NL Charcha
एनएल चर्चा 223: अशोक स्तंभ पर विवाद, ब्रिटेन में प्रधानमंत्री का चुनाव और मोहम्मद जुबैर
एनएल चर्चा के इस अंक में संसद के मॉनसून सत्र में नए बिल के जरिए डिजिटल मीडिया पर लगाम की कोशिश, मोहम्मद जुबैर के सभी मामलों को लेकर यूपी सरकार ने बनाई एसआईटी, खुदरा महंगाई दर में गिरावट, पाकिस्तानी पत्रकार नुसरत मिर्जा को लेकर बीजेपी ने पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी पर साधा निशाना, गृह मंत्रालय के द्वारा एफसीआरए की वेबसाइट से एनजीओ से जुड़ा डाटा डिलीट किया जाना, रुपए के कीमत में कमी, संसद भवन में लगे अशोक स्तंभ को लेकर विवाद और ब्रिटेन में जारी राजनीतिक उठापटक और नए प्रधानमंत्री के चुनाव जैसे विषयों का जिक्र हुआ.
चर्चा में इस हफ्ते बीबीसी हिंदी के एडिटर राजेश प्रियदर्शी और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
अतुल ने चर्चा की शुरुआत नए संसद भवन पर स्थापित अशोक स्तंभ को लेकर हो रहे विवाद से की. राजेश से सवाल करते हुए वह कहते हैं, “बड़े पैमाने पर जो अलग-अलग प्रति-कृति का उपयोग होता है, वह मूल प्रतीक से थोड़ा अलग हो जाता है या वैसा बनाना संभव नहीं होता. क्या यह बेनिफिट ऑफ डाउट इस सरकार को दिया जा सकता है?”
राजेश जवाब देते हुए कहते हैं, “कोई जजमेंट देना मुश्किल है. लेकिन जो प्रतीकों की राजनीति है, उसे बीजेपी बहुत अच्छे से समझती है. हाल में हमारे आस-पास एंग्री हनुमान का फोटो देखने को मिला है. वैसे ही राम-लक्ष्मण-सीता के साथ विनम्र भाव में दिखने वाले राम की नई फोटो अब धनुष-बाण ताने हुए दिखती है. तो यह सब तस्वीरें कुछ न कुछ संदेश देती हैं. यह जो शेरों की नई फोटो है जिसमें वह आक्रामक रूप में दिखाई दे रहे हैं. यह बीजेपी और आरएसएस की आक्रामक हिंदू की जो छवि है, उसमें फिट बैठता है. इसके जरिए वह समाज की छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं.”
इस विषय पर आनंद टिप्पणी करते हुए कहते हैं, “इस विवाद को दो दृष्टि से देख सकते हैं. पहला ऐतिहासिक मौर्य काल के जो शेर थे, उस समय जो प्रतीक थे वह उस साम्राज्य को दिखाते थे. तो उस समय के वह शेर बहुत शांत नहीं थे, वह भी उग्र थे. दूसरा यह स्तंभ सरकार द्वारा नए परसेप्शन की भी कोशिश हो सकती है क्योंकि बीजेपी हो या कांग्रेस, दोनों प्रतीकों की राजनीति करती आई हैं.”
अतुल इस विषय के एक और पहलू का जिक्र करते हुए कहते हैं, “देश की संसद का भवन निर्माण चल रहा है. इसके उद्घाटन में सिर्फ प्रधानमंत्री का मौजूद होना मोदीजी के व्यक्तित्व के बारे में भी बताता है. विपक्ष या फिर लोकतंत्र के किसी भी अन्य हिस्सेदार को इस आयोजन से अलग रखना, अपने धर्म के मुताबिक रीति-रिवाजों से देश के राष्ट्रीय चिन्ह का उद्घाटन करना एक अलोकतांत्रिक छवि निर्मित करता है.”
इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा में विस्तार से बातचीत हुई. साथ में ब्रिटेन में प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव पर भी बातचीत हुई. पूरी बातचीत सुनने के लिए हमारा यह पॉडकास्ट सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
00:00:00 - 00:03:15 - इंट्रो और जरूरी सूचना
00:03:15 - 00:08:25 - हेडलाइंस
00:08:25 - 00:27:06 - भारत और पाकिस्तान में आज़ादी का अमृत महोत्सव और बीबीसी का पॉडकास्ट
00:27:09 - 00:55:50 - संसद भवन में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ
00:55:55 - 01:07:23 - ब्रिटेन में राजनीतिक उथल-पुथल
01:07:23 - सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
आनंद वर्धन
शब्द और स्मृति - निर्मल वर्मा की किताब
राजेश प्रियदर्शी
सावरकर: कालापानी और उसके बाद- अशोक कुमार पांडेय की किताब
द कमिश्नर फॉर लास्ट काज - अरुण शौरी की किताब
अतुल चौरसिया
बात सरहद पार - बीबीसी पॉडकास्ट
गांधी के हत्यारे: द मेकिंग ऑफ नाथूराम गोडसे एंड हिज आइडिया ऑफ इंडिया - धीरेंद्र झा की किताब
***
***
प्रोड्यूसर- रौनक भट्ट
एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - अश्वनी कुमार सिंह
Also Read
-
‘Foreign hand, Gen Z data addiction’: 5 ways Indian media missed the Nepal story
-
Mud bridges, night vigils: How Punjab is surviving its flood crisis
-
Adieu, Sankarshan Thakur: A rare shoe-leather journalist, newsroom’s voice of sanity
-
Corruption, social media ban, and 19 deaths: How student movement turned into Nepal’s turning point
-
Hafta letters: Bigg Boss, ‘vote chori’, caste issues, E20 fuel