा को अपने हिस्से के शेयर बेचने पड़े.
राज्यसभा सांसदों को हर महीने एक लाख रुपए वेतन मिलता है. संसदीय क्षेत्र के लिए 70 हजार और ऑफिस खर्च के लिए 60 हजार महीने अलग से मिलता है. हालांकि चंद्रा ने मात्र एक रुपया ही वेतन के रूप में लिया. ज़ी न्यूज की एक खबर के मुताबिक चंद्रा ने केवल एक रुपये वेतन के रूप में लेकर, अपना पूरा वेतन प्रधानमंत्री राहत कोष में दान किया.
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