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पत्रकारों पर हमला: सरकारी हंटर का भय धीरे-धीरे पत्रकारिता की शिराओं में फैलता जा रहा है

सोमवार 4 जुलाई को दिल्ली के प्रेस क्लब में पत्रकारों की सभा का आयोजन हुआ. अलग-अलग मीडिया संस्थानों के पत्रकार इस सभा में मौजूद रहे. प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने कहा कि वर्तमान में प्रेस की स्वतंत्र खतरे में है. ऐसा दिखाया जाता है कि समाज को मीडिया से खतरा है. वहीं वरिष्ठ पत्रकार टी एन नायनन ने कहा कि पत्रकारों के लिए लीगल सहायता की आवश्यकता है.

सोमवार को प्रेस क्लब में करीब 70 पत्रकार एकत्रित हुए. डिजीपब, प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया समेत एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, आईडब्ल्यूपीसी, इल्ली यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट और वर्किंग न्यूज़ कैमरा एसोसिएशन ने मिलकर एक सभा का आयोजन किया. इस दौरान मीडिया की स्वतंत्रता का हनन और पत्रकारों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमलों को लेकर बातचीत हुई.

दरअसल 28 जून को ऑल्ट न्यूज़ के संस्थापक और फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर पर एक ट्वीट के जरिए धार्मिक भावनाओं को आहत करने का आरोप लगा. जिसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया. इसी मामले में दिल्ली पुलिस ने तीन नई धाराएं भी जोड़ी थीं. पत्रकारों पर लगातार हमले के मद्देनजर इस सभा का महत्त्व बढ़ जाता है.

इस सभा में द वायर के एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन, बिज़नेस स्टैण्डर्ड के अध्यक्ष टी एन नायनन, आईडब्ल्यूपीसी की शोभना जैन और पीसीआई के उमाकांत लखेरा मौजूद थे. सभी ने अपनी-अपनी बात रखी.

वरिष्ठ पत्रकार टी एन नायनन ने कहा कि मीडिया आपस में बंटा होना इस समय की सबसे बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा, "समस्या यह है कि कई मुद्दों पर मीडिया के अलग-अलग चैनल एकजुट नहीं हो पाते. अखबार, मीडिया या न्यूज़ एजेंसियों का काम करने का तरीका अलग है. वे अपने नैरेटिव से काम करते हैं."

इस दौरान नायनन ने कई सुझाव दिए. उन्होंने कहा, "देशभर में प्रेस क्लब और मीडिया संस्थानों को प्रेस की स्वतंत्रता के लिए एक हो जाना चाहिए. साथ ही मीडिया संस्थानों को एक पैनल का गठन करना चाहिए जो पत्रकारों को कानूनी सहायता प्रदान कर सके. इसके लिए मीडिया संस्थाएं क्राउड फंडिंग से पैसा जमा कर सकती हैं."

सिद्धार्थ वरदराजन ने ज़ुबैर की गिरफ्तारी को गलत बताया और कहा कि सरकार को सबसे बड़ा ख़तरा फैक्ट चेकर्स से है. उन्होंने कहा, "ऑल्ट न्यूज़ और बूम लाइव फैक्ट चेकिंग का काम कर रहे हैं, जिसे कई मीडिया संस्थान नजरअंदाज कर देते हैं. सत्ताधारी सरकार, कई झूठी और भ्रामक खबरें फैलाने की कोशिश करती है लेकिन जुबैर ने सरकार के हर ऐसे इरादे का पर्दाफाश किया है. इसीलिए उसे उठाकर जेल में डाल दिया गया."

पीसीआई के सदस्य जयशंकर गुप्त कहते हैं, "यह भीड़ तब नहीं आती जब किसी हिंदी या उर्दू पत्रकार की गिरफ्तारी होती है."

इस सभा के अंत में प्रस्ताव पत्र पढ़ा जाने वाला था लेकिन उससे पहले मौजूदा पत्रकारों में से आवाज आई. स्क्रॉल की पूर्व ऑडियंस एडिटर कर्णिका कोहली ने भरी सभा में कहा कि प्रेस क्लब की आयोजित यह सभा काफी नहीं है. न्यूज़लॉन्ड्री ने कर्णिका से बात की. उन्होंने कहा, "हम डिजिटल पत्रकारिता के सबसे अहम दौर में हैं. तीन- चार घंटे की मीटिंग बुला लेने से कोई हल नहीं निकलता. मैं पिछले पांच साल से इस तरह की सभाओं में जा रही हूं."

नायनन की तरह ही कर्णिका ने भी कुछ सुझाव दिए हैं. उन्होंने हमें बताया, "हमें ऐसे ग्रुप की जरूरत है जो सोशल मीडिया की रीच पर ध्यान लगाकर काम करे. एनडीटीवी, वायर, न्यूज़लॉन्ड्री, कारवां और स्क्रॉल के अलावा कोई और इस तरह के आयोजनों की कवरेज नहीं करता, और इसलिए ऐसे आयोजनों में दिए गए संदेश कम लोगों तक पहुंचते हैं."

क्या इस तरह की सभाओं का कोई फायदा नहीं?

कर्णिका के सवाल वाजिब लगते हैं. क्या पत्रकारों के समर्थन में सभा आयोजन कर लेने भर से सब ठीक हो जाएगा? इस पर हमने वहां मौजूद कई पत्रकारों से बातचीत की.

स्वतंत्र पत्रकार प्रभजीत सिंह ने कहा, "मेरी चिंता इस तरह के आयोजनों की मौलिकता को लेकर है, क्या बंद कमरे के बाहर ये कोई प्रभाव छोड़ पाते हैं?" प्रभजीत एक उदाहरण से समझाते हैं, "इस साल की शुरुआत में मैं श्रीनगर में था. वहां का प्रेस क्लब बंद था पर दिल्ली में इसकी कोई चर्चा तक नहीं होती थी. आज की सभा अच्छी पहल पर ख़त्म हुई है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है."

कारवां के पॉलिटिकल एडिटर हरतोष सिंह बल ने कहा कि इस तरह की सभाएं जरूरी हैं, लेकिन काफी नहीं. वह कहते हैं, "मैं 2014 से इस तरह की सभाओं में अपने विचार रखता हूं. कानूनी सहायता जैसे सुझावों की बात बरसों से हो रही है. हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो ये सब काम करने की जिम्मेदारी ले सकें. जो संगठन इस तरह के आयोजन कराते हैं, उन्हें मिलकर, जिन सुझावों की बात होती है उन पर काम करना चाहिए. वरना सब बेकार है."

हरतोष नामी डिजिटल मीडिया संस्थानों पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं, "राघव बहल, प्रणय रॉय या शेखर गुप्ता क्या यहां तभी आएंगे जब उनके पत्रकारों को निशाना बनाया जाएगा? अगर वे पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं तो उनकी आवाज कहां है?"

इस सभा के अंत में एक प्रस्ताव की पेशकश की गई. इसे पीसीआई महासचिव विनय कुमार ने पढ़कर सुनाया. इसमें मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी पर विरोध दर्ज किया गया.

(आयुष तिवारी के सहयोग से)

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